रविवार, 6 अक्टूबर 2013

अनुवाद





............ दुनिया म प्रेम ह सबले अनमोल हे, वेद-शास्त्र ले घला जादा; अउ दुनिया के सबले बड़े ताकत ले घला जादा ताकतवर हे। बरत जोत के लौ के समान लकलक-लकलक करत वोकर पंख होथे, अउ वइसनेच् वोकर शरीर ह घला लकलक-लकलक चमकत रहिथे, मदरस के समान मीठ वोकर ओंठ मन होथे, अउ लोभान के खुशबू कस वोकर सांस के खुशबू ह होथे।’’
(बुलबुल अउ गुलाब)


ढाई आखर प्रेम के

अंग्रेजी ले छत्तीसगढ़ी
(अंग्रेजी कथा साहित्य के ग्यारह ठन कहानी के उल्था)



उल्थाकार
कुबेर


‘DHAI  AAKHAR PREM KE’ - Short Stories From English  to Chhattisgari
Translated  by  KUBER, Price 150/-


मन के बात
(अनुवादक के बिचार)


उल्था माने अनुवाद। यहू ह साहित्य के एक ठन बड़ महत्तम के विधान आय। कोनों दूसर भाषा के साहित्य ल अपन भाषा म नकल करे के काम ल हम उल्था कहि सकथन फेर ये ह पढ़इया लइका मन के नकल लिखे के काम नो हे, न वइसन नकल के काम आय, अउ न वोतका सरको काम आवय। उल्था करइ ह अपन ढंग के अलगेच काम होथय, अउ बड़ मेहनत अउ जोखिम के काम होथय।

अब ये झन पूछव कि उल्था म का धरे हे कि येकर पीछू  अतका मगजमारी करे जाय?

कोनो घला काम करे के पहिली हम वोकर नफा-नुकसान, वोकर महत्तम अउ वोकर जरूरत के विषय म सोचथन। जउन चीज के हमला जरूरत नइ हे तेकर बर हम काबर कोनों उदिम करबोन? दुनिया म हर भाषा म उल्था करे के काम होवत आवत हे। जरूरत नइ होतिस, काम के नइ होतिस, महत्तम के नइ होतिस अउ नफा के नइ होतिस ते काबर कोनों ह एकर पीछू मगजमारी करतिस?

हमर एक झन मितान हे। वो मन ह भल्ले अकन अलग-अलग भाषा के कविता मन के बड़ सुंदर अनुवाद करे हंे, पढ़ के मन ह आनंदित हो जाथे। अब लोगन मन ये कहिके वोकर ये रचना अउ वोकर मेहनत के हिनमान करे के कोशिश करथें कि अतका सबो भाषा के तो वोला ज्ञानेच् नइ हे, अनुवाद कइसे करिस होही? ये सबो कविता मन के हिन्दी म कोनो ह अनुवाद करे हे, तेखरे अनुवाद ल वो ह छत्तीसगढ़ी म करे हे। ये ह कइसन अनुवाद करइ होइस?

मोर मत हे, दुनिया म कोन ह काला देख के अनुवाद करथे, ये ह महत्वपूर्ण नइ हे। महत्वपूर्ण ये हर आय कि उल्था के जरिया दूसर भाषा के महत्तम के रचना मन ल अपन भाषा म पढ़े-समझे के हमला मौका मिलथे। वो सहित्यकार ह हमला ये मौका जोखिस, बेवस्था करिस। वो मितान ह अतका मेहनत नइ करतिस त वो जम्मो सुंदर-सुंदर रचना मन ल पढे के आनंद हम का ले पातेन? कइसे ले पातेन? उल्थाकरइया के मेहनत बर तो हमला वोकर करजदार, वोकर आभारी होना चाही।
उल्था के का नफा हे, ये विषय म सोच के देखव त बात ह अउ फरिहा जाही।

साहित्य के कोनों घला विधान होय, वो ह खाली टेम पास करे बर करिया अक्षर के लिपा-पोती भर नइ होवय। वोमा वो भाषा के सुंदरता होथे, मिठास होथे; वो भाषा ल बोले के लहजा, तौर-तरीका, अउ रचना-विधान होथे; भाषा के गुण अउ ताकत होथे; वोला बोलइया समाज के वोमा रहन-सहन, रीति-रिवाज, तीज-तिहार, खान-पान, सुख-दुख, मया-पिरीत होथे; जीवन के उठा-पटक अउ जीवन-मरन के लड़ाई होथे; वो समाज के वो समय के पूरा इतिहास; उहां के मिथक, संस्कृति अउ सभ्यता के विकास के कहानी, वोमा समाय रहिथे; जेकर जानकारी हमला वो रचना के जरिया मिलथे। वो भाषा ल बोलने वाला समाज अउ वोकर देश के बारे मे अतका सब जानकारी हमला उहाँ के साहित्य ल पढ़ के घर बइठे हासिल हो जाथे। अतका फायदा ह कम हे का?

उल्था करे के काम ह अपन भाषा म अपन साहित्य लिखे के काम ले जादा कठिन होथे। आप जब अपन भाषा म अपन रचना करथव तब आपके पास अपन खुद के भाषा, खुद के शैली, खुद के विचार, खुद के अनुभव, खुद के वातावरण, खुद के देश-काल, खुद के इतिहास अउ खुद के समाज होथे। बस! अपन हाथ जगन्नाथ वाले बात होथे। आपके हाथ खुल्ला रहिथे, आपके दिमाग ह खुल्ला रहिथे, आपके विचार ह खुल्ला रहिथे; पूरा छूट रहिथे आप ल अपन बात ल रखे के, कोनो खतरा, न कोनो जोखिम। जिम्मेदारी तो रहिबेच करथे, येकर ले छूट तो मिलिच् नइ सकय।

दूसर भाषा के कोनों रचना के उल्था करत बेरा आप वोमा, वोकर बीच म, अपन बिचार, अपन बात अउ अपन समस्या ल रख सकथव का? बल्कि आप ल तो सावचेत रहना पड़थे कि वो रचना के रचनाकार ह अपन वो रचना के पीछू जउन बिचार, जउन संदेश देना चाहत हे, वोला जस के तस आप अपन पाठक के मन म उलेंड सको।

एक झन बहुत नामी साहित्यकार ह अंग्रेजी के रहस्य-रोमांच वाले एक ठन बहुत प्रसिद्ध उपन्यास (सबले जादा बिकने वाला उपन्यास म शामिल) के हिन्दी म उल्था करे हें। जाहिर हे कि वो उपन्यास के जम्मों पात्र मन ह अंग्रेज आवंय, उन सबके नाव ह अंग्रेजी म हे; अनुवादक ह सब पात्र मन ल हिन्दुस्तानी नाव दे के हिन्दुस्तानी बना देय हे। उपन्यास म जउन जगह घटना घटे हे वो जगह ह इंगलैंड म हे, वोला सब हिन्दुस्तान म घटत बता दे हे। जउन घटना के वर्णन वो उपन्यास म हे, मतलब - समुद्री लुटेरा, नाविक मन के साहसिक समुद्री अभियान, अइसन बात तो हमर देश म, हमर इतिहास, संस्कृति अउ सभ्यता म सुने बर नइ मिलय। पढ़े म अटपटा अउ अचरज लगथे। हमर देश के नाविक मन ह तो जादा ले जादा मछरी धरे बर समुंदर म जाथंय। अंग्रेजी सभ्यता, अंग्रेजी संस्कृति, उहाँ के वातावरण, सब संग छेड़छाड़ करके वोला हिन्दुस्तानी उपन्यास बना देय हे। संवाद बोले के हमर मन के अउ अंग्रेज मन के ढंग, अउ तौर-तरीका म गंज फरक हे, अनुवादक ह वहू फरक ल मेंट देय हे। पढ़ के नइ लगय कि ये ह अंग्रेजी के अतका प्रसिद्ध उपन्यास के अनुवाद होही। अइसन अनुवाद ल पढ़ के आप ल का फायदा अउ कतका फायदा होही? उहाँ के बोली-भाषा, रहन-सहन, इतिहास अउ संस्कृति के आप ल कतका जानकारी मिलही? सोचव।

अब इही हिन्दी अनुवाद ल आधार बना के कोनों ह वोकर छत्तीसगढ़ी म उल्था कर लेवय, तब जंउहर नइ हो गे। अउ जब चारों मुड़ा वो ह ढोल पीटही कि मंय ह अंग्रेजी के बड़ प्रसिद्ध उपन्यास के छत्तीसगढ़ी म अनुवाद करे हंव, तब तो लोगन वोकर आलोचना करबेच् करहीं। मतलब; अनुवाद के अनुवाद करने वाला मन के आलोचना करने वाला संगवारी मन के बात म, जेकर चर्चा मंय ह शुरुच् म करे हंव, घला दम हे। अनुवाद तो मूल रचना ल ही पढ़ के अउ समझ के करना चाही।
पुलिस वाला मन के सरकारी काॅलोनी म बोर्ड लगे रहिथे - ’पुलिस लाइन’। येकर अनुवाद यदि ’पुलिस रेखा’ करे जाय तब व्याकरण के हिसाब से तो येमा कोनों गलती नजर नइ आही फेर भाषा के हिसाब से तो सत्यानाश हो गे न? स्कूल मन म पढ़इया लइका मन खातिर एक ठन सरकारी योजना चलत हे। इही संबंध म जानकारी मांगे गिस। जउन प्रपत्र आय रहय वोकर एक ठन काॅलम म लिखाय रहय ’कुल आच्छादित कन्या अउ बालक’। हमर तो मति ह चकरा गे कि इहाँ आच्छादित के मतलब का हे। वोकर अंग्रेजी प्रपत्र ल खोज के देखेन; वोमा लिखाय रहय - ’टोटल नंबर्स आफ कव्हर्ड ब्वाज एण्ड गल्र्स’। अब आच्छादित के मतलब ह समझ म आइस। व्याकरण के हिसाब से आच्छादित शब्द तो अपन जघा बने हे फेर भाषा के हिसाब से इहाँ ’लाभान्वित’ शब्द आना रिहिस, काबर कि जउन जानकारी मांगे गे रिहिस वोकर मतलब तो इही रिहिस न। अइसन जगह शब्दानुवाद के जगह भाषानुवाद अउ भावानुवाद ल महत्व मिलना चाही। हाना मतलब मुहावरा अउ कहावत मन के अनुवाद करत समय तो अइसन सावधानी बरते के जादा जरूरत रहिथे; इंकर तो शब्दानुवाद होइच् नइ सकय; नइ ते अर्थ के अनर्थ होय म कतका टेम लगथे?

कोनों विदेशी भाषा के रचना के अनुवाद करत समय वो रचना म आय कोनों मिथक, अउ उहाँ के धर्म अउ संस्कृति ले जुड़े कोनो घटना के उल्था करे के समय घला इही खतरा रहिथेे। येकरे सेती उल्थाकार ल वो रचना म वर्णित समाज के इतिहास, धर्म, संस्कृति अउ मिथक के बारे म घला थोड़-बहुत जानकारी होना चाही, नइ हे त कोशिश करके पता कर लेना चाही।
रेड चीफ के फिौती (द रेनसम आफ रेड चीफ) ल छोड़ के ये किताब म जोंगेरे सबो कहानी मन स्कूल के पाठ्यक्रम म शामिल हें। पढ़इया लइका मन घला येकर फायदा उठा सकथें। लेखक मन के जीवन परिचय अउ पाद-टिप्पणी मन ल इंटरनेट ले लेय गे हे। हालाकि अनुवाद के काम ह अंग्रेजी के मूल रचना के आधार म ही होय हे, फेर गाड़ी जिहाँ अटकिस उहाँ इंकर हिन्दी अनुवाद के मदद घला लेय गे हे, तभो ले अनुवाद अउ अनुवाद के भाषा म गलती हो सकथे, अइसन बात होही त आप मन से निवेदन हे कि हमला चेताय के कृपा करहू, बने लागही।

सुझाव अउ प्रेरणा खातिर डाॅ. गोरे लाल चंदेल के मंय सदा-सदा आभारी रहिहंव।
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दिनांक 13 जुलाई 2013                    कुबेर


कथा-क्रम

स.क्र.    कहानी के शीर्षक                पृ.क्र.
01    बुलबुल अउ गुलाब                 13
02    आदर्श करोड़पति                25
03    मेजाई के उपहार                35
04    आखरी पत्ती                    45
05    रेड चीफ के फिरौती                56
06    एक महिला के चित्र                77
07    विष्णु भगवान के पदचिन्ह            83
08    टंगिया                        92
09    आशा के किरण                    103
10    पतंग साज                    112
11    मारकस                        119

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समर्पित

वो जम्मों झन ल,
जिंकर हिरदे के ओनहा-कोनहा म
आरूग मयच् मया भरे हे
जिंकर आत्मा ह मया के रंग म रंगे, रचे-बसे हे
अउ जिंकर मन-मतंग ह मया के मद म माते रहिथे।

जिंकर प्रेम के ढाई आखर ह
न कोनों पोथी म लिखाय मिलय, न कोनों पुराण म,
लिखाय रहिथे तो सिरिफ
उँकर हिरदे के दहरा म, उजास बगरावत प्राण म।

जउन मन दुनिया ल पे्रम करथें
प्रेम अउ दुलार के संसार रचथें,
जउन ल दुनिया घला ह प्रेम करथे
मया अउ दुलार के अनमोल दुनिया देथे।
......... कुबेर


01

Oscar Wilde
(Oscar Fingal O’Flahertie Wills Wilde)
(1854 - 1900)


संक्षिप्त परिचय
Oscar Fingal O’Flahertie Wills Wilde के जनम डबलिन आयरलैंड म 16 अक्टूबर 1854 ई. म होय रिहिस। 1897 म आप ल दू साल के सश्रम कारावास हो गे जउन ह आप के मौत के कारण बनिस। छूटे के बाद सिरिफ 46 साल के उमर म 30 नवंबर 1900 म पेरिस म आपके निधन होगे।

आप अंग्रेजी के प्रसिद्ध कहानीकार अउ नाटककार हरो। आपके पहिली रचना ‘The Happy Prince And the other Stories’ हरे जउन 1888 म प्रकाशित होइस अउ आखरी रचना ‘The Balled OF Reading Goal’ कविता संग्रह ह हरे।

इहाँ आपके दू ठन जगजहरित कहानी *The Nightingale and the Rose अउ The Model Millionair के छत्तीसगढी म अनुवाद  ’बुलबुल अउ गुलाब’  अउ ’आदर्श करोड़पति’ देय जावत हे। आपके बहुत अकन कहानी मन बोध-कथा के रूप म विख्यात हे। ’बुलबुल अउ गुलाब’ ह घला एक ठन बोध-कथा हरे जउन म प्रेम के रहस्य के बारे म बखान करे गे हे। ये कहानी ह हमला प्रेम के खातिर त्याग अउ बलिदान के बारे म बताथे काबर कि प्रेम ह जीवन म सबले बढ़ के होथे। दूसर कहानी ’आदर्श करोड़पति’ म घला मानवीय प्रेम के भावना भरे हुए हे। (अनुवादक)
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1: बुलबुल अउ गुलाब

मूल -
The Nightingale and the Rose
कथाकार -
(आस्कर वाइल्ड)
Oscar Wilde

’’वो ह कहिथे, वो ह मोर संग तभे नाचही, जब मंय ह वोला लाल गुलाब के फूल ला के दुहूं।’’ रोवत-रोवत जवान छात्र ह कहिथे, ’’फेर मोर सबो फुलवारी म तो लाल गुलाब के एको ठन फूल नइ फूले हे, कहाँ ले लानव मंय ह लाल गुलाब के फूल?’’

