बुधवार, 28 जून 2017

कविता

फिल्म - च च च (1964)
गीतकार - मक़दू़म मोइनुद्दीन
संगीतकार - इक़बाल कु़रैशी
गायक - आशा भोंसले, मोहम्मद रफी

इक चमेली के मंडवे तले
मयक़दे से ज़रा, दूर उस मोड़ पर
दो बदन प्यार की आग में जल गये

प्यार हर्फ-ए-वफा, प्यार उनका खु़दा,
प्यार उनकी चिता ......
दो बदन प्यार की आग में जल गये
इक चमेली के मंडवे तले

ओस में भीगते, चांदनी में नहाते हुए
जैसे दो ताजा रूह, ताजा दम, फूल पिछले पहर
ठंडी-ठंडी सुबक रौ चमन की हवा
सर्फ-ए-मातम हुई, सर्फ-ए-मातम हुई, सर्फ-ए-मातम हुई
काली-काली लटों से लिपट, गर्म रूखसार पर
एक पल के लिए रुक गई
दो बदन प्यार की आग में जल गये
इक चमेली के मंडवे तले


हमने देखा उन्हें, दिन में और रात में, नूर-ओ-जुल्मात में
मस्जिादों के मीनारों ने देखा उन्हें
मंदिरों की किंवाड़ों ने देखा उन्हें
मयक़दे की दराड़ों ने देखा उन्हें, देखा उन्हें, देखा उन्हें
दो बदन प्यार की आग में जल गये
इक चमेली के मंडवे तले


ये बता चारागर, तेरी ज़म्बील में
नुस्ख-ए-कीमिया-ए -मोहब्बत भी है
कुछ इलाज-ओ-मुदवा-ए-उल्फत भी है
दो बदन प्यार की आग में जल गये
इक चमेली के मंडवे तले
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