शुक्रवार, 14 अप्रैल 2017

छत्‍तीसगढ़ी कविता

पवन यादव ’पहुना’ के छत्तीसगढ़ी गीत

ननपन के सुरता

ननपन म गजब सुहाय धुर्रा, चिखला, पानी।
कूद-कूद के खेलन संगी, खेल आनी-बानी।

कुरता सनाय, नाक बोहाय, तनभर रहय धुर्रा।
अब्बड़ सुहाय, खायेचखाय ल भाय, पीपी, लाड़ू मुर्रा।
पहाती खेलन भौंरा-बाँटी, आँखी म रहय चिपरा।
कूद-कूद तरिया नहावन, दुंगदुंग ले होके उघरा।
रतिहा डोकरा बबा ले सुनन, अब्बड़ किस्सा कहानी।
कूद-कूद के खेलन संगी, खेल आनी-बानी।

परोसी के बखरी म जाम खावन, डोकरी दाई बखाने।
छकत ले खावन सीता फल, तभो ले मन नइ माने।
भरे मंझनिया अमली गिरावन, टोरन आमा, रूख ले।
भद ले गिरन, कइसे भागन, लचके गोड़ के दुख ले।
मन करथे, लइका बन के, करतेन फेर शैतानी।
कूद-कूद के खेलन संगी, खेल आनी-बानी।

भँइसा चढ़ के तरिया नहकन, डुबकन बेरा-कुबेरा।
लउठी धर के बबा कुदाये, भरे मंझनिया बेरा।
होली बर लकड़ी चोरावन, कूदन परदा भांड़ी।
स्कूल जावन, नइ ढेरियावन, चढ़के बइला गाड़ी।
करथे जी, जी लेतेंव फेर, ननपन के जिनगानी।
कूद-कूद के खेलन संगी, खेल आनी-बानी।
संगी-संगवारी संग घूमन, दल के दल सब कोती।
चटनी-बासी खावन, धरके जावन अंगाकर रोटी।
बड़ इतरावन, बड़ जिबरावन, बबा-डोकरी दाई ल।
मया म तभो लुका के राखंय, ओली म मुर्रा लाई ल।
मन भर जाथे, जब सुरता आथे, ननपन के नादानी।
कूद-कूद के खेलन संगी, खेल आनी-बानी।

हाँसन-गावन, खेलन-कूदन, जानन नहीं बुराई ल।
कभू नइ जानन चारी-चुगली, जाति-धरम, लड़ाई ल।
नइ जानन छल-कपट ल संगी, तन-मन राहय फरियर।
चिंता-फिकर संसो ले दुरिहा, सावन कस मन हरियर।
कोसा टोरन, लासा हेरन, लेय बर खाई-खजानी।
कूद-कूद के खेलन संगी, खेल आनी-बानी।

मनेमन म मगन रहन हम, मस्त रहन सब संगवारी।
तरियापार के बर-पीपर म, झूलन झूला ओरीपारी।
समय नइ आवय कभू लहुट के, बचपन के वो भाई।
देखतेदेखत बीतिस जवानी, अब डोकरापन दुखदाई।
कइसे भूलंव ननपन के दिन, रिहिस गजब सुहानी।
कूद-कूद के खेलन संगी, खेल आनी-बानी।

पवन यादव ’पहुना’
ग्राम - सुंदरा, पो. - राजनांदगांव
जिला - राजनांदगांव
मो. - 9303358271
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