बुलबुल अउ गुलाब -The Nightingale And The Rose
मूल -
The Nightingale and the Rose
कथाकार -
(आस्कर वाइल्ड)
Oscar Wilde
Transtated in Chhtisgarhi by KUBER
Transtated in Chhtisgarhi by KUBER
’’वो
ह कहिथे, वो ह मोर संग तभे नाचही, जब मंय ह वोला लाल गुलाब के फूल ला के
दुहूं।’’ रोवत-रोवत जवान छात्र ह कहिथे, ’’फेर मोर सबो फुलवारी म तो लाल
गुलाब के एको ठन फूल नइ फूले हे, कहाँ ले लानव मंय ह लाल गुलाब के फूल?’’
फुड़हर
पेड़ के खंधोली मन के बीच, अपन खोंधरा म बइठे बुलबुल चिरई ह वोकर रोवई ल
सुनिस, पत्ता मन के ओधा ले झांक के वोला देखिस अउ बड़ा हैरान होइस।
’’मोर
फुलवारी म एको ठन लाल गुलाब नइ हे।’’ वो ह जोर से चिल्लाइस अउ वोकर सुंदर
अकन आँखीं डहर ले तरतर-तरतर आँसू बोहाय लगिस। ’’हाय, आदमी के खुशी ह कतका
छोटे-छोटे बात के मुहताज रहिथे! महू ह पढ़े हंव, बुद्धिमान मनखे मन घला
कहिथें, शास्त्र मन म लिखाय रहस्य ल घला जानथंव, तभो ले एक ठन लाल गुलाब के
फूल खातिर मोर जीवन ह अबिरथा लागत हे।’’
’’आखिर
इही हरे असली प्रेमी।’’ बुलबुल ह किहिस - ’’जेकर प्रेम-गीत ल न जाने, के
रात ले, रात भर-भर जाग के मंय ह गाय हंव। भले येला मंय ह नइ जानंव, फेर
येकरे गीत ल तो मंय ह रात-रात भर जाग के चंदा-चंदेनी मन ल सुनाय हंव, अउ
देख, आज ये ह मोर आघू म बइठे हे। येकर चूंदी ल देख, सम्बूल फूल के गुच्छा
मन सरीख कइसे सुंदर करिया-करिया दिखत हे; अउ येकर ओंठ ल तो देख, येकर हिरदे
के प्रेम रूपी लाल गुलाब सरीख कइसे लाल-लाल दिखत हे। फेर येकर मन के उदासी
ह येकर चेहरा ल हाथी दांत कस पिंवरा-पिंवरा कर देय हे। दुख ह येकर माथा म
चिंता के गहुरी लकीर खींच देय हे।’’
’’कल
रातकुन राजकुमार ह नाच-गान के उत्सव करत हे,’’ जवान छात्र ह टुड़बुड़ा के
कहिथे - ’’अउ मोर मयारुक ह घला विहिंचे रही। अगर मंय ह वोला लाल गुलाब के
फूल ला के दे दुहूं तब वो ह बिहिनिया के होवत ले मोर संग नाचही। अगर मंय ह
वोला लाल गुलाब के फूल ला के दे दुहूं तब मंय ह वोला अपन आगोश म भर सकहूं,
अउ वोकर हाथ मन ह मोर हाथ मन म कटकट ले जुड़े रही। फेर मोर फुलवारी मन म तो
कहूँ घला लाल गुलाब के फूल नइ हे, अउ येकरे सेती मंय ह उहाँ अकेला बइठे
रहिहूँ। वो ह मोर तीर ले रेंग के चल दिही फेर मोर डहर हिरक के देखही घला
नहीं। मोर हिरदे ह टूट-टूट के छरिया जाही।’’
’’इही
ह वास्तव म प्रेमी आय, सच्चा प्रेमी आय,’’ बुलबुल ह किहिस - ’’जेकर
प्रेम-गीत ल मंय ह रात-रात भर गाथंव, जउन ल गा के मोला तो आनंद मिलथे फेर
सुन-सुन के येकर तो मन ह दुखित हो जाथे। सचमुच, प्रेम ह कतका अनोखा चीज
होथे? ये ह मुंगा-मोती मन ले घला मंहगा होथे। अनमोल रत्न मन ले घला जादा
