रविवार, 12 मई 2019

अनुवाद

एक महिला के कहानी - एंटोन चेखव 

('अ लेडीज स्टोरी' के छत्तीसगढ़ी अनुवाद - कुबेर)

नौ साल पहिली के बात हरे, सहायक वकील  प्योत्र सर्गेइच अउ मंय अपन-अपन घोड़ा म सवार हो के चिट्ठी लाय बर स्टेसन कोती जावत रेहेन। मौसम अहुत मजेदार रिहिस। पन पता नहीं कइसे, अचानक बादर गरजे के भयंकर आवाज आय लगिस, अउ हमन एक भयानक तूफानी बादल ल अपन कोती आवत देखेन। तूफान हर आके हमन ल घेर लिस।

दूसर कोती हमर घर अउ गिरिजा घर के चबूतरा अउ पिल्हरमन ह चांदी के समान सफेद चमकत दिखिस। बारिस अउ करा के गंध आय लगिस। मोर संगी हर बहुत ज्ञानी निकलिस अउ अइसन डरावना समय म घला हँस-हँस के मूर्खतापूर्ण बकवास करे लगिस। किहिस, ’’कितना अच्छा होतिस कि काई रचे अउ घुघुवा मन के बसेरावाले पुराना जमाना के कोई बहुत आलीसान मीनारवाले किला हमर छुपे खातिर कहूँ ले प्रगट हो जातिस अउ अंत म हमर ऊपर गाज गिर जातिस ।’’

तब  फेर पानी के पहिली बौछार राई अउ जौ के खेत डहर ले आइस, भयानक बडोरा अइस अउ धुर्रा हर गोल-गोल घुमत अगास म उड़े लगिस। प्योत्र सर्गेइच हर हँसिस अउ अपन घोड़ा म सवार हो गिस।

बहुत सुंदर।’’ वो हर चिल्ला के किहिस, ’’बहुत मजेदार।’’

वोकर भव्यता से प्रभावित हो के महूँ हर हँसे लगेव, ये सोच के कि एक मिनट महू ल अपन शरीर ल भिगोय के मजा ले लेना चाही, हो सकथे हमर ऊपर सहिच म बिजली गिर जाय।

भयंकर तूफान म बेदम होके हमन अपन घोड़ा ल तेजी से दौड़ायेन अउ खुद ल असहाय पखेरू समान महसूस करेन। अइसन परिस्थिति हर ककरो घला मन म रोमांचित अउ हड़बड़ी करे बर काफी रिहिस। खैर! हमन अपन घर के आंगन म आखिर पहुँचिच गेन। बड़ोरा हर घला थम गिस पन पानी के बड़े-बड़े बूंद घर के छत अउ आंगन के घांस म गिरे लगिस। जान बची, लाखो पाय।

प्योत्र सर्गेइइच हर मोर अउ अपन, दुनों झन के घोड़ा के लगाम ल धर के घुड़सार म लेगिस। मंय हर दुवारी म खड़े होके बारिस के तिरछाा बूंद मन ल देखत वोकर अगोरा करे लगेंव। खेत के बनिस्बत घांस के खुसबू हा इहाँ जादा तेज, मीठ अउ रोमांचक लगिस। तूफान, बादली अउ बारिस के कारण धुँघलका छा गे रिहिस।

’’का मुसीबत रिहिस।’’ प्योत्र सर्गेइइच हर किहिस, जब भयानक तूफान अउ गरजना हर मोर कोती आइस तब तो मोला अइसे लगत रिहिस कि अगास ह चिरा के दू फांक हो जाही। येकर बारे म आपके का कहना हे?’’

 तेज घुड़सवारी के कारण वो हर अभी घला हफरत रिहिस अउ दुवारी म मोर बाजू म खड़े कहो के मोर डहर देखत रिहिस। मंय ह घला वोला मोला निहरत देख सकत रेहेंव।

’’नताल्या व्लादिमीरोवना’’, वोहर किहिस, ’’इहाँ अइसने पल भर खड़े हो के आप ल देखे खातिर मंय ह कुछ भी दे सकथंव। आज आप बहुत सुंदर लगत हव।’’

वोहर बिकट परसन्न हो के ललचहूँ नजर से मोर कोती देखत रिहिस। वोकर चेहरा ह पिंवरा गे रिहिस। वोकर दाढ़ी अउ मेछा म बारिस के बड़े-बड़े बूंदमन अटक गे रिहिन अउ चमकत रिहिन। अइसे लगत रिहिस कि वहूमन मोला ललचहूँ नजर से देखत हें।

