बुधवार, 15 नवंबर 2017

व्यंग्य

मित्रों के बोल-नमूने

नमूना - 9
सचमुच का अंधा

बंशीराम अंधा और गंगाराम लंगड़ा, दोनों मेला देखने जा रहे थे। परंपरा के अनुसार गंगाराम लगड़ा बंशीराम अंधे की कंधे पर सवार हो रास्ता बताता जाता था। मेले के निकट पहुँचने पर बंशीराम अंधे ने गंगाराम से कहा - 
’’वाह! मित्र, ताजे माल की कितनी बढि़या महक आ रही है।’’

गंगाराम लंगड़े ने आश्चर्य से कहा - ’’खुशबू? ताजा माल? कैसी बातें करते हो मित्र। मेला अभी दूर है।’’

बंशीराम अंधे ने कहा - ’’हाँ मित्र, जवान लड़कियों की ताजा महक। क्या लड़कियाँ नहीं जा रही है?’’

गंगाराम लंगड़े ने पीछे मुड़कर देखा। कुछ दूरी पर जवान लड़कियाँ आती हुई दिखीं। उन्होंने कहा - ’’मित्र! अभी तक मुझे तुम्हारे अंधे होने पर संदेह था। पर अब वह दूर हो गया है। तुम सचमुच अंधे हो।’’
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