शुक्रवार, 26 अगस्त 2016

कविता

है सबका ख़ुदा सब तुझ पे फ़िदा
अल्लाहो ग़नी अल्लाहो ग़नी
हे कृष्ण कन्हैया, नंद लला
अल्लाहो ग़नी अल्लाहो ग़नी

मुट्ठी भर चावल के बदले
दुख दर्द सुदामा के दूर किए
पल भर में बना क़तरा दरिया
ऐ सल्ले अला
अल्लाहो ग़नी अल्लाहो ग़नी

दिलदार ग्वालों बालों का
और सारे दुनियांदारों का
सूरत में नबी सीरत में ख़ुदा
ऐ सल्ले अला
अल्लाहो ग़नी अल्लाहो ग़नी

मन मोहिनी सूरत वाला था
न गोरा था न काला था
जिस रंग में चाहा देख लिया
ऐ सल्ले अला
अल्लाहो ग़नी अल्लाहो ग़नी

तालिब है तेरी रहमत का
बंदए नाचीज़ नज़ीर तेरा
तू बहरे करम है नंद लला
ऐ सल्ले अला
अल्लाहो ग़नी अल्लाहो ग़नी

नज़ीर अकबराबादी

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