बुधवार, 30 अप्रैल 2014

आलेख

परसाई के विचार

’’वह एक नौकरशाह है, जो हत्यारा हो गया है।’’

(दर्द लेकर जाइए, नामक लेख का अंश)


एक रूसी उपन्यास है ’पारहोल्स’। सहकारी  कृषि फार्म के ट्रक में ड्राइवर-कण्डक्टर पैसे लेकर सवारी बिठा लेते हैं। हमारा भारतीय मन यह जानकर प्रफुल्लित होगा - अरे, वहाँ भी सवारी बिठा लेते हैं।

सड़क अच्छी नहीं है, गड्ढे हैं। एक जगह ट्रक पलट जाता है। एक आदमी बहुत ज्यादा घायल हो जाता है। कुछ किलोमीटर पर अस्पताल है। उसे वहाँ जल्दी और आराम से पहुँचाने के लिए पास के सहकारी फार्म के सचिव से ट्रैक्टर मांगते हैं। सचिव कहता है - ट्रैक्टर खेती के लिए है, इस काम के लिए नहीं दूँगा।

लोग कहते हैं - क्या ट्रैक्टर आदमी की जान बचाने के लिए भी नहीं है।

सचिव कहता है - खेती के सिवा किसी काम के लिए नहीं है। मैं नहीं दूँगा।

वे लोग घायल को घोड़ागाड़ी में दचके खाते ले जाते हैं।

डाॅक्टर उसे देखता है। कहता है - यह तो थोड़ी देर पहले मर गया। क्या तुम इसे किसी तेज वाहन पर आराम से नहीं ला सकते थे?

साथ आए लोगों ने कहा - हमने सहकारी फार्म के सचिव से ट्रैक्टर मांगा था, पर उसने यह कहकर मना कर दिया कि ट्रैक्टर इस काम के लिए नहीं है।

डाॅक्टर के शब्द जो इस उपन्यास के भी अंतिम शब्द हैं - ’’वह एक नौकरशाह है, जो हत्यारा हो गया है।’’
0
युगोस्लाविया भी समाजवादी देश है। एक युगोस्लाव कहानी मैंने पढ़ी जिसका अनुवाद आशुतोष सिंह ने ’समकालीन सृजन' में किया है। कहानी का सार है - एक नौकरशाह समुद्र के किनारे खड़ा है। उसे शार्क दिखती है। दोनों में बातचीत होती है।

तुम किस तरह काम करती हो शार्क?

वह बताती है कि मैं समानता की बात करती हूँ। छोटी मछलियों से कहती हूँ कि हम सब समान हैं। तुम मुझे निगल जाओ। वे कोशिश करती हैं और मुझे निगल नहीं पातीं। तब मैं कोशिश करती हूँ और मैं उन मछलियों को निगल जाती हूँ।

नौकरशाह शार्क की ताकत की तारीफ करता है और शार्क शुरू में ही नौकरशाह की ताकत की तारीफ करती है। दोनों इस बारे में बात करते हैं कि उनकी आलोचना होती है तब वे क्या करते हैं?

आखिर पंख फड़फड़ाकर शार्क समुद्र में चली जाती है। नौकरशाह बिदा के लिए हाथ हिलाता है। फिर नौकरशाह भी समुद्र में कूद जाता है। थोड़ी देर बाद वह निकलता है। उसके दातों में शार्क फँसी है।
0
विश्वव्यापी नौकरशाही है। तीसरी दुनिया के नव स्वतंत्र देशों में वह अधिक शक्तिशाली और भ्रष्ट है। कल्याणकारी योजनाओं को यही नौकरशाही नाकाम करती है।

वैसे दर्द लेकर जाना अच्छा है।
000

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें