मंगलवार, 7 मई 2019

अनुवाद

डार्लिंग - अंतोन चेखव

(हिंदी ले छत्तीसगढ़ी अनुवाद - कुबेर)

गरमी के दिन रिहिस। ओलेन्का ह अपन घर के पिछवाड़ा कोती के दुवारी म बइठ के अगास कोती देखत रिहिस। माछीमन के मारे वो ह असकटा गे रिहिस, पन वोला ये बात के खुसी रिहिस कि अब थोरिकेच देर म सांझ होनेवाला हे। 

पूरब दिसा कोती करिया-करिया बादर घुमड़त रिहिस।

कुकीन, जउन ह ओलेन्का के घर म किराया के खोली ले के रहय, वहू ह बाहिर निकल के करिया बादरमन ल देखत रहय। वो ह ’’ट्रिवोली नाटक कम्पनी’’ के मनीजर रिहिस। ’’ओ हो! रोज-रोज पानी, रोज-रोज पानी! पानी के मारे परेसानी हे।’’ वो हर कन्झा के किहिस। ’’ये रोज-रोज के पानी म तो कंपनी के भट्ठा बइठत हे।’’ 

फेर वो ह ओलेन्का डहर देख के किहिस, ’’मोर जिनगी ह कतका गे बीते हो गे हे। रोज-रोज खाना-पीना तियाग के रात-रातभर मंय हर मेहनत करथंव कि नाटक म कोनों गलती झन होय। नाटक ल अच्छा बनाय खातिर सोच-सोच के मरे जाथंव फेर का फायदा होथे? कतका जोरदार नाटक हे, फेर येला कोनो समझे काबर नहीं? जनता ल तो बस फूहड़ चीज होना। अउ ऊपर ले ये रोज-रोज के पानी। दस मई के सुरू होय हे अउ अब जून बीते जावत हे। अतका पानी-बादर म कोन ह नाटक देखे बर आही? जब कमइच नइ होय त कलाकारमन ल तनखा कइसे देवंव? कुछू समझ म नइ आवय।’’  

दूसर दिन सांझकुन फेर बादर छाय लगिस। कुकीन ह परेसान हो के खिसियानी हँसी हाँसिस अउ किहिस, ’’मोर कंपनी ह भले डूब जाही पन का कर सकथंव। मोर किसमत म नुकसान उठाना लिख हे तब कोन ह का कर सकथे। सब कलाकारमन ह मिलके मोर ऊपर मुकदमा ठोंक दिहीं तब भी का कर सकथंव। हा... हा....हा...।’’
तिसरइया दिन फेर पानी। कुकीन ल रोवाई आ गे।

ओलेन्का ह चुपचाप कुकीन के गोठ ल सुनय। वोकर हालत ल देख के कभू-कभू वहू ल रोना आ जावय। ओलेन्का ल कुकीन ऊपर तरस आय आगिस।

कुकीन ह ठिंगना रिहिस। वोकर सरीर के रंग ह पिंवरा अउ चूंदी मन ह लंबा रिहिस जउन ह हमेसा छितराय रहय। वोकर चेहरा म हमेसा उदासी छाय रहय। वोकर आवाज ह एकदम पतला, पन बहुत तेज रिहिस।
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अइसे बात नइ हे कि ओलेन्का ल अब तक कोनो से प्यार नइ होय होही। वो ह अपन बाप ल, जउन ह सदा अंधियारी खोली म आराम कुरसी म बइठ के झूलत रहिथे, खूब प्यार करथे। वो हर अपन काकी ल, जउन ह साल म कम से कम एक घांव वोला देखे बर जरूर आथे, प्यार करथे। 

ओलेन्का ह पतली-दुबली लड़की रिहिस। सरीर के रंग ह पिंवरा रिहिस। वो ह सदा खुस रहय अउ मुसकात रहय। वोकर बारे म लोगन ह कहंय, ’’जादा सुंदर नइ हे, फेर बने हे।’’ 

