गुरुवार, 25 अप्रैल 2019

अनुवाद

6. सरत - अंतोन चेखव

(ये कहानी के छत्तीसगढ़ी अनुवाद कहानी के हिंदी अनुवाद ले करे गे हे। - कुबेर)

सरद रितु के एक घनघोर अँधियारी रात के बात आय। सहर के एक झन साहूकार, जउन ह अब उमर के चैथापन म अपन पुराना दिन के सुरता कर-करके दिन ल गुजारत रहय, अपन पढ़े-लिखे के खोली म उदास हो के टहलत रहय। वोला पंदरा साल पहिली के सरद पूर्णिमा के रात के सुरता आवत रहय जब वो हर जवान रिहिस, अउ अपन मित्र अउ सहर के जाने-माने विद्वान, वकील, अउ साहित्यकार मन ल जोरदार दावत देय रिहिस। 

वोला सुरता आइस कि वो पार्टी म जुरियाय जम्मों विद्वान मन ह अलग-अलग विसय ऊपर बड़ा रोचक वाद-विवाद करत रहंय अउ आखिर म बात इहाँ आ के अटक गे रिहिस कि अपराधीमन ल मौत के सजा देना उचित हे कि अनुचित हे। मेहमान मन म कतरो विद्वानमन मौत के सजा के विरोधी रिहिन। उंकरमन के मत रिहिस कि मौत के सजा के प्रथा ल खतम कर देना चाही काबर कि ये ह एक सभ्य अउ पढ़े-लिखे समाज बर असोभनीय अउ अनैतिक प्रथा हरे। वोमन म बहुत अकन विद्वानमन के मत रिहिस कि अपराधी मन ल मौत के सजा न दे के आजीवन कैद के सजा देना ही उचित अउ पर्याप्त हे। 

मेजबान साहूकार महोदय ह घला बीच-बहस म अपन विचार रखिस - ’’वइसे तो मोला न मौत के सजा के कोनों अनुभव हे अउ न आजीवन कैद के, तभो ले मोर विचार म मौत के सजा ह आजीवन कैद के सजा ले जादा अच्छा हे। काबर कि मौत के सजा म आदमी के मौत ह तुरते हो जाथे, तकलीफ पलभर के होथे जबकि आजीवन कैद म आदमी ह तिल-तिल करके मरथे। अब बतावव कि कोन सजा ल जादा दयालू अउ मानवीय माने जाही, जेमा पलभर के तकलीफ म मौत मिल जाथे वोला कि जउन म आदमी ह जीवनभर तड़प-तड़प के मरथे तउन ल?’’

एक झन मेहमान ह किहिस - ’’दुनों सजा ह अनैतिक हे। दुनों के एके उद्देस्य हे, आदमी के जीवन ल खातम कर देना। सरकार ह जीवन देनवाला अउ जीवन लेनेवाला कोनों भगवान नोहे। वो ह जब कोनों ल जीवन नइ दे सकय तब ककरो जीवन लेय के घला वोला अधिकार नइ हे।’’

पार्टी म एक झन पचीस साल के जवान वकील घला आय रिहिस। वोकरो राय पूछे गिस। वोकर कहना होइस कि - ’’मौत के सजा होय कि आजीवन कैद के सजा, दुनों ह अनैतिक हे। तभो ले, कोनों यदि मोला दुनों म एक ठन ल चुने बर कही त मंय ह आजीवन कैद ल चुनहूँ। मरे ले तो कोनों तरीका ले जीना ल मंय ह अच्छा मानथंव।’’

वकील के ये बात ऊपर जोरदार बहस छिड़ गे। घर के मालिक, साहूकार महोदय, जउन ह वो समय जवान रिहिस अउ एकदम चंचल प्रकृति के मनखे रिहिस, एकदम से गुस्सा हो गे। वो ह टेबल ऊपर जोरदार मुक्का जमाइस अउ किहिस के, ’’तंय ह गलत बात कहत हस। मंय सरत लगा सकथों, पाँच साल घला तंय ह जेल म नइ रहि सकबे।’’

वोकर बात ल सुन के जवान वकील ह किहिस - ’’यदि तंय ह सरत लगाबे ते पाँच साल ल कोन ह कहय, मंय ह पंदरा साल जेल म रहि के दिखा सकथंव। बता, सरत लगाबे क?’’

