सोमवार, 19 जून 2017

उपन्यास के अंश

(अवइया छत्तीसगढ़ी उपन्यास  के अंश)

ख्याति

डोकरी दाई के चूंदीमन ह अब फुड़हर के रूईंकस झक् पंडरी हो गे हे। कनिहा ह नव गे हे। सत्तर ले उप्पर के हो गे होही तभी ले न अक्कल ह खंगे हे न गत्तर ह। गोटानी धरके दिनभर एती ले ओती किंजरत रहिथे। तरिया ले नहा के आ जाथे। नहा के आतेसाठ बटकीभर बासी निकाल के बइठ जाथे। बासी खा के अरोसी-परोसीमन घर घूमफिर के आ जाथे। अभीच्-अभी वो ह नंदगहिन घर कोती ले घूम के आय हे। सुतहूँ कहिके अपन खोली म खुसरिस हे, फेर नींद आय तब न। नतनिन के आरो लिस, आरो नइ मिलिस। मुँह ल मुरकेट के मनेमन किहिस - आगी लगे आज के लोग-लइका मन के पढ़ई-लिखई ल। जब देखबे तब, किताबेच् म मुड़ी गड़ाय रहीं। का मिलथे ते? किताब ह छुटही तहाँ ले दिनभर मुबाइल ल कोचकत रहिहीं। कोजनी का भराय रहिथे मुबाइल म ते। थोरिक देर थिरा के नतनिन ल हुँत कराइस - ’’अइ, सुनथस बेटी। ए ... खियाती।’’ 
नतनिन के कोनों आरो नइ मिलिस। डोकरी ह घुसिया के फेर चिल्लाइस - ’’ए ... खियाती ... , कान म पोनी गोंज के कते करा खुसरे हस रे रोगही। तोर रोना पर जातिस ते। नरी पिरा गे।’’
नतनिन ह अपन खोली म पढ़त रहय। डोकरी दाई के चिल्लई म पढ़ई ले धियान ह उचट गे। घुसिया के उत्ता-धुर्रा निकलिस। चिल्ला के किहिस - ’’का हो गे डोकरी? काबर बाँय-बाँय करत हस? बता?’’
डोकरी दाई ह घला अगियाबेताल हो गे। किहिस - ’’अई, हमला का हो गे हे रे बेंदरी। डोकरी कहिथस। कते करा हम डोकरी हो गे हन। डोकरी पोंसे हस हमला। डोकरी तो तंय होवत हस। कोन जाने तोर बिहाव ल कब करहीं ते? सरी उम्मर ह पहावत हे। थोरको अक्कल नइ हे तोर दाई-ददा मन ल। कब टारबे मुँहू ल इहाँ ले तंय। बुढ़तकाल म कते डौका मिलही तोला ते?’’ कहत-कहत डोकरी के सुर ह मद्धिम होगे। किहिस - ’’तोर उम्मर म हम दू झन लइका के महतारी बन गे रेहेन। दुनो ल गँवा डरेंव बेटी।’’ कहत-कहत डोकरी दाई के आँसू बोहाय लगिस। अँचरा म आँसू ल पोंछ के कहिथे - ’’गोठियाय के मन करथे बेटी, तोर संग नइ गोठियाहूँ त अउ काकर संग गोठियाहूँ, खियाती।’’
’’देख, देख! फेर खियाती कहत हस। खियाती-खियाती झन कहेकर हमला। हमर वइसने नाम हे का? डोकरी कहीं के।’’
’’अई! अउ का नाव हे तोर या? तोर दाई-ददा मन जइसन तोर नाव धरे हे, तइसने हम कहत हन दाई। खियाती, कहिके।’’
’’खियाती नहीं डोकरी, ख्याति, ख्याति। ख्याति, नइ कहि सकस का?’’
’’खाती, खाती केहेस वो?’’
ख्याति ह माथा ठोकत कहिथे - ’’हे भगवान! मरत ले नइ सीख सकस तंय ह, ख्याति केहे बर।’’ 
’’वइसने तो कहत हंव रे, ललबेंदरी। बेझवाथस काबर। हम का करबोन। तोर नावे ह टेड़गा-पेचका हे तेला?’’