’’मंय तोर से प्यार करथंव।’’ वो हर किहिस, ’’मंय हर तोर से प्यार करथंव। आप ल निहारे म मोला आनंद आवत हे। मोला पता हे कि आप मोर पत्नी नइ बन सकव। पन मोला कुछू नइ चाहिए, मंय कुछ नइ पूछंव, केवल अतका जानथंव कि मंय हर तोर से प्यार करथंव। आप कुछूच मत कहव, कोनो जवाब झन देवव, मोर बात ऊपर बिलकुल धियान झन देवव, अतका जान लेवव कि आप मोला बेहद प्रिय हव। बस, अइसने अपन डहर मोला देखन भर दव।’’

वोकर ये उमंग अउ उत्साह हर मोला नीक लगिस। मंय हर उत्साह ले भरे वोकर चेहरा ल देखेंव। वोकर आवज ल सुनेंव जउन हर बारिस के पानी के आवाज म घुलमिल गे रिहिस अउ बिना हिलेडुले खड़े रेहेंव, जानोमानों मोर सरीर म हिलेडुले के ताकत नइ हे। वोकर आँखी के चमक अउ वोकर मीठ-मीठ बात ल मंय हर आखिर तक सुनत रेहेंव।

’’आपके चुप रहना अउ कुछुच नइ कहना बड़ा सानदार हे’’ प्योत्र सर्गेइच हर किहिस, ’’बिलकुल अइसने चुपचाप खड़े रहव।’’

वोकर गोठ सुन के मोला बहुत अच्छा लगिस मंय हर खुस हो के हँसत-हँसत अउ बारिस म भींजत घर कोती दँउड़ेंव। वहू हर खुस हो के हँसत-हँसत मोर पिछलग्गा भागिस।

दुनों झन भींगत, हफरत, ललइका मन समान चहकत सिढ़िया चढ़ के खोली म पहुँचेन अउ पलंग म पटिया गेन। मोर बाप अउ मोर भाई अउन मन कभू मोला अइसन हँसत अउ अइसन खुस होवत देखे के आदी नइ रिहिन, चकित हो को मोर कोती देखे लगिन अउ वहू मन हाँसे लगिन।

तूफान अउ बदली खतम हा चुके रिहिस। गरजना घलो माड़ गे रिहिस, पन पानी के बूँद मन अभी घला प्योत्र सर्गेइच के दाढ़ी म चमकत रिहिस। पूरा सांझभर, रात के खाना खाय के बेरा होवत ले प्योत्र सर्गेइच हर गावत रिहिस, सीटी बजावत रिहिस अउ कुकुर संग खोली म उछलकूद करत खेलत रिहिस ताकि समोवार गरम करनेवाला नौकरमन ल वोहर परेसान कर सके। रात के खाना खाय के समय वो हर डट के खाइस, मूर्खतापूर्ण बात करत रिहिस। किहिस कि जउन हर ठंड के मौसम म ताजा-ताजा खीरा खाथे वोकर सांस म बसंत के खुसबू आथे।

सोय के बेरा मंय हर मोमबत्ती जलायेंव, खिड़कीमन ल पूरा खोल देंव। एक अनजान भाव हर आके मोर आत्मा ल घेर लिस। मोला सुरता आइस कि मंय हर सुतंत्र हंव, स्वस्थ हंव, मोर कना पद अउ  प्रतिस्ठा हे, धन-संपत्ति हे, मंय हर सबके चहेती हंव। अउ सबसे बड़े बात कि मोर कना पद अउ  प्रतिस्ठा हे, धन-संपत्ति हे। हे भगवान!ये सब हर कतका अच्छा हे। ..... फेर बगीचा डहर ले ओसवाले ठंडी हवा के झोंका अइस। मंयहर ये सोचे लगेंव कि का मंय हर प्योत्र सर्गेइच से प्यार करथंव कि नहीं। अउ सोचत-सोचत बिना कुछू निर्णय के मंय ह सुत गेंव।