’’पंदरा साल। मोला सरत मंजूर हे। मंय ह दू करोड़ के सरत लगावत हंव।’’ साहूकार ह जोसिया के किहिस।

’’बात पक्का हो गे। तंय ह दू करोड़ के दांव लगावत हस अउ मंय ह अपन पंदरा साल के अपन जीवन के स्वतंत्रता के दांव लगावत हंव। अब तंय ह अपन बात ले मुकर नइ सकस।’’ जवान वकील ह किहिस।

अउ ये तरीका ले उंकर बीच एक बेहूदा अउ उटपुटांग सरत पक्का हो गे। धन ह साहूकार ल सनकी, बिगड़ैल अउ घमंडी बना देय रिहिस। वोकर तीर पइसा के कोनों कमी नइ रिहिस। वो समय वोकर बर दू करोड़ ह एकदम मामूली बात रिहिस। वोमन जब खाना खायबर बइठिन तब वो साहूकार ह वकील संग मजाक करिस, ’’श्रीमानजी, अभी घला समय हे, चेत जा। मोरबर तो दू करोड़ ह कुछू नो हे, फेर तोर बर अपन जवानी के तीन-चार बछर ल खोना मायने रखथे। मंय ह तीन-चार बछर ये पाय के कहत हंव कि मोला पक्का बिसवास हे कि येकर ले जादा दिन तंय ह कैद म नइ रहि सकस। तंय ये बात ल झन भूल कि मुक्ति अउ बंधन म जमीन आसमान के फरक हे। जब हार मान के तोर मन म मुक्ति अउ सुतंत्रता के बिचार आही, तब तोला जेल के जीवन ह नरक के समान लगही। मोला तो तोर ऊपर बड़ दया आवत हे।’’

 अउ आज वो साहूकार ह विही सरत अउ विही दिन के बात ल सोच के बेचैन होवत हे। वो हर खुद ले सवाल करिस कि आखिर मंय ह अइसन सरत लगायेंवच् काबर? येकर ले कोन ल फायदा होइस? वो हर अपन जीवन के सबले सुंदर पंदरा साल ल जेल म नस्ट कर दिस अउ मंय ह दू करोड़ रकम ल पानी म फेंक देंव। येकर ले का लोग-बाग लये पता  चल जाही कि मौत के सजा ले आजीवन कैद ह बेहतर हे कि नइ हे? ये तो एकदम बकवास हे। वो दिन मोर ऊपर अमीरी के सनक चढ़े रिहिस अउ वो वकील ऊपर पइसा कमाय के घोर लालच समाय रिहिस।

वो साहूकार ल यहू सुरता आवत रहय कि वो दिन पार्टी पूरा होय के बाद जेल म रहय बर नियम तय होय रिहिस अउ इकरारनामा बना के वोमा दस्तखत करे गे रिहिस जेकर अनुसार वकील ल जेल के पहिली दिन से आखरी दिन तक साहूकार के बगीच के बीच म बनल एक ठन खोली म सख्त निगरानी म रहय बर पड़ही। पंदरा साल तक वो ह ककरो ले न तो बात कर सकय अउ न ककरो ले मिल सकय। वो ह न तो अखबार पढ़ सके अउ न वोकर नाव से आवल कोनों चिट्ठी-पतरी ल पढ़ सकय। पर मांगे म वोला बजाय बर कोनों घला बाजा मिल सकथे। पढ़े बर किताब मिल सकथे। चिटृठी-पतरी लिख सकथे। सराब अउ सिगरेट पी सकथे। कोनों चीज के जरूरत पड़े म वो ह खोली म बनल एकलौता खिड़की डहर ले चुपचाप कागज म लिख के दे सकथे। बाजा, किताब, सराब, सिगरेट वो ह जतका मांगही, वोला खिड़की डहर ले दे दिये जाही।