कीमती होथे। मुंगा-मोती अउ हीरा-जवाहरात ले येला खरीदे नइ जा सके, अउ न
कोनों दुकान म ये ह बिके। न तो येला दुकान से खरीदे जा सके अउ न येला सोना
के तराजू म तउले जा सके।’’
’’बजनिहा,
(संगीतकार) मन अपन जघा म बइठहीं,’’ जवान छात्र ह किहिस - ’’अउ अपन-अपन
बाजा मन ल मस्त हो के बजाहीं अउ मोर मयारुक ह वीणा अउ वायलिन के धुन म
सुग्घर नाचही। वो अतका संुदर नाचही, अतका बिधुन हो के नाचही कि वोकर पांव ह
धरती म नइ परही। रंग-बिरंगा कपड़ा पहिरे दरबारी मन के भीड़ ह वोकर चारों
मुड़ा सकला जाही, फेर वो ह मोर संग नइ नाचही, काबर कि वोला देय खातिर मोर
कना लाल गुलाब के फूल नइ होही।’’ दुख के मारे वो ह मैदान के हरियर दूबी म
विही करा धड़ाम ले गिर गिस, अपन मुँहू ल हथेली मन म ढांप लिस अउ रोय लगिस।
’’ये ह काबर रोवत हे?’’ एक ठन नानचुक हरियर छिपकिली ह पूछिस अउ अपन पुछी ल हवा म नचात वोकर तीर ले रेंगत नहक गे।
’’सचमुच म काबर रोवत हे?’’ पूछत-पूछत एक ठन रंगबिरंगी फुरफुंदी (तितली) ह सूरज के सुंदर किरण म हवा म तंउरत निकल गे।
’’आखिर
काबर रोवत हे ये ह?’’ बीच म हरियर रंग के टिकुली लगाय सफेद रंग के नान्हे
गुलबहार के फूल ह अपन पड़ोसी के कान म धीरे ले सुहाती-सुहाती फुसफुसा के
किहिस।
’’वो ह लाल गुलाब के फूल खातिर रोवत हे।’’ बुलबुल चिरई ह किहिस।
’’लाल गुलाब के फूल खातिर रोवत हे?’’ सब झन एक संघरा चिल्ला के किहिन - ’’कतका बड़ मजाक हे ये ह।’’
हरियर छिपकिली, का जाने वो ह मया-पिरीत के मरम ल, जोर से हाँस दिस।
फेर
बुलबुल चिरई ह तो ये लइका के दुख के रहस्य ल जानत रिहिस, फुड़हर पेड़ के अपन
खोंधरा म चुपचाप बइठे-बइठे वो ह प्रेम के रहस्य के बारे में सोचे लगिस।
अचानक
उड़े खातिर बुलबुल ह अपन डेना मन ल खोलिस, अउ बात कहत अगास म उड़े लगिस।
छंइहा बरोबर वो ह उड़िस अउ छंइहच् बरोबर उड़त-उड़त वो ह फुलवारी के वो पार चल
दिस।
घास के मैदान के बीच म एक ठन बड़ संुदर अकन गुलाब के पेंड़ रहय। विही ल देख के बुलबुल ह उतर गे अउ वोकर एक ठन डारा म बइठ गे।
’’मोला एक ठन लाल गुलाब दे दे,’’ वो ह चिल्ला के किहिस - ’’अउ बदला म मंय ह तोला अपन सबले सुंदर, सबले मधुर गीत ल सुनाहूँ।’’
गुलाब
के पेंड़ ह इन्कार म अपन मुड़ी ल डोला दिस। ’’मोर फूल ह तो सफेद हे,’’ वो ह
किहिस - ’’समुद्र के फेन जइसे अउ पहाड़ म जमे बरफ जइसे सफेद। फेर कोई बात
नहीं, तंय ह मोर भाई तीर जा, जउन ह जुन्ना धूप-घड़ी तीर रहिथे। वो ह तोला
तोर मर्जी के चीज दे दिही।’’
सुन
के बुलबुल ह उहाँ ले उड़िस अउ उड़त-उड़त जुन्ना धूप -घड़ी तीर जागे गुलाब के
पेंड़ तीर चल दिस। ’’मोला एक ठन लाल गुलाब दे दे,’’ वो ह रो के बिनती करिस -
’’अउ बदला म मंय ह तोला अपन सबले सुंदर, सबले मधुर गीत ल सुनहूँ।’’
