साहित्य समाचार
16 जुलाई, 2017 रविवार को नगर पालिक निगम, राजनांगाँव, के सभागार में ’साकेत साहित्य परिषद् सुरगी’ का 18 वाँ वार्षिक साहित्य सम्मेलन, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग छत्तीसगढ़ शासन तथा छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग, के सहयोग से संपन्न हुआ। तीन सत्रों में आयोजित इस सम्मेलन के प्रथम सत्र में ’छत्तीसगढ़ी लोककला मंचों का सांस्कृतिक अवदान’ विषय पर परिचर्चा हुई तथा ’साकेत स्मरिका’ का विमोचन किया गया जिसमें दुर्ग, बालोद एवं कवर्धा जिले के साहित्यकार बड़ी संख्या में उपस्थित थे। सत्र का संचाालन साहित्यकार कुबेर सिंह साहू ने किया।
अपने आधार वक्तव्य में श्री यशवंत ने कहा कि - कुछ दशक पहले तक लोकसंस्कृति धन अर्जित करने का साधन अथवा आजीविका का साधन कभी नहीं रही है। और तब तक यह लोक की अभिलाषाओं और आकाक्षाओं को सशक्त तरीके से प्रस्तुत करके लोक अस्मिता को सुदृढ़ करती रही है। लोक को जीवनी शक्ति देती रही है। परंतु अब, जबकि इसमें ह्रास और विकृति पैदा करनेवाली, आज के लोककलाकारो की पीढ़ी, यश और धन की चाह में परंपरा से अर्जित लोक संस्कृति को, लोक साहित्य को बाजार के हाथों बेचने पर उतारू हुई है, अपसंस्कृति का दौर शुरू हुआ है। या तो इस परिवर्तन को परिवर्तनशील समाज की इच्छा मानकर मौन साध लें अथवा अपसंस्कृति पैदा करनेवाली बाजार निर्मित सेल्फी संस्कृति से बचने का कुछ तो प्रयास करें। सत्र को सभी साहित्यकारों ने छत्तीसगढ़ी भाषा में संबोधित किया।
अपने उद्बोधन में लोककला के प्रकांड विद्वान तथा लोककला मंच ’दूध मोंगरा’ के संस्थापक-संचालक डाॅ. पीसी लाल यादव ने कहा कि छत्तीसगढ़ में स्थापित और संचालित सभी लोककला मंच, दाऊ रामचंद्र देशमुख द्वारा स्थापित प्रथम छत्तीसगढ़ी लोककला मंच ’चंदैनी गोदा’ से प्रेरित और अनुप्राणित हैं। चंदैनी गोंदा द्वारा स्थापित आदर्श ही समस्त छत्तीसगढ़ी लोककला मंवों का आदर्श है। यह आदर्श छत्तीसगढी़ लोकनाट्य नाचा का आदर्श है जो उसकी आत्मा है। छत्तीसगढी़ लोकनाट्य नाचा का इतिहास छत्तीसगढ़ के रामगढ़ में स्थापित विश्व के प्रथम नाट्यशाला के इतिहास से भी प्राचीन है, क्योंकि रामगढ़ में स्थापित विश्व के प्रथम नाट्यशाला का इतिहास भरतमुनि के नाट्य शास्त्र के बाद प्रारंभ होता है परंतु छत्तीसगढी़ लोकनाट्य नाचा तो लोक की कृति है और कहना न होगा कि लोक और उसकी परंपराएँ पहले आती है, शास्त्र बाद में। दुख की बात है कि वर्तमान में लोककला मंचों में द्विअर्थी संवादों और बाजार की संस्कृति ने प्रवेश करके इसे विकृत करना शुरू कर दिया है। समय के अनुरूप परिवर्तन मानकर इस अश्लील अपसंस्कृति को स्वीकार नहीं किया जा सकता।
इस सत्र के मुख्य अतिथि छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के सदस्य आदरणीय डाॅ. गणेश सोनी ’प्रतीक’ ने कहा कि - केवल हमार ममतामयी, गुरतुर छत्तीसगढ़ी महतारी भाखाच् ह आज लोककला मंच मन ल अपसंस्कृति से बचा सकथे। येकर खातिर हम सब लोकलाकार अउ साहित्यकार मन ल येला चुनौती मान के, ईमानदारी के संग अउ संकल्प लेके के काम करे जरूरत हे।
