गुरुवार, 2 मई 2019

अनुवाद

क्रिसमस के समय म - अंतोन चेखव


’’का लिखंव?’’ कहिके येगोर ह कलम ल दवात म डुबो दिस।

चार साल हो गे, वसीलिसा ह अपन बेटी ले नइ मिले हे। वोकर बेटी येफिम्या ह बिहाव होय के बाद पीटर्सबर्ग चल दे रिहिस हे। बीच म वो हर बेटी-दमाद ल दू ठन चिट्ठी भेजे रिहिस अउ वोकर बाद सब वोकर जिनगी ले गायब हो गें। वोकर बाद म उंकरमन के कोनो अता-पता नइ हे। रोजाना, डोकरी ह, चाहे पहाती-पहाती गाय ल दुहत होय, चुलहा ल सुलगावत होय कि झपकी लेवत होय, रात-दिन वो ह अपन बेटीच् के बारे म सोचत रहिथे। येफिम्या ह कहाँ होही, कइसे होही, जीयत होही कि नहीं, बस इही चिंता। नहीं नहीं। वो ह बेटी ल अउ चिट्ठी भेजना चाहथे पन बुढ़ुवा बाप ह लिख नइ सकय अउ इहाँ अइसे कोनों दूसर नइ हे जउन चिट्ठी लिख सकय। 

ये साल के क्रिसमस तिहार ह आनेवाला हे अउ बेटी के कोनो अता-पता नइ हे। अब वो ह अउ जादा बरदास्त नइ कर सके, चिट्ठी लिखनच् परही। वो ह दारूभट्ठी के येगोर कना गिस। येगोर ह सराय के मालिक के घरवाली के भाई हरे। वो ह फौजी रिहिस अउ अभी-अभी लहुट के आय हे। वो ह दिनभर भट्ठी म बइठे के सिवा अउ कुछू नइ करय। लोगन के कहना हे कि वाजिब कीमत देय से वो ह चिट्ठी लिख दिही। वसीलिसा ह पहिली दारूभट्ठी के बावर्ची ले मिल के पता करिस, फेर मालकिन ले। अउ अंत म पंद्रा कोपेक म बात पक्का हो गिस।

अउ आज क्रिसमस के छुट्टी के दूसरा दिन हरे। डोकरी वसीलिसा ह चिटठी लिखाय बर पहुच गिस। येगोर ह दारूभट्ठी के रसोईघर के मेज म कलम धर के बइठे हे। वसीलिसा ह वोकर आगू म खड़े हे। वोकर चेहरा म दुख अउ चिंता के सिवा अउ कुछू नइ दिखत हे। वोकर पतला-दुबला डोकरा, प्योत्र, जेकर भुरुवा चूंदी ह झर गे हे अउ चंदवा हो गे हे, वहू ह संग म आय हे। डोकरा ह कोनो अंधवा मन सरीख वोेकर तीर म सोज खड़े हे। चूल्हा के ऊपर तसला म सूअर के मांस ह डबकत रहय। तसला ले अइसे आवाज आवत रहय मानो वोमा कोनो जीयत सूअर ह ‘फ्लू-फ्लू’... कहिके छटपटात होय।

’’मोला चिट्ठी म का लिखना हे?’’ येगोर ह फेर तिखारिस।

’’का लिखबे?’’ वसीलिसा ह गुरेर के किहिस, ’’मोला जादा झन बेंझवा। सेंतमेत म नइ लिखत हस। चिंता झन कर मंय ह तोला पूरा पइसा देहूँ। ले लिख - ’हमर प्रिय दमाद आंद्रेय ह्रसानफिच अउ मयारुक बेटी पेत्रोव्ना, गाड़ा-गाड़ा मया-दुलार आ बुढ़ुवा दाई-ददा के आसिरवाद।’’

’’लिखा गे? तब आगू लिख.........। तुँहला हमर डहर ले हैप्पी क्रिसमस अउ क्रिसमय के गाड़ा अकन सुभकामना। हमन अभी जीयत हन अउ बने-बने हन। आसा हे, तहूँमन बने-बने होहू। भगवान से बिनती हे, वो तुँहला खुस रखे।’’ कहत-कहत डोकरी वसीलिसा ह अटक गिस। सोच म पर गिस कि आगू अउ का लिखाय। वो ह डोकरा कोती देखिस। कुछू नइ सूझिस तब विही बात ल फेर दुहरा दिस ’’आसा हे, तहूँमन बने-बने होहू। भगवान से बिनती हे, वो तुँहला खुस रखे।’’

