गुरुवार, 18 अप्रैल 2019

अनुवाद

ठट्ठा-ठट्ठा म - अंतोन चेखव 

(हिंदी अनुवाद से छत्तीसगढ़ी अनुवाद करे गे हे - कुबेर।)

जड़काला के दिन, मंझनिया के बेरा अउ कटकटउंआ जाड़ा। नाद्या ह मोर बाँहा ल चमचमा के धरे रहय। वोकर खंुजरी बाल म नान्हें-नान्हें बरफ ह जमा हो गे रहय अउ चंदैनी मन सरीख चमकत रहय। वोकर ओंठ मन म घला हल्का असन बरफ जम गे रहय। हम दूनों बरफ ले ढंके एक ठन डोंगरी म खड़े रेहेन। हमर खाल्हे लंबा-चौड़ा मैदान पसरे रिहिस, जउन ह सूरज के चमक ल चारों मुड़ा बगरावत रहय। अइसे लागत रहय कि मैदान रूपी दरपन म सूरज के प्रतिबिंब बन के चमकत होय। हमर नजीेके म एक ठन स्लेज गाड़ी रखे रिहिस जउन म लाल रंग के कपड़ा लगे रहय।

’’नाद्या! चल, एक घांव फिसलबोन। सिरिफ एक घांव। हमला कुछू नइ होवय। सही सलामत खाल्हे पहुँच जाबोन।’’ मंय ह नाद्या ले केहेंव।

लेकिन नाद्या ह डर्रावत रहय। इहाँ ले, डोंगरी के टीप ले मैदान तक के रद्दा ह वोला अबड़ लंबा लागत रहय। डर के मारे वोकर चेहरा ह पींयर पड़ गे रहय। जब वो ह खल्हे डहर देखय अउ जब मंय ह वोला स्लेज गाड़ी म बइठे बर कहंव तब जइसे वोकर परान निकले पड़े। मंय ह सोचथंव - पर तब का होही, जब वोह स्लेज गाड़ी म बइठ के फिसले लगही। या तो वो ह डर के मारे मर जाही, नइ ते पगला जाही।

’’मोर बात ल मान ले।’’ मंय ह वोला केहेंव - ’’न... न...डर्रा झन, तोर तीर हिम्मत नइ हे का?’’

ले दे के वो ह मानिस। फेर जब मंय ह वोकर मुँहू कोती ल देखेंव त अइसे लागिस जइसे अब तो मरनच् हे कहिके वो ह मोर बात ल माने हे। वोकर मुँहू ह डर के मारे सेठरा गे रहय और बदन ह काँपत रहय। मंय ह वोला स्लेज गाड़ी म बइठार के वोकर खांद म हाथ मड़ा के वोकर पीछू बइठ गेंव। हमन वो अथाह गहराई तरफ फिसले लगेन। स्लेज गाड़ी ह बंदूक के गोली समान फिसले लगिस। भयानक ठंडी हवा ह हमर चेहरा ल दंदोरत रहय। अइसे लगे कि वो ह चिंघाड़ मारत होय। भयानक सीटी बजात होय अउ हमर सरीर ल ठाड़ो ठाड चीरे के कोसिस करत होय, हमर नरी ल काँट लेना चाहत होय। फिसलत खानी हवा ह अतका तेज हो गे रहय कि हमला सांस लेना मुस्किल हो गे रहय। अइसे लगत रहय कि कोनों राक्षस ह अपन पंजा म दबोच के हमला नरक कोती खींचत लेगत होय। अगल-बगल के सब जिनीस मन डांड़ खिचाय जइसे दिखत रहय। हमला अइसे लागत रहय कि बस, अब हम मरनेच् वाला हन।

’’नाद्या! मंय ह तोर से प्यार करथंव।’’ मंय ह धीरे से केहेंव।

स्लेज के गति ह धीरे-धीरे कम होय लगिस। हवा के गरजना ह अब वोतका भयानक नइ रहि गिस। हमर जान म जान आइस। आखिरकार हम खाल्हे पहुँचिच् गेन। नाद्या ह अधमरी हो गे रहय। वो ह डर के मारे हफरत रहय। मंय ह वोला धर के गाड़ी ले उतरेंव।

’’अब चाहे जो होय, दुबारा मंय ह कभू नइ फिसलंव। आज तो मंय ह मरत-मरत बचे हंव।’’ मोर डहर देख के वो ह किहिस। वोकर बड़े-बड़े आँखी म डर भाव ल साफ-साफ देखे जा सकत रिहिस। थोरिक देर म वोकर हफरई ह माड़ गिस। वो ह मोर डहर टकटकी लगा के देखत रहय, जइसे कोनों सवाल पूछत होय। अतका तो पक्का हे कि वो ह मोर वो सब्द मन ल जरूर सुनिस हे। पर वोला ये समझ म नइ आवत रिहिस कि वो सब्द मन ह मोरे मुँहू ले निकले हे। कहीं हवा के गरजना के सेती तो वो ह अइसन नइ सुनिस होही? 