सुन
के गुलाब के पेड़ ह इन्कार म अपन मुड़ी ल डोला दिस। ’’मोर फूल ह तो पींयर
हे,’’ उत्तर मिलिस - ’’तृणमणि सिंहासन के ऊपर बइठे मत्स्यकैना के चूँदी कस
पींयर, अउ घास के मैदान म घास काटे के पहिली फूले नरगिस के फूल जइसे पींयर।
फेर कोई बात नहीं, तंय जवान छात्र के खिड़की खाल्हे जागे मोर भाई तीर जा,
हो सकथे, वो ह तोर इच्छा ल जरूर पूरा करही।’’
बुलबुल बिचारी का करे, उड़त-उड़त जवान छात्र के खिड़की खाल्हे जागे गुलाब के पेंड़ तीर चल दिस।
’’मोला
लाल गुलाब के एक ठन फूल दे दे’’ वो ह रो के किहिस - ’’अउ वोकर बदला म मंय ह
तोला अपन सबले सुंदर, सबले मधुर गीत ल सुनहूँ।’’
यहू ह इन्कार म अपन मुड़ी ल डोला दिस।
’’मोर
फूल हा लाल जरूर होथे,’’ वो ह जवाब दिस - ’’पानी म तंउरत बत्तख के पंजा अउ
समुद्र के पानी भीतर खोह मन म झूलत मुंगा-पंख मन ले जादा लाल। फेर
कड़कड़ंउवा ठंड म मोर नस मन ह जम गे हे, मोर डोहड़ू मन ल पाला मार दे हे, अउ
हवा-बड़ोरा ह मोर डारा मन ल फलका दे हे, अउ विही पाय के अब साल भर मोर पेड़ म
लाल फूल नइ फूल सकय।’’
’’मोला
सिरिफ एक ठन लाल गुलाब के फूल होना,’’ बुलबुल ह रोवत किहिस - ’’सिरिफ एक
ठन लाल गुलाब के फूल। का कोनो उपाय नइ हे कि मोला एक ठन लाल गुलाब के फूल
मिल सके?’’
’’एक
ठन उपाय हे,’’ गुलाब के पेड़ ह किहिस - ’’फेर वो ह अतका भयानक, अउ अतका
डरावना हे कि वो उपाय ला तोला बताय बर मोर हिम्मत नइ होवत हे।’’
’’जल्दी बता मोला वो उपाय,’’ बुलबुल ह झट ले किहिस - ’’मंय नइ डर्राव।’’
’’अगर
तोला गुलाब के लाल फूल होनच् त सुन,’’ गुलाब के पेड़ ह किहिस - ’’वोला तोला
चंदा के दूधिया अंजोर म अपन सबले सुंदर संगीत ले सिरजे बर पड़ही, अउ अपन
खुद के हिरदे के रकत ले वोला रंगे बर पड़ही। अपन छाती ल मोर कांटा म गोभ के
तोला रात भर मोला अपन सबले संुदर गीत ल सुनाय बर पड़ही। रात भर तोला गीत गाय
बर पड़ही, अउ मोर कांटा ह तोर हिरदे म धंसत जाही, धंसत जाही, अउ तोर
जीवन-रकत ह निकल-निकल के मोर नस मन म आवत जाही, अउ जइसे-जइसे तोर जीवन-रकत ह
निकल-निकल के मोर नस मन म आवत जाही, मोर होवत जाही, लाल गुलाब के रचना
होवत जाही।’’
’’लाल
गुलाब के एक ठन फूल खातिर मौत, ये तो बड़ा मंहगा सौदा हे,’’ बुलबुल ह
चिल्ला के किहिस - ’’अउ ये दुनिया म सब ल अपन-अपन जिंदगी ह सबले जादा
प्यारा हे। सुंदर हरियर-हरियर जंगल म बइठ के मिलने वाला आनंद ले घला जादा
प्रिय हे, सोन के रथ म बइठ के जावत सुरूज ल देखे से, अउ मोती के रथ म बइठ
के जावत चंदा ल देखे से मिलने वाला आनंद से घला जादा प्रिय हे। फेर प्रेम,
प्रेम तो जिंदगी ले भी बढ़ के होथे। अउ फेर मनुष्य के हिरदे के सामने मोर
जइसे छोटे से चिरइ के हिरदे के का कीमत?’’
