जाति न पूछो साधु की
जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान।
मोल करो तरवार की, पड़ा रहन दो म्यान।।
कबीर साहब कहते हैं - साधु (सज्जन, श्रेष्ठ, अथवा विवेकवान पुरुष) की जाति न पूछ कर उसके ज्ञान को परखना चाहिए। अर्थात् साधु (सज्जन, श्रेष्ठ, अथवा विवेकवान पुरुषों) की पहचान जाति से नहीं, उसके ज्ञान से होती है। मनुष्य की साधुता, सज्जनता और श्रेष्ठता की पहचान उसकी जाति नहीं बल्कि उसका ज्ञान है। ठीक उसी तरह जैसे, तलवार की श्रेष्ठता उसकी धार और उसकी मजबूती से तय होती है, म्यान से नहीं। स्वर्ण निर्मित, रत्नजटित म्यान के भीतर धार रहित और कच्चे धातु की तलवार रखी हो तो वह वीर पुरुषों के किस काम की? सुंदर और बहुमूल्य म्यान आपकी संपन्नता, आपके ऐश्वर्य और आपके अहंकार को प्रदर्शित कर सकता है, परंतु आपकी वीरता और आपकी श्रेष्ठता को अथवा तलवार की श्रेष्ठता को नहीं।
परंतु यह देखकर दुख होता है कि कबीर साहब के अनुयायी साधु और मठाधाीश सिर्फ कबीर साहब की जाति को लेकर अपना ज्ञान बघारने में लगे हुए हैं। वे कबीर साहब के जन्म और अवसान की घटनाओं को लेकर कि कबीर साहब सामान्य शिशु की तरह माता की कोख से पैदा नहीं हुए थे बल्कि उनका अवतरण लहरतारा नामक सरोवर में कमल पुष्प के ऊपर हुआ था। वे यह सिद्ध करने में लगे हुए हैं कि किस तरह एक सौ बीस वर्ष की अवस्था में उनके निधन के पश्चात् उनके पार्थिव शरीर के लिए हिंदुओं और मुसलमानों के बीच विवाद होने पर उनका पार्थिव शरीर फूल में परिवर्तित हो गया था जिसे दोनों समुदाय के लोगों ने बराबर-बराबर बाटकर अपनी-अपनी परंपराओं के अनुसार उनका अंतिम संस्कार किया था। सिर्फ इतना ही नहीं कबीर पंथी मठाधीश इस बात को भी सिद्ध करने में लगे हैं कि कबीर साहब गृहस्थ नहीं बल्कि ब्रह्मचारी थे। कमाल-कमाली जिन्हें उनकी संताने बताई जाती है, निरा बकवास है। और यह भी कि कबीर किसी के दास नहीं थे अतः उनके नाम के साथ दास शब्द न जोड़ा जाय। ये सब बातें कबीर की जाति सिद्ध करने की दलीलें नहीं तो और क्या हैं। परंतु कबीर पंथी मठाधीश और साधु को इन सब बातों का बड़ा फायदा है। वे इन बातों में जनमानस को उलझाकर रखते हैं ताकि कबीर की शिक्षाओं के विपरीत उनके आचरण पर परदा पड़ा रहे। इन बातों का इसके अतिरिक्त और कुछ लाभ नहीं है। इन बातों से कबीर के ज्ञान और शिक्षाओं में कोई अंतर आनेवाला नहीं है। ये सारी बातें म्यान का मोल करने के समान है।
कबीर साहब ने धर्म के नाम पर जन सामान्य का आर्थिक और भावनात्मक शोषण करनेवाले पंडे-पुरोहितों और मुल्लाओं का आजीवन विरोध किया परंतु आज स्वयं को कबीर साहब का अनुयायी माननेवाले कबीर पंथी मठाधीशों और साधुओं स्वयं पंडे-पुरोहितों का वेष धारण्कर बैठे हुए हैं। कबीर साहब ने धर्म के नाम पर पूजा पद्धति, छाप-तिलक, माला-सुमरनी, आदि आडंबरों का आजीवन विरोध किया परंतु उनके अनुयायी आज इन्हीं आडबरों को लेकर बैठे हुए हैं। न सिर्फ वे स्वयं छाप-तिलक, माला-सुमरनी से स्वयं को लादे हुए हैं बल्कि कबीर साहब के चित्र और मूर्ति बनाकर उसे भी छाप-तिलक, माला-सुमरनी से लाद चुके हैं। छाप-तिलक, माला-सुमरनी का विरोध करनेवाले कबीर साहब इन चीजों को धारण करते होंगे क्या?
कबीरपंथ के अनुयायियों और उसके प्रचारक साधुओं की कबीर साहब की शिक्षाओं के विपरीत दिनचर्या और आचरण को देखकर दुख होता है। कबीर साहब ने कंठीमाला और छापतिलक का विरोध किया था, परंतु आज ये सारे के सारे इसी से रंगे हुए हैं। मुल्लाओं का मस्जिद की मीनारों से बांग देने में और मंदिरों-मठों में शंख, झांझ-मजीरे और घंटों की कानफोड़ू आवाजों में क्या अंतर है? कबीर साहब ने पूजा-पाठ, पंडितों-पुराहितों, और मुल्लाओं का विरोध किया था, आज कबीर पंथियों ने अपने लिए अलग पुरोहित वर्ग, अलग पूजा पद्धति और अलग मठ और मंदिरों की व्यवस्था कर रखा है। कबीर साहब ने पत्थर पूजा का विरोध किया था, आज सारे के सारे कबीरमठ तथाकथित गुरुओं और उनके वंशजों की मजारों से भरे पड़े है। सारे कबीरपंथी लोग इन्हीं पत्थरों की पूजा करके स्वयं को कबीर का सच्चा भक्त मानकर गौरवान्वित हो रहे हैं।
कबीरपंथ के अनुयायी और उसके प्रचारक साधुगण जो आज इस तथ्य को सिद्ध करने में उलझे हुए हैं कि कबीर गृहस्थ नहीं बल्कि ब्रह्मचारी सन्यासी थे। उनका जन्म किसी माता की कोख से नहीं हुआ था बल्कि वे लहरतारा तालाब के बीच कमल पुष्प के ऊपर अवतरित हुए थे। और उनके निधन के पश्चात् उनका पार्थिव शरीर गुलाब फूल में परिवर्तित हो गया था। कबीरपंथ के प्रचारक सन्यासी और साधुगण अपने मंचों से कबीर की शिक्षाओं की उपेक्षा करके इन्हीं तथ्यों का प्रचार-प्रसार करते रहते हैं। यह प्रचार-प्रसार उनके द्वारा किये जा रहे आडंबरों और कबीर की शिक्षाओं के विपरीत आचरणों पर परदा डालने का काम करता है। कबीर मठों में सद्गुरू कबीर साहब की शिक्षाओं के नाम पर चल रहे आडंबरों की ओर से लोगों के ध्यान को भटकाने के लिए यह एक सुविचारित प्रपंच के अलावा और कुछ नहीं है।
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