सोमवार, 29 अगस्त 2016

व्यंग्य

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दरवाजे के बाहर खड़े उस आदमी जैसी विचित्र आकृति को देखकर मैं चैंका। घबराहट भी हुई। विचित्र रंग-रूप और वेशभूषा थी उनकी। देखने में खतरनाक दिख रहा था। थोड़ी दूर पर एक विचित्र वाहन खड़ी थी। अनुमान लगाने में दिक्कत नहीं हुई, यह उन्हीं की वाहन थी। दिन का समय था। गली में चहन-पहल थी। इधर-उधर से कुछ हिम्मत बटोरा। इस आसन्न खतरे से डरकर भागने में मूर्खता दिखी। सोचा, कोई विदेशी होगा, भारत भ्रमण पर आया होगा। पूछा - ’’कहिए, किससे मिलना है?’’

उनके पास एक यंत्र थी। यंत्र सक्रिय था। उसमें से विचित्र भाषा में कुछ आवाजें निकली। फिर उसने कुछ कहा, बिलकुल उस यंत्र से निकलनेवाली भाषा की तरह की भाषा में। फिर यंत्र कहने लगी - ’’मुझे मि. कुबेर से मिलना है। आप ही हैं न मि. कुबेर?’’

मुझे समझते देर न लगी। दरअसल वह यंत्र अनुवादक यंत्र थी। मेरी भाषा, जिसे मैं हिन्दी कहता हूँ, का उनकी भाषा में और उनकी भाषा का मेरी भाषा में अनुवाद कर रही थी। वाह! क्या चमत्कार था।

पर सबसे बड़ा चमत्कार तो वह आदमी खुद था, जिसे मेरा नाम-पता, सबकुछ मालूम था। मैं बुरी तरह घबरा गया - कहीं आतंकवादी या माओवादी न हो। देशी-विदेशी कोई जसूस न हो। उलझन में था, इसे भीतर बुलाया जाय या नहीं। भीतर से किसी दूसरे कुबेर ने कहा - अबे भोकू! यदि यह अंदर आने की ठान ही ले तो रोक सकेगा तू?

किसमत अच्छी थी, इसे देखकर डरनेवाला इस समय घर में मेरे सिवा और कोई नहीं था। फिर भी, अपहरण, चोरी-डकैती आदि का खतरा तो था ही। और दुर्भाग्य से यदि ऐसा हुआ तो पुलिस मुझे ही दोष देगी। मन ने ईश्वर को याद किया - हे! ईश्वर-अल्ला तेरो नाम, कैसा संकट लायो राम।

उसका अनुवादक यंत्र कहने लगी - ’’मि. कुबेर, इस समय आप जैसा सोच रहे हैं, वैसी कोई बात नहीं है। मेरी ओर से आपको कोई खतरा नहीं है। मैं हूँ शकाप्र, चाहें तो आप मुझे अपनी भाषा में प्रकाश कह सकते हैं। दरअसल मैं जहाँ से आया हूँ वहाँ हर चीज आपके यहाँ से उल्टी है। पर मैं आप ही की तरह एक अच्छा आदमी हूँ। मुझे आपसे कुछ मदद चाहिए।’’

मैं, और अच्छा आदमी? वाह! यह तो खुशामद करना भी जानता है। मन ही मन कहा - पता नहीं यह साला विचित्र आदमी मदद के नाम पर पैसा मंगनेवाला है कि किरायादार बननेवाला है। अच्छी चालाकी है। कहते है, मेरी ओर से कोई खतरा नहीं है। और मदद भी चाहिए। अरे, तुम क्या जानो, आज मदद करना ही यहाँ सबसे बड़ा खतरा होता है।

वह यंत्र फिर कहने लगी - ’’मि. कुबेरजी, आप जैसा सोच रहे हैं, वैसी कोई बात नहीं है। मदद में न तो मुझे धन चाहिए और न ही आपका मकान किराये पर। कुछ सलाह आपसे चाहिए। अंदर चलकर बैठने के लिए नहीं कहोगे?’’