सत्र के अध्यक्ष प्रो. डाॅ. नरेश कुमार वर्मा ने कहा कि - छत्तीसगढ़ी लोककला मंचों के सांस्कृतिक अवदानों को रेखांकित करने का प्रयास पहले से चल रहा है परंतु इस संबंध में कोई उल्लेखनीय प्रगति दिखाई नहीं देती। आज ’साकेत साहित्य परिषद् सुरगी’ ने इस विषय को प्रमुखता के साथ साहियिक मंच पर उठाया है, इसके लिए यह परिषद् बधाई का पात्र है। इस सत्र में साहित्यकार आ. सरोज द्विवेदी, प्रसिद्ध कहानीकार कैलाश बनवासी, ’कलापरंपरा’ के संपादक डी. पी. देशमुख, तथा साहित्यकार दुर्गा प्रसाद पारकर ने भी अपने विचार व्यक्त किये।
सम्मेलन के दूसरे, सम्मान, सत्र के मुख्य अतिथि राजनांदगाँव संसदीय क्षेत्र के पूर्व सांसद तथा नगर पालिक निगम राजनांगाँव के महापौर, जन-जन में लोक प्रिय, जन-जन के नायक, मधुसूदन यादव थे। सत्र में उनके उद्बोधन की साहित्यिक शैली से उनकी साहित्यिक प्रतिभा के दर्शन हुए। महापौर मधुसूदन यादव ने कहा कि - आज जन सेवा के प्रतिमान बदल चुके हैं। जनता से कटकर आप जन सेवा नहीं कर सकते। साहित्य भी जन सेवा का ही साधन है। आप सब साहित्यकारों से अनुरोध है कि साहित्य को जनोपयोगी बनाने के लिए आप जन से जुडकर एक नये साहित्यिक प्रतिमान की स्थापना करें। इस सत्र में महापौर मधुसूदन यादव ने जिले के व्यंग्यकार गिरीश ठक्कर ’स्वर्गीय’, पत्रकार प्रकाश साहू ’वेद’ तथा लोककलाकार दिनेश साव को ’साकेत सम्मान’ से सम्मानित किया। सम्मेलन के अंतिम सत्र में उपस्थित कवियों ने काव्य पाठ किया।
निवेदक - कुबेर
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’साकेत’ का 18 वाँ वार्षिक सम्मेलन संपन्न
16 जुलाई, 2017 रविवार को नगर पालिक निगम, राजनांगाँव, के सभागार में ’साकेत साहित्य परिषद् सुरगी’ का 18 वाँ वार्षिक साहित्य सम्मेलन, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग छत्तीसगढ़ शासन तथा छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग, के सहयोग से संपन्न हुआ। तीन सत्रों में आयोजित इस सम्मेलन के प्रथम सत्र में ’छत्तीसगढ़ी लोककला मंचों का सांस्कृतिक अवदान’ विषय पर परिचर्चा हुई तथा ’साकेत स्मरिका’ का विमोचन किया गया जिसमें दुर्ग, बालोद एवं कवर्धा जिले के साहित्यकार बड़ी संख्या में उपस्थित थे। सत्र का संचाालन साहित्यकार कुबेर सिंह साहू ने किया।
अपने आधार वक्तव्य में श्री यशवंत ने कहा कि - कुछ दशक पहले तक लोकसंस्कृति धन अर्जित करने का साधन अथवा आजीविका का साधन कभी नहीं रही है। और तब तक यह लोक की अभिलाषाओं और आकाक्षाओं को सशक्त तरीके से प्रस्तुत करके लोक अस्मिता को सुदृढ़ करती रही है। लोक को जीवनी शक्ति देती रही है। परंतु अब, जबकि इसमें ह्रास और विकृति पैदा करनेवाली, आज के लोककलाकारो की पीढ़ी, यश और धन की चाह में परंपरा से अर्जित लोक संस्कृति को, लोक साहित्य को बाजार के हाथों बेचने पर उतारू हुई है, अपसंस्कृति का दौर शुरू हुआ है। या तो इस परिवर्तन को परिवर्तनशील समाज की इच्छा मानकर मौन साध लें अथवा अपसंस्कृति पैदा करनेवाली बाजार निर्मित सेल्फी संस्कृति से बचने का कुछ तो प्रयास करें। सत्र को सभी साहित्यकारों ने छत्तीसगढ़ी भाषा में संबोधित किया।