बुलबुल ह अपन भुरवा डेना मन ल खोलिस, अउ हवा म छंइहा के समान वेग से उड़त-उड़त, उड़त-उड़त आ के (अपन) पेंड़ के ऊपर बइठ गे।
जवान
छात्र ह अभी ले विहिच करा विहिच् हालत म अल्लर परे रहय, जउन हालत म वो ह
वोला छोड़ के गे रिहिस हे। वोकर सुंदर आँखीं मन के आँसू ह अभी ले सुखाय नइ
रहय।
’’खुश
हो जा अब,’’ बुलबुल ह चिल्लाइस - ’’बाबू! तंय अब खुश हो जा। अब तोला तोर
लाल गुलाब ह मिल जाही। आज रात चंदा के दुधिया अंजोर म अपन संगीत के सुर ले
मंय ह वोकर सिरजन करहूँ, अपन हिरदे के लाल रकत के रंग ले वोला रंगहूँ। बदला
म मोर बस इतना कहना हे कि तंय ह एक सच्चा प्रेमी आवस, अपन प्रेम म सदा
सच्चा बने रहना, काबर कि दुनिया म प्रेम ह सबले अनमोल हे, वेद-शास्त्र ले
घला जादा; अउ दुनिया के सबले बड़े ताकत ले घला जादा ताकतवर हे। बरत जोत के
लौ के समान लकलक-लकलक करत वोकर पंख होथे, अउ वइसनेच् वोकर शरीर ह घला
लकलक-लकलक चमकत रहिथे, मदरस के समान मीठ वोकर ओंठ मन होथे, अउ लोभान के
खुशबू कस वोकर सांस के खुशबू ह होथे।’’
जवान
छात्र ह जमीन म गड़े अपन नजर ल उठा के बुलबुल कोती देखिस, वोकर बात ल
सुनिस, फेर जीवन के सच्चा प्रेम के मरम के जउन बात ल बुलबुल ह कहत रहय तेला
वो ह समझ नइ सकिस। वो ह तो बस विहिच् ल समझथे जउन ह किताब-पोथी म लिखाय
हे।
फेर
फुड़हर के पेड़ ह सब बात ल समझ गे, अउ उदास हो गे। वो ह तो छोटकुन बुलबुल के
सबर दिन के मयारूक आय, जउन सबर दिन वोकर डारा मन म खोंधरा बना के रहत आवत
हे।
’’तंय
तो अब जावत हस, (छुटकी बुलबुल) तोर बिना मंय ह एकदम अकेल्ला हो जाहूँ,’’
फुड़हर के पेड़ ह रो के कहिथे - ’’जावत-जावत एक ठन अपन गीत तो सुना दे।’’
बुलबुल ह फुड़हर ल अपन सुंदर गीत सुनाय लगिस। वोकर कंठ ले गीत ह वइसने झरे लगिस जइसे चाँदी के मग्गा ले जल के धार बोहावत हो।
जब
बुलबुल के गीत खतम हो गे तब वो जवान छात्र ह चुपचाप उठिस, अउ अपन जेब ले
कागज अउ सीस निकाल लिस। ’’वोकर तीर रूप-विधान तो हे,’’ पेड़ ले दुरिहा, अपन
खोली कोती जावत-जावत वो ह अपने आप से किहिस - ’’एकर ले इन्कार नइ करे जा
सकय, फेर का वोकर तीर संवेदना घला हे? मोला येकर कोनो परवाह नइ हे। वहू ह
बाकी दूसर कलाकार मन जइसेच् तो हे, वोकर तीर सब कला हे, फेर बिना भावना के।
वो ह दूसर खातिर अपन बलिदान नइ कर सकय। वो ह खाली संगीतेच् के बारे म जादा