फुड़हर पेड़ के खंधोली मन के बीच, अपन खोंधरा म बइठे बुलबुल चिरई ह वोकर रोवई ल सुनिस, पत्ता मन के ओधा ले झांक के वोला देखिस अउ बड़ा हैरान होइस।

’’मोर फुलवारी म एको ठन लाल गुलाब नइ हे।’’ वो ह जोर से चिल्लाइस अउ वोकर सुंदर अकन आँखीं डहर ले तरतर-तरतर आँसू बोहाय लगिस। ’’हाय, आदमी के खुशी ह कतका छोटे-छोटे बात के मुहताज रहिथे! महू ह पढ़े हंव, बुद्धिमान मनखे मन घला कहिथें, शास्त्र मन म लिखाय रहस्य ल घला जानथंव, तभो ले एक ठन लाल गुलाब के फूल खातिर मोर जीवन ह अबिरथा लागत हे।’’

’’आखिर इही हरे असली प्रेमी।’’ बुलबुल ह किहिस - ’’जेकर प्रेम-गीत ल न जाने, के रात ले, रात भर-भर जाग के मंय ह गाय हंव। भले येला मंय ह नइ जानंव, फेर येकरे गीत ल तो मंय ह रात-रात भर जाग के चंदा-चंदेनी मन ल सुनाय हंव, अउ देख, आज ये ह मोर आघू म बइठे हे। येकर चूंदी ल देख, सम्बूल फूल के गुच्छा मन सरीख कइसे सुंदर करिया-करिया दिखत हे; अउ येकर ओंठ ल तो देख, येकर हिरदे के प्रेम रूपी लाल गुलाब सरीख कइसे लाल-लाल दिखत हे। फेर येकर मन के उदासी ह येकर चेहरा ल हाथी दांत कस पिंवरा-पिंवरा कर देय हे। दुख ह येकर माथा म चिंता के गहुरी लकीर खींच देय हे।’’

’’कल रातकुन राजकुमार ह नाच-गान के उत्सव करत हे,’’ जवान छात्र ह टुड़बुड़ा के कहिथे - ’’अउ मोर मयारुक ह घला विहिंचे रही। अगर मंय ह वोला लाल गुलाब के फूल ला के दे दुहूं तब वो ह बिहिनिया के होवत ले मोर संग नाचही। अगर मंय ह वोला लाल गुलाब के फूल ला के दे दुहूं तब मंय ह वोला अपन आगोश म भर सकहूं, अउ वोकर हाथ मन ह मोर हाथ मन म कटकट ले जुड़े रही। फेर मोर फुलवारी मन म तो कहूँ घला लाल गुलाब के फूल नइ हे, अउ येकरे सेती मंय ह उहाँ अकेला बइठे रहिहूँ। वो ह मोर तीर ले रेंग के चल दिही फेर मोर डहर हिरक के देखही घला नहीं। मोर हिरदे ह टूट-टूट के छरिया जाही।’’

’’इही ह वास्तव म प्रेमी आय, सच्चा प्रेमी आय,’’ बुलबुल ह किहिस - ’’जेकर प्रेम-गीत ल मंय ह रात-रात भर गाथंव, जउन ल गा के मोला तो आनंद मिलथे फेर सुन-सुन के येकर तो मन ह दुखित हो जाथे। सचमुच, प्रेम ह कतका अनोखा चीज होथे? ये ह मुंगा-मोती मन ले घला मंहगा होथे। अनमोल रत्न मन ले घला जादा कीमती होथे। मुंगा-मोती अउ हीरा-जवाहरात ले येला खरीदे नइ जा सके, अउ न कोनों दुकान म ये ह बिके। न तो येला दुकान से खरीदे जा सके अउ न येला सोना के तराजू म तउले जा सके।’’

’’बजनिहा, (संगीतकार) मन अपन जघा म बइठहीं,’’ जवान छात्र ह किहिस - ’’अउ अपन-अपन बाजा मन ल मस्त हो के बजाहीं अउ मोर मयारुक ह वीणा अउ वायलिन के धुन म सुग्घर नाचही। वो अतका संुदर नाचही, अतका बिधुन हो के नाचही कि वोकर पांव ह धरती म नइ परही। रंग-बिरंगा कपड़ा पहिरे दरबारी मन के भीड़ ह वोकर चारों मुड़ा सकला जाही, फेर वो ह मोर संग नइ नाचही, काबर कि वोला देय खातिर मोर कना लाल गुलाब के फूल नइ होही।’’ दुख के मारे वो ह मैदान के हरियर दूबी म विही करा धड़ाम ले गिर गिस, अपन मुँहू ल हथेली मन म ढांप लिस अउ रोय लगिस।
’’ये ह काबर रोवत हे?’’ एक ठन नानचुक हरियर छिपकिली ह पूछिस अउ अपन पुछी ल हवा म नचात वोकर तीर ले रेंगत नहक गे।

’’सचमुच म काबर रोवत हे?’’ पूछत-पूछत एक ठन रंगबिरंगी फुरफुंदी (तितली) ह सूरज के सुंदर किरण म हवा म तंउरत निकल गे।

’’आखिर काबर रोवत हे ये ह?’’ बीच म हरियर रंग के टिकुली लगाय सफेद रंग के नान्हे गुलबहार के फूल ह अपन पड़ोसी के कान म धीरे ले सुहाती-सुहाती फुसफुसा के किहिस।

’’वो ह लाल गुलाब के फूल खातिर रोवत हे।’’ बुलबुल चिरई ह किहिस।

’’लाल गुलाब के फूल खातिर रोवत हे?’’ सब झन एक संघरा चिल्ला के किहिन - ’’कतका बड़ मजाक हे ये ह।’’
हरियर छिपकिली, का जाने वो ह मया-पिरीत के मरम ल, जोर से हाँस दिस।

फेर बुलबुल चिरई ह तो ये लइका के दुख के रहस्य ल जानत रिहिस, फुड़हर पेड़ के अपन खोंधरा म चुपचाप बइठे-बइठे वो ह प्रेम के रहस्य के बारे में सोचे लगिस।

अचानक उड़े खातिर बुलबुल ह अपन डेना मन ल खोलिस, अउ बात कहत अगास म उड़े लगिस। छंइहा बरोबर वो ह उड़िस अउ छंइहच् बरोबर उड़त-उड़त वो ह फुलवारी के वो पार चल दिस।

घास के मैदान के बीच म एक ठन बड़ संुदर अकन  गुलाब के पेंड़ रहय। विही ल देख के बुलबुल ह उतर गे अउ वोकर एक ठन डारा म बइठ गे।

’’मोला एक ठन लाल गुलाब दे दे,’’ वो ह चिल्ला के किहिस - ’’अउ बदला म मंय ह तोला अपन सबले सुंदर, सबले मधुर गीत ल सुनाहूँ।’’

गुलाब के पेंड़ ह इन्कार म अपन मुड़ी ल डोला दिस। ’’मोर फूल ह तो सफेद हे,’’ वो ह किहिस - ’’समुद्र के फेन जइसे अउ पहाड़ म जमे बरफ जइसे सफेद। फेर कोई बात नहीं, तंय ह मोर भाई तीर जा, जउन ह जुन्ना धूप-घड़ी तीर रहिथे। वो ह तोला तोर मर्जी के चीज दे दिही।’’

सुन के बुलबुल ह उहाँ ले उड़िस अउ उड़त-उड़त जुन्ना धूप -घड़ी तीर जागे गुलाब के पेंड़ तीर चल दिस। ’’मोला एक ठन लाल गुलाब दे दे,’’ वो ह रो के बिनती करिस - ’’अउ बदला म मंय ह तोला अपन सबले सुंदर, सबले मधुर गीत ल सुनहूँ।’’

सुन के गुलाब के पेड़ ह इन्कार म अपन मुड़ी ल डोला दिस। ’’मोर फूल ह तो पींयर हे,’’ उत्तर मिलिस - ’’तृणमणि सिंहासन के ऊपर बइठे मत्स्यकैना के चूँदी कस पींयर, अउ घास के मैदान म घास काटे के पहिली फूले नरगिस के फूल जइसे पींयर। फेर कोई बात नहीं, तंय जवान छात्र के खिड़की खाल्हे जागे मोर भाई तीर जा, हो सकथे, वो ह तोर इच्छा ल जरूर पूरा करही।’’

बुलबुल बिचारी का करे, उड़त-उड़त जवान छात्र के खिड़की खाल्हे जागे गुलाब के पेंड़ तीर चल दिस।
’’मोला लाल गुलाब के एक ठन फूल दे दे’’ वो ह रो के किहिस - ’’अउ वोकर बदला म मंय ह तोला अपन सबले सुंदर, सबले     मधुर गीत ल सुनहूँ।’’

यहू ह इन्कार म अपन मुड़ी ल डोला दिस।

’’मोर फूल हा लाल जरूर होथे,’’ वो ह जवाब दिस - ’’पानी म तंउरत बत्तख के पंजा अउ समुद्र के पानी भीतर खोह मन म झूलत मुंगा-पंख मन ले जादा लाल। फेर कड़कड़ंउवा ठंड म मोर नस मन ह जम गे हे, मोर डोहड़ू मन ल पाला मार दे हे, अउ हवा-बड़ोरा ह मोर डारा मन ल फलका दे हे, अउ विही पाय के अब साल भर मोर पेड़ म लाल फूल नइ फूल सकय।’’

’’मोला सिरिफ एक ठन लाल गुलाब के फूल होना,’’ बुलबुल ह रोवत किहिस - ’’सिरिफ एक ठन लाल गुलाब के फूल। का कोनो उपाय नइ हे कि मोला एक ठन लाल गुलाब के फूल मिल सके?’’

’’एक ठन उपाय हे,’’ गुलाब के पेड़ ह किहिस - ’’फेर वो ह अतका भयानक, अउ अतका डरावना हे कि वो उपाय ला तोला बताय बर मोर हिम्मत नइ होवत हे।’’

’’जल्दी बता मोला वो उपाय,’’ बुलबुल ह झट ले किहिस - ’’मंय नइ डर्राव।’’

’’अगर तोला गुलाब के लाल फूल होनच् त सुन,’’ गुलाब के पेड़ ह किहिस - ’’वोला तोला चंदा के दूधिया अंजोर म अपन सबले सुंदर संगीत ले सिरजे बर पड़ही, अउ अपन खुद के हिरदे के रकत ले वोला रंगे बर पड़ही। अपन छाती ल मोर कांटा म गोभ के तोला रात भर मोला अपन सबले संुदर गीत ल सुनाय बर पड़ही। रात भर तोला गीत गाय बर पड़ही, अउ मोर कांटा ह तोर हिरदे म धंसत जाही, धंसत जाही, अउ तोर जीवन-रकत ह निकल-निकल के मोर नस मन म आवत जाही, अउ जइसे-जइसे तोर जीवन-रकत ह निकल-निकल के मोर नस मन म आवत जाही, मोर होवत जाही, लाल गुलाब के रचना होवत जाही।’’

’’लाल गुलाब के एक ठन फूल खातिर मौत, ये तो बड़ा मंहगा सौदा हे,’’ बुलबुल ह चिल्ला के किहिस - ’’अउ ये दुनिया म सब ल अपन-अपन जिंदगी ह सबले जादा प्यारा हे। सुंदर हरियर-हरियर जंगल म बइठ के मिलने वाला आनंद ले घला जादा प्रिय हे, सोन के रथ म बइठ के जावत सुरूज ल देखे से, अउ मोती के रथ म बइठ के जावत चंदा ल देखे से मिलने वाला आनंद से घला जादा प्रिय हे। फेर प्रेम, प्रेम तो जिंदगी ले भी बढ़ के होथे। अउ फेर मनुष्य के हिरदे के सामने मोर जइसे छोटे से चिरइ के हिरदे के का कीमत?’’

बुलबुल ह अपन भुरवा डेना मन ल खोलिस, अउ हवा म छंइहा के समान वेग से उड़त-उड़त, उड़त-उड़त आ के (अपन) पेंड़ के ऊपर बइठ गे।

जवान छात्र ह अभी ले विहिच करा विहिच् हालत म अल्लर परे रहय, जउन हालत म वो ह वोला छोड़ के गे रिहिस हे। वोकर सुंदर आँखीं मन के आँसू ह अभी ले सुखाय नइ रहय।

’’खुश हो जा अब,’’ बुलबुल ह चिल्लाइस - ’’बाबू! तंय अब खुश हो जा। अब तोला तोर लाल गुलाब ह मिल जाही। आज रात चंदा के दुधिया अंजोर म अपन संगीत के सुर ले मंय ह वोकर सिरजन करहूँ, अपन हिरदे के लाल रकत के रंग ले वोला रंगहूँ। बदला म मोर बस इतना कहना हे कि तंय ह एक सच्चा प्रेमी आवस, अपन प्रेम म सदा सच्चा बने रहना, काबर कि दुनिया म प्रेम ह सबले अनमोल हे, वेद-शास्त्र ले घला जादा; अउ दुनिया के सबले बड़े ताकत ले घला जादा ताकतवर हे। बरत जोत के लौ के समान लकलक-लकलक करत वोकर पंख होथे, अउ वइसनेच् वोकर शरीर ह घला लकलक-लकलक चमकत रहिथे, मदरस के समान मीठ वोकर ओंठ मन होथे, अउ लोभान के खुशबू कस वोकर सांस के खुशबू ह होथे।’’

जवान छात्र ह जमीन म गड़े अपन नजर ल उठा के बुलबुल कोती देखिस, वोकर बात ल सुनिस, फेर जीवन के सच्चा प्रेम के मरम के जउन बात ल बुलबुल ह कहत रहय तेला वो ह समझ नइ सकिस। वो ह तो बस विहिच् ल समझथे जउन ह किताब-पोथी म लिखाय हे।

फेर फुड़हर के पेड़ ह सब बात ल समझ गे, अउ उदास हो गे। वो ह तो छोटकुन बुलबुल के सबर दिन के मयारूक आय, जउन सबर दिन वोकर डारा मन म खोंधरा बना के रहत आवत हे।

’’तंय तो अब जावत हस, (छुटकी बुलबुल) तोर बिना मंय ह एकदम अकेल्ला हो जाहूँ,’’ फुड़हर के पेड़ ह रो के कहिथे - ’’जावत-जावत एक ठन अपन गीत तो सुना दे।’’

बुलबुल ह फुड़हर ल अपन सुंदर गीत सुनाय लगिस। वोकर कंठ ले गीत ह वइसने झरे लगिस जइसे चाँदी के मग्गा ले जल के धार बोहावत हो।