मंय ह नाद्या के नजीक म खड़े हो के सिगरेट पीयत अपन दास्ताना मन ल धियान से देखत रेहंव। 

नाद्या अउ मंय, दूनों झन एक-दूसर के हाथ म हाथ डारे बहुत देर तक पहाड़ी म घूमेन। ’’नाद्या! मंय ह तोर से प्यार करथंव,’’ ये आवाज ह कहाँ ले आइस, नाद्या ल ये बात ह समझ म नइ आवत रिहिस। का ये ह हवा के गूँज हरे? कि येला संगवारी ह बोले हे? कहीं वोला भ्रम तो नइ हो गे हे? वोकर ये सुनना सच हरे कि झूठ हरे?

अब ये सवाल ह वोकर इज्जत के सवाल बन गे, वोकर स्वाभिमान के सवाल बन गे, वोकर जीवन-मरन के सवाल बन गे। वोकर जीवन भर के खुसी के सवाल बन गे। सच्चाई जानना अब वोकर बर सबले जादा महत्वपूर्ण बात बन गे। नाद्या ह उदास अउ अधीर हो के मोर डहर ल देखिस, जइसे वो ह मोर अंतस म झांक के ये बात के सच्चाई के पता लगाना चाहत होय। जब मंय ह वोला कुछू पूछतेंव तब वो ह मोर सवाल के अंते-तंते जवब देतिस। वोला जइसे उम्मीद रिहिस के मोर अंतस ले, ’’नाद्या! मंय ह तोर से प्यार करथंव,’’ के आवाज ह जरूर एक घांव अउ आही। वोला उम्म्ीद रिहिस कि आगू के बात के सिलसिला मंय ह इही आवाज ले करहूँ। मंय ह वोकर चेहरा ल ध्यान से देखेंव - ओह! ये बात ल ले के वोकर अंतस ह तड़पत रहय। वो ह अपन आप से लड़त रहय। वो ह मोर से कुछ कहना चाहत रहय, मोर से कुछ पूछना चाहत रहय। पन वो ह अपन अंतस के भाव ल बोल के प्रगट नइ कर पावत रहय। वो ह लजात रहय, झेपत रहय, डर्रावत रहय। आखिरकार वोकर मन के भाव ह वोकर जुबान म आइच गिस, - ’’सुनिए!’’ लजावत अउ खाल्हे कोती देखत-देखत वो ह किहिस।
’’का?’’
’’चल न! एक घांव अउ फिसलबोन।’’
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हम दूनों फेर बरफ ले ढंके डोगरी के टीप म पहुँच गेन। नाद्या के हालत फेर वइसने हो गे जइसन पहली घांव होय रिहिस। डर के मारे वो कांपे लहिस, चेहरा ह सफेद हो गिस। मंय ह नाद्या ल स्लेज म बइठारेंव अउ फेर भयानक गहराई कोती फिसले के सुरू करेन। फेर विही कनकन ले ठंडी हवा के कानफोड़ू दहाड़, स्लेज के गूँज। अउ जब स्लेज के गति अउ हवा के दहाड़ ह सबले भयंकर हो गे तब मंय ह फेर धीरे से केहेंव - ’’नाद्या! मंय ह तोर से प्यार करथंव।’’

खाल्हे पहुँच के जब स्लेज ह रुक गे तब नाद्या ह डोंगरी के टीप डहर नजर उठा के देखिस। फेर मोर डहर ध्यान से देखिस। वो ह ये जानना चाहत रिहिस कि ये आवाज ह आखिर कहाँ से आथे। मोर भावहीन चेहरा म वोला ये आवाज के कोनो भाव नइ दिखिस। वोला बड़ अचरज होइस। वोकर पूरा हावभाव ह अचरज म डूब गे। वोला समझ म नइ आवत रहय कि आखिर ये आवाज ह कहाँ ले आथे। इही ह किहिस होही कि बस, मोला भ्रम होवत हे?

