बुधवार, 23 अप्रैल 2014

उपन्यास के अंश

मुरहा राम के नियाव


गरमी के दिन रिहिस। संपत महराज के सारा ह सगा आय रिहिस। सगा टूरा ह कालेज म पडत रिहिस। गर्मी-छुट्टी के मजा अउ जमीदारी दबदबा के सुवाद लेय बर आय रिहिस। ननपन के आवत रिहिस। पंदरही हो गे रिहिस आय। गाँव के जम्मो झन संग जान-पहचान हो गे रिहिस। संझउती के बेरा रिहिस। हवा खाय के नाव म गाँव के अड़हा जात के टुरी मन ल लाइन मारे बर दुबे परिवार के दूसर उतलंगहा संगी जहुंरिया टुरा मन संग गली कोती निकले रहय। फिल्मी गाना गावत अउ गब्बर सिंग के डैलाग बोलत फकीर घर कोती ले जावत रहंय। फकीर के ददा लतखोर ह गाँव के चार-छै झन संगवारी मन संग बंबूर के एक ठन गोला ल बैलागाड़ी म जोरत रहय। चिराय बर आरा मसीन लेगना रहय। गोला ह काबा भर के अउ बने लंबा रहय। घंटा भर हो गे रहय, गाड़ी म जोरातेच् नइ रहय। फकीर के बहिनी टुरी, जउन ह आठवीं कक्षा म पढ़ रिहिस, जोरइया मन बर चहा-पानी धर के आय रहय। सोन म सुहागा; बाम्हन टुरा मन ह देख के विही करा बिलम गें अउ बेलबेलाय लगिन।
एक झन ह कहिथे - ’’जोर लगा के ....।’’

बांकी मन कहिथे - ’’हइया ...।’’

सगा आय रहय तउन बाम्हन टुरा ह टूरी कोती निसाना लगा के कहिथे -  ’’अबे! अब मिलिस रे पेसल चहा, सांय ले चढ़ही गोला ह।’’

फकीर के ददा ह सुन के अउ समझ के घला उे बात म धियान नइ दिस; कहिथे - ’’आव जी महराज हो! आपो मन  चहा पी लव, आजकल चहा म तो कोनो ह छुवा नइ मानय।’’

सगच् टुरा ह फेर कहिथे - ’’जरूर, जरूर! अइसन पेसल चहा ल कोन छोड़हय।’’

बांकी बाम्हन टुरा मन ठठा के हँस दिन। टुरी बिचारी ह सरमा के घर भीतर खुसर गे। सबके मुँहू ह करूवा गे। सबर दिन के तो अइसन बात ल सुनत अउ सहत आवत हें, चुरमुरा के रहि गिन सब झन। फकीर ह घला विही करा रिहिस। सुन के वोकर तन-बदन म आगी लग गे।

चहा पी के थोरिक धक्की मारिन अउ फेर भिड़ गिन गोला म। काबर चढ़े गोला ह गाड़ी म। फकीर के ददा ह कहिथे - ’’लेव न जी महराज हो! आय हव ते एक-एक हाथ लगा देव।’’

अतका सुनना रिहिस कि अरे तरे हो गे महराज लइका मन  - ’’अरे! जबान संभाल के बात कर। हमर घर म नौकरी करने वाला, हमला तियारथस तंय ह।’’

’’तियारंव नहीं जी, महराज हो। मदद करे बर कहत रेहेंव। गलती होइस होही ते क्षिमा करहू, भड़को झन।’’ लतखोर ह हाथ जोर के खड़ा हो गे।

बाम्हन टुरा मन ल तो रार मचाना रिहिस। दबे ल अउ दबाना, गिरे ल अउ गिराना, कोनो अड़हा-गरीब ल मरत देख के उछाह मनाना; इंकर नस म रचे बसे हे। का होइस कि उमर म छोटे रिहिन वो मन, जाति के तो बड़े रिहिन? अउ लतखोर ह उमर म बड़े रिहिस, सियान हो गे रिहिस ते का होइस, रिहिस ते अड़हा जाति के। लतखोर ह बात ल सकेले के कोशिश करे, वोमन ह लमाय के। बात ल बढ़ात गिन अउ आखिर म आदर-मादर म उतर गिन। लतखोर ह फकीर के सुभाव ल देख के मनेमन डर्रावत रहय कि कोनो अलहन झन हो जाय।
अउ विहिच् होइस। फकीर ह सबर दिन के हाँ के हूँ कहवइया लइका। उमर म उंकरे जोड़ के रिहिस। गाड़ी के एक ठन खुँटा ल उखानिस अउ उबा के दौड़िस उंकर मन डहर। किहिस - ’’खबरदार, मोर बाप ल अंट-संट गारी बकने वाले साले कमीना हो।’’