उहाँ के माईलोगनमन ह वोकर नाम धरे रिहिन, ’’डारलिंग’’। 

ओलेन्का ह अपन ये खानदानीे घर म ननपन ले रहत आवत हे। ’’ट्रिवोली नाटक कम्पनी’’ ह जिप्सी रोड म रिहिस। ओलेन्का ह दिनभर ’ट्रिवोली’ के गाना सुनतिस। कुकीन ल गुस्सा के मारे चिल्लावत सुनतिस अउ वोला दुखी देखके वहू हर दुखी हो जातिस। वोला वोकर ऊपर खूब दया आतिस। कुकीन के हालत के बारे म सोच के वोला रात-रातभर नींद घला नइ आवय। अधरतिया जब कुकीन ह लहुटतिस तब वो ह दुवारी म वोकर हाँस के सुवागत करतिस। वो ह कुकीन ल सदा खुस रखे के कोसिस करतिस। 
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अउ अंत म कुकीन संग वोकर बिहाव हो गिस। बिहाव के दिन घला जोरदार पानी गिरिस। ओलेन्का ह वोला खुस करे के खूब कोसिस करिस फेर कुकीन के चिंता ह खतम नइ होइस।

उंकर जिनगी हर हँसी-खुसी म बीते लगिस। कंपनी के हिसाब-किताब रखना, थियेटर के देखरेख करना अउ कलाकारमन ल तनखा बाँटना अब ओलेन्का के काम हो गिस। अब जब घला वो ह अपन सखी-सहेलीमन संग मिलतिस, खाली थियेटरेच के गोठ गोठियातिस। कहितिस, ’’थियेटर ह दुनिया के सबसे अच्छा, सबले महान अउ सबले जरूरी चीज आय। जीवन के सच्चा आनंद अउ सच्चा खुसी थियेेटरेच म मिल सकथे, अउ कहीं नहीं।’’

’’पन जनता ह ये बात ल कहाँ समझथे।’’ सहेलीमन पूछंय। 

’’जनता ल तो बस हँसी-मजाक अउ बेवकूफी के बातवाले नाटक होना। अइसन गंभीर बात ल वोमन कहाँ समझथें। देख न, कल के खेल म बहुत अकन सीट खाली रिहिस। कल मंय ह कुकीन ल बहुत अच्छा नाटक चुन के देय रेहेंव, इही कारण हरे। यदि हमन कोनो फूहड़ अउ रद्दी नाटक करे के सुरू कर देन तब थियेटर म गोड़ मड़ाय के घला जघा नइ रही। काली हमन ’’..............’’ दिखानेवाला हन। जरूर आहू।’’

ओलेन्का हर रिहर्सल के देखरेख करे अउ कलाकारमन के गलती ल सुधारय। गाना मन ल सुधारय। कोनो खराब चरित्रवाले पात्र के अभिनय ल देख के वोहा खूब रोवय अउ वोकर लेखक ल वोमा सुधार करे बर कहिके वोकर संग बहस घला करय।

थियेटर के कलाकारमन ओलेन्का ल बहुँत चाहंय अउ वहूमन वोला ’’डार्लिंग’’ कहिके बुलावंय। ओलेन्का ह कलाकारमन के मदद करे अउ वक्त जरूरत के मुताबिक वोमन ल करजा घला देवय।

ठंडकला के दिन हर हँसी-खुसी म गुजरिस। ओलेन्का ह एकदम खुस रिहिस। वो ह थोड़ा-थोड़ा मोटल्ली घला हो गे रिहिस। पन कुकीन ह दिनोदिन दुबला अउ चिड़चिड़ा होवत जावत रिहिस। रात-दिन वो ह कंपनी के नुकसान के गोठ करय। हालाकि जाड़ा म वोला नुकसान नइ होय रिहिस। रात म वोह जोर-जोर से खांसय। ओलेन्का ह डर्रा जावय। वोला दवाई देवय अउ वोकर जतन करय।
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थोरिक दिन बीते के पाछू कुकीन ह अपन कंपनी संग मास्को चल दिस। वोकर जाय ले ओलेन्का ह रात-दिन चिंता अउ दुख म बूड़े रहय। वो ह हमेसा खिड़की तीर बइठके अगास डहर देखत रहितिस। कुकीन ह चिट्ठी म लिखे रिहिस कि कोनो कारण से वो ह ’ईस्टर’ तिहार के पहिली नइ आ सकय। चिट्ठी म ’’ट्रिवोली ’’ के बारे म ही जादा बात लिखाय रहय। 

