बुधवार, 21 सितंबर 2016

कविता

सच होती एक उक्ति


ईश्वर और अल्लाह एक नहीं थे
उन्हें एक करने के लिए एक उक्ति गढ़ी गई
’ईश्वर-अल्लाह तेरो नाम
सबको सन्मति दे भगवान’
और यही उक्ति
मेंरे उपर्युक्त कथन का प्रमाण है।

अपनी और अपने शास्त्रों की आलोचनाएँ,
अविश्वास और टिप्पणियाँ कोई मनुष्य करे
यह छूट न कभी ईश्वर ने दिया है
और न अल्लाह ने।

फिर भी मैं निर्भीक होकर
ईश्वर की आलोचनाएँ कर सकता था
ईश्वर के अस्तित्व को नकार सकता था
परन्तु
अल्लाह के बारे में
ऐसा न अब सोच सकता हूँ
न पहले कभी सोच सकता था

’ईश्वर अल्लाह तेरो नाम ...’
यह किसी आशावादी की उक्ति होगी
अथवा किसी हताशावादी की
और मैं -
न तो आशावादी हूँ
और न हताशावादी
यथार्थ जो दिखाता है उसे मानता हूँ
इसीलिए इस उक्ति को सिरे से नकारता हूँ।

पर अब, यह उक्ति सचमुच
सच होती दिखती है
निःसंदेह, ईश्वर और अल्लाह
एक होते दिखते हैं
क्योंकि अब तो
ईश्वर के संबंध में भी कुछ कहते हुए
गले पर असंख्य तलवार
लटकते हुए दिखते हैं।

फतवों और तलवारों के बाद भी,
ईश्वर और अल्लाह,
और ऐसे सभी तत्वों को मैं नकारता हूँ
क्योंकि ये मुझे महज
एक काल्पनिक दृश्य लगते हैं।
और, कल्पना के केवल एक ईश्वर और
एक अल्लाह को क्यों माना जाय?
जबकि मानने के लिए मुझे अपने चारों ओर
घिसटते-रपटते चलते, रोते-बिलखते
असंख्य, आदमी ही आदमी नजर आते हैं।
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