’’हाँ, मोर नाम ह टेड़गा-पेचका हे। अउ तोर नाम ह बने हे? सुकारो?’’
’’सुकरार के जनम धरे रेहेन, तउन पाय के हमर सुकारो नाव धरिन। तोरे जइसे। सनीचरहिन नइ ते।’’
’’का सनीचरहिन?’’
’’अइ! सनीच्चर के जनम धरे हस, तउने पाय के तो सनीचरहिन कस हो गे हस रे, तोला गाड़ंव ते।’’
’’बस, बस! रहन दे। गड़ियाय के लाइक तो तंय ह हो गे हस। काबर चिल्लात रेहेस, तेला बता।’’ 
’’अइ, का करत रेहेस या?’’
’’पढ़त रेहेन।’’
’’का पढ़थस या रात-दिन?’’
’’बायलाॅजी।’’
डोकरी दाई ला ठट्ठा सूझिस। किहिस - ’’अइ, बइला ल पढ़थस वो? गोल्लर ल कब पढ़बे रे?’’
’’देख, तोर खंगे मत रहय डोकरी। सोझ-सोझ, बने-बने गोठियाय कर।’’
’’अइ! काबर गुसियाथस या। का कहि डरेन तोला। पढ ़के मास्टरिन बनबे का .., कहिके पूछथंव बेटी।’’
’’मास्टरिन नइ बनन, डाॅक्टर बनबोन।’’
’’डागदर बनबे! नरस बाई कस या?’’
’’हे भगवान! काबर बलाय हस तउन ल बोल न। मोर पास टाइम नइ हे। नर्स ह नर्स होथे, डाॅक्टर हा डाॅक्टर। समझे?’’
’’अई! नइ समझबो रे। निच्चट अड़ही-भोकवी समझथस हमला। बड़े-बड़े हस्पताल मन म बड़े-बड़े बीमारी के इलाज करथें, चीराबोंगा़ करके अजार ल निकालथें, तउन ल डागदर कहिथे।’’
ख्याति ह हाँस के डोकरी दाई के अक्कल ल सराहिस। बिस्कुट ल लुका के धरे रहय तउन ल डोकरी दाई के हाथ म धरा के किहिस - ’’पास हो गेस डोकरी। ये ले तोर इनाम। खियाती, खियाती कहिके काबर चिल्लाथस तउन ल महूँ जानथंव। अब जावंव?’’
नतनिन के मया ल देख के डोकरी दाई के आँखी ह फेर छलक गे। नतनिन ल छाती म ओधा के गजब आसीस दिस। किहिस - ’’तंय ह चल देबे, तहाँ ले कोन ह मोर सोर करही बेटी। सोच के मनेमन रोथंव वो।’’
’’तंय फिकर झन कर दाई! तोर जाय के पहिली मंय ह कहूँ नइ जावंव।’’
’’तब तंय ह मोर मरना ल खोजथस वो। अइ, डागदर बन जाबे तब तंय ह मोला बचाबे नइ या? बने मन लगा के पढ़ अउ झप ले डागदर बन।’’ डोकरी दाई ह ख्याति के मुड़ी म हाथ ल मढ़ा के आसीस दिस।
डोकरी दाई के मया-दुलार पा के ख्याति गदगद् हो गे। डोकरी दााई के पाँव पर के किहिस - ’’अब जावंव।’’
’’ले जा अउ मन लगा के पढ़। अउ सुनथस या, आज का खजानी मंगाय हस, तोर पापा ल?ं’’
डोकरी दाई के लालच ल देख के ख्याति ह अपन माथा ल धरलिस। किहिस - ’’हे भगवान, खाई-खजानी छोड़ के तोला अउ कुछू नइ समझे का वो। जावत हंव। बाय, बाय।’’
डोकरी दाई ह किहिस - ’’टार रे गड़उनी, तोर आंय-बांय ल।’’
डोकरी दाई ल कुड़कत देख के ख्याति ल हाँसी आ गे अउ हाँसत-हाँसत वो ह अपन खोली कोती चल दिस।
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