संसय के मारे वो ह एकदम परेसान हो गेे। वोकर मन के अधीरता ह अउ गढ़ा गे। मोला वोकर ऊपर तरस आय लगिस। बेचारी लड़की। 

मंय कोनों बात करंव तब मोर कोनों बात के वो ह जवाब नइ देवय। वोकर सूरत ह रोनहू हो गे रहय।
’’घर चलबोन?’’ मंय ह पूछेंव।

’’मोला तो इहाँ फिसले म गजब मजा आवत हे।’’ वो ह किहिस। सरम के मारे वोकर मुँहू ह लाल हो गे रहय। ’’चल न, एक घांव अउ फिसल के देखबोन।’’

मंय ह मन म केहेव - अच्छा, तोला फिसले म मजा आवत हे? स्लेज गाड़ी म बइठत खानी अउ फिसलत समय डर के मारे तोर जान निकले पड़थे। पन मंय धीरे से खांस के अपन चेहरा ल रुमाल म पोछेंव। एक घांव अउ फिसले बर हम डोंगरी के ऊपर चहुँच गेन। अउ जब फिसलत-फिसलत आधा रद्दा पार होइस तब मंय ह फेर विही वाक्य ल धीरे ले दुहरा देंव - ’’नाद्या! मंय ह तोर से प्यार करथंव।’’

लेकिन नाद्या खातिर ये पहेली ह पहेलिच बन के रहि गिस। वोह कलेचुप रहय, हुंके न भूंके। मंय ह वोला वोकर घर तक अमराय बर गेयेंव। वोकर अटक-अटक के रेंगे से मोला लागिस कि वो ह मोर मुँह से कुछ सुनना चाहत हे। मोला वोकर मन के तड़प ह घला जना गे। पन वो ह बिलकुल कलेचुप रहय। अपन हिरदे के भाव ल, अपन मन के तड़प ल वो छुपाय के कोसिस करत रहय कि ’’नाद्या! मंय ह तोर से प्यार करथंव,’’ आखिर ये बात ल बोलिस कोन होही?

दूसर दिन मोला वोकर एक ठन चिट्ठी मिलिस, लिखे रहय, ’आज जब तंय ह फिसले बर डोंगरी म जाबे तब महूँ ल संग म लेग जाबे - नाद्या।’ 

वो दिन के बाद हम दूनों रोज फिसले बर जावन। फिसलत खानी जब हवा अउ स्लेज के रफ्तार ह जानलेवा हो जातिस तब मंय ह फेर धीरे से कहितेंव - ’’नाद्या! मंय ह तोर से प्यार करथंव।’’

बहुत जल्दी नाद्या ल येकर नसा हो गे। नसा करनेवाला ह जइसे बिना नसा के नइ रहि सकय वइसने नाद्या ह ये आवाज ल सुने बिना नइ रहि सकय। हालाकि डोंगरी ऊपर जाके उहाँ ले फिसलना वोकर खातिर अभी घला मौत के मुँह म जाय के बराबर रिहिस, पन वो ह का करे? नसा जो ठहरिस। वो आवाज के स्वाद ह वोला अतका भाय रहय कि वोकर खातिर वो ह अब मौत से घला लड़ जावय। पन पहेली ह पहेलिच् रहि गिस। ये वाक्य अउ ये सब्द ल कोन ह कहिथे, वो ह कभू जान नइ पाइस। वोला दू झन ऊपर सक रिहिस - एक मोर ऊपर अउ दूसरा हवा ऊपर।

अब वोला ये बात ले कोनों फरक नइ पड़य कि ये वाक्य अउ ये सब्द ल कोन ह कहिथे। वोकर कान म ये आवाज सुनाई पड़ना चाही, बस। सराब ल चाहे कोनों बरतन म पीये जाय, नसा म फरक नइ पड़य।

एक दिन नाद्या ह अकेलच् डोगरी म पहुँच गे। मंय ह दुरिहा ले देखेंव, नाद्या के निगाह ह मोला खोजत रहय। हिम्मत करके वो ह डोंगरी म चढ़ गिस। अकेला फिसले के नाम से वोकर मन म कतका डर समाय रिहिस होही? मंय ह जानथंव। वोकर चेहरा ह सफेद पड़ गे रहय। ’’नाद्या! मंय ह तोर से प्यार करथंव,’’ ये बात ल आखिर कोन ह कहिथे, ये राज ल वो ह आज जान के रही, अउ ये ह अकेला म ही जाने जा सकथे। चाहे येकर खातिर वोला फाँसी म झूलना काबर नइ पड़ जाय। मंय ह देखत रेहेंव, वो  ह आँखी ल मूँद के स्लेज म बइठ गे जइसे जीवन से अंतिम बिदा लेवत होय, अउ फिसले लगिस। स्लेज के फिसले के आवाज ह मोला दुरिहा ले सुनावत रहय।