इकरारनामा म हर छोटे-छोटे ले छोटे बात ल लिखे गे रिहिस जेकर सेती जेल ह कालकोठरी बराबर हो गे रिहिस। इकरारनामा के मुताबिक वो वकील ल 14 नवंबर 1870 के रात बारा बजे ले 14 नवंबर 1885 के रात के बारा बजे तक, पूरा पंदरा साल जेल म रहे बर पड़ही। इकरारनामा म लिखाय कोनों घला सरत के उलंघन होय म, जइसे कि दो मिनट के फरक परे म घला साहूकार ह दू करोड़ देय के दायित्व ले मुक्त माने जाही।
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बंदी जीवन के दौरान वकील के लिखे चिट्ठी ले पता लगत जय कि जेल म वो ह अपन दिन ल कइसे बितावय। जेल के पहिली साल ल वो ह अकेलापन अउ ऊब म बिताइस। दिन-रात वोकर खोली ले फकत पियानो के आवाज आवत रहय। सराब अउ सिगरेट ल वो ह ये कहि के तियाग दिस कि येकर ले मन म विकार पैदा होथे। तरह-तरह के विसय-वासना जागरित होथे, अउ इही विसय-वासना ह बंदी के मौत के कारण बनथे। चाहे कतरो बढ़िया सराब होय, अकेला पीये म कोई मजा नइ हे अउ सिगरेट पिये ले खोली ह धुंगिया म भर जाथे। येकर बदला वो ह हल्का-फुल्का किताब पढ़िस जेमा सुखांतक, कामोत्तेजक अउ अपराध के दुनिया से संबंधित उपन्यास मन सामिल रिहिस। 

दूसर साल वोकर पियानो बजई ह बंद हो गिस अउ अधिकतर समय वो ह उत्कृस्ट अउ सास्त्रीय साहित्य म रूचि लिस।

पाँचवा साल म फेर वोकर खोली ले संगीत के आवाज आय लगिस। सराब के घला मांग करे गिस। खिड़की डहर ले झांक के देखे से पता चले कि अधिकतर समय वो ह खाय-पिये अउ सुते म बितावय। कभू वो ह जंभावय अउ कभू वो ह खुदे ऊपर खीझय। वोकर किताब पढ़ई ह बंद हो गिस। कभू-कभू वो ह रात म लिखे बर बइठ जावय। अधरतिया होवत ले लिखत रहय अउ बिहने उठ के वो जम्मों लिखे कागज मन ल चीर के फेंक देवय। कभू-कभू वोला रोवत घला देखे गिस।

अउ छठवाँ साल पूरत-पूरत वो ह भासा, साहित्य, दर्सनसास्त्र अउ इतिहास के किताब मन म रूचि लेय लग गिस। वो ह रात-दिन जब देखो पढ़ते रहय, अतका कि वोकर मांग अनुसार किताब पूरा करे म साहूकार ल घला मुस्किल होय लगिस। चार साल म वोकर मांग के अनुसार वोकर खोली म कम से कम छै सौ किताब पहुँचाय गिस। इही समय वो ह साहूकार ल एक ठन सुंदर चिट्ठी लिखिस, ’मोर प्रिय जेलर। मंय ह ये चिट्ठी ल छै भासा म लिखत हंव। येला अलग-अलग विसेसज्ञ मन ल पढ़वा के उंकर विचार जानबे अउ उंकर राय लेबे अउ यदि एमा एको गलती नइ निकलिस तब कृपा करके अपन फुलवारी म बंदूक के गोली दाग देबे जेकर ले मोला ये पता चल जाय कि मोर मेहनत ह बेकार नइ गिस। अलग-अलग देस अउ अलग-अलग समय के महान जिज्ञासु लेखक मन के मंय ह जउन किताब मन ल पढ़े हंव वोमा वो मन ह अपन-अपन भासा म अपन विचार मन ल लिख के छोड़े हें अउ वो सब्बो म प्रभु यिशु के जोत ह जगमगावत हे। कास! कि आप मोर ये उदात्त आनंद ल, जइसे कि ये समय मोला मिलत हे, समझ पातेव। 