जब बुलबुल के गीत खतम हो गे तब वो जवान छात्र ह चुपचाप उठिस, अउ अपन जेब ले कागज अउ सीस निकाल लिस। ’’वोकर तीर रूप-विधान तो हे,’’ पेड़ ले दुरिहा, अपन खोली कोती जावत-जावत वो ह अपने आप से किहिस - ’’एकर ले इन्कार नइ करे जा सकय, फेर का वोकर तीर संवेदना घला हे? मोला येकर कोनो परवाह नइ हे। वहू ह बाकी दूसर कलाकार मन जइसेच् तो हे, वोकर तीर सब कला हे, फेर बिना भावना के। वो ह दूसर खातिर अपन बलिदान नइ कर सकय। वो ह खाली संगीतेच् के बारे म जादा सोचथे; अउ ये बात सारी दुनिया जानथे कि कलाकार मन स्वार्थी होथें। तभो ले ये बात तो मानेच् बर पड़ही के वोकर कंठ म सुंदर मिठास हे। फेर ये सुंदर सुर, मधुर गीत, सब बेकार हे, जब येकर ले कोई फायदा न होने वाला हो, येकर ले कोई व्यवहारिक लाभ न होने वाला हो।’’ इही बात मन ल सोचत वो ह अपन खोली म जा के अपन छोटे से बिस्तर म ढलंग गे; अउ अपन प्यार के बारे म सोचे लगिस; अउ छिन भर बाद वोकर नींद लग गे।
अउ जब स्वर्ग म चंदा ह चमके लगिस, बुलबुल ह उड़ के लाल गुलाब के वो पेड़ म आ के बइठ गे, अउ अपन छाती ल वोकर कांटा म गोभ लिस। अपन छाती ल वोकर कांटा म गोभ के वो ह रात भर बर प्रेम के सुंदर-सुंदर गीत गाय के शुरू कर दिस, अउ जउन ल सुने बर शीतल चमकदार उजास बगरावत चंद्रमा ह निहर के धरती म आ गे। रात भर वो ह सुंदर-सुंदर गीत गातेच् रिहिस अउ कांटा ह वोकर छाती म गहरी, अउ गहरी धंसतेच् गिस, अउ वोकर जीवन-रकत ह वोकर हिरदे ले निकल के बोहावत गिस, बोहावत गिस।

सबले पहली वो ह प्रेम के वो सुंदर गीत ल गाइस जब एक लड़की अउ एक लड़का के हिरदे म प्रेम ह जनम लेथे। अउ गुलाब के पेड़ के सबले ऊपरी खांधा म गुलाब के एक ठन अद्भुत डोहड़ू ह डोहड़ा गे। वो ह जइसे-जइसे गीत गावत जाय, वो डोहड़ू म एक-एक ठन पंखुड़ी जुड़त जाय, जुड़त जाय। अंत म वो डोहड़ू ह पूरा फूल बन गे। फेर पेड़ के ऊपरी डारा म फूलने वाल वो फूल ह पहली एकदम पींवरा रिहिस, कलकल-कलकल करत नदिया के ऊपर छाय धुंधरा सरीख पींवरा, पंगपंगावत बिहिनिया अउ सुरूज नारायण के निकलत खानी के पहिली अगास के रंग सही पिंवरा (बिहिनिया के पांव कस पिंवरा अउ उषा काल के चांदी समान डेना कस)। चांदी के दरपन म दिखत गुलाब के छांया कस, जल-कुंड म पड़त गुलाब के छांया कस, बिलकुल पिंवरा।

तभे गुलाब के पेड़ ह जोर से चिल्ला के बुलबुल ल अपन छाती ल कांटा म अउ जोर से दबाय बर कहिथे। ’’नजदीक ला के अउ जोर से दबा, छुटकी बुलबुल,’’ पेड़ ह चिल्लाइस - ’’नइ ते गुलाब के ललियाय के पहिलिच् बिहिनिया हो जाही।’’
तब बुलबुल ह अपन छाती ल कांटा म अउ जोर से कंस लिस, अउ जब नर-नारी के आत्मा म प्रेम के जन्म होथे, जेकर तेज खिंचाव म (मोहनी-थापनी डारे कस) एक-दूसर कोती खिंचावत- खिंचावत ऊंकर मन के मन ह एकाकार हो जाथे, वो समय के पे्रम-गीत ल वो ह जोर-जोर से गाय लगिस।

अउ तब वो पिंवरा फूल के पंखुड़ी मन धीरे-धीरे गुलाबी होय लगिस, दुलहिन के गाल म छाय गुलाबी, आभा कस, जब दुलहा ह पहिली घांव वोकर ओंठ ल चूमथे अउ वोकर गाल ह चमके लागथे। फेर कांटा ह अभी तक बुलबुल के हिरदे म नइ धंस पाय रिहिस हे, अउ इही कारण गुलाब के हिरदे ह अभी तक सफेद के सफेद बांचे रहि गे रिहिस हे, काबर कि केवल बुलबुल के हिरदे के रकत के रंग से ही वोकर हिरदे के रंग ह लाल हो सकत रिहिस हे।

तब गुलाब के पेड़ ह अउ जोर से चिल्ला के बुलबुल ल अपन छाती ल कांटा म अउ जोर से दबाय बर किहिस। ’’नजदीक ला के अउ जोर से दबा, छुटकी बुलबुल,’’ पेड़ ह चिल्लाइस - ’’नइ ते बिहिनिया हो जाही, लाल गुलाब के फूल फूले के पहिलिच्।’’

अउ बुलबुल ह अपन हिरदे ल वोकर कांटा म अउ जोर से दबाय लगिस, अउ जोर से दबाय लगिस, अउ अंत म जब कांटा ह वोकर हिरदे ल छेदे लगिस, बुलबुल के मुँह ले एक दर्दनाक चीख निकलिस। दरद ह अनसंउहार हो गे। जइसे-जइसे वोकर दरद ह बाढ़त गिस, वइसने-वइसने वोकर गायन ह अउ प्रचंड ले प्रचंड होवत गिस काबर कि अब वो ह प्रेम के वो गीत ल गाय लगिस हे जउन ह मृत्यु ल घला अमर बना देथे, वो प्रेम के गीत जउन ह कब्र म घला कभू दफन नइ होय।

अउ अद्भुत गुलाब के पंखुड़ी के रंग ह अब एकदम लाल हो गे, जइसे सुरूज निकले के समय पुरब के अगास ह हो जाथे, अउ वोकर हिरदे ह अइसे लाल हो गे, जइसे माणिक के रंग होथे।

फेर बुलबुल के स्वर अब धीरे-धीरे मंद से मंदतर होवत गिस, अउ वोकर छोटे-छोटे पांखी मन फढ़फड़ाय लगिस, अउ वोकर आँखी के ऊपर परदा छाय लगिस। वोकर स्वर ह मद्धिम से मद्धिम होवत गिस, अउ वोला अइसे लगे लगिस कि वोकर कंठ म कुछू चीज ह आ के अटकत जावत हे।

तब बुलबुल ह आखिर म फेर पूरा जोर लगा के संगीत के लहर छेड़ दिस। दुधिया चंद्रमा ह जउन ल सुन के अगास म जिंहा के तिंहा ठहर गे अउ भुला गे अगास ह पंगपंगाय बर। जउन ल लाल गुलाब ह सुनिस अउ मारे खुशी के कांपे लगिस, बिहिनिया के मंद-शीतल हवा म वो ह अपन पंखुड़ी मन ल खोल दिस। अनुगूंज ह ये गीत ल दूर पहाड़ के अपन गुलाबी कंदरा मन म पहुँचा दिस अउ गड़रिया मन ल जगा दिस जउन मन ह नींद म सुंदर-सुदर सपना देखत रहंय। ये गीत ह नदिया तीर-तीर उगे सरकंडा मन म तंउरत गिस अउ वो मन प्रेम के संदेश ल समुद्र तक पहुँचा दिन।

’’देख! देख!’’ गुलाब के पेड़ ह चिल्लाइस - ’’लाल गुलाब के फूल ह पूरा फूल गे।’’ फेर बुलबुल ह कोनो जवाब नइ दिस, काबर कि वो तो पेड़ के खाल्हे लंबा-लंबा दूबी म मरे परे रहय, अउ गुलाब के कांटा ह वोकर हिरदे म गोभाय रहय।
दोपहर म जवान छात्र ह अपन खिड़की ल खोलिस अउ बाहिर झांक के देखिस।

’’मोर भाग ह कतका ऊँचा हे,’’ वो ह मारे खुशी के चिल्लाइस - ’’ये देख लाल गुलाब। अतका सुंदर गुलाब के फूल तो मंय ह अपन जिंदगी म कभू नइ देखे रेहेंव। ये ह अतका सुंदर हे कि लातिनी भाषा म जरूर येकर कोई लंबा-चैड़ा नाम होही।’’ अउ निहर के वो ह गुलाब के फूल ल टोर लिस।

वो ह अपन टोपी ल पहिरिस, लाल गुलाब ल हपन हाथ म पकड़िस अउ प्रोफेसर के घर कोती भागिस।

प्रोफेसर के बेटी ह चकरी म नीला रंग के रेशमी सूत ल लपेटत, घर के मुहाटी म बइठे रहय, अउ वोकर छोटे से पालतु कुकुर ह वोकर गोड़ तीर बइठे रहय। ’’तंय ह केहे रेहेस न, तंय मोर संग नाचबे, यदि मंय ह तोला लाल गुलाब के फूल लान के दे दुहूँ।’’ जवान छात्र ह चिल्ला के किहिस - ’’ये देख, दुनिया के सबले सुंदर लाल गुलाब के फूल। ये ले अउ येला अपन हिरदे से लगा के रख, अउ जब हम नाचबोन तब बताहूँ कि मंय ह तोला कतका मया करथंव।’’

लेकिन सुन के तुरते लड़की ह गुस्सा म अपन मुँहू ल बिचका दिस (नाक-भौं सिंकोड़ दिस)।

’’मोला डर हे कि ये ह मोर पोशाक के संग मेल नइ खाही,’’ वो ह जवाब दिस - ’’अउ फेर मनीजर के भतीजा ह मोर बर असली गहना भेजवाय हे, अउ सब जानथें कि गहना ह फूल ले जादा कीमती होथे।’’

’’ठीक, मंय ह कसम खा के कहिथंव, दुनिया म तोर ले जादा नमकहराम अउ कोनों नइ होही’’ छात्र ह क्रोध के मारे किहिस, अउ वो सुंदर फूल ल गली के चिखला में फेंक दिस, जिंहा एक ठन गाड़ी के चक्का ह वोला रमजत निकल गे।
’’नमकहराम!’’ लड़की ह किहिस - ’’मंय तो तोला बस अतका कहहूँ कि तंय ह बहुत जंगली (असभ्य) हस, अउ आखिर तंय होथस कोन? केवल एक छात्र, मंय ह तोर ऊपर भरोसा नइ कर सकंव, का होइस कि तोर पनही म चाँदी के बक्कल लगे हे, वो तो मनीजर के भतीजा के पनहीं म घला लगे हे।’’ अतका कहि के वो ह अपन कुरसी ले उठिस अउ घर के भीतर चल दिस।

’’प्रेम घला कतका बेकार चीज होथे,’’ छात्र ह उहाँ ले जावत-जावत किहिस - ’’ये ह तो तर्कशास्त्र के तुलना म आधा काम के घला नइ होवय, येकर से कुछ भी सिद्ध नइ करे जा सकय, अउ ये तो हमला खाली विही बात के बारे म बतावत रहिथे जइसन वास्तव म कभी होयेच् नहीं, अउ हमला वइसन चीज के बारे म विश्वास करे बर मजबूर करथे जउन ह कभू सत्य होबेच् नइ करय। वास्तव म, प्रेम ह बिलकुल अव्यवहारिक होथे, अउ आज के युग म व्यवहारिक होना ही सब कुछ हे। अब तो मोला फिर से दर्शनशास्त्र अउ अध्यात्म के अध्ययन करे बर पड़ही।’’

लहुट के वो ह अपन खोली म आइस, अउ धुर्रा जमे एक ठन मोटा असन किताब ल निकालिस, अउ पढ़े लगिस।
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2 : आदर्श करोड़पति

मूल -
The Model Millionair
(द माॅडल मिलियेनर)
कथाकार -
Oscar Wilde
(आस्कर वाइल्ड)

जब तक कोई धनवान न हो, दिखे म सुंदर होय के कोई फायदा नइ हे। प्रेम करना घला भरे-बोजे, पोट मनखे मन के बपौती आय, निठल्लू मन के काम नो हे। गरीब मन ल तो बस रांय-रांय कमाना अउ लस खा के सुतना भर चाही (व्यवहारिक और नीरस होना चाहिए)। (आदमी खातिर) मनमोहक होय के बदला कमाई के स्थायी साधन होना ही बेहतर हे। इही ह आधुनिक जीवन के परम सच्चाई आय, जउन ल ह्युई एरस्किन ह कभू नइ मानिस। बिचारा ह्युई के पास बुद्धि नइ रिहिस, हमला ये तो माने बर पड़ही, वो ह जादा महत्वपूर्ण आदमी नइ रिहिस। वोला कभू घला दिमागदार आदमी नइ कहे जा सके या इहाँ तक कि वो ह अपन जीवन म गलत-सलत करने वाला घला नइ रिहिस। तभो ले वो ह बहुत सुंदर रिहिस, अपन घुंघरालू भुरवा चूँदी, व्यवहार अउ दिखे म एकदम साफ-सुथरा अउ सुंदर भुरवा आँखी वाले। जतका वोला आदमी मन चाहे वोतकच् वोला महिला मन घला चाहंय अउ वोला हर काम आवय, खाली धन कमाय के काम छोड़ के। वोकर बाप ह वोकर बर घुड़सवारी वाले तलवार और ’खाड़ी युद्ध का इतिहास’ नाम के किताब के पंद्रह खण्ड छोड़ के मरे रिहिस। ह्युई ह येमा से पहली वाले ल अपन दूरबीन के ऊपर टाँग के रख देय रिहिस और दूसर ल आलमारी म ’रफ्स की गाईड’ और ’बेली की पत्रिकाओं’ के बीच म ठो देय रिहिस, (मतलब ये दूनों चीज ह वोकर बर बेकार रिहिस) अउ एक झन सियान काकी ह साल म वोला दो सौ पौंड देय विही म वो ह जिनगी चलाय। वो हर कतरो ठन बुता करके देखिस। छः महीना वो ह स्टाॅक एक्सचेंज म काम करके देखिस; फेर उहाँ एक ठन फुरफुंदी ह भाव बढ़ाने वाला गोल्लर और भाव गिराने वाला भालू मन के बीच म का कर सकतिस? कुछ समय के लिये वो ह चाय के एक बेपारी घर गिस, फेर वो ह उहाँ के भद्दापन से जल्दी थक गे। तब वो ह ड्राई शेरी (शराब) बेचना शुरू करिस। उहाँ घला वोकर बर कोई जघा नइ रिहिस, शराब बेचना बहुत कठिन काम होथे। आखिर कुछू घला हाथ नि आइस; मजेदार, आकर्षक, पूर्ण व्यक्तित्व के मालिक ये जवान तीर अब कुछुच् काम-धंधा नइ हे।