डोकरी वसीलिसा ह येकर ले आगू अउ कुछुच् नइ कहि सकिस। जब ले बेटी ह दमाद संग गे हे, दुनों डोकरी-डोकरा कभू चैन के नींद नइ सुते हें। उंकर खातिर जड़काला के दिन ह बड़ लंबा हो जाथे। रात ह बैरी........। वोमन ल लगथे कि उंकर बेटी ल कोनो ह नंगा के ले गे हे, उंकर बेटी सबरदिन बर दफन हो चुके हे। चिट्ठी म का-का लिखाना हे इही सोच म दुनों डोकरी-डोकरामन रात भर सुते नइ हें। हजारों बात हे, गाँव म कतका घटना घट चुके हे? गाँव म अतका बर-बिहाव अउ मरनी-हरनी होय हे कि दर्जन भर चिट्ठी भर सकथे। 

’’गरमी बहुत हे।’’ येगोर ह अपन कोट के बटन ल खोलत-खोलत किहिस, ’’तापमान ह 70 डिग्री नइ ते एकरो ले ऊपर चल दे होही’’

दुनों बुजरूगमन कुछू नइ बोलिन।

’’तुँहर दमाद ह पीटर्सबर्ग म का काम करथे?’’ येगोर ह पूछिस।

’’वो ह सेना म रिहिस हे जनाब।’’ डोकरा ह धीरे ले किहिस, ’’वहू ह विही समय नौकरी ल छोड़िस हे जउन समय आपमन ह छोड़े हव। वो ह सैनिक रिहिस अउ अब, मोला पक्का यकीन हे कि वो ह जल चिकित्सा संस्थान म काम करत होही। उहाँ डक्टरमन ह पानी से इलाज करथें। वो ह जरूर विहिंचे चैकीदार के काम करत होही।’’

’’ये देख, इहाँ लिखाय हे।’’ डोकरी ह जेब ले एकठन चिट्ठी निकाल के देखावत किहिस, ’’येला येफिम्या ह भेजे रिहिस। भगवान जाने कब। हो सकथे कि अब वोमन ह ये दुनियच् म नइ होहीं।’’

येगोर कुछू सोचिस अउ जल्दी-जल्दी लिखे लगिस - ’आज के हालत म, तोर किसमत अउ तोर करम ह तोला फौजी बना देे हे, तब हमर सलाह हे कि तंय ह सेना के नियम, अनुसासन अउ आचार संहिता के बने ढंग ले पालन करे कर। उहाँ के अधिकारी-करमचारी के बेवहार ल देख-देख के तोला सबो नियम के जानकारी हो जाही।’
अउ तब येगोर ह चिट्ठी म का-का लिखे हे तउन ल पढ़ के सुनाय लगिस। 

वसीलिसा ह सोचे लगिस कि वो ह पता नहीं, का-का लिखवाना चाहत रिहिस ...’कि ये साल ह कतका तकलीफ अउ गरीबी म बीते हे। ...कि कइसे ए साल अभी तक घला फसल ह पके नइ हे। ...... कि कइसे वोला मजबूरी म अपन गाय ल बेचना पर गे। .... कि कइसे तुंहर ले कुछू मदद के आस रिहिस। तुंहर बुढ़वा बाप ह अब सदा बीमार रहिथे। कोन जाने कब वो ह छोड़के चल दिही।’ पन ये सब बातमन ल वो बोले कइसे? कहाँ ले सुरू करे? काला पहिली लिखाय अउ काला पीछू।

’ध्यान रखबे’ येगोर ह फेर लिखे लगिस, ’सेना के नियमावली के पांचवा खण्ड म सैनिक मतलब एक आदमी घला होथे अउ पद के दरजा घला होथे। पहिली दरजा के सैनिक ल जनरल केहे जाथे अउ आखिरी दर्जावाले सैनिक ल प्राइवेट केहे जाथे।’

डोकरा ह बहुत प्यार से, फुसफुसा के, लिखे बर किहिस, ’’तुम अपन लोग-लइका के बने ढंग से जतन करे करव।’’

’’कहाँ के लोग-लइका?’’ डोकरी ह गुस्साके डोकरा कोती देखिस अउ किहिस, ’’’उंकर कहाँ के लोग-लइका हे।’’

’’ठीक हे, कोन जाने, अब तक हो गिस होही।’’