’’पर मि. जी शकाप्र! आपने अपना परिचय तो बताया नहीं।’’

’’ओह! क्षमा करें कुबेरजी, आप इतना तो समझ ही चुके होंगे, मेरे हाथ की यह मशीन ’मल्टीफंक्शनल डिवाइस’ अर्थात कई काम एक साथ कर सकने में सक्षम मशीन है। इस समय यह ’ब्रह्माण्डीय भाषा अनुवादक’ अर्थात  ’युनिवर्सल नरेटर’ मशीन की तरह काम कर रही है। यह मशीन इस ब्रह्माण्ड की किसी भी भाषा का आपस में अनुवाद कर सकती है। यह ’यू थाटनेट’ का काम भी करती है। मतलब यह कि यह मशीन ब्रह्माण्ड में किसी के भी हृदय के भाव या मन के विचारों को पकड़कर उससे संपर्क स्थापित कर सकती है। बाहर खड़ी यह वाहन मेरा ’हाइपरफोटाॅनिक स्पेस शटल’ अर्थात फोटाॅन मतलब प्रकाश की गति से दसगुनी गति से उड़ने वाली अंतरिक्ष यान है। इससे कुछ ही पल में आपके सूर्य तक पहुँचा जा सकता है। यहाँ से ’फाइव थाॅट सेकंड’ दूर ’तीरध’ नामक ग्रह से मैं आया हूँ। उल्टा देखने पर यह धरती जैसी ही है। ’थाॅट सेकंड’ का मतलब होता है - मन की गति से चलने पर एक सेकंड में तय की गई दूरी। मन की गति से चलने पर हमारे ग्रह तक पहुँचने में पाँच सेकंड का समय लगता है। अपना नाम तो मैंने आपको पहले ही बता दिया है।’’

मैंने उसे अंदर आने के लिए आमंत्रित किया। बैठने के लिए सोफे की ओर इशारा किया। परंतु वह सोफे पर नहीं बैठा। उसने अपने ’मल्टीफंक्शनल डिवाइस’ का एक बटन दबाया। जाने कहाँ से कुर्सीनुमा एक यंत्र प्रगट हो गया जिस पर वह मजे से बैठ गया। मैंने उसे चाय-पान के लिए पूछा, परंतु उसने धन्यवाद कहकर शिष्टतापूर्वक मना कर दिया। जान बची लाखों पाय। मैंने हिम्मत करके पूछा - ’’पर यहाँ किसलिए आये हो, मि. जी शकाप्र?’’

उसने कहा - ’’मि. कुबेर, मैं एक रिसर्चर हूँ। ब्रहमाण्ड के रहस्यों पर रिसर्च कर रहा हूँ। यहाँ से गुजरते समय ’मल्टीफंक्शनल डिवाइस’ पर यहाँ के बारे में अजीब-अजीब सूचनाएँ आने लगी, जैसे - यहाँ के लोगों को स्वर्ग-नर्क के बारे में जानकारी है। यहाँ के लोग ईश्वर नामक किसी सुपर पावर के बारे में जानते हैं। यहाँ पर तरह-तरह के धर्म पाये जाते हैं, आदि, आदि  ....। ये बातें हमारे लिए नई हैं। अब मुझे इनके बारे में रिसर्च करना है। फिलहाल, मुझे तो आपकी यह धरती ही स्वर्ग जैसा लगी। इसलिए मुझे यहाँ लैंड करना पड़ा।’’

’’अरे! प्रभु, तब तो आप गलत जगह पर लैण्ड कर गये हैं। और वह भी मेरे घर में। इसके लिए तो आपको अमेरिका या इंगलैण्ड में लैंड करना था। आपको बड़े-बड़े युनिवर्सिटी और विद्वान वहाँ मिल सकते थे। यहाँ क्या खाक मिलेगा।’’

’’मि. कुबेर! हमारी यह ’मल्टीफंक्शनल डिवाइस’ कभी गलत सूचाएँ नहीं देती। इसमें हमने तुम्हारी धरती की सबसे अच्छी जगह और सबसे अच्छे व्यक्ति के बारे में सर्च किया है। इसने इसी जगह की और आपकी जानकारी दी है। इसीलिए हमने यहाँ लैण्ड किया है।’’

’’मि. जी शकाप्र! अभी आपने कहा, आपकी ग्रह में हर चीज यहाँ से उल्टी है। मुझे लगता है, आपकी यह मशीन जो सूचनाएँ दे रही है, वे सब उल्टी हैं। उसे सीधा करके देखिए - यह जगह दुनिया की सबसे खराब जगह है और मैं दुनिया का सबसे खराब आदमी हूँ।’’

’’नहीं, नहीं मि. कुबेर, यह मशीन इस तरह की गलती कभी नहीं करती। आपके कहने से पहले हमने इसे चेक करके देख लिया है। यह बिलकुल ठीकठाक है।’’