हालत ल अउ जादा खराब बनाने वाला बात ये होइस कि वोला प्यार हो गे रिहिस। लड़की के नाव रिहिस लारा मेर्टन, जउन ह एक झन रिटायर कर्नल के लड़की रिहिस, जउन ह (लड़की के बाप ह) अपन सुभाव अउ पाचन-शक्ति ल हिन्दुस्तान म रहि के बर्बाद कर डारे रिहिस, जउन ह वोला आगू चल के अउ कभू नइ मिलिस।

लारा ह वोला (ह्यूई ल) खूब चाहे, वोकर पूजा करय; ह्यूई ह घला वोकर कदम चूमय। ये दूनांे के जोड़ी ह लंदन के सबले खूबसूरत जोड़ी रिहिस, फेर इंकर तीर कभू फूटी कौड़ी घला नइ रहय। कर्नल घला ह ह्यूई ल बहुत चाहय, फेर सगाई के बारे म बिलकुल कोनोच् बात नइ सुनय। ’’मोर तीर आबे, बाबू, जब तोर तीर तोर खुद के दस हजार पौंड हो जाही, अउ तभे मंय ह तुंहर बिहाव बर सोचहूँ।’’ हरदम वो ह इहिच् बात ल कहितिस; अउ वो समय ह्यूई ह बहुत उदास हो जाय अउ मन ल बोधे बर लारा तीर आ जावय।
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एक दिन बिहिनिया बेरा वो ह हालैंड पार्क जावत रिहिस, जिंहा लारा मन रहंय; रस्ता म अपन एक झन लंगोटिया मितान एलन ट्रेवर से मिले खातिर रूक गे। ट्रेवर ह पेंटर रिहिस, जरूर, आजकल अइसन मन ल देख के लोगन दुरिहा भागथें; फेर वहू ह एक झन कलाकार रिहिस अउ कलाकार मन दूसर के तुलना म बड़ा दुर्लभ होथें। खुद म वो ह बड़ा अजीब अउ रूखा सुभाव वाले आदमी रिहिस। वोकर चेहरा म चकता दाग अउ लाल खिचड़ी दाढ़ी रहय। जब वो ह ब्रश उठाय, सचमुच बहुत बड़े उस्ताद लगे अउ चित्र ह जब पूरा होतिस, जीयत कस दिखतिस। वो ह ह्यूई ले अघात प्रभावित रिहिस; पहिलिच घांव म वो ह ह्यूई ल वोकर रूप, गुण अउ सुभाव के कारण पूरा-पूरा माने बर लग गे रिहिस; वो जब-तब कहते रहितिस - ’’आदमी, जउन सुंदर होथें, देखे म कला-पारखी लगथें, अउ बोल-चाल म बुद्धिमान, धैर्यवान लगथें; आदमी जउन बांका सुभाव के, जउन प्यारा होथें, विही मन दुनिया म राज करथें।’’ अउ जब ले वो ह ह्युई ल बने असन जाने लगिस वोकर उत्साही सुभाव अउ उदार-उतावला प्रकृति के कारण वो ह वोला बहुते चाहे लगिस, अउ अपन स्टुडियो म जब चाहे आय-जाय के छूट दे दिस।

जब वो ह भीतर गिस, वो ह देखिस, ट्रेवर ह एक झन भिखारी के चित्र ला अंतिम रूप देवत रहय। भिखारी ह खुद स्टुडियो के कोन्टा म एक ठन ऊँच असन जघा म खड़े हो के चित्र बनवात रहय। वो ह एकदम मुरझुरहा डोकरा आदमी रिहिस, वोकर चेहरा ह गुरमुटाय पार्चमेंट (चमड़ा के कागज) सही रिहिस, देखे म सोगसोगान। वोकर खांद म जुन्ना-पुराना लबादा ओरमत रहय, एकदम चिरहा-चिथड़ा, वोकर पनही ह जघा-जघा चिरहा अउ तुनहा रहय, एक हाथ म रेटहा मुहा लउठी अउ दूसर हाथ म भीख मांगे बर चिरहा-फटहा टोपी धरे रहय।

ट्रेवर संग हाथ मिलात-मिलात ह्युई ह धीरे ले कहिथे - ’’कतका विचित्र माडल हे।’’

ट्रेवर हा चिल्ल के कहिथे - ’’विचित्र माडल! महू ह अइसने सोचथंव। एकर सरीख भिखारी रोज-रोज नइ मिलय। मितान, ये मोर खोज आय; जिंदा वेलास्क! (स्पेन के एक प्रसिद्ध चित्रकार) मोर सौभाग्य हे। रेम्बांट (पुर्तगाल के एक प्रसिद्ध चित्रकार) ह घला का बना पातिस।’’

’’गरीब बुड़गा बिचारा,’’ ह्युई ह किहिस - ’’कतका दुखी दिखत हे। फेर मोर मानना हे, तुंहर जइसे पेंटर मन बर वोकर चेहरच् ह उंकर किस्मत होथे।’’

’’बिलकुल,’’ ट्रेवर ह जवाब दिस - ’’तंय ह एक भिखारी ल सुखी नइ देखना चाहस, है न?’’

’’अइसन माडल ल एक बैठका बर कतका देथस?’’ दीवान म आराम से बइठत-बइठत ह्यूई ह पूछिस।

’’एक घंटा के एक शिलिंग।’’

’’अउ एक ठन चित्र के तोला कतका मिलथे, एलन?’’

’’आहो! एकर, मोला दू हजार मलथे।’’

’’पाऊण्ड?’’

’’गिनी। पेंटर, कवि अउ डाॅक्टर मन ल हरदम गिनिच् मिलथे।’’

’’अच्छा, मंय सोचत रेहेंव कि माॅडल मन ल एमा हिस्सा मिलत होही।’’ ह्यूई ह हाँसत-हाँसत चिल्ला के किहिस, जतका मेहनत तुमन करथव, वोतका यहू मन तो करथें।’’

बकवास, बकवास! काबर, हमर तकलीफ ल देख, दिन भर अकेला पेंट म सनाय रहिथन, दिन भर चैंखटा के आगू खड़े रहना पड़थे। केहे बर तो तोला बड़ा सरल काम लगत होही ह्युई, फेर मंय ह तोला दावा के साथ कहिथंव कि कलाकारी ह बड़ मेहनत के काम आय, येला (हमर मेहनत ल) घला इज्जत मिलना चाही। फिलहाल तंय ह जादा बकबक झन कर, मंय ह काम म लगे हंव; तंय ह सिगरेट पी अउ चुपचाप बइठ।’’

थोड़का पीछू नौकर ह भीतर आइस अउ ट्रेवर ल किहिस कि चौंखटा बनाने वाला ह आय हे, आप से बात करना चाहत हे।
’’भागबे झन, ह्युई,’’ बाहिर कोती जावत वो ह किहिस - ’’छिन भर म मंय ह आवत हंव।’’

भिखमंगा डोकरा के पीछू कोती लकड़ी के एक ठन बिरिंच रिहिस, ट्रेवर के जाय के फायदा उठाय बर वो ह विही म अराम करे लगिस। वो ह अतका असहाय अउ अभागा दिखत रहय कि ह्युई ल वोकर ऊपर दया आ गे, वो ह अपन जेब ल देखिस कि कतका पइसा हे। खाली एक सोवरिन अउ थोरिक तांबा के सिक्का रहय; ’’गरीब बिचारा’’ मन म वो ह सोचिस, ’’येकर ले वोला जादा होना, फेर ऐकर मतलब हे कि पंदरही तक मोला बिना टांगा के चले बर पड़ही;’’ अउ वो ह स्टुडियो ले जावत-जावत भिखारी के हाथ म वो एक सोवरिन ल रख दिस।

डोकरा ह झकनका गे, वोकर अइलाय ओठ मन म थोरिक मुस्कुराहट आ गे, ’’धन्यवाद सर,’’ वो ह किहिस - ’’धन्यवाद’’। ट्रेवर आइस अउ ह्युई ह वोकर ले बिदा लिस, अपन करनी के सेती संकोच म वोकर गाल ह ललिया गे रहय। दिन भर वो लारा संग बिताइस, फिजूलखर्ची के नाम से लारा के दू बात सुनिस, अउ रेंगत घर आइस।
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वो रात, वो ह करीब ग्यारा बजे पैलेट क्लब म किंजरत रहय, उहाँ सिगरेट पिये के खोली म वोला सिगरेट अउ दारू पीयत ट्रेवर अभर गे।

अपनो बर सिगरेट सुलगावत वो ह पूछिस - ’’अच्छा, एलेन, वो तसवीर ल तंय ह ठीक-ठाक पूरा कर लेस?’’

’’पूरा होगे अउ बंधा घला गे, मितान,’’ ट्रेवर ह जवाब दिस - ’’अउ आखिर तंय ह जीत गेस। वो बुड़गा भिखमंगा, जेकर ले तंय वो दिन मिले रेहेस, तोर ऊपर मेहरबान हो गे हे। तोर बारे म मोला वोला सब बताना पड़ गे - तंय कोन अस, कहाँ रहिथस, तोर आमदनी कतका हे, अउ तोला का चाहिये -’’

’’मोर मयारूक एलेन,’’ ह्यूई ल चिल्लाइस - ’’जब मंय ह घर पहुँचहूँ तब वो ह मोर घर म शायदे मोर अगोरा म बइठे मिलही। तंय तो जबरा मजाक करथस यार; बिचारा अभागा डोकरा, मोर इच्छा हे कि वोकर खातिर मंय ह कुछ करंव। मंय सोचथंव कि ककरो अतका अभागा होना बड़ा भयानक हे। मोर तीर घर म ढेर सारा जुनहा कपड़ा हे, तंय सोच, वोला एकर जरूरत नइ हे का? काबर कि वोकर कपड़ा मन चिथड़ा हो के ओरम गे हे।’’

’’विही म वो ह जंचथे,’’ ट्रेवर ह किहिस - ’’फ्राककोट  या अउ कुछू दूसर कपड़ा म मंय वोकर चित्र नइ बनाहूँ। जउन ल तंय ह चिथड़ा कहत हस, वोला मंय ह मया-पिरीत कहिथंव। जउन ल तंय ह गरीबी कहत हस विही ह मोर चित्रकला के ताकत आय। फिलहाल, तोर बात ल मंय ह वोला बता देहूँ।’’

’’एलेन,’’ ह्यूई ह गंभीर हो के किहिस - ’’तुम चित्रकार मन कना हिरदे नइ होवय।’’

’’कलाकार मन के हिरदे ह ऊँकर मुड़ी म रहिथे।’’ ट्रेवर ह जवाब दिस - ’’अउ हमर काम तो बस दुनिया के सच्चाई ल बताना हे, दुनिया ल सुधारना नो हे। हर आदमी के अपन काम होथे। अब बता, लारा ह कइसे हे? वो डोकरा ह वोकर ऊपर मोहा गे हे।’’

’’तोर  मतलब ये तो नइ हे कि तंय ह वोकर बारे म वोला सब कुछ बता देय हस?’’ ह्युई ह किहिस।

’’बिलकुल बताय हंव। वो ह निर्दयी कर्नल, सुंदर लारा अउ दस हजार पौंड के बारे म सब कुछ जानथे।’’

’’तंय वो डोकरा भिखमंगा ल मोर निजी बात ल पूरा बता देस?’’ ह्युई ह गुस्सा के मारे लाल हो गे।

’’अरे मितान,’’ ट्रेवर ह मुसका के किहिस - ’’जउन ल तंय ह डोकरा भिखमंगा कहत हस, वो ह युरोप के सबले धनवान आदमी मन म एक हे। वो ह बैंक ले पइसा निकाले बिना कालिच पूरा लंदन ल खरीद देही। यूरोप के हर देश के राजधानी मन म वोकर बंगला हे, सोना के थाली म वो ह खाना खाथे, अउ जब चाहे वो ह रूस ल कहिके लड़ाई बंद करवा सकथे।’’

चकरित खा के ह्युई ह कहिथे - ’’का मतलब?’’

’’जइसे कि मंय ह केहेंव,’’ ट्रेवर ह किहिस - ’’जउन आदमी ल आज स्टुडियो म तंय ह देखे हस, वो ह बैरन हाॅसबर्ग आय। वो ह मोर लंगोटिया यार हे, मोर बनावल सब चित्र मन ल खरीदथे। एक महीना पहिली वो ह अपन भिखारी वाले रूप म चित्र बनाय बर मोला बियाना देय रिहिस। का तंय ह अइसन सोच सकथस? ये हर लखपति मन के ’मन के तरंग’ आय। अउ मंय ह पक्का कहिथंव कि  चिथड़ा म वो ह एकउम जचत रिहिस हे। वो ह एक ठन जुन्ना डरेस आय जउन ल मय ह स्पेन ले लाय रेहेंव।’’

’’बैरन हाॅसबर्ग!’’ ह्यूई ह चिल्ला के किहिस - ’’हे भगवान! वोला मंय ह एक सोवरिन के भीख देयेंव।’’ अउ वो लस खा के आरामकुरसी म जोरंग गे।

’’वोला तंय ह भीख म एक सोवरिन देयेस!’’ ट्रेवर ह चिल्ला के किहिस अउ कठल-कठल के हाँसे लगिस। ’’मितान! अब दुबारा तंय वोला नइ हबर सकस।’’

’’एलेन! मंय सोचथंव, ये बात ल तोला मोला बताना रिहिस।’’ ह्युई ह कंझा के किहिस - ’’कम से कम अइसन नदानी तो मंय ह नइ करतेंव।’’

’’अच्छा, ह्युई.’’ ट्रेवर ह कहिथे - ’’तोर ये बात ह मोर दिमाग म नइ घुसिस कि कोनों घला ऐरा-गैरा ल तंय ह अतका लापरवाही म (पइसा) बाटत फिरथस। कोनों सुंदर माडल ल चूम घला लेतेस तउन ह समझ म आतिस, फेर एक बदसूरत आदमी ल एक सावरिन।’’

’’खचित, वो ह मोला पक्का बदमाश समझत होही।’’ ह्युई ह किहिस।

’’थोरको नइ, तोर जाय के पीछू वो ह एकदम खुश हो गे रिहिस, अपन दुनों हाथ मन ल रमंज-रमंज के खूब खुलखुल-खुलखुल करत (हाँसत) रिहिस। मोला समझ म नइ आइस कि वो ह मोला तोर बारे म तिखार-तिखार के काबर पूछत रिहिस; बात अब समझ म आइस हे। वो ह तोर पइसा ल तोरे ऊपर लगाही, हर छै महीना म तोला वोकर ब्याज दिही अउ सब ला बताही।’’

’’अपन तो अभागा अउ दुष्ट ठहरेन,’’  ह्युई ह गुरेर के किहिस - ’’अब आखरी काम जउन मंय कर सकथंव वो ये कि अब मोला घर जा के सुत जाना चाही। एलेन मितान, ये बात ल तंय कोनोच् ल झन बताबे, अब तो मोला खुदे के चेहरा देखे के हिम्मत नइ होवत हे।’’

’’बकवास! ह्युई, मंय समझथंव कि येमा तो तोर अंदर के इन्सानियत के भावना ह जहरित होथे। भाग झन, सिगरेट पी अउ लारा के बारे म जतना बात करना हे, कर।’’

तभो ले, ह्युई ह थिराइस नइ, एलेन ट्रेवर ल मिरगी आय कस ठहाका लगात छोड़ के, भारी उदास मन, घर आय बर निकल गे।
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दूसर दिन बिहाने, जब वो ह नास्ता करे बर बइठे रिहिस, नौकर ह आइस अउ वोला एक ठन चिट्ठी दिस जेमा लिखाय रहय ’श्रीमान गुस्टाव हैण्डन, बैरन हाॅसबर्ग के तरफ ले’। ’’मोला लगथे, वो ह मोला क्षमा मंगवाय बर आय होही।’’ ह्युई ह मनेमन किहिस; अउ नौकर ल वोला ऊपर बुलाय बर किहस।

सोना के चस्मा लगाय, भुरवा चूँदी वाले एक भला बुजुर्ग आदमी ह भीतर खोली म आइस अउ किहिस - ’’का मंय ह श्रीमान एर्सकिन ह्युई के सम्मान म दू शब्द कहि सकथंव?’’