लतखोर ह निगरानी म रहय, तुरते जा के वोला पोटार लिस। एक-दू झन मन अउ दंउड़िन तब कहू ले दे के फकीर ह काबू म आइस।

बात ह तुरते गाँव भर म आगी बरोबर बगर गे। बाम्हन पारा वाले मन ह आगी हो गंे। पहिली अइसन होतिस तब तो गदर मात जातिस। बाम्हन मन के गुप्ती-तलवार निकल जातिस। फेर जमाना ह बदल गे हे। जमीदारी के वो दिन ह नंदा गे हे। अउ फेर, गाँव म नवजवान टुरा मन के नवयुवक मंडल जब ले बने हे, समय ह बदल गे हे। संपत महराज ह गजब सोच-बिचार करिस। फकीर के उदेली के ये ह पहिली घटना नो हे, पहिली घला कर चुके हे। वोकर खून म कतका गरमी भराय हे तउन ल अब तो देखेच बर पड़ही। घंटा भर ले सोच बिचार करिस संपत महराज ह। वोला खून-खराबा करना उचित नइ लगिस। शस्त्र बल के जघा शास्त्र बल जादा उचित दिखिस।

घंटा भर के पीछू बैसका सकला गे। कटकटंउवा जुरियाय हे छोटे-बड़े सब।

सरपंच कका ह बैसका म सकलाय मनखे मन कोती निशाना बांध के किहिस - ’’गाँव भर के सब सकला गिन होहीं ते बैसका शुरू करतेन भाई हो, जादा रात करे ले का मतलब?’’ सब झन के मन ल भांप लिस तब फेर कोतवाल डहर देख के किहिस - ’’कोतवाल! बता जी, काकर ऊपर का बिपत आ गे हे, कोन ह बैसका सकेले हे।’’

संपत महराज ह तो खार खाय बइठे रहय, मन ह तो कहत रहय कि दू-चार आदमी ल जपते जाय, फेर गुस्सा ल पी के कहिथे - ’’बीपत हमार ऊपर आय हे जी, हम सकेले हन बैठका ल।’’
’’का बीपत आय हे तउनो ल बता डर महराज।’’

’’आदमी ह आदमी के बीच म रहिथे। परिवार म, गाँव म, समाज म रहिथे। जंगल म कोनो नइ रह सकय। काबर? काबर कि दुख होय कि सुख, चार के बीच म बँटे के चीज होथे। जब कोनों ऊपर बीपत आथय तब चार झन मिल के वो बीपत ला बाँट लेथंय। दुखियारा के दुख ह हल्का हो जाथे। सुख ल बाँटे ले सुख ह बाढ़ जाथे, जिनगी के मजा ह बाढ़ जाथे। सब एक-दूसर के मुँहू ल देख के बस्ती म बसे हबन। एक के दुख ह सब के दुख आवय अउ एक सुख ह घला सब के सुख आवय। गाँव म कोनो एक के बहू-बेटी ह सब के बहू-बेटी होथे। सबके मान-सनमान अऊ ईज्जत करे बर पड़थे। चार के बीच म रहि के ईज्जत पाना हे त चार के ईज्जत घला करे बर लगथे। इही खातिर समाज म रिश्ता-नाता बनाय गे हे। छोटे ल छोटे जइसे दुलार मिलना चाही अउ बड़े ल बड़े जइसे सम्मान मिलना चाही।’’

