आगामी कविता संग्रह - ’’कुछ समय की कुछ घटनाएँ’’ में मेरी बात -
ताप और गतिशीलता जीवन की पहचान है। इससे जीवन की पुष्टि और परख होती है। जीवन में ताप और गतिशीलता पैदा करना भी समकालीन साहित्य का उत्तरदायित्व है। ताप के लिए आग की जरूरत होती है। सारी सभ्यताओं के मूल में आग ही है। आग इंधन के जलने से पैदा होती है। जीवन की आग विचार रूपी इंधन से उत्पन्न आग होती है। जीवन में गतिशीलता लाने के लिए नये और बेहतर का अनुसंधान जरूरी है। इसके लिए जरूरी ऊर्जा विचारों की आग से आती है। विचार एक तरंग है। तरंग और विक्षोभ पैदा करने के लिए निर्दिष्ट स्थान पर उचित आघात आवश्यक है। यह प्रयास भी समकालीन साहित्य का उत्तरदायित्व है।
इस संग्रह में संकलित कविता ’अभिलाषा इतिहास की’ आरंभिक दिनों में लिखी गई कविता है जिसे परिमार्जित करके संकलित किया गया है। अन्य कविताएँ विगत छः वर्षों के अंतराल की मेरी वैचारिक संघर्ष की उपज है। उम्मीद है, आपके लिए उपयोगी सिद्ध होगी।
मैं अग्रजतुल्य आदरणीय डाॅ.बिहारीलाल साहू,हितचिंतक डाॅ. नरेश कुमार वर्मा तथा अपने मित्रों का आभारी हूँ; जिनका इस संग्रह के प्रकाशन में विशेष योगदान रहा।
मेरी बात
समय के किसी खण्ड में एक साथ होना या एक साथ पाया जाना शायद समकालीन होना कहा जाता है। हमारे पहाड़ और हमारी नदियाँ सदियों से न जाने कितनी सभ्यताओं, कितनी पीढ़ियों और कितनी जातियों के समकालीन रहे हैं। ये अपने युग के प्रकाश और अंधकार - दोनों के भी समकालीन रहे हैं। ये भी अपने युग का इतिहास लिखते हैं। इन्हांेने अपने युग का इतिहास लिखते समय अपने उस काल के प्रकाश का ही नहीं, अंधकार का भी इतिहास लिखा है। इन्होंने मनुष्य का भी इतिहास लिखा है, परन्तु अपनी भाषा में। इनका लिखा इतिहास और साहित्य उस दौर के इतिहासकारों और साहित्यिकों द्वारा लिखे इतिहास और साहित्य के समकालीन ही हैं और इनका लेखन इनसे कहीं अधिक यथार्थपरक, अधिक प्रमाणिक, अधिक प्राकृतिक और अधिक कलात्मक भी हैं। परन्तु प्रकृति की भाषा मनुष्य की भाषा नहीं है। इसे मानवीय भाषा में रूपान्तरित करना आसान भी नहीं है। इसीलिए मनुष्य द्वारा अपनी भाषा में लिखा गया अपना इतिहास और अपना साहित्य ही मनुष्य का अपना इतिहास और अपना साहित्य है। मनुष्य अपना इतिहास लिखते हुए प्रकृति लिखित इतिहास की अनदेखी नहीं कर सकता, न हीं करना चाहिए। कुछ भी हो, पर इससे इतना तो तय होता है कि समकालीन साहित्य प्रमाणिक और प्राकृतिक होना चाहिए। समकालीन साहित्य में न केवल प्रकाश अपितु अंधकार की भी पड़ताल होनी चाहिए। इसकी भाषा मनुष्य की भाषा होनी चाहिए। उस समय की सच्चाई और युगीन यथार्थ की उपेक्षा करके यह संभव नहीं है। उस समय के अंधकार की उपेक्षा करके भी यह संभव नहीं है।
ताप और गतिशीलता जीवन की पहचान है। इससे जीवन की पुष्टि और परख होती है। जीवन में ताप और गतिशीलता पैदा करना भी समकालीन साहित्य का उत्तरदायित्व है। ताप के लिए आग की जरूरत होती है। सारी सभ्यताओं के मूल में आग ही है। आग इंधन के जलने से पैदा होती है। जीवन की आग विचार रूपी इंधन से उत्पन्न आग होती है। जीवन में गतिशीलता लाने के लिए नये और बेहतर का अनुसंधान जरूरी है। इसके लिए जरूरी ऊर्जा विचारों की आग से आती है। विचार एक तरंग है। तरंग और विक्षोभ पैदा करने के लिए निर्दिष्ट स्थान पर उचित आघात आवश्यक है। यह प्रयास भी समकालीन साहित्य का उत्तरदायित्व है।
इस संग्रह में संकलित कविता ’अभिलाषा इतिहास की’ आरंभिक दिनों में लिखी गई कविता है जिसे परिमार्जित करके संकलित किया गया है। अन्य कविताएँ विगत छः वर्षों के अंतराल की मेरी वैचारिक संघर्ष की उपज है। उम्मीद है, आपके लिए उपयोगी सिद्ध होगी।
मैं अग्रजतुल्य आदरणीय डाॅ.बिहारीलाल साहू,हितचिंतक डाॅ. नरेश कुमार वर्मा तथा अपने मित्रों का आभारी हूँ; जिनका इस संग्रह के प्रकाशन में विशेष योगदान रहा।
कुबेर
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