शुक्रवार, 4 दिसंबर 2015

आलेख

उपेक्षा का इससे अच्छा उदाहरण और कहाँ मिलेगा?

नई दुनिया, रायपुर, दिनांक 02 दिसंबर 2015 पृष्ठ 05 में ’’आत्महत्या करने वाले अधिकांश किसान सरकार की नजर में शराबी व झगड़ालू’’ शीर्षक से खबर छपी है। यहीं बाक्स में 12 सितंबर 2015 से 28 नवंबर 2015 के बीच छत्तीसगढ़ में आत्महत्या करने वाले 10 किसानों की सूची दिया गया है जो इस प्रकार है -

1. 12 सितंबर 2015: छुरिया बलाक (जिला - राजनांदगांव) के बादराटोला में किसान उदेराम चंद्रवंशी ने घर में फांसी लगा ली थी।

2. 30 अक्टूबर 2015: छुरिया बलाक (जिला - राजनांदगांव) के किरगाहाटोला में किसान ईश्वर लाल ने अपने खेत में ही फांसी लगा ली थी।

3. 30 अक्टूबर 2015: बालोद के दर्री ग्राम निवासी  किसान रेखू राम साहू ने रात में खुदकुशी कर ली।

4. 15 नवंबर 2015: डोंगरगांव बलाक (जिला - राजनांदगांव) के ग्राम संबंलपुर में किसान हिम्मत लाल साहू ने फांसी लगा ली थी।
5. 16 नवंबर 2015: धमतरी जालमपुर निवासी जुगेश्वर साहू (45 वर्ष) ने कीटनाशक पी लिया।
6. 17 नवंबर 2015: गुरूर ब्लाक के गांव घोघोपुरी के  57 साल के हरबन उर्फ हरधर नायक ने भी कीटनाशक पीकर जान दे दी।

7. 18 नवंबर 2015: डोंगरगढ़ (जिला - राजनांदगांव) के ग्राम ग्राम पंचायत पीटेपानी के आश्रित ग्राम बांसपहाड़ के किसान पूनम उइके ने जहर खाकर आत्महत्या कर ली थी।

8. 27 नवंबर 2015: धमतरी जिले के खपरी निवासी किसान राधेश्याम साहू ने जहर सेवन कर आत्महत्या की।
9. 27 नवंबर 2015: डोंगरगांव बलाक (जिला - राजनांदगांव) के ग्राम संबंलपुर के किसान रामखिलावन साहू ने फांसी लगा ली।

10.  28 नवंबर 2015: बालोद जिला के गुंडरदेही विकासखंड अंतर्गगत ग्राम भांठागांव के किसान डोमेश्वर ने की आत्महत्या।

11. और अब आज समाचार छपा है कि 01 दिसंबर 2015 को बालोद जिला के ग्राम भोयनापार लाटाबोड़ निवासी किसान व्यास नारायण टंडन (50 साल) की आत्महत्या से मृत्यु हुई है। व्यास नारायण टंडन ने 24 नवंबर 2015 को जहर सेवनकर आत्महत्या का प्रयास किया था जिसका घमतरी के एक अस्पताल में उपचार चल रहा था।

विगत तीन महीनों में छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव, बालोद और धमतरी मात्र तीन जिलों में ही लगभग एक दर्जन किसान आत्महत्या कर चुके हैं, परन्तु न तो यह राष्ट्रीय स्तर का समाचार बन पाया है और न ही राष्ट्रीय चैनल्स इन समाचारों को प्रसारण योग्य ही समझती हैं। छत्तीसगढ़ के किसानों, मजदूरों और आदिवासियों की राष्ट्रीय उपेक्षा का इससे अच्छा उदाहरण और कहाँ मिलेगा?
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