ईस्टर के सोमवार के पहिलीदिन के रातकुन के बात हरे, दरवाजा खटखटाय के आवज आइस। रसोइया ह उठ के गिरत-हपटत किंवाड़ कोती भागिस।

’’तार हरे। जल्दी दरवाजा खोलो।’’ ककरो करकस आवज आइस।

येकर पहिली घला ओलेन्का ल कुकीन के एकठन तार मिले रिहिस। पन अभी कोन जाने काबर तार के नाम सुन के वोकर छाती ह धक-धक करे लगिस। काँपत-काँपत वो हर तार ल खोलिस। लिखाय रहय, ’’कुकीन के अचानक मौत। आदेस के अगोरा म। मंगलवार के दफन।’’ तार के ऊपर ’’आपरा’’ कंपनी के मनीजर के दस्तखत रिहिस।

ओलेन्का हर कलप-कलप के रोय लगिस। हाय, बिचारी।

कुकीन ल मास्को म मंगलवार के दिन दफनाय गिस अउ बुधवार के दिन ओलेन्का ह घर लहुट गिस। आते सात वो ह पलंग म गिर गे अउ दहाड़ मार-मार के रोय लगिस। वोकर रोवई ह सड़क ले घला सुनावत रिहिस। परोसीमन कहंय, ’’बिचारी, डार्लिंग! कतका रोवत हे।’’
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अइसने तीन महीना बीत गिस। ओलेन्का हर एक दिन कहूँ जावत रिहिस। वोकर बगल म एक झन आदमी घला रेंगत रहय। वो हर लकड़ी के कारखाना के मनीजर रिहिस। देखे म वो हर अमीर दिखत रिहिस। वोकर नाम रिहिस ’वेसिली’। वेसिली ह ओलेन्का ल समझावत रहय, ’’ओलेन्का! पति के मौत होना बड़ा दुख के बात हरे। फेर यहू ल ईश्वर के मरजी जानके अपन मन ल समझाना चाही। अच्छा! चलथंव। नमस्कार।’’

अब तो ओलेन्का ल रात-दिन वेसिलीच के धियान होय लगिस।

एक दिन वेसिली के एक झन सियनहिन रिस्तेदार हर ओलेन्का के घर आइस। ओलेन्का हर वोकर खूब आवभगत करिस। वो डोकरी हर खाली वेसिली के तारीफ म सारा समय खपा दिस। 

बाद म एक दिन खुद वेसिली ह ओलेन्का से मिलेबर आइस अउ खाली दस मिनट बात करकेे चल दिस। 

थोरिक दिन पीछू वो डोकरी के सलाह से ओलेन्का अउ वेसिली के बिहाव हो गिस।
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वेसिली हर मंझनिया तक कारखाना म रहितिस अउ खाना खाके कहूँ चल देतिस। वोकर जाय के बाद ओलेन्का हर वोकर काम ल संभाल लेतिस। कारखाना के हिसाब-किताब रखना अउ नौकरमन ल तनखा बाँटना अब वोकरे जिम्मा हो गे रिहिस।