ह्युई ह झुकिस।

’’मंय ह बैरन हाॅसबर्ग के तरफ ले आय हंव,’’ वो आगू किहिस - ’’बैरन डहर ले।’’

’’आप मन ले मोर निवेदन हे महाशय, मोर डहर ले वोला आप मन कहि देहू कि मोला छिमा कर दिही।’’ ह्युई ह धीरे ले किहिस।

हाँस के वो बुजुर्ग आदमी ह कहिथे - ’’बैरन ह मोला आपके खातिर ये लिफाफा दे के भेजे हे,’’ अउ वो ह वोकर डहर एक ठन सीलबंद लिफाफा बढ़ा दिस।

लिफाफा के बाहिर लिखाय रहय - ’’ह्युई एर्सकिन अउ लारा मेर्टन ल एक भिखारी डहर ले बिहाव के टिकावन।’’ अउ वोकर भीतर रिहिस, दस हजार पौंड के एक ठन चेक।
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अउ जब ऊँकर दूनों के बिहाव होइस, एलन ट्रेवर ह माई पहुना बने रिहिस अउ बैरन ह नास्ता के बखत सुंदर अकन ले आसीर-बचन के बात किहिस।

एलेन ह किहिस - ’’लखपति माडल मिलना मुस्किल हे, फेर आदर्श लखपति मिलना सबले मुस्किल हे।’’
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‘O’ HENRY
(WILLIAM SYDNY PORTER)
ओ. हेनरी
(1862 - 1910)

संक्षिप्त परिचय
’ओ. हेनरी’ के मूल नाम विलियम सिडनी पोर्टर रिहिस, इंकर जनम 11 सितंबर 1862 अउ निधन 05 जून 1910 म होइस। आप बैंक क्लर्क के नौकरी करत रेहेव। 1894 म 4000 डालर के चोरी के आरोप म आप ल जेल जाय बर पड़ गे। 1901 म छूटे के बाद आप अपन नाम ल बदल के ओ. हेनरी रख लेव। 1903 ले 1906 तक न्यूयार्क वर्ड मैगजीन बर आप हर हफ्ता एक कहानी लिखव।
1. द गिफ्ट आफ द मेजाई,
2. द फरनिश्ड रूम, 
3. द रेनसम आफ रेड चीफ;
4 ’द लास्ट लीफ’
आपके ये चारों ठन कहानी मन विश्व कथा साहित्य के अनमोल कहानी के रूप म जाने जाथें। इहाँ आपके तीन ठन जगजहरित कहानी, The Gift of the Magi (10 अप्रेल 1906 म प्रकाशित)The Last  Leaf अउ The Ransom Of Red Chief के छत्तीसगढी म अनुवाद देय जावत हे। The Gift of the Magi ह जवान पति-पत्नी के बीच निर्मल प्रेम के कहानी आवय। The Last  Leaf  म, जिनगी ले निराश-हताश एक झन बीमार लड़की अउ वो बीमार लड़की ल बंचाय खातिर एक झन सनकी चित्रकार के अजीबोगरीब मास्टरपीस के महत्व अउ वो चित्रकार के महान त्याग के बारे म बताय गे हे। The Ransom Of Red Chief ह फिरौती बर बच्चा के अगवा करने वाला मन के मजेदार कहानी हरे। उम्मीद हे पसंद आही - कुबेर)
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3: मेजाई के उपहार

मूल:
The Gift of the Magi
कथाकार:
ओ. हेनरी

एक डालर अउ सत्यासी सेंट। बस, अतकिच्। अउ यहू म साठ सेंट ह तो पेनी के रूप म रिहिस।1 यहू ह तो एक-एक दू-दू पेनी बर, हर बार किराना दुकान वाले ले, साग-भाजी वाले ले अउ कसाई ले, चिकचिक अउ मोल-भाव कर करके बड़ा कंजूसी करके, अउ उँकर ठोसरा सुन-सुन के, मक्खीचूस के आरोप ल चुपचाप सहि-सहि के, बचाय गे रिहिस। तीन घांव ले गिनिस वोला, डेला ह। एक डालर अउ सत्यासी सेंट। अउ अगला दिन क्रिसमस (बड़े दिन) के तिहार हे।

बिलकुल साफ हे कि वोकर पास येकर सिवा अउ कोई चारा नइ हे कि वो अपन छोटकुन सोफा म पड़े-पड़े फड़फड़ाय, रोय अउ चीखे-चिल्लाय। अउ डेला ह इही करत हे। जउन ह मन के भावना ल अउ उद्वेलित करत हे कि वास्तव म जिंदगी ह सिसकइ, रोवइ अउ मुस्कुराहट ले मिल के बने हे; वहू म सिसकइच्-रोवइ ह जादा हे।

घर के मालकिन ह जब धीरे-धीरे पहिली माला से दूसर माला म आइस तब अपन घर के हालत ल देखिस। बीस डालर हर हफ्ता किराया म सजे-धजे फ्लैट। अइसन सोचना न सिरिफ भिखारी मन के सपना देखइ हरे बल्कि गली म भिखमंगा मन के दल के करलई हरे।

खाल्हे ड्यौढ़ी म एक ठन पत्र-पेटी रिहिस, जउन म अब कोनांे चिट्ठी-पत्री नइ डले; एक ठन बिजली-घंटी के बटन हे जेकर ऊपर अब धोखा म घला कोनों आदमी ह अपन अंगरी ल नइ मड़ाय; अउ अब तक ’मि. जेम्स डिलिंगटन यंग’ नाम ल धारण करने वाला एक ठन पट्टिका घला उपस्थित हे।

पहिली जब रहीसी के दिन रिहिस, वोकर कमाई ह हर हफ्ता तीस डालर रिहिस, ’डिलिंगटन’ ह ठंडा हवा म लहरात रहय। अब जब आमदनी ह कम हो के बीस डालर प्रति हफ्ता हो गे हे ’डिलिंगटन’ के अक्षर मन ह धुंधरा गे हे, हालाकि वो मन ह विनीत भाव अउ विनम्रता से सोचथें कि अब ये ह सिंकुड़ के खाली ’डी’ भर काबर नइ हो जाय। फेर रोज जब ’मि. जेम्स डिलिंगटन यंग’ घर आथे अउ अपन फ्लैट म पहुँचथे, ’मिसेज जेम्स डिलिंगटन यंग’ जेकर परिचय ऊपर डेला के रूप म दिये जा चुके हे, जउन ह बहुत भली (लड़की) हे, वोला कस के पोटार (अपन जबरदस्त आलिंगन म ले) लेथे।

डेला ह अपन रोवई ल बंद करिस अउ अपन गाल मन म पावडर चुपरिस। वो ह खिड़की तीर आ के बइठ गे अउ गुम खाय (अनमना ढंग ले) बाहिर कोती देखे लगिस, एक ठन बिलइ ह आंगन म रेंगत-रेंगत रूँधना कोती जावत रहय। वोला सब जिनिस ह उदसहा अउ सुन्ना-सुन्ना लगिस। (एक भूरी बिलइ ह रेंगत भुरवा आंगन म भुरवा रूँधना कोती जावत रहय।) कल क्रिसमस के तिहार हे, अउ जिम बर उपहार लेय खातिर वोकर तीर केवल एक डालर अउ सत्यासी सेंट हे जउन ल वो ह एक-एक पेनी करके कई महीना ले सकेलत आवत हे। बीस डालर म हफ्ता चलाना बहुत मुश्किल हे। जिम, वोकर प्रिय जिम, के उपहार खातिर केवल एक डालर अउ सत्यासी सेंट हे। जिम बर कोई सुंदर अकन उपहार लेय के योजना बनावत वो ह खुशी के कतरो घंटा गुजार चुके हे। जिम के सम्मान म कोई सुंदर अउ दुर्लभ-खरा चीज; कोई अइसन वस्तु जउन कीमती अउ छँटवा होय, जउन ल जिम ह गर्व से धारण कर सके।

वोकर कमरा के खिड़की के बीचोंबीच एक ठन आदमकद दरपन हे। बीस डालर प्रति हफ्ता के मकान म अइसन दरपन शायदे कोई देखे होही। सीधा खड़ा दर्पण जउन म कोई बहुत नाजुक अउ बहुत दुबला आदमी घला अपन प्रतिबिंब ल बहुत साफ-साफ देख सकथे। डेला जउन अभी भी एकदम छरहरी बदन के हे, ये कला म एकदम उस्ताद हे।

अचानक वो ह खिड़की डहर घूमिस अउ दर्पन के आगू म खड़ा हो गे। मात्र बीस सेकंड के भीतर वोकर आँखी म चमक आ गे फेर तुरते वोकर चेहरा के रंग फीका पड़ गे। तुरंत वो ह अपन बाल ल खोल दिस, वोकर बाल ह माड़ी के आवत ले झूल गे।

अब जेम्स डिलिंगटन यंग दंपति के पास खाली दू ठन कीमती चीज हे, जउन दोनों के ऊपर वो मन ल बहुत भारी गरब हो सकथे, पहला - जिम के सोना के घड़ी, जउन ह वोकर पिता अउ दादा से विरासत म मिले हे, दूसरा - डेला के सुंदर बाल जउन ह अइसे हे कि कोई महारानी के हीरा-जवाहरात के गहना मन ल घला फीका कर देय, जउन ल शीबा के महारानी ह देख लेतिस त इरखा के मारे जल-भून के राख हो जातिस, जउन ल डेला ह अपन राजकुमार ल खुश करे बर कभू-कभू खिड़की के बाहिर सुखाय बर लहरा देथे। जिम के घड़ी जेकर सामने बादशाह सोलोमन के संपूर्ण खजाना ह घला तुच्छ लगतिस अउ कहीं वो ह जिम ल वो घड़ी ल पहिरे देख लेतिस तब इरखा के मारे अपन दाढ़ी के बाल ल नोच लेतिस।

अउ अब डेला के बाल ह पूरा खुला हे; अइसे लगत हे कि भूरा रंग के झरना वोकर शरीर ले सुंदर चमकत अउ लहर-लहर लहरावत, झर-झर करत बोहावत हे। डेला के बाल जउन ह वोकर सबले कीमती गहना हे, वोकर माड़ी के खाल्हे तक झूलत हे। अउ तब हताशा, उदासी अउ जल्दबाजी म वो ह अपन बाल ल एक घांव अउ देखिस। उदासी म वो ह छिन भर बर एक घांव लड़खड़ाइस, अउ वोकर आँखी ले दू बूंद आँसू निकल के पुराना लाल कालीन ऊपर टपक गिस।

वो ह अपन भूरा रंग के पुराना जैकेट ल पहिरिस, भूरा रंग के पुराना हैट ल पहिरिस। अतका तेजी लेे घूमिस कि वोकर स्कर्ट ह चकरी कस घूम गे। वोकर आँखी म अब तक जोरदार चमक हे। वो ह उत्ताधुर्रा मुहाटी ले बाहर निकलिस अउ सीढ़िया उतर के गली म आ गिस।

जिंहा वो ह रूकिस, दुकान म लिखाय रिहिस ’मेडम सोफ्रोनी, बाल के सब प्रकार के समान’। एके सांस म दंउड़त वो ह सिढ़िया चढ़ के दूसर मंजिल म पहुँच गे, अपन आप ल संभालिस, वो ह जोर-जोर से हफरत रहय। मेडम सोफ्रोनी ह चकरित खा के वोला देखे लगिस।

’’का आप मोर बाल ल खरीदहू?’’ डेला ह पूछिस।

’’मंय ह बालेच ल खरीदथंव,’’ मेडम ह किहिस - ’’अपन हैट ल उतार, देखंव भला तोर बाल ह कइसे हे।’’
अउ भूरा झरना ह झर-झर करत लहरा गे।

’’बीस डालर,’’ अपन अभ्यस्त हाथ म वोकर घना केश ल उठावत मेडम ह किहिस।

’’जल्दी मोला दे दे।’’ डेला ह किहिस।

वाह, अउ अगला दू घंटा तक, मानो गुलाबी पंख म सवार हो के वो ह इंहा ले ऊंहा, उहां ले इहां घूमे लगिस; अपन सुंदर बाल के कटे के पीड़ा ल भुला के। जिम बर सुंदर उपहार खरीदे बर वो ह कई ठन दुकान ल छान मारिस।

आखिर अंत म वोला मिलिच् गे। निश्चित रूप ले ये ह जिमेच् के खातिर बने रिहिस, कोनांे दूसर बर नहीं। अइसन जिनिस अउ कोनों दुकान म तो नइ रिहिस, वो ह बाहिर-भीतर, कतरो दुकान ल तो देख डरे हे। ये ह प्लेटिनम के बने जेबी चैन रिहिस, अकेला पदार्थ ह येकर कीमत के उचित घोषणा करत रिहिस, कलाकारी म बिलकुल सादा, अउ सती-जती मन के धारण करे के लाइक असली, वेश्या मन के नकली गहनागूठा जइसे नहीं। ये ह बिलकुल घड़ी के लाइक रिहिस। देखते सात वो ह जान गे कि ये ह जिमेच् के हरे। कीमत ल लेके दोनों संतुष्ट हो गें। वो डेला ले इक्कीस डालर लिस, डेला ह सत्यासी सेंट बचा के जल्दी-जल्दी घर वापिस आ गे। अपन घड़ी म ये चैन ल लगा के जिम ह अब पूरा इत्मिनान के साथ अपन संगी-साथी के बीच जा सकही। जतका सुंदर घड़ी, वोतका सुंदर ये; कभू-कभू वो ह चतुराई के संग चैन के जघा चमड़ा के पुराना पट्टा ल लगा के येला पहिर के देखय।

डेला जब घर पहुँचिस, वोकर (प्यार के) नशा ह थोरिक उतरिस, तब वोकर मन म बुद्धिमत्ता अउ तर्कशीलता आइस। वो ह लोहा के छल्ला मन ल उतारिस, गैस जलाइस अउ अपन उदारता अउ प्रेम के कारण वोला जउन महान क्षति होय रिहिस, तेकर भरपाई करे म व्यस्त हो गे; जउन ह सदा बहुत कठिन (भयंकर अउ असाधारण) काम रिहिस; संगी हो! बहुत, बहुत कठिन (बहुत विशाल) काम।

