सोमवार, 5 जून 2017

व्यंग्य

परंपरा निभाने का दौर

इस कहानी को आज रात मैंने ख्वाब में देखा है। 

एक व्यक्ति को कुछ ताकतवर लोग जानवर की तरह पीटे जा रहे थे। पास ही जानवरों से भरा एक ट्रक खड़ा था। मार खानेवाला व्यक्ति मदद के लिए हृदयविदारक गुहारें लगा रहा था। परंतु उसकी मदद करनेवाला वहाँ कोई नहीं था। वह बार-बार पानी-पानी की करुण पुकार किये जा रहा था। परंतु पानी वहाँ किसी के पास नहीं था। उसे पानी देनेवाला वहाँ कोई नहीं था। 

आसपास तमाशबीनों की भीड़ जुट गई थी। इस भीड़ में कानून का एक रखवाला भी था जो बाद में मौका देखकर वहाँ से खिसक गया था। 

मारनेवाले बहुत थे और मार खानेवाला एक। मार खानेवाला व्यक्ति अब जमीन में गिरकर तड़पने लगा था। उसके मुँह और कानों से खून रिस-रिसकर सड़क पर फैलता जा रहा था। 

तभी एक चमत्कार हुआ। पता नहीं आसमान में कहाँ से और कैसे घने बादलों का झुण्ड आकर सूरज को ढंक लिया था। एक बिजली कौंधी थी और यह आवाज गूँजने लगी थी -’’ठहरो! खुदा के बंदों, ठहरो। इसे यूँ न मारो।’’

’’यह गो वंश का हत्यारा है। पापी है। इसे हम नहीं छोड़ेंगे।’’ मारनेवालों में से किसी ने उस आवाज का प्रतिकार किया।

’’पाप-पुण्य का फैसला मैं करता हूँ। हर इन्सान को मैं उसके कर्म के अनुसार फल देता हूँ। इन्सान की हत्या करना सबसे बड़ा पाप है। इस पाप से बचो।’’ आसमान को चीरते हुए फिर वही आवाज आई।

’’कौन है बे। साला! नाटक करता है। सामने आकर बात क्यों नहीं करता।’’ मारनेवालों में से किसी ने फिर उस आवाज देनेवाले को ललकारा। फिर तड़पते हुए उस व्यक्ति के मर्म स्थान पर एक घातक प्रहार किया।

इस प्रहार को तड़पनेवाला व्यक्ति सह नहीं सका और ठंडा पड़ गया।

फिर परंपरा निभाने का दौर शुरू हुआ। एक बिजली चमकी और जोरदार बारिश होने लगी। आसमान जैसे छाती पीट-पीटकर रो रहा था।
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