डोकरा-डोकरी के बात ल अनसुना करके येगोर ह आगू लिखिस, ’अउ अपन फैसला तंय ह खुदे करेकर। दुस्मन का होथे? सबले बड़े दुस्मन अपन भीतर म होथे। सबले बड़े दुस्मन सराब के देवता ह होथे।’

कलम ह अब चरर-चरर बाजे लगिस कि जइसे कांटा म फंसे कोनों मछली ह तलफथे। अब येगोर ह चिट्ठी ल फेर जल्दी-जल्दी पढ़े लगिस। वो ह मेज खाल्हे अपन गोड़मन ल लमा के स्टूल म बइठे रिहिस अउ जंगलीमन कस बेवहार करत रिहिस। जइसे कि वो ह कोनों खनदानी रईस के घर पैदा होय होही।

वसीलिसा ह येगोर के दुस्टता ल समझ गिस। वोकर माथा पिराय लगिस। येगोर के विचित्र बेवहार ले वोला उलझन होय लगिस, पन कुछू नइ किहिस। चिट्ठी पूरा होय के बाट जोहे लगिस।

पन वोकर बुढ़वा पति ह बिसवास करके खड़ेच् रिहिस। वोला अपन पत्नी और येगोर ऊपर पूरा विश्वास रिहिस। जब वो ह जल चिकित्सा संस्थान के बात लिखवात रिहिस तभो घला वोला अपन ऊपर पूरा बिसवास रिहिस।

चिटठी पूरा करके येगोर ह खडे़ होगे अउ चिट्ठी ल सुरू ले आखिर तक पढ़के फेर सुना दिस।

डोकरा ल कुछुच् समझ म नइ आइस। तभो ले बिसवास म वो ह अपन मुड़ी ल हला के येगोर ल धन्यवाद देवत किहिस, ’’भगवान आपके भला करय। बहुत-बहुत धन्यवाद, जनाब।’’

वोमन पाँच कोपेक के तीनठन सिक्का मेज म मढ़ा के निकलगिन। डोकरा के चेहरा म संतोस के भाव रिहिस अउ अंधवामन सरीख वो ह एती-वोती देखे बिना सोज्झे रेंगे लगिस। वसीलिसा ह गुस्सा के मारे फुनफुनावत रिहिस। दुवारी म कुकुर बइठे रहय तउन ल जोर से दुत्कारिस, ’’दुर्र, खस्सू कहीं के।’’

डोकरी ल रातभर नींद नइ आइस। पहाती होवत वो ह उठ गिस अउ चिट्ठी डारे खातिर रेलव स्टेसन बर निकलगिस जउन ह वोकर घर ले आठ-नौ मील दुरिहा रिहिस।
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डाॅ. बी. ओ. मोजेलवीजर के जल चिकित्सा संस्थान ह नवा साल के दिन घला रोज के समान चालू रिहिस। फरक दिखत रिहिस वोकर चैकीदार आंद्रेय ह्रसानफिच म। वो हर नवा-नवा कड़क फीतेदार वरदी पहिरे रहय। वोकर पालिस करे पनहीमन ह चम चम चमकत रहय। वो हर अवइया-जवइया सबोमन के ’’आपमन ल नवा साल मुबारक हो’’ कहिके सुवागत करत दुवारी म खड़े रहय।

बिहिनिया के बेरा रिहिस अउ आंद्रेय ह्रसानफिच ह फाटक म खड़े-खड़े अखबार पढ़त रिहिस। ठीक दस बजे एक झन जनरल आइस अउ ठीक वोतकेच् बेरा डाकिया ह आ के वोला वोकर चिट्ठी ल दिस। जनरल ह रोज आवय। आंद्रेय ह्रसानफिच ह जनरल के  कोट ल उतारे म वोकर मदद करिस अउ वोला नवा साल के मुबारकबाद दिस, ’’नवा साल मुबारक हो, जनाब।’’ 

’’आपको भी मुबारक हो।’’ जनरल तको मुबारकबाद दिस।

’’बहुत-बहुत धन्यवाद जनाब।’’ आंद्रेय ह सिर नवाके जवाब दिस।

जनरल ह पूछिस, (जनरल ह वोला ये सवाल रोज पूछय अउ रोज भुला जावय), ’’सामने वाले खोली म का हे?’’