चालीस मिनट के भीतर वोकर सिर ह छोटे-छोटे घुंघरालू बाल से ढंक गे अउ वो ह भगोड़ा विद्यार्थी मन सरीख बड़ा विचित्र रूप-रंग म दिखे लगिस। सावधानीपूर्वक अउ आलोचनात्मक भाव ले वो ह दर्पण के आगू म खड़ा हो के अपन प्रतिबिंब ल अबड़ देर ले देखिस।

’’पहिली नजर म, देखते सात यदि जिम ह मोला नइ मार डारही’’, वो ह अपन अप से किहिस - ’’तब वो ह जरूर इही कही कि मंय ह कोनी द्वीप के टूरी मन कस दिखत हंव। फेर एक डालर अउ सत्यासी सेंट म आखिर मंय ह अउ का कर सकतेंव।’’

सात बजे काॅफी बन गे अउ चोप्स तले खातिर स्टोव म कड़ाही तको चढ़ गे।

घर आय म जिम ह कभू देर नइ करय। डेला ह प्लेटिनम के जेबी चैन ल दुहरा के अपन हाथ म रख लिस, अउ मुहाटी कना, जिंहा ले हमेशा जिम ह प्रवेश करथे, टेबल के किनारा म बइठ गे; तभे वो ह पहिली मंजिल तक आने वाला सिढ़िया म वोकर कदम के आवाज सुनिस, थोरिक देर बर वोकर रंग ह फक पड़ गे, हर दिन सुखी हो, अइसन मौन प्रार्थना करे के वोकर रोज केे आदत रिहिस, फेर अभी वो ह मनेमन बुदबुदावत रिहिस - ’’हे ईश्वर! वोकर नजर म मंय ह अभी घला खूबसूरत दिखंव।’’

दरवाजा ह खुलिस, अउ जिम ह कदम रखिस अउ वोला बंद कर दिस। वो ह एकदम पतला-दुबला अउ उदास लगत रहय। बेचारा! अभी मात्र वो ह बाइस साल के हे अउ परिवार के बोझ वोकर कंधा म आ गे हे। वोला ओवरकोट के सख्त जरूरत हे अउ वोकर पास दस्ताना घला नइ हे।

जिम ह जइसने दरवाजा के अंदर कदम रखिस, वो ह एकदम जड़ हो गे, शिकार करे बर जइसे सेटर नाम के शिकारी कुकुर ह बटेर के ऊपर एकदम निशाना लगा के बइठ जाथे, वो ह टकटकी लगा के डेला ल देखे लगिस (वोकर निगाह मन डेला के ऊपर स्थिर हो गे), वोकर चेहरा म कुछ अइसन भाव रिहिस जउन ल डेला ह नइ पढ़ सकिस, जउन ल देख के वो ह कांप गे। वोकर चेहरा म न तो क्रोध के भाव रिहिस, न आश्चर्य के, न अस्वीकार के, न भय के, अउ न वो कोनों भाव जेकर बारे म डेला ह कभू सोचे रिहिस होही। अइसने सहजता के साथ बड़ा विचित्र भाव ले वो ह डेला कोती टकटकी लगा के देखत रहय।
डेला ह तड़प के टेबल से उठिस अउ वोकर पास गिस।

’’जिम! प्रिये’’ वो ह चीखिस - ’’मोला तंय अइसन झन देख, मंय ह अपन केश ल कँटवा के बेंच देय हंव, काबर कि क्रिसमस म तोला बिना उपहार देय मंय रहि नइ सकतेंव। ये ह फेर बढ़ जाही, तंय फिकर झन कर; तोला खराब लागत हे? मोला अइसन करेच् बर पड़ गे। मोर बाल मन आश्चर्यजनक ढंग ले तेजी से बढ़थें। ’क्रिसमस के बधाई हो!’ जिम, अब तो खुश हो जा। तंय नइ जानस कि मंय ह तोर खातिर कतका प्यारा, कतका सुंदर उपहार लाय हंव।’’

’’तंय ह अपन बाल ल कटवा देस?’’ बड़ मुश्किल से, जइसे ये खुला सत्य के ऊपर वोला अभी तक विश्वास नइ होवत होय; जइसे वो ह जबरदस्त मानसिक पीड़ा से उबरे होय, जोर लगा के जिम ह बोलिस।

’’कटवा देंव अउ बेंच देंव,’’ डेला ह किहिस - ’’जिम! का होइस, का अब तंय मोला पहिली जइसे नइ चाहस? बिना बाल के भी आखिर मंय विहिच तो आवंव, नहीं?’’

उत्सुकतापूर्वक जिम ह कमरा म येती-वोती देखिस। ’’तंय ह कहिथस, तोर बाल ह चल दिस?’’ आह भरिस अउ मूर्ति कस जड़ हो के वो ह किहिस।

’’वोला येती-वोती खोजे के जरूरत नइ हे,’’ डेला ह किहिस - ’’वो ह बेचा गे, मंय ह केहेंव न, बेंचा गे, चल दिस। आज क्रिसमस के तिहार हे, प्रिय! मोर संग अच्छा से रह, ये सब मंय तोरे खातिर तो करे हंव। हो सकथे मोर बाल के अंतिम समय आ गे रिहस होही।’’ बहुत प्यार से, गंभीरता से वो ह बोलत गिस - ’’फेर मंय तोला कतका प्रेम करथंव, कोई नइ जान सके, तोर प्रति मोर प्यार ह अनंत हे। जिम! का मंय चोप्स (खाना) परोस दंव?’’

जिम, जइसे अपन बेहोशी ले झकनका के जागिस। वो ह अपन प्यारी डेला ल कंस के पोटार लिस।

आवव! दस सेकंड बर हम कोई दूसर दुनिया म चलन अउ कुछ असंगत कथ्य मन के जांच करन। आठ डालर प्रति सप्ताह या एक करोड़ प्रति वर्ष - का फर्क पड़थे? एक गणितज्ञ या कोई बुद्धिमान आदमी ह आप ल गलत उत्तर दे सकथे, मेजाई मन अनमोल उपहार लाय रिहिन, काबर कि न तो वो मन गणितज्ञ रिहिन, न वो मन विद्वान रिहिन। ये बात आगू बिलकुल साफ हो जाही।

जिम ह अपन ओवरकोट के जेब ले एक ठन पाकिट निकालिस अउ वोला टेबल के ऊपर फेंक दिस।

’’डेल! मोर बारे म तंय गलत मत सोच।’’ जिम ह किहिस - ’’मंय नइ सोचंव बाई कि हेयर कट, या शेव, या शैम्पू के कारण तोर प्रति मोर प्रेम घट जाही। जब तंय ये पैकेट ल खोलबे, तंय छिन भर म सब बात ल समझ जाबे।’’

सफेद चंचल अंगरी मन धागा ल टोरिन अउ कागज ला फाड़िन। अउ तब आनंद के भावातिरेक म जोरदार ठहाका निकल गे; अउ तब हाय! छिन भर म आँसू अउ विलाप ले के वोकर अंदर नारी-सुलभ वो परिवर्तन आ गे; घर के मालिक ल सांत्वना अउ ताकत प्रदान करे बर जेकर सख्त अउ तुरंत जरूरत रिहिस।

काबर कि वोकर भीतर ठसाठस भरे पड़े रिहिस हे बहुत सारा कंघी; कंघी के पूरा सेट; डेला के कतरो दिन के साध ल पूरा करे खातिर। बहुत सुंदर कंघी, कछुआ के शुद्ध खोल केे बने, रत्नजटित किनारीदार; अदृश्य बाल म छाया के समान धारण करे के लाइक। ये मन बड़ा मंहगा कंघी हे, वो ह जानत रिहिस, अउ वोकर हिरदे के इही साध रिहिस, जेकर बर वो ह कब के तरसत रिहिस पर जउन ल पाय के वोकर जरा भी उम्मीद नइ रिहिस। अउ आज विही वोकर आघू म माड़े हे; फेर वोकर सुंदर बाल जउन ल संवारे अउ सजाय के इच्छा रिहिस, वो अब जा चुके हे।

पर अब वोला वो ह बड़ा प्यार से अपन छाती म लगा लिस, अउ थोरिक देर बाद डबडबाय (आँसू भरे) आँखी ले जिम कोती देख के अउ मुस्कुरा केे किहिस - ’’मोर बाल मन बहुत तेजी से बढ़थे, जिम।’’ अउ तब डेला ह मारे खुशी के छोटे चंचल बिलई कस उछल के चीखिस, ’’ओ, ओ।’’

जिम ह अभी तक वोकर सुंदर उपहार ल नइ देखे रिहिस। वो ह (डेला ह) बहुत अधीरता के साथ अपन हथेली ल खोल दिस जेमा प्लेटिनम के चैन ल रखे रिहिस। कीमती धातु के चमक ह डेला के खुशी के चमक के प्रतिबिंब म अउ जादा चमके लगिस। ’’का ये ह अपन आप म बेजोड़ नइ हे, जिम।’’ वो ह किहिस - ’’येकर तलाश म मंय ह पूरा शहर ल छान मारेंव। अब तंय दिन म सौ घांव समय देखे करबे। मोला अपन घड़ी ल दे। येमा वो ह कइसे दिखथे, मंय देखना चाहत हंव।’’
वोकर बात ल माने के बजाय जिम ह सोफा म ढलंग गे अउ दुनों हाथ ल अपन मुड़ी पीछू लगा के मुस्कुरा दिस। ’’डेला,’’ वो ह किहिस - ’’अभी कुछ दिन खातिर हम अपन क्रिसमस के उपहार मन ल रख देथन। वो मन ह अतका सुंदर हे कि तुरंत वोकर उपयोग करना अभी संभव नइ हे। तोर कंघी खरीदे बर मंय ह वो घड़ी ल बेच देय हंव। ला अब फटाफट पोप्स (खाना) लगा।’’

आप मन ल पता हे, मेजाई मन बहुत बुद्धिमान रिहिन हें, अपार बुद्धिमान; जउन मन शिशु (प्रभु यिशु) खातिर, जउन ह चारा के नांद म सोय रिहिस, उपहार ले के आय रिहिन।2 इही मन क्रिसमस उपहार देय के परंपरा के खोज करिन। बहुत बुद्धिमान रिहिन मेजाई मन, निसंदेह उंकर उपहार मन ह बहुत बुद्धिमता पूर्ण रिहिस हे। अउ इहाँ, आप मन कहि सकथव कि मंय ह एक फ्लैट म रहने वाले दू झन मूर्ख बच्चा मन के कहानी सुनाय हंव, जउन मन बड़ा मूर्खतापूर्वक अपन घर के सबले कीमती खजाना ल अपन नादानी म लुटा दिन। तब भी संगवारी हो, बुद्धिमान संगवारी हो! मंय ह आज कहि सकथंव कि इंकर उपहार मन सर्वाधिक बुद्धिमतापूर्ण रिहिन हे, अउ वो दुनो झन मन बहुत बुद्धिमान रिहिन हें। दुनिया म सबले जादा बुद्धिमान; काबर कि वो मन मेजाई दंपति रिहिन।

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संदर्भ:-
1- डालर, सेंट अउ पेनी ह अमेरिका के मुद्रा आवय, जइसे हमर भारत म रूपिया, आना अउ पइसा होथे।

2 - तीन आदमी जउन मन ज्योतिष विद्या के जानकार रिहिन, नक्षत्र-गति ले जान गें कि दुनिया के उद्धारकर्ता के जनम होने वाला हे। एक ठन नक्षत्र के गति के अनुसार वो मन चले के शुरू करिन अउ सात सौ किलोमीटर के रास्ता तय करे के बाद वो नक्षत्र ह एक जघा, जिहाँ प्रभु यिशु के जन्म होय रिहिस, ठहर गे। इही मन ल मेजाई कहे जाथे। मेजाई मन प्रभु बर उपहार ले के आय रिहिन। उंकर उपहार मन बहुत सुंदर अउ उपयोगी तो रिहिबेच्् रिहिन, फेर येमा भविष्य म घटने वाला घटना मन के संकेत अउ गूढ अर्थ घला छिपे रिहिस हे। पहला आदमी ह उपहार म सोना ष्ळवसकष् लाय रिहिस, सोना राजा-महाराजा मन ल भेट करे जाथे; येमा गुढ़ार्थ रिहिस कि जन्म लेने वाला शिशु ह भविष्य म राजा मन के राजा बनही। संगे-संग सोना के व्यवहारिक महत्व घला हे। दूसरा आदमी ह उपहार म लोबान  ष्थ्तंदापदबमदेमष् ले के आय रिहिस। लोबान ह पवित्र अउ सुगंधित पदार्थ आय जेकर उपयोग पूजा म करे जाथे; अउ जउन ह खुद जल के खुशबू फैलाथे। येकर गुढ़ार्थ हे कि प्रभु यिशु ह सबसे बड़े पुरोहित के रूप म दुनिया के भलाई खातिर अपन आप के बलिदान करही। तीसरा आदमी ह उपहार म गंधरस ष्डलततीष् ले के आय रिहिस जउन ह इत्र हरे अउ जेकर उपयोग वो समय बदन के दर्द कम करे बर लेपन के रूप म घला करे जाय। ये ह दर्द अउ मृत्यु के प्रतीक आय। येकर गूढ़ार्थ ये हे कि प्रभु यिशु ह अपन जीवन म दर्द अउ मृत्यु सहि के दुनिया के उद्धार करही। संगी हो! ये तरह ले मेजाई मन के उपहार ह प्रतीकात्मक अउ व्यवहारिक महत्व के रिहिन हे, जेकर व्यवहारिक उपयोग तो रिहिबेच् रिहिस, येमा भविष्य के संकेत घला छिपे रिहिस हे कि प्रभु ह राजा, पुरोहित अउ उद्धारक के रूप म जनम लेय हे।  (अनुवादक)
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4: आखिरी पत्ती   

मूल रचना -
THE  LAST LEAF
लेखक -
ओ हेनरी

वाशिंगटन स्क्वायर1 के पश्चिम म एक ठन नानचुक बस्ती हे जेकर गली मन बेढंग तरीका ले, येती ले ओती घूम-घूम के, एक दूसर ल छोटे-छोटे पट्टी म काटत निकले हे, जउन (पट्टी) मन ह ’प्लेसिज’ (पारा या टोला) कहलाथे। ये जम्मों ’प्लेसिज’ मन ह अजीब कोण वाले अउ चक्करदार हें। एके ठन गली ह खुद ल दू-तीन घांव ले काटे-काटे हे। एक घांव एक झन कलाकार ह अनमोल कल्पना करके अपन ये गली मन के खोज करे रिहिस हे। कल्पना करव कि एक झन कोनो तकादा वाले व्यापारी ह पेंट, कागज अउ केनवास के बिल धर के ये रस्ता म निकले अउ घूम-फिर के अचानक खुद ल फेर विही जघा म पाय, बिना एको पइसा वसूले।

इही पाय के, अठारवीं सदी म उत्तर दिशा ले कलाकार मन घुमे-फिरे बर, शिकार करे बर; पुरातन तिकोना मकान अउ छत म बने खोली, अउ अटारी, अउ कम किराया के सेती ये पुरातन अउ अनोखा ग्रीनविच बस्ती म लउहा-छँउहा आइन। आइन अउ सबर दिन बर बस गिन। अपन संग वो मन सिक्स्थ एवेन्यू2 ले मिश्रधातु के मग अउ रांधे के बरतन बिसा के ले आइन अउ ये ’बस्ती’ ह बस गे।