अउ बिहिनिया जब मंय ह अपन बिस्तर म सूरज के प्रकाश के धब्बा अउ नीबू पेड़ के छँइहा देखेव, कल के सारा घटना हर मोर दिमाग म उभरे लगिस। जीवन हर मोला बड़ा समृद्ध अउ नाना तरह के रंग से भरे हुए जान परिस। जल्दी-जल्दी कपड़ा बदल के मंय हर टहले खातिर बगीचा कोती चल देंव।
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अउ वोकर बाद का होइस?  
कइसे - कुछ नहीं। जब हम जड़काला म सहर म रहत रेहेन प्योत्र सर्गेइच हर बीच-बीच म हमला देखे खातिर आते रहय। गाँव म रहे के मजा गाँवेच म आथे पन गरमी के मौसम म। सहर म, वहू हर जड़काला म वोकर माजा खतम हो जाथे। सहर म जब आप वोकर प्याला म चाय डालथव तब अइसे लगथे कि वोहर दूसर के कोट ल पहिन के बइठे हे। चाय के प्याला गजब देर तक हलावत वो हर कभू प्रेम के बात घला कर लेथे पन  गाँव के आनंद इहाँ कहाँ। 

इहाँ, सहर म हम  दूनों झन वो दीवाल के बारे म जादा सोचथन जउन ह हम दूनों के बीच म खड़े हे। मोर कना पद हे, धन हे अउ वोहर गरीब हे। वोहर कोनो रईस नो हे, बल्कि एक भैरा बाप के बेटा अउ मामूली सहायक सरकारी वकील भर हे। हम दूनों झन - मय ह अपन जवानी के उमंग म अउ वोहर पता नहीं काबर - ये दीवाल ल बेहद ऊँचा अउ बेहद मजबूत मानथन। जब वोहर सहर म हमर संग रहिथे, खिसियानी हँसी हंँस के कुलीन समाज के घोर आलोचना करत रहिथे। अउ जब बैठक म संग म कोनो अनजान आदमी बइठे रहिथे तब वो हर बिलकुल खामोस रहिथे।

 दुनिया म अइसे कोनो दीवाल नइ हे जउन ल टोरे नइ जा सके। पन जहाँ तक मंय जानथव, ये मामला म हमर प्रेम कहानी के हीरो हर बेहद  डरपोक, बेहद सुस्त अउ बेहद निकम्मा हे। ये मामला म वोहर हार माने बर तइयार बइठे हे। वोकर ये डरपोकनापन हर मोला बेहद निरास कर देय हे। संघर्स करे के बजाय वोहर कुलीन वर्ग ल असिस्ट कहिके वोकर आलोचना म बिता दिस अउ आलोचना करत समय वोहर ये भूल जाथे कि सबले जादा असिस्ट विही हर लगथे।

मोला वोहर प्यार करिस, जीवन के खुसी हर मोर ले जादा दुरिहा नइ रिहिस, अउ मोला अइसे लगत रिहिस कि वो खुसी मोला हासिल होवत हे, मंय हर बेफिक्री अउ सहजता से जीवन जीये के सुरू कर देय रेहेंव। भला-बुरा सोचना छोड़ देय रेहेंव। .... जिंदगी मजा म बीतत रिहिस। लोग मोर प्यार अउ उज्ज्वल भविस्य के कामना करंय। बुलबुल के समान चहकत मोर दिन-रात हर गुजरे।  प्रकृति हर बेहद मीठा अउ सुगंधित लगय। पन ये सब अब कोनो धुधरा के समान बिना निसानी छोड़े गायब हो गे हें। ..... कहाँ हे वो सब?

मोर बाप गुजर चुके हे। मंय बड़े हो चुके हंव। वो सबो मन, जउन मोला दुलार करंय, मोला सहारा देवंय, मोर मन म उम्मीद जगांवय ........... बारिस कस पिता के दुलार, बादर के गड़गड़हट कस जीवन के उमंग, खुसी के बिचार, प्रेम के गोठ ...... सब नंदा गें अब तो उंकर सुरताभर बचे हे। अब तो मोला अपन अवइया जीवन म इहाँ ले उहाँ तक खाली मरूस्थल दिखथे जिहाँ न तो कोनो जीवन हे, न कोनो जीवित प्राणी, खाली सूना अगास हे अउ हे डरावना अंधकार ।

घंटी बजथे .....  प्योत्र सर्गेइच हो सकथे। जब जडकला के ठुठवा पेड़मन ल देख के सोचथंव, कि येमन गरमी म कतका हराभर रिहिन हे, अउ फुसफुसा के कथिव, ’’ओह! मयारुक प्योत्र सर्गेइच।’’