आंद्रेय ह्रसानफिच ह जवाब दिस, ’’मालिस खोली हरे जनाब।’’

जनरल ह जब उहाँ ले चल दिस तब आंद्रेय ह्रसानफिच ह अपन डाक ल खोल के देखिस। जल्दी-जल्दी दू-तीन घांव ले पढ़िस। थोरिक देर अखबार ल पढ़िस अउ अपन खोली कोती भागिस। वोकर खोली ह सीढ़िया उतर के, परछी के आखिरी म रिहिस। 

वोकर घरवाली येफीम्या ह बिस्तर म बइठ के बच्चा ल दूध पियावत रिहिस। वोकर सबले बड़े लड़का ह अपन खुंजरी चुंदीवाले मुड़ी ल माँ के माड़ी म मड़ा के खड़े रिहिस अउ मंझला ह बिस्तर म सुते रिहिस।

खोली म जाते भार आंद्रेय ह चिट्ठी ल अपन घरवाली के हाथ म देके किहिस, ’’लगथे, गाँव ले आय हे।’’ अउ अखबार ल धरे-धरे उहाँ ले निकल गिस।

येफिम्या ह कांपत-कांपत चिट्ठी ल खोलिस अउ पढ़े लगिस। एक-दू लाइन पढ़े के बाद येफिम्या ह आगू अउ नइ पढ़ सकिस। अतकच् ल पढ़ के वोकर आँखीमन ले आँसू ढरे लगिस। वोकर आँसू ह थमे के नाम नइ लेवय। वो ह अपन बड़े लइका के गालमन ल चूमे लगिस। चूमे अउ कुछू-कुछू कहय, का कहय तउन ला समझना मुसकिल रिहिस। वो ह हाँसय कि रोवय, यहू ल समझना मुसकिल रिहिस। 

’’ये ह नाना-नानी के चिट्ठी हरे। गाँव ले आय हे। येफिम्या ह कहत गिस, ’’गाँव, जिहाँ देवी समान माँ हे... अउ संत के समान बाबा अउ गाँव के दूसर सियान। ... उहाँ खूब बरफ गिरत हे .... पेड़मन ह बिलकुल सफेद हो गे हें। ... उहाँ लइकामन ह स्लेज गाड़ी म फिसले के खूब मजा लेवत हें। ... अउ तोर चंदवा, बुढ़वा नाना ह आतिसदान तीर बइठ के आगी तापत हे। .... अउ उहाँ एकठन सुंदर अकन पिंवरा कुकुर घला हे। मोला मया करनेवाला, सब उहाँ हें।’’

ये सब ल आंद्रेय ह बाहिर ले सुनत रिहिस। वोला सुरता आइस कि बहुत पहिली घरवाली ह गाँव भेजे खातिर तीन-चार ठन चिट्ठी देे रिहिस हे। फेर काम के मारे वोला वो ह भेज नइ सकिस। आखिरकार जेब म रखे-रखे वो चिट्ठी मन ह कहूँ गंवा गिस।

’’अउ उहाँ खेतमन म सुंदर-सुंदर, छोटे-छोटे खरगोस दंउड़त रहिथे।’’ येफिम्या ह लइका के गालमन चुमय, रोवय अउ कहय, ’’तोर नाना हर अबड़ दयालू अउ सज्जन हे।... नानी घला कम दिलेर नइ हे... गाँव म दुनोंझन के खूब मान-सनमान हे। भगवान अउ धरम-ईमान के माननेवाला हें। ... अउ हाँ, गाँव म एकठन गिरिजाघर घला हे जिहाँ जम्मों किसानमन जुरिया के प्रार्थना करथें कि ’हे मदर मेरी! हे ईश्वर के पुत्र! हमला अपन सरन म ले ले।’’

आंद्रेय ह सिगरेट पिये खातिर थोरिक देर बर अपन खोली म आइस। वोतका बेरा दरवाजा के घंटी ह फेर बजिस। घंटी के आवाज ल सुन के येफिम्या ह डर्रा गिस। वोकर रोवई ह बंद हो गे। लकर-धकर वो ह अपन आँसू ल पोंछिस। डर के मारे वो हर कांपे लगिस। कुछू बोले के वोकर हिम्मत नइ होइस। 

आंद्रेय ह सिगरेट ल सिपचायेच रिहिस कि ऊपर सिढ़िया के घंटी ह बाज गिस। वो ह तुरते बाहिर कोती भागिस।
जनरल ह नहा के ताजा-ताजा, बढ़िया महमहावत, सिढ़िया ले उतरत रिहिस। ’’अउ वो खोली म का हे?’’ एक ठन दरवाजा कोती अंगठी देखावत वो ह पूछिस।

अपन पतलून के जेब म हाथ डारत-डारत आंद्रेय ह किहिस, ’’उहाँ इलाज करे के औषधीय झरना हे जनाब।’’
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