ईंटा के बने एक ठन नान्हे अउ भद्दा सही तीन मंजिला मकान के ऊपरी मंजिल म स्युई अउ जाॅन्सी के स्टूडियो रहय। जाॅन्सी ह जोना के नाम ले प्रसिद्ध रिहिस। एक झन ह ’मेइन’ ले आय रिहिस अउ दूसर ह ’केलिफोर्निया’ ले। ये दुनों आठवाँ नं. के गली म सस्तहा सरीख (’डेलमोनिको’ के) एक ठन होटल म मिले रिहिन, दुनों के रूचि कलाकरी म रिहिस, दुनों झन चिकोरी सलाद के शौकीन अउ धरम-करम के मानने वाला रिहिन; एकदम एक जइसे आदत-व्यवहार वाले; अउ दुनों झन सखी बन गें, जेकर परिणाम ये स्टुडियो हरे।
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ये ह मई महीना के बात आवय। नवम्बर महीना म, कड़कड़ँउआ जाड़ा म एक झन ठंडा, अनजान अउ खतरनाक अजनबी जउन ल डाॅक्टर मन निमोनिया कहिथें; अपन बरफ जइसे अंगरी म येला-वोला छुवत ये बस्ती म कलेचुप (जिकी फुटे कस) आइस। पूरब के पूरा इलाका म, ये विनाश ह बड़ खतरनाक ढंग ले प्रहार करिस, पूरा ताकत लगा के वार करिस अउ देखते-देखत कतरो येकर शिकार बन गें; फेर ये ’प्लेसिज’ के संकरी अउ भूलभुलइया वाले, काई लगे, गली म ये सब ह एकदम दबे पांव होइस।

श्रीमान निमोनिया, जइसे कि आप मन सोचत होहू, कोई वीर, भला अउ सभ्य बुजरूग नइ रिहिस। केलिफोर्निया डहर ले आने वाला पछुआ हवा संग अवइया, खूनी मुक्का वाले, दम घोटने वाले ये बदमाश डोकरा द्वारा; नाजुक शरीर वाले एक महिला के ऊपर, ठंड म जेकर खून ह पतला पड़ गे होय, जबरदस्त प्रहार करना कोनों किसम ले उचित खेल नइ केहे जा सके। जाॅन्सी ऊपर वो ह जबरदस्त प्रहार करिस, अउ वो ह खटिया धर लिस, वोकर चलना-फिरना मुश्किल हो गे; वो ह अपन लोहा केे पलंग म पड़े-पड़े खिड़की के कांच डहर ले बाहिर खाली जगह म बने एक ठन दूसर ईंटा के मकान ल टुकुर-टुकुर देखत बस रहय।

एक दिन बिहिनिया, झबरीला, भुरूवा बरौनी वाले व्यस्त डाॅक्टर ह स्युई ल हाॅल के परछी म बलाइस।

’’वोकर पास एक मौका हे - हम कहि सकथन दस पइसा,’’ वो ह पारा ल खाल्हे उतारे बर थर्मामीटर ल झटकारत किहिस, ’’अउ यहू मौका तब, जब वोकर अंदर जीये के इच्छा होही। आदमी ह जीये के उम्मीद ल अइसन यदि छोड़ देही तब तो दुनिया के सब दवाई ह बेकर हे। तोर नाजुक सहेली ह तो अपन दिमाग म ये बात ल बिठा लेय हे कि वो ह अब कभू ठीक नइ हो सके। वोकर दिमाग म कोनों बात (बोझ) हे क?’’

’’वो ह - वो ह कोनों दिन नेपल्स के खाड़ी के चित्र बनाना चाहत रिहिस।’’ स्युई ह किहिस।

’’चित्र - बकवास! वो ह अपन दिमाग म का कोनों दूसर अच्छा बोझा सरीख विचार, जइसे कि कोनों जवान छोकरा (अच्छा आदमी) के बारे म तो नइ रखे हे?’’

’’कोनों जवान छोकरा ?’’ यहूदी मन के बाजा (तुरही) के तेज अवाज कस जोर से स्युई ह किहिस ’’कोनों जवान छोकरा के बारे म? नइ डाॅक्टर, वोकर दिमाग म अइसन कोनों बात नइ हे।’’

 ’’अच्छा, तब ये कमजोरी हे।’’ डाॅक्टर हा किहिस - ’’मंय ह वो सब करहूँ जतका विज्ञान म हे, अब तक मोला जतका ज्ञान हे, सब प्रयास करहूँ, सब कर सकथंव। फेर जब मोर मरीज ह अपने मंयत के गाड़ी मन ल खुदे गिने बर लग जाथे तब दवाई के ताकत ल मंय ह सिरिफ पचास पइसा मान लेथंव। यदि तंय कोनों तरीका ले वोकर अंदर जीये के इच्छा जगा देबे, अगले ठंड के मोैसम म आने वाला नवा फैसन के बारे म वोकर मन म सोच, इच्छा जगा देबे, तब मंय ह दावा के साथ कहि सकथंव कि वोकर बने होय के आस ह दस पइसा ले बीस पइसा हो सकथे।

डाॅक्टर के जाय के बाद स्युई ह अपन कार्यशाला म गिस अउ अतका रोइस कि आँसू पोंछई म जापानी तौलिया ह निचोय के लाइक हो गे। तब वो ह अपन ड्राईंग बोर्ड ल धर के सीटी बजात, मजाक करत अउ इतरावत जाॅन्सी के खोली म गिस। जाॅन्सी ह खिड़की कोती मुँहू करके, चुपचाप अपन लोहा के पलंग म पड़े रिहिस। स्युई ह सीटी बजाना बंद कर दिस, ये सोच के कि जाॅन्सी ह सुते हे।

वो ह अपन बोर्ड ल ठीक-ठाक करके, पेन अउ स्याही से एक ठन पत्रिका के कहानी बर चित्र बनाय के शुरू कर दिस। युवा कलाकार मन अपन कला के आधार पत्रिका के कहानी बर चित्र बना के तियार करथें जइसे कि युवा लेखक मन कोनो पख्किा बर साहित्य लिख के करथें।

स्युई ह जब इडाहो गड़रिया समान हीरो के घुड़सवारी वाले एक जोड़ी शानदार पाजामा अउ एक कांच वाले चश्मा के चित्र बनावत रिहिस, वो ह मरझुरहा आवाज सुनिस, कई घांव ले, घेरी-बेरी दुहरावत। वो ह दंउड़ के वोकर बगल म गिस।
जाॅन्सी के आँखीं मन एकदम खुला रिहिस। वो ह  खिड़की के बाहिर टकटकी लगाय देखत रिहिस अउ उल्टा गिनती गिनत रिहिस।

’’बारह,’’ वो किहिस, अउ थोरिक देर बाद, ’’ग्यारह,’’  फेर ’’दस’’ अउ ’’नौ’’ अउ ’’आठ’’ अउ ’’सात’’।
स्युई ह उत्सुकता म खिड़की के बाहिर देखिस। गिनती करे बर उहाँ का चीज होही? बाहिर खुल्ला अउ सुनसान आंगन देखे जा सकत रिहिस, अउ बीस फीट दुरिहा ईंट के बने मकान के खाली हिस्सा दिखिस। एक ठन जुन्ना, जुन्ना अंगूर के नार, ठंड म मुरझुराय, जेकर जड़ ह सरत रहय, ईंटा के दिवाल म आधा दुरिहा ले चघे रहय। पतझड़ के ठंडी हवा मन जेकर पत्ता मन ल नष्ट कर देय रिहिस अउ अब खाली डारा मन के ढांचा भर ह बचे रिहिस, एकदम नंगी, जउन ह टुटहा-फुटहा ईंटा के दिवाल म चिपके रिहिस।

’’मयारूक, ये का ए?’’ स्युई ह पूछिस

’’छै’’ मुश्किल से फुसफुसा के जान्सी ह किहिस। ’’ये मन बड़ा जल्दी-जल्दी झरत हें। तीन दिन पहिली पूरा सौ रिहिस। वोला गिनत-गिनत मोर मुड़-पीरा हो गे रिहिस। फेर अब सरल हे। वो देख, एक ठन अउ चल दिस, अब खाली पाँच बचिस।’’

’’मयारूक, पाँच का? अपन स्युडी ल तो बता।’’

’’पत्ता, वो सरहा अंगूर नार के। जब वोकर आखिरी पत्ता ह घला गिर जाही, महूँ ह रेंग देहूँ। तीन दिन ले मंय ह ये जानत हंव। डाॅक्टर ह तोला नइ बताइस?’’

’’ओहो! अतका बेवकूफी के बात मंय ह कभू नइ सुने रेहेंव। स्युई ह शिकायत करिस - ’’तोर बने होय ले वो सरहा अंगूर के पत्ता मन के का लेना-देना? नटखट लड़की, अउ तंय वो अंगूर के नार ल बहुत चाहत रेहेस। काबर, आज बिहिनया डाॅक्टर ह किहिस हे कि तोर जल्दी ठीक होय के चांस हे; एकदम सही-सही वो केहे हे, वो ह केहे कि तोर ठीक होय के चांस वोतका हे कि जतका न्युयार्क शहर के गली म कार चलावत या कि कोनों नवा बनत मकान के तीर ले रेंगत नहके म हे। चल, गोस्त के सुरवा पी अउ अपन स्युडी ल चित्र पूरा करे म मदद कर ताकि वो ह वोला संपादक तीर बेच के अपन बीमार बच्ची बर पोर्ट शराब अउ अपन बर पोर्क चोप्स (भोजन सामग्री) खरीद सके।

’’तोला अब अउ शराब खरीदे के जरूरत नइ हे।’’ खिड़की के बाहिर टकटकी लगाय जाॅन्सी ह किहिस।

’’एक ठन ह अउ चल दिस। नहीं, मोला सुरवा नइ चाही। अब खाली चार बचे हे। मंुधियार होय के पहिली मंय ह आखरी पत्ता ल झरत देखना चाहत हंव। तब महूँ ह चल दुहूँ।’’

’’मोर मयारूक, जाॅन्सी,’’ जाॅन्सी ऊपर निहर के स्यूई ह किहिस - ’’जब तक मोर काम ह पूर नइ हो जाय तब तक का तंय मोला अपन आँखीं मन ल बंद रखे के अउ खिड़की के बाहिर नइ देखे के वादा कर सकथस? कल तक येला देना हे। मोला अंजोर के जरूरत हे, मोला अंधियार होय के पहिली पूरा कर लेना चाहिये।’’

’’मंय ह इहिच कर रहूँ तोर तीर,’’ स्युई ह किहिस - ’’तोर बाजू म, मंय बिलकुल नइ चाहंव कि तंय ह वो अंगूर के सरहा पत्ता मन ल टकटकी लगा के देखस।’’

’’मोला बता देबे, जइसने तोर काम पूरा होही,’’ जाॅन्सी ह किहिस, अपन आँखी मन ल मूंदत अउ सफेद मुर्ती कस ढंलगत - ’’काबर कि मंय ह आखिरी पत्ता ल गिरत देखना चाहत हंव। वोकर अगोरा करत मंय ह थक गे हंव। वोकर बारे म सोच-सोच के मंय ह थक गे हंव। मंय घला वो बिचारी आखिरी थके पत्ता कस दुनिया के सब चीज ल त्याग देना चाहत हंव, दुनिया ले जाय बर।’’

’’सुते के कोशिश कर।’’ स्युई ह किहिस - ’’बुजुर्ग बेसहारा खान मजदूर के अपन चित्र बनाय बर मंय ह बेहरमैन डोकरा ल माडल बनाय बर ऊपर बुला के लावत हंव। एक मिनट म, मंय ह कहूँ नइ जावंव। मोर आवत ले हालबे-डोलबे झन।’’
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बेहरमैन डोकरा ह पेंटर रिहिस जउन ह तल वाले मंजिल म इंकरे खाल्हे रहय। वो ह साठ पार कर चुके रिहिस अउ माइकल एंजिलो3 के, पैगंबर मूसा4 वाले घुंघरालू दाढ़ी कस दाढ़ी रखय, जउन ह युनानी देवता सेटर5 के मुड़ी ले निकले हे तइसे दिखे, शरीर ले बिलकुल शैतान लगे। बेहरमैन ह कलाकारी म फेल रिहिस। चालीस बछर ले वो ह ये काम ल करत हे फेर कुछू नइ कर पाइस। वो ह सदा अपन सर्वश्रेष्ठ कलाकृति (मास्टरपीस) के बारे म कहत फिरत रहय फेर ये काम के शुरुआत घला वो ह नइ कर सके रिहिस। बहुत साल हो गे, वो ह कभू-कभार विज्ञापन वाले मन बर अलवा-जलवा कुछ बनाय के सिवा अउ कुछू नइ कर पाय हे। बस्ती म रहने वाला दूसर कलाकार मन बर, जउन मन पेशेवर माडल के कीमत नइ दे सकंय, वो ह माडल के काम जादा करय, फेर येकर ले वोला जादा कुछ आमदनी नइ होवय। वो ह मरत ले जिन (दारू) पियेे अउ पी के अपन आने वाला सर्वश्रेष्ठ कलाकृति के बारे म गोठियात रहय। कुल मिला के वो ह भयानक डोकरा रिहिस जउन ह आसानी ले कोनो के घला मजाक उड़त रहतिस, अउ खुद ल ऊपर स्टूडियो म रहने वाला नया कलाकार मन के संरक्षक कुकुर मानय।

स्युई ल बेहरमैन ह खाल्हे अपन नानुक दड़बा सही खोली म, मरझुरहा अंजोर म जुनिपर6 के फर ल सुंघत मिल गे। एक कोन्टा म इजल म लगे कोरा केनवास रहय जउन ल पचीस बछर पहिली वोकर सर्वश्रेष्ठ कृति बर लगाय गे रिहिस अउ अब तक वोमा एक ठन लकीर घला नइ परे रहय। वो ह वोला जाॅन्सी के कल्पना के (बीमारी अउ वोकर विचित्र कल्पना के) बारे म बताइस, अउ कि कइसे वास्तव म वो ह डर गे हे; कमजोर अउ नाजुक पत्ती के समान वो घला खुद अब ये नाशवान दुनिया ले जानेच् वाला हे।

बेहरमैन डोकरा ह जोरदार चिल्ला के अउ अपन लाल-लाल आँखीं मन ल छटका के जाॅन्सी के मूर्खतापूर्ण कल्पना के निंदा करिस अउ वोकर मजाक उड़ाइस।

’’मूर्खता,’’ वो ह चिल्लाइस - ’’ये दुनिया म का अतका मूरख आदमी हे कि मरना ल पाना के झरे ले जोड़ के देखथें अउ बकझक करत रहिथें? नहीं मंय ह तोर अइसन मूरख सहेली बर माडल के पोज नइ दंव। तंय ह वोला अइसन अनाप-शनाप सोचे के मौकच् काबर देथस। आह! नहीं, बेचारी नाजुक कुमारी जाॅन्सी।’’

