रविवार, 15 जनवरी 2017

कविता


भक्त या गुलाम

हे! क्षीरसागरी, शेषशायी
सचमुच अगम्य है तुम्हारी  दुनिया
अनिर्वचनीय हैं तुम्हारे कार्य
लोग जिसे तुम्हारी लीलाएँ कहते हैं।

ऐसा कहनेवाले तुम्हारी दुनिया देख आये हैं,?
तुम्हें लीलाएँ करते देख पाये है?

वस्त्र, रत्न, आभूषण और सारे आयुध
जिसे तुम धारण करते हो
इसी दुनिया के हैं
लक्ष्मी जहाँ से आयी है
वह भी इसी दुनिया में है
ऐश्वर्य तो लिया इस दुनिया से
गरीबी और बेबसी क्यों नहीं ली?
तुम्हारा स्वर्ग, क्षीरसागर और शेषशैया 
जहाँ तुम छिपे हुए हो
किस दुनिया के हैं?
इसका मर्म समझानेवाले सारे
इसे देख आये हैं?
मर्म समझानेवाले 
इसका मर्म समझा पायेंगे?

इस समाज की रचना करनेवाले
हे! समाजविहीन
ऋषि कहतें हैं तो
समाज की समझ तुम्हें जरूर होगी

तुमने अर्जुन से कहा है -
’’चातुर्वण्र्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः।
तस्य कर्तारमपि मां विद्धîकर्तारमव्ययम्।।’’
बताओगे, कैसे?
यह सच है?

गाँव-गाँव, गली-
गली और मुहल्ले-मुहल्ले में तैनात
तुम्हारे बारे में तरह-तरह की जानकारियाँ देनेवाले
धनसागर और ज्ञानसागर में अवगाहन करनेवाले
मुक्ति का मार्ग बतानेवाले, तुमसे बंधे, अमुक्त लोग
बताओगे
तुम्हारे भक्त हैं,
या तुम्हारे गुलाम?
000                                              KUBER

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