जो गढ़े, वह गुरू
परंब्रह्म परमेश्वर के तीन रूप बताये गए हैं -(जीवों की रचना, पालन और कल्याण करनेवाली शक्तियों के तीनों रूप प्रकृति में सन्निहित है। अतः प्रकृति ही परमब्रह्म है।)
गुरुर ब्रह्मा, गुरुर विष्णु, गुरुर देवो महेश्वरः।
गुरुर साक्षात परम ब्रह्म, तस्मै श्री गुरुवे नमः।।
1. ब्रहमा - रचयिता,
2. विष्णु - पालनकर्ता, और
3. महेश (शिव) - कल्याण करनेवाला
गुरू में ये तीनों ही रूप समाहित हैं। समस्त जीवों को गढ़नेवाले ब्रह्मा ने मनुष्य को एक जीवधारी शरीर ही बनाया, परंतु मनुष्य को वास्तविक मनुष्य के रूप में गढ़ने का काम गुरू करता है, इसलिए वह ब्रह्मा है। जीवों का पालन करनेवाला विष्णु जीवों का शारीरिक और भौतिक पोषण ही करता है। मन, बुद्धि और आत्मा का पोषण गुरू करता है, इसलिए वह विष्णु है। गुरू ही मनुष्य को जीने की कला और अखण्ड आनंद के प्राप्ति का मार्ग दिखाकर उसका कल्याण करता है, इसलिए वह शिव है। गुरू ब्रहमा भी है, गुरू विष्णु भी है और गुरू महेश्वर भी है अतः गुरू ही साक्षात परमब्रहम परमेश्वर है।
मनुष्य जन्म से अनगढ़ होता है, उसे गढ़ने का काम गुरू करता है।
कबीर ने कहा है -
’’गुरु कुम्हार, सिस कुंभ है, गढ़ि-गढ़ि काढ़ै खोट।
अंतर हाथ सहार दे, बाहर मारे चोट।।’’
गुरु कुम्हार की तरह है जो शिष्य रूपी मिट्टी के एक-एक कंकर-पत्थर रूपी खोट को चुन-चुनकर निकालता है। करुणा रूपी जल से सींच-सींचकर उसे नम्र बनाता है। अनुशासन और शिक्षा रूपी पैरों से रूँद-रूँदकर उसे कोमल बनाता है। काल रूपी चाक में चढ़ाकर उसे घड़े का रूप देता है और अपने ज्ञान के ताप से तपाकर उसे पूर्ण, उपयोगी और कल्याणकारी घड़े का रूप देता है। गुरू ईश्वर से बढ़कर है।
समस्त गुरुओं को प्रणाम।
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सुप्रभात।
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