बंदी के ये इच्छा के पूर्ति करे गिस अउ फुलवारी म दू गोली दागे गिस।

दस साल पूरे बाद वो बंदी ह अब खाली मेज के आगू जड़ अवस्था म बइठे-बइठे खाली बरइबलि के न्यू टेस्टामेंट पढ़त रहितिस। ये बात ह साहूकार ल बड़ा अजीब लगिस कि जब वो चार साल म छै सौ पाण्डित्यपूर्ण किताब पढ़ के उंकर ऊपर पूरा-पूरा मास्टरी हासिल कर लेय रिहिस तब अब एक साल ले सरलग एके ठन बाइबिल के न्यू टेस्टामेंट जइसे छोटकुन किताब ल कइसे पढ़त रहि गिस। येमा वोला आखिर का दिखिस?

बाइबिल के न्यू टेस्टामेंट पढ़े के बाद वो ह धर्म के, इतिहास अउ.ब्रह्मविद्या के किताब पढ़े के सुरू करिस। अपन बंदी जीवन के आखिरी दू साल म वो ह असाधारण रूप ले जउन वोला सूझिस, वो सब ल अंधाधुंध पढ़े के सुरू करिस। पहिली तो वोह प्रकृतिविज्ञान ल पढ़े म अपन धियान लगाइस। वोकर बाद वो ह बायरन अउ शेक्सपीयर ल पढ़िस। फेर वो ह रसायन सास्त्र अउ चिकित्सा सास्त्र के मांग करे लगिस। उपन्यास, दरसन सास्त्र अउ थियोलोजी के विवेचना के किताब घला वोकर मांग म सामिल रिहिस। वोकर ये विचित्र मांग ल देख के अइसे लगिस कि जइसे वो ह समुद्र म बोहावत जावत हे, वोकर चारों मुड़ा कोनों भग्न जिहाज के टुकड़ामन छितराय परे हे जेन ल वो ह अपन जीवन रक्षा खातिर पकड़े के कोसिस करत हे। 

साहूकार ह ये सब बीते बात ल लगातार सोचत जावत हे अउ फेर वोला ये धियान आइस कि ’’इकरारनामा के अनुसार कल वोकर बंदी जीवन के पंदरा साल पूरा हो जाही अउ वोला मुक्ति मिल जाही। यदि अइसे होइस तब तो वोला मोला दू करोड़ रूबल देय बर परही अउ वोला दू करोड़ रूबल देय के बाद तो मंय ह कंगाल हो जाहूँ।’’

पंदरा बरस पहिली जब वो ह ये सरत लगाय रिहिस, साहूकार कना बेहिसाब दौलत रिहिस। अब वो सब धन ल वो ह सट्टा अउ जुँआ खेल-खेल के बरबाद कर चुके हे। ये लत ल वो ह छोड़ नइ सकिस अउ वोकर जम्मों कारोबार ह खतम हो गिस। अपन धन के नसा म चूर वो सनकी, घमंडी अउ गुस्सैल साहूकार ह अब एकदम छोटे अउ साधारण बेपारी बन गे हे अउ एक पइसा के घला घटा सहे के वोकर हालत नइ हे। घाटा होय के अंदेसा म वोकर छाती के धकधकी ह बाढ़े लगथे। 

