शनिवार, 25 मार्च 2017

आमुख

आगामी कविता संग्रह - ’कुछ समय की कुछ घटनाएँ इस समय’ की भूमिका

.... स्वस्ति संवाद ....


मित्रों, यह प्रकृति की परम शक्ति है और जग-जीवन में उसकी सर्वोपरि उपस्थिति है। सृष्टि के पंचतत्व - धरती, आकाश, पवन, पानी और पावक उसके ही उपादान हैं। वस्तुतः, यह धरती प्रकृति की ही अभिराम अभिव्यक्ति है। मनुष्य इस जैव-जगत का केन्द्र बिंदु है। एतदर्थ, यह कहा जा सकता है कि  प्रकृति और मनुष्य का नाभी-नाल संबंध है और उनमें गहन अंतरावलंबन भी है। लोक हितैषिता के लिए यह आदर्शतम अनुबंधन वरेण्य है। सच मानिए, जब तक इन घटकों में समरसता और संतुलन बना रहेगा, यह दुनिया खुबसूरत और खुशगवार बनी रहेगी।

इधर, विगत कुछ शताब्दियों से दुनिया का परिदृश्य बदल रहा है, विकृत हो रहा है। व्यावसायिक जगत के बिजूकों और विज्ञान के बाजीगरों ने पूरी दुनिया को ’विश्वग्राम’ बनाने के बहाने कसाईबाड़ा या कूड़ादान बनाने का निकृष्टतम कार्य कर दिखाया है। सियासतदारों ने भी इस जन-विरोधी कार्य में उनका बखूबी साथ निभाया है। नतीजतन, यह दुनिया बड़ी तेजी से बाजार में तब्दील होती जा रही है और आम आदमी खरीद-फरोख्त के सामान की मानिंद बिकाऊ होता जा रहा है। यह परिवर्तन है या इतिहास की अंगड़ाई या मतलबजदा तिजारतदारों और बहशी बाहुबलियों की दरींदगी। आखिर, हमारा समाज चुप क्यों है? क्या हो गया है उसके ज़मीर को? वह अपने जाने-चीन्हे दुश्मनों से जूझने का साहस क्यों नहीं कर दिखाता? क्यों उसका वजूद बेसूझ अंधेरे में गुम होता जा रहा है? ये सभी सुलगते हुए सवाल हैं जिनके हल की तलाश का अंजाम है - ’’कुछ समय की कुछ घटनाएँ: इस समय’’।

भाई कुबेर की छप्पन कविताओं की यह किताब मानव अस्मिता की रक्षा और प्रतिष्ठा के लिए उत्पीड़ित मानवता तक पहुँचने की प्रभावी पहल ही नहीं, प्रत्युत आदमियत के गुनहगारों से जंग छेड़ने का अभियान भी है। इस संकलन की कविताएँ कृशकाय किसानों और मेहनतकश मज़दूरों के श्रम-सीकरों से जन्मी ऊर्जा से लबरेज़ हैं। मेरी समझ में कुबेर की कविताएँ ’चकमक के पत्थर की मानिंद’ हैं, जिन्हें उछालो तो आतताइयों के सर फट जायेंगे और रगड़ो तो गरीबों के चूल्हों में आग सुलग जायेगी। कुबेर की ज्योतिर्वाही कविताएँ चंचल और वाक्पटु हैं। आप इन्हें आवाज दीजिए ........ बोलने लगेंगी, बतियाएँगी और जन जीवन की जटिलताओं को सरल-तरल बनाने का जतन करेंगी।

कुबेर के रचना-संस्कारों को राजनांदगाँव की सुरमयी माटी ने सिरजा है फलतः उनमें बख्शी, मुक्तिबोध और विनोद कुमार शुक्ल के काव्य संस्कार भी समाहित हैं। मुझे पूर्ण विश्वास है, समकालीन हिन्दी कविता संसार में ओज और पुरोगामी विचारों के कवि कुबेर का यथोचित सम्मान होगा और उनकी कविताएँ बेहतर समाज की निर्मिति में समर्थ सिद्ध होंगी। इत्यर्थ, रचनाकार को मेरी अशेष मंगलकामनाएँ एवं हार्दिक बधाई! इति, शुभम ..........


                           
                भवदीय
                (डाॅ. बिहारीलाल साहू)
                9425250599, 769305059
17, किरोड़ीमल कालोनी, रायगढ़ (छ.ग.)

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