बुधवार, 20 मार्च 2019

आलेख

विलंडेकुह

(पूँजी अक्षमता और दुःख का भी एक बाजार बना देती है)

नया ज्ञानोदय, फरवरी 19 अंक में मंगलेश डबराल की यात्रा-वृत्तांत छपी है जो उनकी स्वट्जरलैंड की ज्यूरिख शहर की यात्रा से संबंधित है। यात्रा-वृत्तांत का शीर्षक है ’’जगमग शहर में अंधी गाय’’। वे लिखते हैं - ’’ज्यूरिख स्वीट्जरलैंड दुनिया का सबसे बड़ा वित्तीय और बैंकिंग नगर है। .... ज्यूरिख खासा आकर्षक है। उमट नदी के छोरों पर बसे शहर के बीच 40 किलोमीटर लंबी एक कृत्रिम झील इसे और भी सुंदर बना देती है।"

वे आगे वहाँ के एक अनोखे रेस्त्रां जहाँ घुप अंधेरा होता है और वहाँ के सारे कर्मचारी नेत्रहीन होते हैं, का जिक्र करते हुए, लिखते हैं - "लेकिन दिव्यराज (उनके सहयोगी और गाइड) मुझे एक अनोखी जगह ले चलना चाहते हैं। वह एक रेस्तरां है - विलंडेकुह। यानी अंधी गाय। ....... विलंडेकुह में (बाहर के काउँटर को छोड़कर) गहरी अंधेरा होता है, कुछ नहीं दिखता और सिर्फ आवाजों की मदद से उसमें बैठे लोग खाते-पीते रहते हैं।" आगे वे प्रश्न करते हैं - "लेकिन इस तरह चमचम-जगमग शहर में यह अंधेरा कोना क्यों है? और यहाँ इतनी भीड़ क्यों रहती है? ......... शायद इसके पीछे दृष्टिविहीन लोगों की सहायता करने का जज़्बा हो जो पश्चिमी देशों में अब भी बचा हुआ है। शायद विश्व-बाजार ज्योतिविहीन लोगों को भी मुनाफे के काारोबार में बदल देता है। ............. पूँजी अक्षमता और दुःख का भी एक बाजार बना देती है।"
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