संपत महराज के गंजहा पार्टी के पेटपोंसवा नानुक राम ह  वोकर बाजूच् म बइठे रहय। गाँव वाले बेलबेलहा टुरा मन वोकर ’छप्पनभोग’ नाव धरे हवंय। ये गाँव म बिरले होहीं जेकर कोनों बढ़ावल नाव नइ होही, टूरी होय के टूरा होय, सबके कोनों न कोनों बढ़ावल नाव हे। नाव बाढ़े हे तब नाव बढ़ाय के कोनों न कोनों कहानी घला हे। छप्पनभोग नाव बढ़ाय के घला कहानी हे, फेर ये कहानी ह बताय के लाईक नइ हे, आप मन खुदे अनुमान लगा लेव।

नानुक राम ह बोले के शुरू करिस तहाँ ले बेलबेलहा दल वाले मन के बीच म खुसुर-फुसुर शुरू हो। नानुक ह अद्दर खेत म रेंगत गाड़ी के चक्का ले निकलत हदक-हिदिक आवाज कस आवाज म कहिथे - ’’आने कि मने कि, भइ मोर हिसाब म तो महराज ह कहत हे तउन ह सोला आना सच आवय; फेर, आने कि, कहे के तमलब ये हे कि, ..........

मरहा राम, तारन, रघ्धू, जगत, ओम प्रकाश, लखन अशोक गुरूजी, सब एके जगह फकीर के संग बइठे रहंय। नानुक के बात ल बीचेच म काँटत मरहा राम ह कहिथे - ’’तोर आने कि मने कि, हिसाब अउ मतलब ल तोर घर म छोड़ के आय कर जी नानुुक भइया, जऊन बात कहना हे बने सोझ-सोझ कह।’’

’’............ आने कि मने कि महराज के कहना बिलकुल वाजिब हे। आने कि केहे के मतलब, मने कि ये गाँव के आदमी मन सियान मन के कतका ईज्जत करथें, संउहत देख लेव। आने कि मने कि कोनो सियान ह, मतलब, कोनो बात कहत हे तउन ल, बीच म मतलब, कैंची म कांटे बरोबर चक ले नइ काँटना चाहिये।’’

सरपंच ह कहिथे - ’’नानुक के कहना ह बिलकुल सही हे जी। बात करे के सबके अपन-अपन तरीका होथे। कोनो ह आने कि मने कि कहिके अपन बात के शुरूआत करथे, कोनो ह बच्चा के खातिर कहिके, तब कोनो ह अउ कुछू कहिके। सार बात ल, पकड़े के बात ल पकड़े करो। बीच-बीच म टोका-टाकी झन करे करो। नानुक भइया, आगू बोल जी; का कहत रेहेस तउन ल पूरा कर।’’

’’आने कि मने कि अउ का कहना हे जी। मतलब, इही कहना हे, महराज देवता ह कि आने कि, काकर मान-सनमान के का बात हो गे? आने कि, काकर बहू-बेटी के ईज्जत के ऊपर कइसन आंच आ गे, तउन ल बने फोर के बताय।’’

संपत ह फेर शुरू करिस - ’’गाँव के सब किसान भाई मन संपत के पालागी करथव, संपत ह बाम्हन आय, खाली येकरे सेती नो हे, संपत ह घलो सबके सनमान करथे तेकर सेती आवय। बताय कोनों कि संपत ह ककरो ईज्जत के ऊपर दाग लगाय होही ते? बाम्हन जइसे उच्च कुल म जनम धरे के बावजूद वो ह अड़हा मन ल गाँव नत्ता म जइसन-जइसन मानना हे तइसन-तइसन; भाई ल भाई कहत हे, कका ल कका अउ बबा ल बबा कहत हे तेकर सेती आवय। ..... का नइ करे हे संपत महराज ह गाँव के भलाई खातिर? दू ठन कुआँ कोड़वाइस। भरे अकाल म जनता ल पाले खातिर तीन ठन तरिया कोड़वाइस। बाँध बनवाईस, स्कूल बनवाईस, सड़क बनवाईस, बिजली लगवाईस। संपत ह न कोनो पंच आय न सरपंच आय, तब ले सरकार ले लड़-लड़ के अतका काम करवाय हे। सबके हिसाब लगा के देख लव, करोड़ रूपया ले जादा के काम संपत ह ये गाँव म करवाय हे। का अपन ईज्जत बेचे बर? गाँव के दसों झन जवान मन ल सरकारी नौकरी म लगाइस हे। आज वो मन ह राज करत हें। अपन तनखा ल वो मन ह संपत ल लान के देथे का? भगवान के देवल संपत महराज कना सब कुछ हे। नेकी कर दरिया म डाल। अउ कुछू नइ होना वोला। मान-सनमान के घला लालच नइ हे, फेर नेकी के बदला बदी तो झन देवव। गाँव के विकास होय, गरीब के भलाई होय, हमर तो बस इही उद्देश्य हे; आगू घला अपन ले जइसन बनही, करत रहिबोन। अतका सब करे के बाद बतावव; अपन अपमान अउ बेईज्जती कराय बर हम इहाँ बसे हाबन का?’’ 