काली दू करोड़ रूबल देय के नाम म वो ह अपन तरुवा ल धर के बइठे हे। सोचत हे कि पंदरा साल पहिली अइसन बेवकूफी वो ह काबर करिस होही। वो बेवकूफ वकील मरिस घला नहीं। वो तो अभी घला चालीस साल के हे अउ जेल ले छूट के वो ह काली मोर से पाई-पाई ल वसूल कर लिही। मोर धन म वो ह बिहाव करही, आलीसान जीवन बिताही, मजा लूटही, सट्टा खेलही अउ मंय ह भिखारी बन के वोकर ताना सुनहूँ कि ’’ये सब सुख ह तोरे देवल आय अउ येकर खातिर मंय ह तोर आभारी हंव। बता, मंय ह तोर का मदद कर सकथंव।’’ वोकर ये ताना ल मंय ह कइसे सुन सकहूँ। नहीं, नहीं, ये जिल्लत भरे जिनगी ले बचे बर वो वकील ल मरनच् परही।

घड़ी ह रात के तीन बजावत रिहिस। घर के सब मन चैन के नींद सुते रहंय। चारों कोती सन्नाटा पसरे रहय। फुलवारी ह सांय-सांय करत रहय। चुपचाप वो ह अपन तिजोरी के नजीक गिस। तिजोरी ले खोज के वो ताला के चाबी ल निकालिस जउन ल वो ह ठीक पंदरा साल पहिली बंदीघर के दरवाजा म लगाय रिहिस। फेर वो ह अपन ओवरकोट ल पहिरिस अउ बाहिर निकल गिस।

फुलवारी म कड़कड़उँवा जाड़ा पड़त रहय, घटाटोप अँधियारा बगरे रहय। पानी गिरत रहय, हवा चलत रहय जेमा पेड़मन ह झुमरत रहंय। हाथ ल हाथ नइ दिखत रहय। वो ह टमड़त-टमड़त जेलखाना तक पहुँचिस। चँउकीदार ल हुँत कराइस। वोला कोनों उत्तर नइ मिलिस। सोचिस, अइसन खराब मौसम के देखत चँउकीदार ह कोनों कोन्टा-कान्टा म लुका के बइठे होही। साहूकार ह सोचिस कि यदि मोला अपन काम ल पूरा करना हे तब बहुत सावधानी ले ये काम ल करे बर पड़ही। सारा सक चैकीदार ऊपर जाना चाही। 

सीढ़िया मन ल खोज के वो ह भीतर परछी म पहुँचिस। परछी ल पार करके वो ह भीतर पहुँचिस। उहाँ पहुँच के जेब ले माचिस निकाल के एक ठन काड़ी ल रोखिस अउ माचिस के उजेला म दरवाजा के तारा ल देखिस। तारा के सील-मुहर ह जस के तस रहय। माचिस ह थोरिक देर जल के बुझा गे। वो ह डर के मारे कांपत खिड़की डहर ले भीतर झांकिस। देखिस कि बंदी के खोली म मोमबत्ती बरत रहय। बंदी ह मेज के आगू बइठे रहय। वोकर पीठ, हाथ अउ बाल मन ह दिखत रहय। वोकर नजीक के कुरसी अउ बिस्तर म किताब मन ह जेती-तेती परे रहय। 