नाद्या ल वो आवाज ह सुनाई दिस होही कि नहीं, आप जान सकथव। कड़कड़ँवा ठंडी हावा के भयंकर आवाज अउ मौत के डर के मारे कुछ सुन पाना वोकर बर संभव नइ रिहिस। वोला ये आवाज ह सुनाई पड़िस कि नहीं, वो ह खुदे नइ जानय। फेर मंय ह देखेंव कि बाजी हारल आदमी सरीख वो एकदम निरास अउ थके कस स्लेज ले उतरिस।

फेर कुछ दिन म बसंत के मौसम आ गे। मार्च के महीना। सूरज के गरमी बढ़ गे अउ डोगरी म जमे बरफ ह धीरे-धीरे टघल के बोहाय लगिस। डोंगरी ह करिया पर गे। वोकर आइना बरोबर चमक ह नंदा गे। हमर फिसले के खेल ह थम गे। 

अब वो ह ये आवाज ल दुबारा कभू नइ सुन पाय। हवा ह घला खामोस होगे अउ महूँ ह ये सहर ल छोड़ के पितुरबर्ग जाय के तियारी म जुट गेंव।

मोर पितुरबर्ग रवाना होय के कोनों दू दिन पहिली के बात होही, सांझ के बेरा मंय ह फुलवारी म अकेला बइठे रेहेंव। नाद्या के घर ह ये फुलवारी के रूँधना से लगे रहय। मौसम म अभी घला ठंडकता बचे रहय। कोनों-कोनों जघा बरफ घला दिखत रहय। हरियाली नइ आय रिहिस फेर बसंत के गमक आय के सुरू हो गे रिहिस। चिरई मन के चहचहाना ह बढ़ गे रहय। मंय ह फुलवारी के रूँधना तीर जा के एक ठन भोंगरा ले नाद्या के घर डहर झांकेव। उदास अउ दुखी नाद्या ह परछी म खड़े रहय। वो ह उदास हो के अगास डहर टकटकी लगा के देखत रहय। बसंत के सुघ्घर हवा ह वोकर चेहरा ल सहलावत रहय। ये बासंती हवा ह वोला वो डोंगरी के गरजत हवा के सुरता करावत रहय, जउन ह कहय - ’’नाद्या! मंय ह तोर से प्यार करथंव।’’ 

वोकर मुँहू ह अउ उतर गे। गाल म आँसू के बूँद ढुरके लगिस। वो बिचारी लड़की ह हवा के आगू हाथ पसार के खड़े रहय मानो बिनती करत होय कि एक घांव तो वो ह वो आवाज ल दुहरा देय कि ’’नाद्या! मंय ह तोर से प्यार करथंव।’’

अउ जब अचानक हवा के झकोरा आइस, मोर मुँहू ले धीरे से फेर विही आवाज  ह निकल गे - ’’नाद्या! मंय ह तोर से प्यार करथंव।’’

अचानक चमत्कार हो गे। झकनका के नाद्या ह मुसकाय लगिस। वो ह हवा कोती अउ हाथ लमाइस अउ खुसी के मारे झूमे लगिस। वो ह बेहद प्रसन्न अउ सुंदर दिखे लगिस।

अउ मंय ह अपन समान बाँधे बर अपन घर लहुट गेंव।
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ये ह बहुत पहिली के बात हरे। अब नाद्या के बिहाव हो चुके हे। नाद्या के बिहाव वोकर मरजी से होइस कि मां-बाप के मरजी से, ये बात ले कोनों फरक नइ पड़य। वोकर पति ह बहुत बड़े अफसर हे। वोकर तीन झन लइका हे।

फेर वो ह वो समय ल आज ले नइ भूल पाय हे जब हम बरफ ले ढंकाय, चम-चम चमकत डोंगरी म फिसले बर जावन अउ फिसलत खानी डर के मारे वोकर परान ह जब निकलो-निकलो हो जावय तब गरजत हवा म ये आवज सुनाई देय, ’’नाद्या! मंय ह तोर से प्यार करथंव।’’

ये सुरता ह वोकर जीवन के सबले सुंदर, सबले सुखद अउ हिरदे रूपी वीणा के तार मन ल झनकारने वाला सुरता के रूप म बस गे हे।
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