सोचथे; अउ ये बात सारी दुनिया जानथे कि कलाकार मन स्वार्थी होथें। तभो ले
ये बात तो मानेच् बर पड़ही के वोकर कंठ म सुंदर मिठास हे। फेर ये सुंदर सुर,
मधुर गीत, सब बेकार हे, जब येकर ले कोई फायदा न होने वाला हो, येकर ले कोई
व्यवहारिक लाभ न होने वाला हो।’’ इही बात मन ल सोचत वो ह अपन खोली म जा के
अपन छोटे से बिस्तर म ढलंग गे; अउ अपन प्यार के बारे म सोचे लगिस; अउ छिन
भर बाद वोकर नींद लग गे।
अउ
जब स्वर्ग म चंदा ह चमके लगिस, बुलबुल ह उड़ के लाल गुलाब के वो पेड़ म आ के
बइठ गे, अउ अपन छाती ल वोकर कांटा म गोभ लिस। अपन छाती ल वोकर कांटा म गोभ
के वो ह रात भर बर प्रेम के सुंदर-सुंदर गीत गाय के शुरू कर दिस, अउ जउन ल
सुने बर शीतल चमकदार उजास बगरावत चंद्रमा ह निहर के धरती म आ गे। रात भर
वो ह सुंदर-सुंदर गीत गातेच् रिहिस अउ कांटा ह वोकर छाती म गहरी, अउ गहरी
धंसतेच् गिस, अउ वोकर जीवन-रकत ह वोकर हिरदे ले निकल के बोहावत गिस, बोहावत
गिस।
सबले
पहली वो ह प्रेम के वो सुंदर गीत ल गाइस जब एक लड़की अउ एक लड़का के हिरदे म
प्रेम ह जनम लेथे। अउ गुलाब के पेड़ के सबले ऊपरी खांधा म गुलाब के एक ठन
अद्भुत डोहड़ू ह डोहड़ा गे। वो ह जइसे-जइसे गीत गावत जाय, वो डोहड़ू म एक-एक
ठन पंखुड़ी जुड़त जाय, जुड़त जाय। अंत म वो डोहड़ू ह पूरा फूल बन गे। फेर पेड़
के ऊपरी डारा म फूलने वाल वो फूल ह पहली एकदम पींवरा रिहिस, कलकल-कलकल करत
नदिया के ऊपर छाय धुंधरा सरीख पींवरा, पंगपंगावत बिहिनिया अउ सुरूज नारायण
के निकलत खानी के पहिली अगास के रंग सही पिंवरा (बिहिनिया के पांव कस
पिंवरा अउ उषा काल के चांदी समान डेना कस)। चांदी के दरपन म दिखत गुलाब के
छांया कस, जल-कुंड म पड़त गुलाब के छांया कस, बिलकुल पिंवरा।
तभे
गुलाब के पेड़ ह जोर से चिल्ला के बुलबुल ल अपन छाती ल कांटा म अउ जोर से
दबाय बर कहिथे। ’’नजदीक ला के अउ जोर से दबा, छुटकी बुलबुल,’’ पेड़ ह
चिल्लाइस - ’’नइ ते गुलाब के ललियाय के पहिलिच् बिहिनिया हो जाही।’’
तब
बुलबुल ह अपन छाती ल कांटा म अउ जोर से कंस लिस, अउ जब नर-नारी के आत्मा म
प्रेम के जन्म होथे, जेकर तेज खिंचाव म (मोहनी-थापनी डारे कस) एक-दूसर
कोती खिंचावत- खिंचावत ऊंकर मन के मन ह एकाकार हो जाथे, वो समय के