पाँच मिनट बीत गे, बंदी ह न हालिस न डोलिस। वो ह कोनों मुरती जइसे जड़ हो गे रहय। पंदरा साल के अभ्यास म वो ह अइसने बइठे बर सीख गे रिहिस होही। वो ह खिड़की ल खटखटाइस तभो ले बंदी के ऊपर कोनों असर नइ परिस। तब साहूकार ह पूरा सावधानी के साथ तारा के सील ल टोर के तारा म कुची लगाइस। पंदरा साल म तारा ह मुरचा गे रहय तभो ले थोरिक जोर लगाय म वो ह खुल गे। साहूकार ह सोचिस कि दरवाजा के आवाज ल सुन के बंदी ह झकनका जाही फेर वइसनो कुछू नइ होइस। वो ह जस के तस बइठेच् रिहिस।  साहूकार ह भीतर घुसिस। वो ह देखिस कि मेज के आगू कुरसी म एक आदमी ह मुरती कस बइठे हे। खाली हड्डी के ढांचा बचे रहय। वोकर चुंदी ह कोनों महिला के चुंदी कस बाढ़ गे रहय। डाढ़ी-मेछा म डंकाय वोकर चेहरा ह दिखत नइ रहय। मेज म हाथ मन ल टेका के वो हर अपन मुड़ी ल थाम के बइठे रहय। जम्मों चुंदी ह सन कस पंड़रा गे रहय। वोला देख के बिसवास करना कठिन रिहिस कि वो फकत चालीस बरस के रिहिस हे। वोकर आगू मेज म एक ठन कागज माड़े रिहिस जेमा कुछू लिखाय रिहिस। साहूकार ह सोचिस कि बिचारा ह नींद म हे। नींद म वो ह सायद अपन दू करोड़ रूबल के सपना देखत होही जउन वोला काली मिलनेवाला हे। वो ह सोचिस के मंय ह येला उठा के पलंग म फेंक देथंव अउ वोकर टेंटवा ल मसक देथंव। कइसे मरिस कोनों ल पता नहीं चलही। 

