सोमवार, 11 मार्च 2019

व्यंग्य

एक बोध कथा


तपस्यारत वह ऋषि दूर से आनेवाली इस समवेत गायन की आवाज को सुना - बहेलिया अब नेता बनकर आता है, लोकलुभावन आश्वासनों का जाल फैलता है, वायदे रूपी दाना डालता है। दानों के लालच में नहीं पड़ना चाहिए।

ऋषि यह सोचकर अत्यंत प्रसन्न हुआ कि उसकी शिक्षा का प्रसार जंगल में चारों ओर हो गया है। अब कोई तोता बहेलिए की जाल में नहीं फंसता। सब प्रसन्न हैं।

गायन का स्वर नजदीक आता गया। ऋषि ने देखा, तोतों का पूरा समूह बहेलिए की जाल में फंसा हुआ है और बड़े मजे के साथ ऋषि के उपदेश का गायन कर रहा है - बहेलिया अब नेता बनकर आता है, लोकलुभावन आश्वासनों का जाल फैलता है, वायदे रूपी दाना डालता है। दानों के लालच में नहीं पड़ना चाहिए।

ऋषि बड़ा दुखी हुआ - मेरे उपदेश का ऐसा असर? उसने अपनी दिव्य दृष्टि से देखा - आनेवाली पीढ़ियों पर ऋषियों-उपदेशकों की उपदेश का विपरीत असर होने लगा है। उसने अभिशाप दिया - आनेवाली पीढियों पर किसी उपदेश का कोई असर न हो।

आजकल इसीलिए लोगों पर किसी उपदेश का कोई असर नहीं होता।
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कुबेर

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