वोकरे कना मुसुवा ह घला कोरियाय कस बइठे रहय। मौका देख के कहिथे - ’’छोटे मुँहू अउ बड़े बात, गलती ल छिमा करहू। समझदार ल इशारा काफी। महराज ह अपन दुख ल बता तो डरिस। फेर अतका बिनती अउ हे महराज ले कि अपमान करइया के नाव ल टीप के बतावय। बच्चा के खातिर। आज ये गाँव म काकर कना अतका हिम्मत हो गे, कि बाम्हन-बैरागी के हिनमान करे, बच्चा के खातिर?’’

संपत ह रकमखा के कहिथे - ’’लतखोर अउ वोकर टूरा ल पूछव, मोर से का पूछथव।’’

सरपंच - ’’बने बने बताव जी, लतखोर अउ वोकर टूरा कहे ले काम नइ बनय, वोकर टूरा के के नाव धर के बताव। येमा दूनों झन के गलती हे कि कोनो एक के, येकरो फरियाव करके बताव। ककरो ऊपर दोष लगाना सरल हे, फेर वोकर फुराजमोगा करे बर गवाही के घला जरूरत पड़थे, गवाही मन के नाव ल बताव। घटना कइसे होइस तउन ल मुड़ी-पूछी फरिया-फरिया के बने बताव।’’

संपत - ’’हमर घर मेहमान आय हे, मोर साला ह। साल म दू घांव, तीन घांव आतेच् रहिथे। अब तो वो ह गाँवेच् के लइका जइसे हो गे हे। आज संझा कुन के बात आय। गरमी के दिन, सांझ कुन के हवा ह सुहाथे। चाय-पान बर वो ह अपन संगवारी मन संग पीपर चैंक कोती गे रिहिस। बीच म लतखोर के घर पड़थे। वोकरे मुहाटी म दस-पंद्रह आदमी सकलाय रिहिन। लतखोर के टुरा फकीर घला रिहिस। विही ह मोर साला ल गाड़ा के खुँटा ल निकाल के मारे बर दँड़ाय हे। गली-खोर म निकलना घला जुलुम हे का जी? आगू के बात ल विही मन ल पूछव। मोला जउन कहना रिहिस, कहि डरेंव।’’

सरपंच - ’’कोन ह जुलुम करिस अउ काकर ऊपर करिस, सब ल जांचे जाही अउ सब के सुने जाही। सगा बाबू ह कोन जघा बइठे हे। बता जी आप ल कोन ह का किहिस, कइसे होइस।’’

सगा ह बोले म पिछवा गे, वोकर लंगोटिया यार, नाता म संपत महराज के एक झन भतीजा विजय ह रोसिया के कहिथे - ’’ये संरपंच कौन होता है? वो पुलिस है कि जज है जो हमारा फैसला करेगा। इस गाँव म सदा से दुबे लोग फैसला करते आ रहे हैं। हमारा फैसला ये क्या करेगा जो इनके सामने हम हाथ फैलायेंगे?’’
सरपंच - ’’सरपंच ह न पुलिस हरे अउ न जज। सरपंच ह ककरो नियाव घला नइ करय। इहाँ सब के बात ल सुने जाही, पांच पंच वोकर ऊपर बिचार करहीं अउ बहुमत के आधार म फैसला सुनाय जाही। अउ बाबू! जब तंुहला पंचायत म नियाव नइ कराना रिहिस, तब ये बैठका ल सकेले काबर हव? ये गाँव म पहिली का होवत रिहिस, वो ह तइहा के बात हो गे। अब जउन होही, चार के झन के सुम्मत से होही।’’