अउ जब मंय ह बसंत के अपन संगवारी मन ल देखथंव, जिंकर संग मंय ह दिन बिताय हंव, तब मोर हिरदे ह दुख से भर जाथे। तब भी मंय ह फुसफुसा के कथिव, ’’ओह! मयारुक प्योत्र सर्गेइच।’’

बहुत पहिलिच वोहर मोर पिता के दफ्तर ल सहर में स्थानांतरित कर लेय हे। अब वहू हर अपन उमर ल बड़े दिखथे। अपन प्यार ल ठुकरा के वोहर अब बकबक करना छोड़ देय हे। दफ्तर म काम करना अब वोला पसंद नइ हे। अब वोहर बीमर कस दिखथे। अब वोहर जीवन म कुछ हासिल करे के कोसिस करना बंद कर देय हे। जीवन से ऊब गे हे। उदास अउ चुपचाप, चूल्हा तीर बइठ के आगी के लपट अउ धुंगिया ल देखत रहिथे। 

समझ म नइ आवय, मंय वोला का कहंव? ’’तब बता, मंय ह तोर से का गाठियांव?

वो हर कथिे, ’’कुछुच नहीं।

अउ चुप्पी साध  लेथे। आगी के लपट के लाल चमक हर वोकर उदास चेहरा म नाचे लगथे।

जब मंय हर बीते दिन के बारे म सोचथंव, मोर खांद हर कांपे लगथे, मोर नरी ह ओरम जाथे अउ मंय हर धारोधार रोय लगथंव। मोला खुद ऊपर अउ ये आदमी ऊपर असहनीय दुख होय लगथे। बीते दिन, जउन हर उछाह अउ खुसी ले भरपूर रिहिस, अब हमला तियाग के चल देय हे। अब तों मंय हर अपन पद, धन अउ प्रतिस्ठा के बारे म घला नइ सोचंव।

जोर-जोर से सुसकइ ल बंदकरके, अउ अपन कनपटीमन ल दबावत मंय हर धिरलगहा केहंव, ’’हे भगवान, हे प्रभु, मोर जीपन हर अबिरथा हो गे।

वो हर वइसनेच सांत बइठे रिहिस, मोर से अतका घला नइ किहिस कि ’’मत रो’’। वो हर ये समझथे कि अब मोर रोय के दिन आ गे हे अउ मोला रोना चाही।

 मंय हर वोकर आँखींमन म झांक के देखेंव कि वोमा मोर खातिर दुख हाबे, अउ महू ल हे। एक डरपोक अउ असफल इनसान जउन हर मोर जिनगी ल  संवार नइ सकिस, के संग झंझट मोल ले के मंय हर खुद हार गे हंव।

जब मंय हर दुवारी म वोला देखेंव अनुमान लगायेंव कि विही हरे, कोट पहिरे कुछू सोचत खड़े रिहिस हे। बिना कुछू बोले वोहर दू घांव ले मोर हाथ ल चूमिस। बहुत देर तक मोर आँसू ले तरबतर चेहरा ल देखिस, तब मोला बिसवास होय लगिस कि वोहर फिर से विही तूफान ला, पानी के विही बौछार ल, वो दिन के मोर चेहरा के विही हँसी ल, लहुटा के ले आना चाहत हे। वो दिन मोर से कुछू केहे खातिर वोहर तरस गे रिहिस तब मोला अच्छा लगे रिहिस हे। पन आज वोकर चुप्पी हर मोर जानलेवा बन गे हे। आखिर वो हर कुछुच नइ किहिस, मुड़ी ल डोलाइस अउ मोर हाथ ल दबाभर दिस। हे ईश्वर! वोकर मदद कर।

वोला बाहिर निकलत देखके मंय हर अपन अध्ययन खोली डहर चल देंव। चिमनी के आगू चटाई म बइठ के देखे लगेंव। अंगारा हर राख से ढंका गे रिहिस।  ताप हर मद्धिम पड़ गे रिहिस। खिड़की डहर ले तेज बर्फीला  हवा के झोंका अइस अउ राखल चिमनी कोती ले उड़ा के ले गिस।

नौकरानी हर भीतर आइस, वोहर मोला नीद म सुते समझ के मोला नाम धर के पुकारिस।
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