पे्रम-गीत ल वो ह जोर-जोर से गाय लगिस।
अउ
तब वो पिंवरा फूल के पंखुड़ी मन धीरे-धीरे गुलाबी होय लगिस, दुलहिन के गाल म
छाय गुलाबी, आभा कस, जब दुलहा ह पहिली घांव वोकर ओंठ ल चूमथे अउ वोकर गाल ह
चमके लागथे। फेर कांटा ह अभी तक बुलबुल के हिरदे म नइ धंस पाय रिहिस हे,
अउ इही कारण गुलाब के हिरदे ह अभी तक सफेद के सफेद बांचे रहि गे रिहिस हे,
काबर कि केवल बुलबुल के हिरदे के रकत के रंग से ही वोकर हिरदे के रंग ह लाल
हो सकत रिहिस हे।
तब
गुलाब के पेड़ ह अउ जोर से चिल्ला के बुलबुल ल अपन छाती ल कांटा म अउ जोर
से दबाय बर किहिस। ’’नजदीक ला के अउ जोर से दबा, छुटकी बुलबुल,’’ पेड़ ह
चिल्लाइस - ’’नइ ते बिहिनिया हो जाही, लाल गुलाब के फूल फूले के पहिलिच्।’’
अउ
बुलबुल ह अपन हिरदे ल वोकर कांटा म अउ जोर से दबाय लगिस, अउ जोर से दबाय
लगिस, अउ अंत म जब कांटा ह वोकर हिरदे ल छेदे लगिस, बुलबुल के मुँह ले एक
दर्दनाक चीख निकलिस। दरद ह अनसंउहार हो गे। जइसे-जइसे वोकर दरद ह बाढ़त गिस,
वइसने-वइसने वोकर गायन ह अउ प्रचंड ले प्रचंड होवत गिस काबर कि अब वो ह
प्रेम के वो गीत ल गाय लगिस हे जउन ह मृत्यु ल घला अमर बना देथे, वो प्रेम
के गीत जउन ह कब्र म घला कभू दफन नइ होय।
अउ
अद्भुत गुलाब के पंखुड़ी के रंग ह अब एकदम लाल हो गे, जइसे सुरूज निकले के
समय पुरब के अगास ह हो जाथे, अउ वोकर हिरदे ह अइसे लाल हो गे, जइसे माणिक
के रंग होथे।
फेर
बुलबुल के स्वर अब धीरे-धीरे मंद से मंदतर होवत गिस, अउ वोकर छोटे-छोटे
पांखी मन फढ़फड़ाय लगिस, अउ वोकर आँखी के ऊपर परदा छाय लगिस। वोकर स्वर ह
मद्धिम से मद्धिम होवत गिस, अउ वोला अइसे लगे लगिस कि वोकर कंठ म कुछू चीज ह
आ के अटकत जावत हे।
तब
बुलबुल ह आखिर म फेर पूरा जोर लगा के संगीत के लहर छेड़ दिस। दुधिया
चंद्रमा ह जउन ल सुन के अगास म जिंहा के तिंहा ठहर गे अउ भुला गे अगास ह
पंगपंगाय बर। जउन ल लाल गुलाब ह सुनिस अउ मारे खुशी के कांपे लगिस,
बिहिनिया के मंद-शीतल हवा म वो ह अपन पंखुड़ी मन ल खोल दिस। अनुगूंज ह ये
गीत ल दूर पहाड़ के अपन गुलाबी कंदरा मन म पहुँचा दिस अउ गड़रिया मन ल जगा
दिस जउन मन ह नींद म सुंदर-सुदर सपना देखत रहंय। ये गीत ह नदिया तीर-तीर
उगे सरकंडा मन म तंउरत गिस अउ वो मन प्रेम के संदेश ल समुद्र तक पहुँचा
दिन।
’’देख!