’’मि. जी शकाप्र! आप नहीं जानते; यही यहाँ की विशेषता है। चाहे कोई मशीन हो या आदमी का दिमाग, यहाँ आते ही खराब हो जाती है। यहाँ आते ही हर चीज खराब हो जाती है। अभी-अभी मेडिकल काॅलेज और अस्पतालों में करोड़ों रूपये की आधुनिकतम मशीनें आई हैं। चालू करते ही खराब हो गईं। करोड़ों की जान बचानेवाली दवाइयाँ खराब होकर जान लेने लगी हैं। डाॅ. बनते ही डाॅक्टरों का दिमाग खराब हो जाता है। भूख से मरा हुआ गरीब उन्हें आँतों के केंसर का मरीज दिखई देने लगता है। सामूहिक बलात्कार की शिकार मसूमों के जख्म डिस्को डांस के स्टेप्स के कारण बनी दिखाई देने लगती हैं। इंजीनियर बनते ही इंजीनियरों का, अधिकारी बनते ही अधिकारियों का, अध्यापक बनते ही अध्यापकों और मंत्री बनते ही नेताओं के, दिमाग खराब हो जाते हैं। इमारतें, पुल और सड़कें बनते-बनते ही खराब हो जाती हैं। फिर भी, मि. जी शकाप्र! मजे की बात यह कि यहाँ कोई भी मशीन और कोई भी दिमाग अपनी खराबी स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है।’’

उन्होंने अपने ’मल्टीफंक्शनल डिवाइस’ की कुछ बटनें फिर दबाई और आश्वस्त होने के बाद कहा - ’’मि. कुबेर, यह मशीन ’आटो रिपेयरेबल’ है। अपनी खराबियाँ और गलतियाँ खुद ही ठीक कर लेती है और अभी यह एकदम ठीकठाक काम कर रही है। यह आपकी बातों का समर्थन तो कर रही है। पर अपने पहले की सूचनाओं की पुष्टि भी कर रही है कि आप सही आदमी हैं।’’

मुझे क्रोध आया। कहा - ’’क्या खाक सही आदमी यार? आपको पता है - अहंकारी, बेईमान, नीयतखोर, नीच, कुत्ता, कमीना, ढेंचू, घोंचू, भोंकू, बांगड़ू, ये तमाम तमगे अपने कंधे पर चिपके हुए हैं।’’

उसने मंद-मंद मुस्काया, कहा - ’’कोई बात नहीं मि. कुबेर! हमने आपके बारे में और आपको ऐसे तमगे देनेवालों के बार में रिसर्च कर लिया है। हकीकत का हमें पता चल चुका है। सब ठीक है, हमारा डिवाइस आपके ग्रह के बारे में और भी बहुत सारी आश्चर्यजनक तथ्यों की जानकारी दे रही है। मसलन - यहाँ जब-जब पाप और अधर्म बढ़ते हैं, ईश्वर यहाँ अवतरित होकर उसका निवारण करते हैं। यहाँ ईश्वर के कई अवतार हो चुके हैं। मन की गति से उड़नेवाली विमान का विकास आपके यहाँ हमसे पहले ही हो चुका है। आपके यहाँ की मन की गति से उड़नेवाली विमान की टेक्नालाॅजी के बारे में हमें जानना है। सारे अवतारों की सच्चाई जानना है। गीता के उपदेशों के तरंगों को भी पकड़ना है। और भी बहुत सी बातों के बारे में हमें रिसर्च करना है। मैंने सोच लिया है कि इसके लिए मुझे यहाँ कुछ दिन रुकना होगा।’’

’’रुकना होगा? क्या आपने यहाँ की सरकार से इसके लिए अनुमतिपत्र लिया है? और ठहरिए, आपने अभी क्या कहा - ’आपने सोच लिया है।’ आप सोचते भी है?’’

’’क्यों, सोचना-विचारना भला कोई कैसे छोड़ सकता है?’’

’’छोड़ना ही पड़ेगा। यहाँ रहना है तो सोचना-विचारना छोड़ना ही पड़ेगा, मि. जी शकाप्र। वरना आपको यहाँ जीने नहीं दिया जायेगा। हत्या हो जायेगी आपकी। हमें देख लो, हमने तो कान पकड़कर सोचना-विचारना छोड़ दिया है। यहाँ सोचने-विचारने का काम यहाँ की सरकार करती है। हमें तो चुनाव में केवल वोट देना होता है, वह भी बिना सोचे-विचारे।’’

’’तो क्या आप लोग यहाँ बिना सोचे-विचारे ही काम करते हैं, मि. कुबेर।’’

’’सही अनुमान लगया आपने, मि. जी शकाप्र, हमारे यहाँ अब सोच-विचारकर बोलना और काम करना अघोषित रूप से प्रतिबंधित है।’’ मेरी बातें सुनकर वह कुछ परेशान दिखने लगा। मैंने उससे फिर पूछा - ’’अच्छा, आपको यहाँ के ट्रैफिक रूल के बारे में पता है?’’

