सोमवार, 7 दिसंबर 2015

आलेख

कामधेनु अथवा कल्पवृक्ष

बाबरी मस्जिद-राममंदिर का मामला कहानी के हिसाब से सोने के अंडे देने वाली मुर्गी की कहानी के मुर्गी के समान है। कहानी के कथ्य में समानता जरूर दिखाई देता है परंतु देश-काल, परिथिति और मांग बदल जाने के कारण इसमें कई ट्विस्ट्स आ गये हैं। इस प्रेरणादायी कहानी के बेवकूफ नाई ने मुर्गी को मार डाला था। कहानी में प्रेरक तत्व भरने के लिए नाई का यह कृत्य जरूरी था। मुर्गी पालना नाई और उसी के समकक्ष पिछड़ी, दलित और आदिवासियों का काम है। ट्विस्ट्स यहीं से शुरू होता है। जबकि इन शूद्र जातियों के लिए मंदिर की ओर झांकने का भी अधिकार नहीं है तब बाबरी मस्जिद-राममंदिर का मामला इन जातियों के हाथों में हो सकने की कोई कल्पना भी कर सकता है क्या? तो ट्विस्ट्स यह है कि अब कहानी में सोने के अंडे देने वाली मुर्गी के स्थान पर साक्षात कामधेनु विराजित हो चुकी है अथवा कल्पवृक्ष ने अपनी जड़ें जमा ली है। ये दोनों ही अमर हैं। और सनद रहे, यह मामला जिनके हाथों में है वे कोई बेवकूफ नाई भी नहीं हैं। इसलिए इस मसले का कभी अंत भी हो सकता है, ऐसा सपना देखना भी सबसे बड़ी बेवकूफी होगी।

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