देख!’’ गुलाब के पेड़ ह चिल्लाइस - ’’लाल गुलाब के फूल ह पूरा फूल गे।’’
फेर बुलबुल ह कोनो जवाब नइ दिस, काबर कि वो तो पेड़ के खाल्हे लंबा-लंबा
दूबी म मरे परे रहय, अउ गुलाब के कांटा ह वोकर हिरदे म गोभाय रहय।
दोपहर म जवान छात्र ह अपन खिड़की ल खोलिस अउ बाहिर झांक के देखिस।
’’मोर
भाग ह कतका ऊँचा हे,’’ वो ह मारे खुशी के चिल्लाइस - ’’ये देख लाल गुलाब।
अतका सुंदर गुलाब के फूल तो मंय ह अपन जिंदगी म कभू नइ देखे रेहेंव। ये ह
अतका सुंदर हे कि लातिनी भाषा म जरूर येकर कोई लंबा-चैड़ा नाम होही।’’ अउ
निहर के वो ह गुलाब के फूल ल टोर लिस।
वो ह अपन टोपी ल पहिरिस, लाल गुलाब ल हपन हाथ म पकड़िस अउ प्रोफेसर के घर कोती भागिस।
प्रोफेसर
के बेटी ह चकरी म नीला रंग के रेशमी सूत ल लपेटत, घर के मुहाटी म बइठे
रहय, अउ वोकर छोटे से पालतु कुकुर ह वोकर गोड़ तीर बइठे रहय। ’’तंय ह केहे
रेहेस न, तंय मोर संग नाचबे, यदि मंय ह तोला लाल गुलाब के फूल लान के दे
दुहूँ।’’ जवान छात्र ह चिल्ला के किहिस - ’’ये देख, दुनिया के सबले सुंदर
लाल गुलाब के फूल। ये ले अउ येला अपन हिरदे से लगा के रख, अउ जब हम नाचबोन
तब बताहूँ कि मंय ह तोला कतका मया करथंव।’’
लेकिन सुन के तुरते लड़की ह गुस्सा म अपन मुँहू ल बिचका दिस (नाक-भौं सिंकोड़ दिस)।
’’मोला
डर हे कि ये ह मोर पोशाक के संग मेल नइ खाही,’’ वो ह जवाब दिस - ’’अउ फेर
मनीजर के भतीजा ह मोर बर असली गहना भेजवाय हे, अउ सब जानथें कि गहना ह फूल
ले जादा कीमती होथे।’’
’’ठीक,
मंय ह कसम खा के कहिथंव, दुनिया म तोर ले जादा नमकहराम अउ कोनों नइ होही’’
छात्र ह क्रोध के मारे किहिस, अउ वो सुंदर फूल ल गली के चिखला में फेंक
दिस, जिंहा एक ठन गाड़ी के चक्का ह वोला रमजत निकल गे।
’’नमकहराम!’’
लड़की ह किहिस - ’’मंय तो तोला बस अतका कहहूँ कि तंय ह बहुत जंगली (असभ्य)
हस, अउ आखिर तंय होथस कोन? केवल एक छात्र, मंय ह तोर ऊपर भरोसा नइ कर सकंव,
का होइस कि तोर पनही म चाँदी के बक्कल लगे हे, वो तो मनीजर के भतीजा के
पनहीं म घला लगे हे।’’ अतका कहि के वो ह अपन कुरसी ले उठिस अउ घर के भीतर
चल दिस।
’’प्रेम
घला कतका बेकार चीज होथे,’’ छात्र ह उहाँ ले जावत-जावत किहिस - ’’ये ह तो
तर्कशास्त्र के तुलना म आधा काम के घला नइ होवय, येकर से कुछ भी सिद्ध नइ
करे जा सकय, अउ ये तो हमला खाली विही बात के बारे म बतावत रहिथे जइसन
वास्तव म कभी होयेच् नहीं, अउ हमला वइसन चीज के बारे म विश्वास करे बर
मजबूर करथे जउन ह कभू सत्य होबेच् नइ करय। वास्तव म, प्रेम ह बिलकुल
अव्यवहारिक होथे, अउ आज के युग म व्यवहारिक होना ही सब कुछ हे। अब तो मोला
फिर से दर्शनशास्त्र अउ अध्यात्म के अध्ययन करे बर पड़ही।’’
लहुट के वो ह अपन खोली म आइस, अउ धुर्रा जमे एक ठन मोटा असन किताब ल निकालिस, अउ पढ़े लगिस।
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