मरहा राम ह संपत महराज के बात ल सुन के गुसियाय बइठे रहय, विजय महराज के बात ल सुन के वोकर पारा ह अउ गरम हो गे। सरपंच के बात ल बीच म काट के कहिथे - ’’गाँव वाले भाई हो! अभी हम महराज मन के बात ल सुनेन। बात ह छोटे नइ हे। पूछे गे हे कि सरपंच ह नियाव करने वाला कोन होथे। हम सब चुनाव म चुने हन तब ये आदमी ह सरपंच बने हे, जबरन के नइ बने हे। सरपंच के बारे म अइसन कहना तो सरपंच के सरासर अपमान हरे। भरे सभा म हमर चुने सरपंच के जउन ह अपमान कर सकथे वो ह बाहिर जा के ककरो घला अपमान कर सकथे। अब मंय ह संपत महराज के बात के जवाब पहिली देना चाहहूँ। आप सब जानथव, संपत महराज ह घला जानथे। मंय पूछथंव, का इहिच् गाँव म कुआँ, तरिया अउ सड़क बने हे, बिजली ह इहिच् गाँव लगे हे। विकास के ये जम्मों काम ह अतराब के सब गाँव मन म घला होय हे; सब ह वोकरेच् करावल होही का? अउ कहिथे कि गाँव के लइका मन के नौकरी लगवाय हंव। कतेकर नौकरी लगाय हे नाव धर के तो बताय जरा। अतका पहुँच वाले हे ये आदमी ह तब अपन बेटा के नौकरी ल काबर नइ लगवाय सकिस? लतखोर ल पूछ, फकीर के पढ़ाई ल छोड़वाय बर वोला का किहिस अउ के घांव ले किहिस। ’मेटरिक पास हो गे रे तोर टुरा ह अउ कतका पढ़ाबे? पढ़ा लिखा वोला साहब बनाना हे का? छोड़ा वोकर पढ़ाई ल अउ बनी-भूती करे बर भेज।’ ये बात ह सच आय कि झूठ लतखोर भइया ल पूछ सकत हव। इही बात अशोक गुरूजी के बाप ल घला कहय। वहू ह येकर बात म आ जातिस त अशोक ह गुरूजी बन पातिस क? डाकिया ह येला गाँव के प्रमुख आदमी समझ के कतरो झन लइका के नौकरी के परीक्षा अउ इंटरबू के कागज ल येकर हाथ म देय-देय हे। काकर कागज ल ये ह समय म देय हे?

मरहा राम के बात ल सुन के सब आदमी मन कहे लगिन - ’’सब्बास मरहा भइया, जउन बात ल हमन नइ कहि सकत रेहेन, वोला तंय आज कहि देस।’’

कलर-किलिर के बीच म मरहा राम ह आगू किहिस - ’’ओरियाय म रात पहा जाही, ये मन का बताहीं, फकीर! तंय बता जी आज तोर संग का होइस तउन ल।’’

बाम्हन पारा के टुरा मन अउ संपत के मंदहा-गंजहा पार्टी के वोकर पेटपोंसवा मन घला रोसिया गे। कोन ह काकर ल सुने? सरपंच के समझाइस ह घला बेकार हो गिस।

संपत महराज ह किहिस - ’’विजय ह बने केहे हे। सबरदिन के नियाव करइया दुबे परिवार के नियाव ल तुम का कर सकहू। हमला जउन कहना रिहिस, कहि देन, जउन बताना रिहिस हे बता देन।  रहि गे फैसला के बात; जउन करना होही, दुबे मन अपन फैसला ल खुदे कर लिहीं।’’

फकीर ह बादर सही गरज के अउ छाती पीट के कहिथे - ’’अरे जा, जा! ये ह फकीर आय, मुरहा राम नो हे, जउन ह तोर धमकी ले डर्रा के गाँव छोड़ के चल दिस। तोर अइसन गीदड़भभकी ले डरने वाला नइ हे फकीर ह।’’

वो जमाना ह तइहा के बात हो गे हे जब दुबे परिवार के मुखियागिरी चलय अउ कोनो ल कइसनो घला फैसला सुना देवंय।

सब गाँव वाला मन ल एक तरफा होवत देख के दुबे मन के सक्कापंजा बंद हो गे। बिना कोनों फैसला के बैसका ह उसल गे।
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KUBER
Mo. 9407685557

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