अब जब वो ह अपन सहेलीमन संग संघरतिस त वो हर खाली कारखाना, लकड़ी के बैपार, इहिच बात करतिस। कहितिस, ’’लकड़ी के दाम ह बीस रूबल सैकड़ा के हिसाब से बढ़त हे।’’ अउ फेर बड़ दुखी हो के कहितिस, ’’पहिली मंय अउ वेसिली, जंगल ले लकड़ी मंगा लेवत रेहेन। फेर अब बेचारा वेसिली ल हर साल मालगेव सहर जाय बार परथे। ऊपर ले चुंगी अलग।’’

अब ओलेन्का खातिर संसार के सबसे महान अउ सबसे जरूरी चीज लकड़ी हर हो गिस। वेसिली अउ वोकर, दुनों के राय एके हो गिस।  वेसिली ल खेल तमासा ह नइ सुहाय, विही पाय के ओलेन्का हर घला खेल-तमासा देखना छोड़ दिस।

अब कोनो वोकर सहेलीमन पूछतिन कि ’’तंय अब घर ले काबर नइ निकलस? थियेटर काबर नइ जावस?’’ तब वो हर बड़ा अभिमान से कहितिस, ’’मोला अउ वेसिली ल नटक-वाटक देख के समय बरबाद करना थोरको नइ सुहावय। थियेटर जाना मूर्खता के सिवा अउ कुछू नो हे।’’

एक दिन जब ओलेन्का अउ वेसिली गिरजा घर ले अवत रिहिन तब ओलेन्का ह किहिस, ईश्वर के बहुत-बहुत धन्यवाद। हमर दिन बने-बने अउ सुख म बीतत हे। ईश्वर ले प्रार्थना हे कि हमर सबर दिन अइसने बने रहय।’’
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जब एक दिन वेसिली ह लकड़ी के खरीदी करे खातिर मालगेव गिस, तब ओलेन्का के हालत ह जकहीमन कस हो गिस। वो हर रातभर खूब रोइस। दिन अउ रातभर ह घला वोकर रोवई म बीते लगिस। 

कभू-कभू स्मिरनॉव ह, जउन ह वोकर घर म किराया म रहय, वोला देखे खातिर आ जावय। स्मिरनॉव ह ढोर डाक्टर रिहिस अउ ओलेन्का के मन बहलाव खातिर अपन जीवन के सब बातमन ल ओलेन्का ल बातातिस। दुनों तास खेलंय। स्मिरनॉव ह बताय कि वोकर बिहाव हो चुके हे अउ वोकर एक झन बेटा घला हे। फेर अब वो हर अपन घरवाली ल छोड़ देय हे। अपन बेटा खारित वो ह हर महीना चालीस रूबल भेजथे।’ वो हर यहू बताय कि वोकर घरवाली ह बड़ चरचरहिन अउ धोखेबाज हे इही कारण वोला छोड़ना पड़गे। 

’’ईश्वर ह आपला खुस रखय।’’ वेसिली के जावत खानी ओलेन्का ह कहितिस, ’’आप अपन जीवन म बहुत दुख झेले हव। मोर समय कट गे। आपके धन्यवाद।’’ 

स्मिरनाव के के जाय के बाद ओलेन्का हर फेर दुखी हो जावय। रातभर वो हर स्मिरनाव अउ वोकर घरवाली के सुलह कराय के उपाय सोचय। 

वेसिली के लहुटे के बाद एक दिन वो हर स्मिरनाव के दुखी जीवन के सब किस्सा ल वोला बताइस।
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छै साल वेसिली अउ ओलेन्का के जीवन बड़ मजा म बीतिस। जड़कला के दिन रिहिस। एक दिन वेसिली ह बिना टोपा पहिरे काम म चल दिस। लहुट के आइस त वोला जुकाम धर लिस। दूसर दिन वो हर खटिया धर लिस। सहर के बड़े ले बड़े डाक्टर मेर इलाज कराइन। आखिर चार महीना बीमार रेहे के बाद एक दिन वेसिली के इंतकाल हो गिस।

