मंगलवार, 20 जून 2017

आलेख - भाषा एवं व्याकरण

’अनेक’ और ’अनेकों’ तथा ’मैं’ और ’हम’


अनेक विद्वान ’अनेकों शब्द के प्रयोग को गलत मानते हैं। तर्क यह है कि ’अनेक’ शब्द स्वयं बहुवचन शब्द है। बहुवचन का पुनः बहुवचन ’अनेकों कैसे हो सकता है।
’कई’ और ’बहुत’ भी ऐसे ही शब्द हैं। ये भी बहुवचन शब्द हैं। पर कई बार ’कई’ के बदले ’कइयों’ और ’बहुत’ के बदले ’बहुतों’ का प्रयोग किया जाता है। कइयों और बहुतों के प्रयोग को कोई गलत नहीं मानता। क्यों?
जैसे -
1. कई लोग झूठ बोलते हैं।
2. बहुत लोग झूठ बोलते हैं।
3. मैंने कई लोगों को झूठ बोलते देखा है।
4. मैंने बहुत लोगों को झूठ बोलते देखा है।
5. मैंने कईयों को झूठ बोलते देखा है।
6. मैंने बहुतों को झूठ बोलते देखा है।
आम तौर पर वाक्य क्रमांक 5 और 6 का प्रयोग हम करते हैं और इसमें हमें कोई गलती नजर नहीं आती।
क्या यहाँ पर ’कइयों’ और ’बहुतों’ का प्रयोग गलत है?

’सब’ और ’लोग’ शब्द भी बहुवचन शब्द हैं। और ’सबों’ तथा लोगों शब्द का भी प्रयोग प्रचलित है। इन शब्दों पर भी किसी को कोई आपत्ति नहीं है। तब अनेकों शब्द पर आपत्ति क्यों?

निम्न वाक्यों पर विचार कीजिए -
1. मैंने अनेक लोगों को झूठ बोलते देखा है।
2. मैंने अनेकों को झूठ बोलते देखा है।
क्या यहाँ वाक्य क्र. 2 में ’अनेकों’ शब्द का प्रयोग गलत है?

’मैं’ और ’हम’

अब ’मैं’ और ’हम’ सर्वनाम (सर्व अर्थात सब नामों के बदले प्रयुक्त शब्द सर्वनाम कहलाता है।) पर विचार करें। ’हम’ बहुवचन है ’मैं’ का। क्या ऐसा मानना सही है? दुनिया में हर व्यक्ति अपने नाम के बदले (अर्थात स्वयं के लिए) ’मैं’ का प्रयोग करता है। दुनिया में हर व्यक्ति अकेला है। दुनिया में किसी के समान और कोई दूसरा नहीं होता। तब ’मैं’ का बहुवचन कैसे संभव है? वास्तव में ’हम’ बहुत सारे ’मैंओं’ का समुच्चय है।
तब क्या बहुत सारे ’अनेक’ का समुच्चय ’अनेकों’ नहीं हो सकता?
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