रविवार, 4 सितंबर 2016

व्यंग्य

दमदार लोगों का देश


दमदार लोगों के इस देश को डरपोक और घोंचू लोगों का देश बतानेवाले बांगड़ुओं के लिए सौ-सौ लानतें। 

यहाँ पुलिस से ज्यादा दम अपराधियों में होता है। कहते हैं - दम है तो पकड़ के बता। सरकारी रकम डकारनेवालों के दम का कहीं कोई तोड़ नहीं। कहते हैं - जिसके ...... में दम है, पकड़ ले। बच्चे और जवान सरकारी संपत्तियों को तोड़-फोड़कर आपना दम दिखाते हैं। गरीब और मजदूर पच्चीस-पचास की रोजी कमाकर भी दमदारी से अपनी गृहस्थी खीच ले जाते हैं।

मुझे मिलनेवाले लोग तो अक्सर दमदार हाते हैं। मित्र भी, सहमर्की भी, परिचित भी और अपरिचित भी। इनमें से कुछ तो सार्वत्रिक-दमदार होते हैं। ये चाहे उपस्थित रहें, न रहें; इनके दम का प्रभाव सदा और सर्वत्र मौजूद रहता है।

उस दिन चौराहे पर ट्रैफिक पुलिस ने तीन की सवारी वाले एक मोटर सायकिल को पकड़ लिया। तीनों नवयुवक थे; अभी-अभी बालिग हुए थे। नवयुवक थे तो मर्जी के मालिक भी थे, चाहे जितने लोंगों की सवारी कर लें। नवयुवक थे तो भीड़ के अंदर भी अच्छी-खासी स्पीड में चल सकते थे। नवयुवक थे तो ड्राइविंग लायसेंस क्या खाक होगी उनके पास। पर थे दमदार। समझदार भी थे, जुर्माना देना स्वीकार था, पुलिसवाले से उलझना नहीं। पुलसवाले को रसीद बुक निकालते देखकर उन्होंने भी अपना बटुवा निकाल लिया।

पुलिसवाला अनुभवी था, पर उन नवयुवकों को समझदार समझने के फेर में उनका अनुभव गच्चा खा गया। बिना परिचय पूछे उसने जुर्माने की रसीद बना डाली। आदत थी, अन्य विवरण दर्ज करने के बाद नाम-पता पूछने की; सो वैसा ही किया।

युवक ने अपना नाम बताया - ’’क कुमार।’’

नाम सुनते ही पुलिसवाले के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगी। पूछा - ’’कुमार साहब के लड़के हो?’’
’’जी।’’

’जी’ सुनते ही पुलिसवाले के माथे पर गंगा-जमुना बहने लगी। पसीना पोछते हुए उसने बड़े प्यार से कहा - ’’बेटा! आपने यह पहले क्यों नहीं बताया?’’

जिस प्यार से उसने इनसे यह सवाल पूछा था उतने प्यार से कभी अपने बेटे से भी नहीं पूछा होगा।
उतने ही प्यार से क कुमार ने छक्का जड़ा - ’’आपने पूछा कहाँ अंकल?’’

वह रसीद बुक से पंखा करके अपने चेहरे के पसीने को सुखाने की कोशिश करता था। पसीना था कि सूखने का नाम ही नहीं लेता था। काफी देर तक यही कोशिश होती रही। बीच-बीच मेें उनके श्रीहीन मुख से दारूण दुख से भींगा हुआ पश्चातापवाला यह वाक्य निकल पड़ता - ’’बताना था न बेटा।’’

युवक नोट को आगे बढ़ते हुए कहता - ’’प्लीज, जल्दी कीजिए न अंकल। हाॅस्पिटल जाना है, फ्रेण्ड से मिलने। गेट बंद हो जायेगा।’’

पता नहीं, आगे क्या हुआ। इस ट्रेजिडी-काॅमेडी को देखकर मुझे एंगर हो रहा था। वहाँ से हटना ही उचित लगा।
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इस एतिहासिक चौक पर कभी देशभक्तों की सभाएँ और वक्तव्य हुआ करते थे। आजकल यहाँ राजनीतिक दल के कार्यकर्ता विरोधी दल के मंत्री और नेताओं के पुतले फूँकते हैं। अपने मरे हुए नेताओं और साथियों को श्रद्धांजलि देने के लिए मोमबत्तियाँ जलाते हैं। यही कारण है कि लोग आजकल इस चैक को श्मशान चौक कहने लगे हैं। लोगों का मानना है - इस ऐतिहासिक चौक पर दम दिखानेवाले लोग बहुत जल्दी राष्ट्रीय गौरव मान लिये जाते हैं। इसीलिए, आजकल राष्ट्रीय गौरव की अभिलाषी स्थानीय दमदार प्रतिभाएँ इस चौक का उपयोग दम दिखाने के लिए करने लगे हैं।

कुछ दिन पहले यहाँ एक खानदानी-दमदार का दम देखने को मिला। नौकरीवाली अवस्था के दिनों की उल्टीगिनती गिननेवाले दो दोस्त च चंद और ज चंद आपस में बातें कर रहे थे। च चंद ने ज चंद से कहा -
’’अबे, तूने अब तक सर्विस ज्वाइन नहीं की?’’

