मंगलवार, 4 अप्रैल 2017

कविता

सूर्पणखा के वंशज होंगे अभागे



हे राम!
तुम्हारी लीलाएँ हम मूढ़मति क्या समझेंगे
तुम्हारे भक्त जरूर समझते होंगे

तुम्हारी लीलाओं के हर एक मर्म को
तुम्हारे भक्त जरूर, जरूर समझते हैं
और, इसीलिए तो,
गाँव-गाँव में, जरूरत मुताबिक,
उसका मंचन भी करते हैं 

तुम भक्तों पर दया करनेवाले हो, महान कृपालु हो
तुम्हारी दया और कृपा भक्तों पर बरसती है
और, इसीलिए तो तुम्हारे भक्त
बाकियों को दे शिकस्त
रात-दिन तुम्हारे गुणगान में व्यस्त हैं,
तुम्हारी भक्ति की मस्ती में मस्त हैं 

कोई गुप्त समझौता हुआ है न
अपने भक्तों के साथ, तुम्हारा?
क्योंकि, उस दिन -
सबेरे से ही आने लगी थी खबरें
तुम्हारे भक्त के मध्याह्न गृहप्रवेश की
और आज
सारा दिन, सर्वत्र, समस्त चैनलों पर
केवल तुम ही तुम हो, और हैं तुम्हारे भक्त केवल

चिंतागुफा की चिंता कहीं नहीं है

हे राम!
तुम्हारे भक्तों ने तुम्हें बताया नहीं होगा
आज फिर,
सामूहिक दुष्कर्म हुआ है
चिंतागुफा में एक बच्ची के साथ

पर क्या करें भगवन!
इसे खबर मानें और छापें भी तो कैसे,
आज तुम्हारा जन्मदिन है
इसे प्रकाशित करना
तुम्हारे जन्मोत्सव की खबरों के बीच
बड़ा अशुभ नहीं होता?

और फिर, तुम्हारे भक्त भी तो नहीं हैं
चिंतागुफा के ये लोग
सूर्पणखा के वंशज होंगे, अभागे
नाक कटना ही जिनकी नियति है 

हे राम!
तुम्हारी लीलाएँ हम मूढ़मति क्या समझेंगे
परंतु
मंच पर लटक रहे परदे की चित्रावली देखकर
दर्शक समझ जाते हैं
कौन सा अध्याय अभिनीत होनेवाला है
आज तुम्हारे पावन चरित्र का 

अंदर का मजमून समझ में आ जाता है, भगवन!
हल्दी लगे लिफाफे और किनारे से कटे कार्ड का

हे राम!
इतना तो तुम भी समझते होगे।
000
kuber

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