फेर वो ह सोचिस कि अइसन करे के पहिली ये चिट्ठी ल पढ़ के देख लेना चाही कि वोमा का लिखाय हे। अइसे सोच के वो ह चिट्ठी ल उठा के पढ़े लगिस। चिट्ठी म लिखाय रहय - ’’काली रात के बारा बजे मोला ये जेहल ले मुक्ति मिल जाही। मंय ह सुतंत्र हो के सब संग मिल सकहूँ। पन ये कमरा ल छोड़े के पहिली अउ सुरूज देवता के दरसन करे के पहिली मंय ह अपन बिचार ल लिख लेना चाहथंव। परमेसर, जउन ह मोला देखत हे, वोला सइत मान के अउ अपन सुद्ध अंतःकरण ले मंय ह ये बात मन ल लिखत हंव कि मोर ये मुक्ति, मोर ये जीवन, स्वास्थ्य अउ सब सुख जउन ल संसार म वरदान केहे जाथे वो सब ले मोला विरक्ति हो चुके हे। ये पंदरा साल म मंय ह ये संसार अउ सांसारिक जीवन के एक-एक ठन रहस्य के गहन अध्ययन करे हंव। ये सच हे कि ये पंदरा साल म न तो मंय ह धरती के जीवन ल देखे हंव अउ न उंकर लिखे कोनों किताब म लिखाय सुगंधित सुरा के पान करे हंव, न मधुर संगीत के सुवाद लेय हंव, न जंगल म घूमत कोनों हिरन के सिकार करे हंव, न कोनों सुदर कन्या, जउन कोनों कवि के कल्पना के अनुसार परी मन कस सुदर बादर म विचरण करत रहिथंय, के संग बिहार करे हंव। पर रोज रात म वइसने अलौकिक बादर म विचरण करनेवाला कोनों अलौकिक पुरूस ह आके मोला नाना परकार के कहानी सुनावय जउन ल सुन के मंय ह मदमस्त हो जावंव। वो किताब मन ह मोला पहाड़मन के चोटी मन म ले जावंय अउ मंय ह माऊण्ट ब्लैक अउ माऊण्ट एवरेस्ट ल तको घूम के आ गे हंव। विहिंचे ले मंय ह सूर्यास्त अउ सूर्योदय के घला दरसन कर लेवंव। वो किताब मन के जरिया मंय ह महासागर अउ परबत के चोटी मन के सैर कर सकत रेहेंव। मंय ह देख सकत रेहेंव कि आसमान म कइसे बिजली चमकथे अउ वो ह कइसे बादर के छाती ल चीर के बारिस कराथे। मंय ह हरा-भरा जंगल, खेत, नदिया अउ सहर-गाँव, सब कुछ देख सकत रेहेंव। समुद्र म रहनेवाली जल परी मन ल जलक्रीड़ा करत अउ गावत सुन सकत रेहेंव। एक भयंकर राक्षस ल अपन नजीक आवत देख सकत रेहेंव। ये कितब मन ह मोला ज्ञान के अकूत खजाना के वो पार ले जावंय अउ नाना परकार के चमत्कार देखावंय। कभू मंय ह कोनों सहर ल जलत अउ जर के भसम होवत देखेंव त कभू नवा-नवा धरम अउ वोकर परचार करइया मन के उपदेस ल सुनेंव। कतरो देस ल हारत अउ कतरो ल जीतत देखेंव। ये किताब मन ले मोला अनंत ज्ञान मिलिस। इही किताब मन के जरिया मनुस्य के अटल विचारधारा, जउन हजारों साल ले संचित होवत आय हे, मोर मन म बस गे हे अउ अब मंय ह जानथंव कि मंय ह अब आप सब ले जादा ज्ञानवान हो गे हंव। तभो ले मंय ह ये किताब मान ल बेकार समझथंव अउ ये जान के कि येमा लिखाय संसार के सब ज्ञान ह बेकार अउ फालतू हे, इंकर उपेक्षा करथंव। इहाँ हर चीज ह मृगमारीचिका के समान काल्पनिक अउ क्षणभंगुर है। आप सब ये अथाह किताबी ज्ञान के सुंदरता ऊपर गर्व कर सकथव पर ये बात ह अटल सच हे कि येमा लिखाय ज्ञान ह कोनों ल काल के चंगुल से मुक्ति नइ देवा सकय, एक न एक दिन सब ल मरनच् पड़ही ठीक वइसने, जइसे अपन बिला म रहिके घला मुसुवा ल मरे बर परथे। तुंहर सारा ज्ञान ह एक दिन धरती के भीतर समा जाही। मंय ह कहि सकथंव कि तुम सब इही ज्ञान के मद म अंधा बन चुके हो। झूठ ल सच अउ बदसूरती ल सुंदरता समझ के इतरावत हव। तुम सब धरती के सुख खातिर सवर्ग के सुख ल रहन म रख देय हव, वोला बेच देय हव। इही पाय के मंय ह वो सब सुख ल त्याग देना चाहथंव। ये जेहल ले अपन मुक्ति के पांच मिनट पहिलिच् मंय ह इहाँ ले भाग जाहूँ ताकि साहूकार ह अपन धन ल अपने तीर रख सकय।’’?
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साहूकार ह वो चिट्ठी ल पढ़ के वापिस मेज ऊपर रख दिस अउ वो अद्भुत आदमी के माथा ल चूम के धारोधार रोय लगिस अउ उहाँ ले निकल गिस। वोला अपन आप ले अतका घृणा होय लगिस जतका वोला अपन जिनगी म कभू नइ होय रिहिस। वो ह आपन खोली म आ के पलंग म ढलंग गिस। वोकर हिरदे म अतका पछतावा होवत रिहिस कि न तो वोला बहुत देर तक नींद आइस न वोकर रोवई ह बंद होइस।

अगला दिन बिहिनिया बिचारा चंउकीदार ह भागत आइस अउ बताइस कि वो बंदी ह खिड़की डहर ले निकल के अउ फाटक ल फलांग के निकल गे हे। 

बदनामी ले बचे खातिर साहूकार ह बंदी के खोली म गिस अउ मेज म रखे वो चिट्ठी ल उठा के अपन माथा म लगा लिस अउ वापिस आ के वोला अपन तिजोरी म रख दिस।
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