अपने उद्बोधन में लोककला के प्रकांड विद्वान तथा लोककला मंच ’दूध मोंगरा’ के संस्थापक-संचालक डाॅ. पीसी लाल यादव ने कहा कि छत्तीसगढ़ में स्थापित और संचालित सभी लोककला मंच, दाऊ रामचंद्र देशमुख द्वारा स्थापित प्रथम छत्तीसगढ़ी लोककला मंच ’चंदैनी गोदा’ से प्रेरित और अनुप्राणित हैं। चंदैनी गोंदा द्वारा स्थापित आदर्श ही समस्त छत्तीसगढ़ी लोककला मंवों का आदर्श है। यह आदर्श छत्तीसगढी़ लोकनाट्य नाचा का आदर्श है जो उसकी आत्मा है। छत्तीसगढी़ लोकनाट्य नाचा का इतिहास छत्तीसगढ़ के रामगढ़ में स्थापित विश्व के प्रथम नाट्यशाला के इतिहास से भी प्राचीन है, क्योंकि रामगढ़ में स्थापित विश्व के प्रथम नाट्यशाला का इतिहास भरतमुनि के नाट्य शास्त्र के बाद प्रारंभ होता है परंतु छत्तीसगढी़ लोकनाट्य नाचा तो लोक की कृति है और कहना न होगा कि लोक और उसकी परंपराएँ पहले आती है, शास्त्र बाद में। दुख की बात है कि वर्तमान में लोककला मंचों में द्विअर्थी संवादों और बाजार की संस्कृति ने प्रवेश करके इसे विकृत करना शुरू कर दिया है। समय के अनुरूप परिवर्तन मानकर इस अश्लील अपसंस्कृति को स्वीकार नहीं किया जा सकता।
इस सत्र के मुख्य अतिथि छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के सदस्य आदरणीय डाॅ. गणेश सोनी ’प्रतीक’ ने कहा कि - केवल हमार ममतामयी, गुरतुर छत्तीसगढ़ी महतारी भाखाच् ह आज लोककला मंच मन ल अपसंस्कृति से बचा सकथे। येकर खातिर हम सब लोकलाकार अउ साहित्यकार मन ल येला चुनौती मान के, ईमानदारी के संग अउ संकल्प लेके के काम करे जरूरत हे।
सत्र के अध्यक्ष प्रो. डाॅ. नरेश कुमार वर्मा ने कहा कि - छत्तीसगढ़ी लोककला मंचों के सांस्कृतिक अवदानों को रेखांकित करने का प्रयास पहले से चल रहा है परंतु इस संबंध में कोई उल्लेखनीय प्रगति दिखाई नहीं देती। आज ’साकेत साहित्य परिषद् सुरगी’ ने इस विषय को प्रमुखता के साथ साहियिक मंच पर उठाया है, इसके लिए यह परिषद् बधाई का पात्र है। इस सत्र में साहित्यकार आ. सरोज द्विवेदी, प्रसिद्ध कहानीकार कैलाश बनवासी, ’कलापरंपरा’ के संपादक डी. पी. देशमुख, तथा साहित्यकार दुर्गा प्रसाद पारकर ने भी अपने विचार व्यक्त किये।
सम्मेलन के दूसरे, सम्मान, सत्र के मुख्य अतिथि राजनांदगाँव संसदीय क्षेत्र के पूर्व सांसद तथा नगर पालिक निगम राजनांगाँव के महापौर, जन-जन में लोक प्रिय, जन-जन के नायक, मधुसूदन यादव थे। सत्र में उनके उद्बोधन की साहित्यिक शैली से उनकी साहित्यिक प्रतिभा के दर्शन हुए। महापौर मधुसूदन यादव ने कहा कि - आज जन सेवा के प्रतिमान बदल चुके हैं। जनता से कटकर आप जन सेवा नहीं कर सकते। साहित्य भी जन सेवा का ही साधन है। आप सब साहित्यकारों से अनुरोध है कि साहित्य को जनोपयोगी बनाने के लिए आप जन से जुडकर एक नये साहित्यिक प्रतिमान की स्थापना करें। इस सत्र में महापौर मधुसूदन यादव ने जिले के व्यंग्यकार गिरीश ठक्कर ’स्वर्गीय’, पत्रकार प्रकाश साहू ’वेद’ तथा लोककलाकार दिनेश साव को ’साकेत सम्मान’ से सम्मानित किया। सम्मेलन के अंतिम सत्र में उपस्थित कवियों ने काव्य पाठ किया।
निवेदक - कुबेर
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