शनिवार, 1 अप्रैल 2017

आलेख

कर्मा जयंती का दौर

कर्मा जयंती का दौर चल रहा है। दौर कभी-कभी महीने भर तक चलता है और सामाजिक संगठन के मंडल स्तर पर कम से कम एक गाँव में इसका आयोजन होता है। कार्यक्रम कलश यात्रा से प्रारंभ होता है। आयोजन स्थल पर कर्मा माता की आरती-पूजा होती है। मंच पर आमंत्रित अतिथियों का स्वागत होता है। अतिथिगण कर्मा माता के कृष्णभक्ति और सामाजोत्थान के लिए किये गए कार्यों पर आधारित जीवनवृत्त का वर्णन करते हैं। 

मुख्य अतिथि और विशिष्ट अतिथि अनिवार्यतः राजनेता ही होते हैं। इन्हें अपने और अपनी पार्टी-नीतियों का प्रचार-प्रसार करने के लिए मुफ्त में मंच और विशाल जनसमूह उपलब्ध हो जाता है। ये राजनेता धन्य हो जाते हैं जब सामाजिक संगठन के विभिन्न स्तर के चयनित प्रतिनिध गण दिलखोलकर इनका स्तुतिगान करते हैं और स्वयं को इनका परम अनुगामी साबित करते हैं। और यह केवल आम चुनावों में राजनीतिक पार्टियों से टिकिट जुगाड़ के लिए ही किया जाता है। सामाजिक संगठन के विभिन्न स्तर के चयनित प्रतिनिध मंच पर समाज का प्रतिनिधित्व कर रहे होते हैं और ऐसे समय में इन लोगों का यह कृत्य समाज की छबि को धूमिल और खराब करने वाला होता है। यह किसी भी सूरत में सराहनीय तो कभी नहीं है। 

अंत में प्रसाद वितरण के साथ कार्यक्रम का समापन होता है। 

आमजन के लिए यह भक्ति और आस्था का दिवस होता है लेकिन समाज के पदाधिकारियों के लिए यह अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को साधने का पर्व होता है। यह सामाजिक पर्व है। इस दिन समाजहित व समाजोत्थान की बातें होनी चाहिए। समाज के विभिन्न स्तरों पर व्याप्त रूढ़ियों की बातें होनी चाहिए जो समाज को पीछे खींचती हैं, और इसके निवारण के उपायों पर चर्चा होनी चाहिए। इस दिन समाज को एक जुट होकर अपनी सामाजिक शक्ति का प्रदर्शन करना चाहिए और इस भव्यता के साथ करना चाहिए कि सरकार और राजनीतिक पार्टियों तक कम से कम इतना संदेश तो आवश्य पहुँचे कि वे इस समज के सामने दाता  की नहीं याचक की हैसियत के साथ ही चल सकते हैं। और इस समाज के साथ चलने के लिए वे अपनी मौजूदा रणनीति को त्यागने के लिए विवश हो जायें। 

आज की स्थिति में मामला उल्टा है। तहसील और जिला स्तर के कार्यक्रमों के बड़े मंचों पर सरकार के मंत्रियों और राजनीतिक दलों के पदाधिकारियों को मुख्य अतिथि बनाया जाता है। ऐसा प्रतीत होता है कि ऐसे सभी अतिथिगण मंच पर प्रगट होकर समाज पर उपकार कर रहे होते हैं।
कर्मा जयंती के किसी मंच पर आज तक समाज के बुद्धिजीवियों को आमंत्रित करते हुए कभी नहीं देखा गया है।
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