ओलेन्का हर एक घांव अउ खाली हाथ हो गिस।

किस्मत के मारी बिचारी ओलेन्का, दिन-रात रोवय। खाली करिया कपड़ा पहिरय। जिरिजाघर के सिवा वोहर अउ कही नइ जावय। सधुआइन के समान वोहर जिनगी बिताय लगिस।
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वेसिली के बीते के कहूँ छै महीना बाद वोकर करिया कपड़ा पहिरना बंद हो गिस। अब तो वो हर रोजाना बाजार घूमे बर जाय लगिस। स्मिरनाव अउ वो, दूनो झन संघरा चहा पीतिन, बइठ के गपसप करतिन। 

घर भीतर अब वोहर का करथे येकर बारे म लोगन अटकल लगाय के सुरू कर दिन। 

एक दिन ढोर डाक्टर स्मिरनाव ह किहिस, ’’तुँहर सहर के हवा-पानी हर बने नइ हे। आदमीमन बहुत बीमार पड़थें। इहाँ जानवर मन के घला इलाज के बने बेवस्था नइ हे।’’ 

ओलेन्का हर अब खाली स्मिरनाव के बात करे लगिस। हर चीज के बारे म वोकर विही राय होतिस जइसन स्मिरनाव ह कहितिस। ओलेन्का के जघा कोनो दूसर औरत होतिस ते अब तक वोकर थू-थू होय लगतिस। फेर ओलेन्का के बारे म लोगबागमन अइसन नइ सोचय। वोकर सखीमन अभी घला वोला मया करंय अउ ’’डार्लिग’’ कहिके बुलावंय। 

स्मिरनाव ह अपन संगवारीमन ल अपन अउ ओलेन्का के मित्रता के बात बताना पसंद नइ करय अउ ओलेन्का के पेट म अइसन बात ह कभू पचे नहीं। स्मिरनाव के संगवारीमन जब वोकर से मेल-मुलाकात करे खातिर आतिन तब ओलेन्का हर उंकरमन बर चहा-पानी के बेवस्था करतिस, रोगराईमन के बारे म जानकारी पूछतिस, स्मिरनाव के बारे म बात करतिस। 

ओलेन्का के ये आदत-बेवहार ह स्मिरनाव ल चिटको नइ सुहावय। वो ह ओलेन्का ल खिसिया के कहितिस, ’’तोला केहे रेहेंव न, तंय ह मोर संगवारीमन संग अइसन बात झन करे कर। सुरता हे कि भुला गेस? हमरमन के बातचीत के बीच म, जेकर बारे म तंय ह कुछुच् नइ जानस, चोंच झन मारे कर।  मोला ये सब नइ सुहाय। अपन जुबान म तंय हर लगाम नइ लगा सकस।’’

स्मिरनाव के अइसन बेवहार ले ओलेन्का ह डर्रा जातिस अउ रोनहू हो के पूछतिस, ’’तब मंय ह काकर संग गोठियावंव स्मिरनाव?’’ अउ रोवत-रोवत वोकर ले छिमा मांग लेतिस। दुनों झन फेर खुस हो जातिन।
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ओलेन्का हर स्मिरनाव के संग जादा दिन नइ रहि सकिस। स्मिरनाव के बदली हो गे अउ वोला बहुत दुरिहा जाना परगे। ओलेन्का फेर अकेल्ली हो गिस।

अब वोहर बिलकुल अकेल्ला हो गिस। वोकर बाप के बहुत दिन पहिलिच इंतकाल हो चुके रिहिस। दुख के मारे अब वो हर दिनोदिन दुबरात गिस। लोगन अब वोला देखके दुरिहा घूँच देवंय। संाझ होतिस तहाँ ओलेन्का हर सिढ़िया म बइठ के ’टिमोली’ के गीत सुने करतिस। फेर अब कोनो चीज म वोकर मन ह नइ रमे।

