शनिवार, 18 मार्च 2017

कविता

मुँह उद्योग


बनानेवाले ने बनाया एक मुँह
रहा होगा वह कोई कलाकार
तथाकथित, कला और सौंदर्य का साधक
बेवकूफ और बेकार।

हम व्यापारी हैं
संभावनाओं के पार जाते हैं
क्लोनिंग तकनीक जानते हैं
क्लोनिंग करके एक के अनगिनत मुँह बनाते हैं।

अब हमारे पास हैं कई मुँह
कई तरह के
लुभावने भी,  डरावने भी -

बाल के, खाल के,
गाल के, चाल के, कदमताल के,
सबके सब बड़े कमाल के,

कान के, जुबान के, नाक के,
पहचान के, मान-सम्मान के,
दुनिया-जहान के,

गर्दन के, नमन के, धड़कन के,
अकड़न और जकड़न के,
अटकन-मटकन के,

नखों के, आँखों के, आँसुओं के,
दुवाओं, कराहों, कहकहों, आहों के,
बाहों के, चाहों के, भावों और घावों के,

पेट और पीठ के, कूल्हों और छातियों के,
जांघों, घुटनों, एड़ियों, टखनों और तलवों के
दांतों, होठों, मुस्कानों,
अदाओं और स्तनों के जलवों के

और?
और पता नहीं
कितने, और कितने

कितने बन पाये हैं
कितने और कैसे-कैसे बनाये जायेंगे
बाजारों और दुकानों में
जिंसों की तरह इसे सजाये जायेंगे
मुँह बेचकर ही अकूत धन कमाये जायेंगे।

मुँह उद्योग आज का सर्वाधिक कमाऊ उद्योग है।
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