उसने अपने यंत्र पर कुछ पढ़ा और कहा - ’’आपके यहाँ का ट्रैफिक रूल हमारे यहाँ के रूल से बिलकुल उल्टा है। लेकिन अब हमने वह सीख लिया है।’’

’’न, न, मि.जी शकाप्र! आप यहाँ की ट्रैफिक रूल सीखकर बहुत बड़ी गलती करेंगे। यह भूल आप कदापि न करें। यहाँ की सड़कों पर चलने के लिए आपको सारे ट्रफिक रूल भूलने पड़ेंगे। बस एक ही रूल आपको याद रखना होगा। जिधर भी, जहाँ भी थोड़ी जगह दिखे, आपको वहीं अपना सींग धुसा देना होगा। और हाँ, आप पान, खैनी-गुटखा खाते हैं कि नहीं?’’

’’पान, खैनी-गुटखा?’’

’’नहीं खाते? दुख की बात है, मि.जी शकाप्र! यहाँ की सड़कों पर चलते हुए पान, खैनी-गुटखा खाना और दायें-बायें थूकना यहाँ का जरूरी धार्मिक कृत्य है। इस परंपरा को यहाँ थूँक-दान कहा जाता है। अगल-बगल चलनेवालों के चेहरों पर थूँक के छींटे पड़ने से बड़ा पुण्य मिलता है। अच्छा, एक बात और बताएँ; आपको सड़क किनारे या किसी सार्वजनिक स्थल पर खड़े होकर मूतना आता है?’’

’’खुले में मूतना? क्या यहाँ मूत्रालय नहीं होते?’’

’’सवाल मूत्रालय के होने, न होने का नहीं है, मि. जी शकाप्र! महत्वपूर्ण है परंपरा और उसको निभाना। यह यहाँ की बड़ी प्राचीन परंपरा है। इस परंपरा को यहाँ मूत्रदान परंपरा कहा जाता है। ऐसा करने से बड़ा पुण्य लाभ होता है। इस पर रोक लगाने का मतलब होगा, यहाँ की परंपरा प्रेमी, श्रद्धान्ध जनता को बहुत बड़े पुण्य लाभ से वंचित करना। यहाँ की जनता इसे कतई बरदास्त नहीं करेगी। हिंसात्मक आंदोलन हो जायेगी।’’

मेरी बातें सुनकर मि. शकाप्र की चिंताएँ और बढ़ गई। गर्म लोहे पर हथौड़ा मारते हुए मैंने कहा - ’’मि. जी शकाप्र! आप देश की कानून का सम्मान तो करते होंगे, उससे डरते भी होंगे, है न?’’

’’क्यों, देश की कानून का सम्मान नहीं करना चाहिए क्या?’’
’’बिलकुल नहीं, मि. जी शकाप्र?’’
’’यह तो अपराध है।’’
’’आपके यहाँ होगा। यहाँ इसे स्टेटस सिंबल कहा जाता है।’’
’’अद्भुत, मि. कुबेर! तब तो अपराध करने से यहाँ कोई डरात नहीं होगा?’’

’’अपराध से डरना? अरे, क्या कहते हो मि. जी शकाप्र! एक यही काम तो है, जिसे यहाँ के लोग पूरी निष्ठा और ईमानदारी से करते हैं। निष्ठा और ईमानदारी को बचाने लिए अपराधकर्म को कायम रखना जरूरी है। समझे?’’

मेरी बातें सुनकर वह सचमुच ही घबराने लगा। मैंने फिर हथौड़ा चलाया - ’’मि. जी शकाप्र! यहाँ रहने के लिए जो न्यूनतम अर्हताएँ चाहिए, वह भी आपके पास नहीं है। कैसे रह सकेंगे आप यहाँ?’’

उसने बुझे मन से कहा - ’’आप ठीक ही कहते हैं मि. कुबेर। यह तो मुझे अर्जित करना ही पड़ेगा। जल्द ही लौटकर आऊँगा। तब तक के लिए अलविदा।’’

उसे बिदा करते हुए मैंने मन ही मन कहा - वह दिन कभी नहीं आयेगा मि. जी शकाप्र। अलविदा।
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