अभी घला वो हर लकड़ी के कारखाना ल संभालय पन यहू म वोकर मन नइ रमे। न तो वोला नींद आवय अउ न वोला भूख लगय। कुकीन, वेसिली अउ ढोर डाक्टर स्मिरलाव के संग रहे के समय वोहर कोनो ल बिना सोचे-बिचारे अपन सलाह दे देतिस। बिना गोठियाय वोला चैन नइ मिलतिस। पन अब वोकर गोठियाना-बतियाना, सब बंद होगिस। अब वोहर ककरो संग नइ गोठियावय।  
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धीरे-धीरे सब बदल गिस। ’जिप्सी रोड’ हर अब खूब चैड़ा हो गिस। ट्रिबोली अउ लकड़ी के कारखाना के जघा अब बड़े-बड़े मकान बन गिस। ओलेन्का हर घला डोकरी हो गिस। वोकर घर ह घला अब ओदरे लगिस। अब तो वोकर रसोइया, मार्वा ह जउन कहितिस वो हर वइसनेच करतिस।

जुलाई के महीना रिहिस। एक दिन कोनो हर वोकर किंवाड़ ल खटखटाइस। ओलेन्का हर खुदे दरवाजा खोलिस। दुवारी म स्मिरनाव ल खड़े देख के वो हर अकबका गिस। बीते समय हर वोकर आँखींमन म नाचे लगिस। वो हर बोटबिटा गिस अउ मुँहू ल हथेली म ढांप के रोय लगिस।

फिर तो वोहर कब स्मिरनाव संग चाय पीये बर बइठ गिस, पता घला नइ चलिस। स्मिरनाव से कतरो अकन बात वोला पूछना रिहिस पन वोकर मुँहू ह उलबे नइ करय। मुसकिल म वो हर पूछिस, ’’अचानक तंय कइसे अयेस?’’

’’मंय हर नौकरी ल छोड़ देय हंव।’’ स्मिरनाव ह किहिस, ’’अउ अब मय ह अपन बाल-बच्चा संग इहिंचे बसे के सोचे हंव। मोर बेटा ह स्कूल जाय के लाइक हो गे हे। वोला स्कूल म भरती घला करना हे। अउ तंय हर तो जानतेच होबे कि मोर घरवाली के संग अब मोर सुलह हो गे हे।’’

’’तब वोमन कहाँ हे?’’ ओलेन्का हर झटकुन पूछिस।

’’वो अउ बेटा, दुनों झन अभी होटल म ठहरे हें। अभी मोला घर खोजना हे न?’’

’’हे भगवान! तंय हर अतका तकलीफ काबर करबे? मोर घर म काबर नइ आ जावव। का तोला मोर घर ह पसंद नइ हे? डर झनी, एको पइसा किराया नइ लेवंव। मोर खातिर एक कोन्टा ह बहुत हे। बांकी सब तुंहर। बने देख ले, घर बहुत बड़े हे। तुम मोर संग रहिहव, इही हर मोर खातिर बहुत हे।’’ कहत-कहत ओलेन्का हर रो डारिस।

दूसर दिन पहातिच ओलेन्का के घर के साफ-सफाई, लिपाई-पोताई के काम सुरू हो गिस। ओलेन्का हर खुद खुसी-खुसी सब बूता ल करवाय लगिस। थोरिकेच देर म स्मिरनाव हर अपन घरवाली अउ बेटा के संग पहुँच गिस। 

स्मिरनाव के घरवाली हर पतली-दुबली अउ लड़ंगी रिहिस। वोकर बेटा, सासा हर उमर के हिसाब से ठिंगना रिहिस, फेर वो हर बिकट बातूनी अउ उपद्रवी रिहिस। ’’मौसी! इही हर तुंहर बिलई हरे?’’ वोहर पूछिस, ’’अच्छा मौसी, येला तंय हमला दे दे। मम्मी हर मुसुवामन ले बिकट डर्राथे।’’ अउ ताली बजा के हाँसे लगिस।
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सासा हर ओलेन्का ला भा गिस। वोहर वोला चहा पियाइस अउ वोकर हाथ धर के वोला घुमाय बर ले गिस।

