प्रेमचंद हमेशा प्रासंगिक रहेंगे। अपने साहित्य में अपने समय का इतिहास लिखनेवाला, बेहतर समाज के लिए अपने समय की बुराइयों से लड़नेवाला, और समाज को भविष्य के खतरों से सचेत करनेवाला लेखक कभी अप्रासंगिक नहीं हो सकता। प्रेमचंद दृष्टिसंपन्न लेखक थे, क्या लिखना है, इसकी उन्हें स्पष्ट समझ थी। एक ओर सवर्ण हिंदुओं ने उन्हें ब्रह्मण विरोधी और देशद्रोही कहकर डराने का प्रयास किया तो दूसरी ओर मुसलमानों ने भी उन्हें अपना विरोधी करार दिया। उनका लेखन उनके लिए खतरों से भरा हुआ था। उन्हें डराने का प्रयास किया गया। इन बातों की तस्दीक उनके द्वारा 1934 में लिखे गये - ’साम्प्रदायिकता और संस्कृति’ तथा ’क्या हम वास्तव में राष्ट्रवादी हैं?’ लेखों से किया जा सकता है। प्राणों का भय एक सहजात मानवीय कमजोरी है, यह कमजोरी उनमें भी थी, परंतु मृत्यु के भय से वे विचलित नहीं हुए।
कबीर और प्रेमचंद का समय आज के समय से बेहतर रहा होगा। उनके समय के शासक, सामंत और जमींदार आज के पूंजीपति वर्ग से बेहतर रहे होंगे, इसीलिए उन लोगों की हत्या नहीं हुई। उनके समय में कोई किसान आत्महत्या नहीं करता था। आज प्रेमचंदों और किसानों की हालत कैसी है, यह किसी से छिपी नहीं है।
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कबीर और प्रेमचंद का समय आज के समय से बेहतर रहा होगा। उनके समय के शासक, सामंत और जमींदार आज के पूंजीपति वर्ग से बेहतर रहे होंगे, इसीलिए उन लोगों की हत्या नहीं हुई। उनके समय में कोई किसान आत्महत्या नहीं करता था। आज प्रेमचंदों और किसानों की हालत कैसी है, यह किसी से छिपी नहीं है।
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