’’साला बांगड़ू, समझता क्या है। ये देख, पावती।’’

’’पर तेरे को कभी ड्यूटी पर जाते नहीं देखा।’’

’’काम दमदारी से करने का। नहीं जाता - तो साला कौन क्या उखाड़ लेगा?’’

’’अबे, नई-नई नौकरी है न।’’

’’अबे, दम होना चाहिए। नौकरी करेंगे तो दमदारी से करेंगे। सरकारी नौकरी है, किसी बनिये की नहीं। किसके.......दम है जो मेरी नौकरी उखाड़ सके।’’

एक परिचित ने उस दमदार के बारे में बताया - ’ये दमदारों के खानदान की नयी हाइब्रिड दमदार फसल हैं। नौकरी मिलते ही इनके अंदर अचानक दम विस्फोट हो गया है।’
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हर कार्यालय में कोई एक, मातहत-दमदार जरूर होता है। बाॅस का मुखौटा जितना खुर्राट होता है, उसका मातहत-दमदार उतना ही अधिक दमदार होता है। एक दमदार बाबू हैं, झ चंद। हरदम बाॅस का दम निकालने की ताक में रहते हैं। अबतक जितने भी बाॅस आये, उन्होंने सबको बेदम करके बिदा किया।

समझदार बाॅस ऐसे मातहतों से लोहा न लेकर उनका लोहा मन लेता है। वर्तमान बाॅस समझदार हैं। उन्होंने ऐसा ही किया है। पहले ही दिन अपना दम झ चंद के श्रीचरणों में सर्मित कर आया है। झ चंद के सामने अपनी कुर्सी पर बैठने में भी वे अपराध महसूस करते हैं। बाँकी मातहतों पर दम गालिब करके इस अपराध भावना पर पर्दा डालने का प्रयास करते रहते हैं। उन्होंने सबको साफ-साफ कह दिया है - ’’झ चंद की झाड़ की जड़े बड़ी गहरी हैं। उसे हिला पाने का दम मुझमें नहीं है। आप लोग हिला सको तो हिला लो।’’
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यह देश डिप्लोमाधारी-दमदार नामक विशाल और विचित्र प्राणियों के लिए जग जाहिर है। रामहनित बाली के ये वंशज माने जाते हैं। इनके शरीर में बाली के गुणसूत्र पाये जाते हैं। बाली को मिला बरदान आनुवांशिक रूप से इन्हें प्राप्त होता है। आप जानते ही हैं, दुश्मन का आधा दम बाली के शरीर में शिफ्ट हो जाता था।

इन विशाल और विचित्र प्राणियों का काम जनता के लिए नहरें, बांध, पुल, सड़कें और इमारतें बनाना है। ये साइट पर जाते जरूर होंगे पर किसी को दिखाई नहीं देते हैं। लोगों का मानना है कि इनका शरीर पारदर्शी होता है, इसीलिए ऐसा होता है। जब-जब ये साइट पर जाते हैं, बाली को मिला वरदान आनुवांशक प्रभाव के कारण प्रभावशील हो जाता है। बनने वाले नहरों, बांधों, पुलों, सड़कों और इमारतों का आधा दम इनके शरीर में शिफ्ट हो जाता है। बनती हुई चीजें बनते तक मरणासन्न स्थिति में पहुँच जाते हैं। उद्घाटन और लोकार्पण तक जीवित दिखाने के लिए इन्हें वेंटिलेटर पर रख जाता है।

यहाँ की भव्य कोठियों में दमदारों की और भी अनेक कोटियाँ पाई जाती हैं। देश की जनता इन सभी दमदारों को अच्छी तरह पहचानती है। लिखने की जरूरत नहीं थी। पर दरअसल, आजकल मैं भी खुंद को दमदार मानने लगा हूँ। लोग मुझे बांगड़ू दमदार कहने लगे हैं। दमदारी दिखाने के लिए ही यह सब लिखना पड़ा है।
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