सांझकुन सासा ह अपन पाठ ल याद करे बर बइठिस। ओलेन्का हर वोकर नजीक आके बइठ गिस अउ केहे लगिस, ’’बेटा! तंय ह बहुत होसियार अउ सुदर हस।’’

सासा ह ओलेन्का के बात ल अनसुना करके अपने धुन म कहे लगिस, ’’धरती के जउन टुकड़ा ह चारों मुड़ा ले पानी ले घेराय रहिथे, वोला द्वीप कहे जाथे।’’ 

ओलेन्का हर घला किहिस, ’’धरती के जउन टुकड़ा ह चारों मुड़ा ले पानी ले घेराय रहिथे, वोला द्वीप कहे जाथे।’’

रातकुन खना खाय के समय ओलेन्का हर सासा के माता-पिता ले कहितिस, ’’सासा हर पढ़ाई म खूब मेहनत करथे। रोज भूगोल ल याद करथे।’’

सासा हर अब स्कूल जाय लगिस।
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सासा के माँ हर एक घांव अपन बहिनी ल देखे बर खेरकाव गिस। गिस ते आबे नइ करिस। सासा के बाप ह अपन काम म रोज, रात-दिन घर के बाहिर रहितिस। इही पाय के सासा ल संभाले के जिम्मा ओजेन्का हर ले लिस। वोहर रोज बिहने वोला उठातिस। सासा हर बड़ कनवा के उठय। सासा हर कहय, बेटा! जल्दी उठ। स्कूल के समय होवत हे।’’ 

सासा हर फुनफुनावत उठय। हाथ-मुँह धोवय अउ चहा पीये बर बइठ जावय।

ओलेन्का हर झिझकत-झिझकत धीरे ले कहितिस, ’’बेटा! तंय हर अपन पाठमन ल बने याद करे हस न?’’
सास हर गुस्साके कहय, ’’हूँ, तंय इहाँ ले जा न।’’

ओलेन्का हर वोला अइसे देखतिस कि जइसे एकर बाद वो हर वोला अउ कभू नइ देख पाही। अउ धीरे ले चल देतिस।

ओलेन्का हर सासा ल स्कूल पहुँचाय के नाम म थोरिक दुरिहा ले वोकर पीछू-पीछू रेंगत जातिस। पीछू-पीछू रेंगे के ये कारण रिहिस कि संग म रेंगत देख के वोकर संगवारी मन वोला डरपोकना कहिके चिढ़ावंय। सासा हर कंझा के कहितिस, ’’मौसी, अब तंय ह जा न।’’

ये तरीका ले सासा ल स्कूल पहुँचा के घर लहुटतिस। रद्दा म कोनो कुछ पूछंय तब वो हर कहय, ’’मास्टरमन बड़ खराब होथंय। बिचारा नान्हे-नान्हे लइकामन ल बहुत मेहनत करवाथें।’’

सासा हर स्कूल ले लहुटतिस तब ओलेन्का हर वोला चहा पियातिस अउ वोला घुमायबर ले जातिस। रातकुन खाना खाय के बाद जभे वो हर सासा ल सुतातिस, तभे सुततिस।
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ओलेन्का हर एक दिन अइसने सांझ कुन सासा ल सुता के खुद सुते बर जावत रिहिस कि दरवाजा ल कोनो हर खटखटाइस। 

बाहिर कोनो हर कहत रहय, ’’तार हरे। दरवाजा खोलो।’’

तार के नाव लेके अब ओलेन्का हर डर के मारे काँप जावय। काबर कि कुकीन के मौत के तार हर अइसने राते कुन तो आय रिहिस। 

ओलेन्का हर दरवाजा खोल के काँपत-काँपत हस्ताक्षर करिस अउ तार ल लेके पढ़े लगिस। तार हर खेरकाव ले आय रिहिस।

ओलेन्का हर पढ़िस - ’’सासा के माँ के इच्छा हे कि सासा ह खेरकोव आ जाय।’’
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