सोमवार, 26 जून 2017

व्यंग्य

व्यंग्य

सरकारी नमक


स्कूल के दिनों में अध्यापक ने मुहावरों के बारे में बताया था। तब कुछ समझ में नहीं आई थी। नमक और मिर्च से संबंधित कुछ मुहावरों, जैसे - नमक खाना, नमक हराम, जले में नमक छिड़कना, नमक-मिर्च लगाकर बताना, मिर्ची लगना आदि के अलावा कुछ याद नहीं रहा। नमक और मिर्च दैनिक उपयोग की चीजें हैं, इसी कारण ये मुहावरे याद रह गये होंगे। सोचता था - नमक तो सभी खाते हैं, मिर्ची तो सबको लगती है, नमक-मिर्च के बगैर खाने का कैसा स्वाद। पर किसी-किसी को ही क्यों लगती है मिर्ची? यह भी कोई बात हुई?

टी. व्ही. पर आनेवाले एक विज्ञापन से जाना कि नमकवाले टूथपेस्ट से दातों की बीमारियाँ ठीक हो जाती है। दर्द से राहत मिल जाती हैं। तो फिर जल जाने पर नमक छिड़कने से छालों और जख्मों के जलन और दर्द भी ठीक हो जाते होंगे। पर ऐसा होता है? कोई ऐसा भी करता है? 

समय के सााथ-साथ समझ भी कुछ-कुछ बढ़ती गई और इन मुहावरों के अर्थ भी कुछ-कुछ समझ में आते गये। इनके अर्थ जैसे-जैसे समझ में आते गये, मुझे अपनी समझ और बुद्धि पर तरस भी आने लगी। 

कुछ साल पहले की बात है। संयोग से शास्त्रीजी से मित्रता हो गई। भगवान भला करे। शास्त्रीजी की वजह से इन मुहावरों के अर्थ स्पष्ट हो पाये हैं। 

नमक के हिसाब से दुनिया में दो तरह के लोग होते हैं - खिलानेवाले अर्थात नमकदार लोग और खानेवाले अर्थात नमकदीन लोग; या - नमक छिड़कनेवाले लोग और जले हुए जख्मी लोग जिनके जख्मों पर इसे छिड़का जाता है। मिर्च के हिसाब से भी दुनिया में दो तरह के ही लोग होते है - लगानेवाले और जिसे लगाया गया हो, झल्लाये हुए लोग। नमकदार लोग जब भी घर से निकलते हैं, नमक के पैकेट की बोरी लेकर ही निकलते हैं, जिस गली से गुजरते हैं, वहाँ के नमकदीनों को नमक बाँटते चलते हैं। 

आजकल की सरकारें नमकदार लोगों की सरकारें होती हैं। ये नमकदीनों को नमक खिला-खिलाकर खुश रखती हैं। नमक स्वाद से भरपूर हो, इसका असर दीर्घकालिक हो, इस बात का वे भरपूर ध्यान रखती हैं, ताकि खानेवालों पर इसका असर दीर्घकाल तक बनी रहे और काई नमकहरमी न कर सके। इस काम के लिए सरकारें नमकदीनों के मन में विश्वास पैदा करती हैं। अपनी नमक की गुणवत्ता का खूब प्रचार करती हैं। कहती हैं - ’हे नमकदीन भाइयों और बहनों! यह नमक बड़ी उच्च गुणवत्तायुक्त नमक है। इसका उत्पादन उच्च तकनीकवाले आधुनिक संयंत्रों में किया जाता है। उच्च मानकों पर इसकी गुणवत्ता का परीक्षण किया जाता है। इनके पैकेट्स और बोरी पर टेस्टेड, ओ. के. का प्रमाणपत्र चस्पा किया जाता है। इतना हो जाने के बाद ही इसे वितरण के लिए बाहर लाया जाता है।’ 

नमक बाँटने का काम पिछली सरकारें भी बड़ी संख्या में करती हैं। परंतु नमक गुणवत्तायुक्त नहीं रहती होगी। नमकदीनों को नहीं लग पाती होगी और वे हार जाती हैं। तब वे माथा पीट-पीटकर नमकदीनों को लानते भेजती हैं। ’साले सब नमकहराम निकले। किसी को नमक नहीं लगी।’ 

वर्तमान सरकारें चतुर, चैकन्नी और दिमागदार सरकारें होती हैं। पिछली सरकारवाली चूक वे नहीं करती। उच्च मानकोंवाली, उच्च गुणवत्तावाली, परीक्षित, टेस्टेड, ओ. के. प्रमाणपत्रवाली नमक ही बाँटती हैं। ऐसे नमक बाँटकर वर्तमान सरकारें एक तीर से दो निशाना साधती हैं। नमकदीनों को उपकृत तो करती ही हैं, पिछली सरकारों के जले में नमक छिड़कने का काम भी कर लेती हैं। 

सरकार की इस नमक में कुछ विलक्षण गुण होतें हैं - नमकदार लोग इसे बाँटकर और नमकदीन लोग इसे खाकर अपनी-अपनी नमक, और चेतना खो देते हैं। दोनों ही अवचेतन की अवस्था में चले जाते हैं। दोनों ही विचारशून्य हो जाते हैं। अच्छे-बुरे की पहचान की ताकत खो देते हैं। हमेशा नमक के इशारों पर नाचते रहते हैं। स्वयं को नमकदार समझने लगते हैं और आजीवन इसी भ्रम में जीते रहते हैं। इस भ्रम के कारण दुनिया का हर व्यक्ति इन्हें नमकहराम दिखने लगता है। ये जहाँ-तहाँ लोगों की नमकहरामी का रोना रोते फिरते रहते हैं। मरी हुई चेतना के कारण खाये हुए नमक की इन्हें याद नहीं रहती। 

नमक बाँटना और नमक खाना सामाजिक कृत्य भी है। नमक बाँटे बिना और नमक खाये बिना समाज नहीं चलता। हर आदमी कभी नमकदार तो कभी नमकदीन की भूमिका निभाता रहता है। समाज का यह नमक सरकारी नमक से भिन्न होता है। इससे चेतना मरती नहीं, विकसित होती है। विश्वास बनता है।

शास्त्रीजी सरकारी कोटि के व्यक्ति हैं। सरकार में नहीं हैं, पर उनकी अपनी सत्ता और सरकार है। सरकारी नमक बनाने की उनकी खुद की कंपनी है। वे यही नमक बाँटते और खाते हैं। सामाजिक नमक को भूलकर भी हाथ नहीं लगाते हैं। लिहाजा दुनिया उन्हें नमकहराम, विरोधी और दुश्मन नजर आती है।
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