1703 ई. में दंतेश्वरी मंदिर के मैथिल पंडित भगवान मिश्र द्वारा लिखित शिलालेख
(’’छत्तीसगढ़ी भाषा का उद्विकास’’ डाॅ. नरेन्द्रदेव वर्मा, प्रथम संस्करण 1979, पृष्ठ 111 से उद्धृत)
’’दंतावला देवी जयति। देववाती यह प्रशस्ति लिखाए पाथर है महाराज दिकपाल देव के। कलियुग यह संस्कृत के बचवैया थोरहो हे। ते पाँई दूसर पाथर मँह भाषा लिखै है। ते दिकपाल देव विआह कीन्हें वरदी के चंदेल राव रतन राजा के कन्या अजब कुमारि विषै अठारहें वर्ष रक्षपाल देव नाम युवराज पुत्र भए। तब हल्ला तें नवरंगपुर गढ़ टोरि फारि सकल बंद करि जगन्नाथ बस्तर पठै के ओड़िया राजा थापेर बाजै। पुनि सकल पुरवासी समेत दंतावला के कुटुम जात्रा करे सम्बत सत्रह से साठि 1760 चैर सुदी 14 आरंभ बैसाख वटि से सम्पूर्ण भै जागा कतको हजार भैंसा बोकरा मारे तेकर रक्त प्रवाह बह पाँच दिन सांषिणी नदी लाल कुसुम वर्ण भए। ई अर्थ मैथिल भगवान मिश्र राजपंडित भाषा औ संस्कृत दोउ पाथर मह लिषाए। अस राजा को दिकपाल देव समान, कलियुग न हो है आन राजा।’’
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