’’वो ह बहुत बीमार अउ कमजोर हे,’’ स्युई ह किहिस - ’’बुखार ह वोकर दिमाग ल घला बीमार कर देय हे अउ अनाप-शनाप कल्पना ले भर देय हे। बहुत बढ़िया मिस्टर बेहरमैन, तंय ह मोर बर पोज नइ देवस, कोई बात नहीं। फेर मंय ह सोचथंव, तंय ह बेहद डरावना डोकरा हस, शैतान के पिला।’’

’’आखिर तंय ह औरतेच् अस, कोन किहिस कि मंय ह पोज नइ देवंव? तंय ह चल, मंय अभीचे आवत हंव। आधा-एक घंटा बर मंय ह चुप रहे के कोशिश करहूँ। मंय ह पोज देय बर तियार हंव। मंय ह केहे रेहेंव कि मिस जाॅन्सी ह बीमार पड़े हे, पोज देय बर ये जगह ह ठीक नइ है। जान्सी के मरे बर घला ये जगह ह ठीक नइ है। देखबे, एक न एक दिन महू ह अपन सर्वोत्तम कलाकृति बनाहू अउ हम सब इहां ले दुरिहा चल देबोन, हाँ।’’

जब वो मन ऊपर गिन, जाॅन्सी ह सुते रिहिस। स्युई ह खिड़की के ऊपर परदा डाल दिस अउ चुपचाप बेहरमन ल दूसर खोली म ले गे। उहाँ वोमन खिड़की के बाहिर डरडरान अकन अंगूर के वो सरहा नार ल देखिन। तब वो मन छिन भर बर बिना कुछू केहे एक-दूसर ल देखिन। कड़कड़ँउआ ठंड म लगातार पाला के संग पानी के गिरना जारी रहय। बेहरमैन ह नीला रंग के अपन जुन्ना कमीज ल उतारिस, बिलकुल बेसहारा खान मजदूर कस भेष बनाइस अउ उल्टा केतली जइसन एक ठन पथरा म जा के बइठ गे।

दूसर दिन बिहिनिया जब स्युई ह एक घंटा देरी ले सुत के उठिस, वो ह देखिस कि जाॅन्सी ह उदास अउ अचरज भाव ले टकटकी लगा के खिड़की के हरियर परदा ल देखत रहय।

वो ह फुसफुसा के आदेस दिस - ’’येला हटा, मंय देखना चाहत हंव।’’

सुस्त स्युई ह वोकर आदेश के पालन करिस।

पर, अरे! रात भर के जानलेवा पाला-बरसात अउ हवा के भयानक झोंका-बडोरा ल सहि के ये सरहा अंगूर के नार ह एक ठन पत्ता संग ईंटा के दिवाल म चिपकेच् हे। इही ह तो अंगूर के आखिरी पत्ता हरे। अभी घला एकदम हरियर, अपन डारा म लगे, फेर येकर आरी के दांता समान किनारा मन पिंवरा के गले अउ सरे कस हो गे हे, अउ जमीन ले बीस फुट ऊपर दिवाल म चिपकेच् हे।

’’इही हरे आखिरी पत्ता।’’ जाॅन्सी ह किहिस - ’’मंय ह तो सोचत रेहेंव आज रात ये ह निश्चित झर जाही। रात भर के भयानक बरसत अउ हवा के आवाज ल मंय सुने हंव। आज ये ह जरूर झर जाही अउ विही समय महूँ ह मर जाहूँ।’’

’’प्रिय, प्रिय!’’ अपन थकेमांदे चेहरा ल तकिया कोती निहरात स्युई ह किहिस - ’’ अगर तंय ह अपन बारे म नइ सोचस ते मोर बारे म सोच। मंय का करंव?’’

पर जाॅन्सी ह कोनों जवाब नइ दिस। पूरा सृष्टि म अकेला चीज सिरिफ आत्मा हे, अउ जब ये ह अपन रहस्यमय यात्रा के तइयारी कर लेथे, दुरिहा जाय के, जब दोस्ती-यारी, माया-मोह अउ दुनियादारी के सब बंधन ह ढीला पड़ जाथे, तब दिमाग म तरह-तरह के कल्पना आवत जाथे, जाॅन्सी के संग वइसने होवत हे।

वो दिन ह अइसने उदासी म बीत गे। यहाँ तक कि सांझ के अंधियारी म घला वो आखिरी पत्ता ल सरहा अंगूर के नार म दिवाल संग चिपके हुए देखे जा सकत रिहिस। अउ रात म उत्तर दिशा ले आने वाला भयानक ठंडी हवा के चलना फेर शुरू हो गे। अउ जानलेवा बरसात के बौछार ह रात भर खिड़की अउ ओरछा ल ठोकत-बजावत रिहिस।

जब फेर बिहिनिया होइस, अच्छा उजास बगरिस, बिचारी जाॅन्सी ह आदेश दिस कि खिड़की के परादा ल उठा दिया जाय।
अंगूर के वो आखिरी पत्ता ह अभी घला अपन जघा म जइसने के तइसनेच् दिखिस।

वोला टकटकी लगा के देखत जाॅन्सी ह बड़ देर ले ढलंगेच् रिहिस। अउ तब वो ह स्युई ल पुकारिस जउन ह स्टोव ऊपर चढ़े मुर्गी के सुरवा ल खोवत रिहिस।

’’मंय ह एकदम खराब लड़की हंव, स्यूडी,’’ जाॅन्सी ह किहिस - ’’कोई बात तो हे, वो आखिरी पत्ती ह इही बताय बर अब तक नइ झरे हे कि मंय ह कतका पापिन हंव। मरे के इच्छा करना पाप आय। तंय ह अब मोर बर थोकुन सुरवा लान, अउ थोकुन दूध, अउ थोकुन शराब लान; अउ नहीं, पहिली तंय ह वो हाथ वाले छोटे दरपन ल लान; अउ तब मोर बर कुछ तकिया लगा दे, मंय ह वोमा बइठ के तोला खाना पकावत देखहूँ।’’

एक घंटा पीछू वो ह किहिस - ’’स्युडी! मोला उम्मीद हे कि कोई दिन मंय ह नेपल्स के खाड़ी के पेंटिग जरूर बनाहँू।’’
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मंझनिया कुन डाॅक्टर ह आइस। जइसे वो ह गिस, स्युई ल हाॅल के परछी म जाय के बहाना मिल गे।

’’बिलकुल आस हे,’’ स्युई के काँपत हाथ ल अपन हाथ म ले के डाॅक्टर ह किहिस - ’’अच्छा सेवा-जतन करके तंय ह जीत गेस। अब मोला दूसर मरीज ल देखे बर जाना चाही। खाल्हे म एक झन हे, वोकर नाम हे बेहरमैन, एक प्रकार के कलाकार आवय। मोला शंका हे कि वहू ल निमोनियच् होय हे। वो एक कमजोर अउ बुढ़ुवा आदमी हरे, अउ बड़ खतरनाक अटेक होय हे। वोकर बचे के कोई उम्मीद नइ हे, फेर अच्छा इलाज खातिर आज वोला मंय ह अस्पताल म भर्ती करवा देहंव।’’
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दूसर दिन डाॅक्टर ह स्युई ल किहिस - ’’अब ये ह खतरा ले बाहिर हे। तंय जीत गेस। अब येला अच्छा खुराक अउ देख-भाल के जरूरत हे। बाकी सब अच्छा हे।’’

विही दिन मंझनिया स्युई ह आराम से एकदम नीला रंग के ऊन क,े कंघा म रखे के साफा बुनत, अउ वोला अपन हाथ के चारों मुड़ा लपेटत जाॅन्सी के बिस्तर तीर आइस, जिहाँ वो ह ढलंगे रिहिस, तकिया लगा के बइठिस।

’’प्यारी चुहिया, मंय ह तोर से कुछ कहना चाहत हंव। वो ह किहिस - ’’अस्पताल म आज बेहरमैन ह निमोनिया से मर गे। वो ह केवल दू दिन बीमार रिहिस। पहिली दिन बिहिनिया चैकीदार ह वोला वोकर खोली म दरद के मारे छटपटात अउ असहाय अवस्था म पाय रिहिस। वोकर जूता अउ वोकर कपड़ा ह बरफ के पानी म एकदम भींग गे रिहिस हे। वो ह (चैकीदार ह) कल्पना घला नइ कर सकिस कि अतका भयानक रात म वो ह कहाँ गेय रिहिस होही। अउ तब वोला उहाँ एक ठन कंडिल मिलिस जउन ह तब तक बरतेच् रिहिस, अउ एक ठन निसैनी मिलिस जउन ह अपन जघा ले थोरिक सरक गे रिहिस, अउ येती-वोती बगरे कुछ ब्रश मिलिस, अउ हरियर अउ पींयर रंग मिंझरे, रंग के एक ठन प्लेट मिलिस।......अउ प्यारी, देख खिड़की के बाहिर, दीवाल म अंगूर के वो आखिरी पत्ती ल। जब हवा चलथे, न तो वो ह हालय, न फड़फड़ाय, तब तोला अचरज नइ होवय? ओह! प्रिय, इही ह तो बेहरमन के सर्वोत्कृष्ठ कलाकृति हरे, जउन ल वो ह विही रात म बनाइस, जउन रात वो आखिरी पत्ती ह गिरिस।’’
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संदर्भ:-
1 - वाशिंगट स्क्वेयर पार्क ह न्यूयार्क, मेनहटन म 9.75 एकड़ के एक पार्क आय।
Washington Square Park is one of the best-known of New York City's 1,900 public parks. At 9.75 acres (39,500 m2), it is a landmark in the Manhattan
2 - सिक्स्थ एवेन्यू ह न्यूयार्क शहर के मेनहटन के एक प्रमुख राजमार्ग हरे जउन ह ऊँचा-ऊँचा इमारत अउ व्यापार बर प्रसिद्ध हे।
Sixth Avenue – officially Avenue of the Americas, although this name is seldom used by New Yorkers – is a major thoroughfare in New York City's borough of Manhattan, on which traffic runs northbound, or "uptown". It is commercial for much of its length.
3. - माइकल एंजिलो: इटली के एक महान चित्रकार।
4. - मोजेज: यहुदी मन के पैगंबर।
5 - सेटर:  युनान के वन देवता जेकर आधा शरीर ह आदमी के अउ आधा ह बोकरा के माने जाथे।
6 - जुनिपर बेरी: रसभरी, गुच्छादार फर जउन ह झाड़ीनुमा पेड़ म फरथे, दवाई के काम आथे अउ सुगंघ बर जिन (दारू) म घला मिलाय जाथे। (अनुवादक)
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5: रेड चीफ के फिरौती

मूल कहानी
The Ransom Of  Red Chief
लेखक -
ओ हेनरी
‘O’ HENRY

बिचार बने हे, बने जिनिस सरीख। फेर जब तक मंय ह कुछू नइ कहंव, तंय मोर अगोरा कर। अगवा करे के ये बिचार ह जब हमर दिमाग म फूटिस, मंय अउ बिल ड्रिस्कल, अलाबामा के, खाल्हे दक्षिण भाग म रेहेन। बिल के अनुसार, जइसे कि पीछू वो ह प्रगट करिस - ’’छिन भर बर हमर मन म भूत सवार हो गे रिहिस हे।’’ फेर जउन ल बाद म हम कभू नइ पायेन।

उहाँ खाल्हे डहर एक ठन शहर रिहिस, समिट (शिखर, पहाड के चेटी़) नाम के, फेर बिलकुल मैदानी इलाका, जइसे फलालेन के रोटी ह होथे। इहाँ वइसने, सदा-सदा से रहत आवत आत्म संतोषी किसान मन के दल बसे रिहिन, जइसे कि मेपल म बसे हें।

बिल अउ मोर, तकरीबन छः सौ डालर के सम्मिलात संपत्ति रिहिस अउ शहर म ठग-फुसारी करके पइसा कमाय के एक ठन योजना खोले बर हमला दू हजार डाॅलर के जरूरत अउ रिहिस। हमन होटल म पहिलिच येकर गोठ कर चुके रेहेन। एकदम साफ-साफ हमर कहना रिहिस कि अइसन आधा गंवईहा लोगन के बीच, अउ दूसर कारण से, अखबार वाले, जउन मन चारों मुड़ा तुरत-फुरत समाचार बगरा देथें, मन के पहुँच से बाहर, अगवा करे के काम बहुत आसान अउ सुरक्षित रिहिस हे। हम जानत रेहेन कि समिट म सिपाही अउ उंकर मरियल कुकुर अउ एक दू झन किसान मन ले जादा हमर कोनो कुछू नइ कर सकय। येकरे सेती ये जघा ह हमला सही जंचिस।

हमन अपन शिकार बर एबेन्जर डोरसेट नाम के प्रसिद्ध नागरिक के एकलौता बेटा ल चुनेन। बाप ह सम्मानित अउ कड़कदार, भविष्य के सोचने वाला अउ कठोर, लखपति रिहिस। लइका ह दस बरिस के रिहिस, जेकर शरीर म उभार वाले चकता रिहिस, अउ वोकर  चूंदी ह, वो पत्रिका के कव्हर के रंग के रिहिस, जउन ल आप अखबार वाले के दुकान से खरीदथव जब आप ल रेलगाड़ी पकड़ना होथे। बिल अउ मंय अनुमान लगायेन कि एबेन्जर ह फिरौती के दू हजार डालर देय बर तुरते मान जाही। फेर तब तक अगोरबे जब तक मंय ह नइ कहव।

समिट ले तकरीबन दू मील दुरिहा एक ठन छोटकुन पहाड़ी रिहिस। देवदार के घना झाड़ी ले ढंके हुए। ये पहाड़ी के पीछू डहर के हिस्सा म एक ठन गुफा रिहिस। उहाँ हमन खाय-पिये के सब समान जोर-सकेल के रख देय रेहेन। एक दिन सांझकुन सूरज उतरे के पीछू हमन डोर्सेट डोकरा के घर के आगू अपन बघ्घी म गेन। लइका ह गली म मिल गे, दूसर कोती के रूँधना डहर बिलई के बच्चा ऊपर पथरा फेंकत।

’’ऐ, छोटकू!’’ बिल ह किहिस - ’’का तंय कैंडी के बैग अउ बघ्घी चढ़ना पसंद करबे?’’

लइका ह बिल के आँखी ल ईंटा के टुकड़ा म तुकिस।

बिल ह बघ्धी म चढ़त किहिस - ’’येकर कीमत देय बर पड़ही डोकरा ल अब पाँच सौ डालर उपरहा।’’

वो लइका ह भारी बिगड़ैल भालू कस फाइटिंग करे के शुरू कर दिस; फेर आखिकार हम वोला बघ्धी म जोरेन अउ उहाँ ले भागेन। वोला हम ऊपर गुफा म लेगेन। मंय ह घोड़ा ल देवदार के पेड़ म बांध देंव। मुधिंयार होय के पीछू मंय ह बघ्धी ल तीन मील दुरिहा छोटे से वो गाँव म पहुँचाय बर गेंव, जिहाँ ले हमन वोला किराया म लेय रेहेन, अउ फेर मंय ह रेंगत वो पहाड़ी म वापिस आयेंव।

बिल ह अपन घाव अउ रोखड़ावल मन म मरहमपट्टी करत रहय। गुफा के मुहाटिच् म एक ठन बड़े सही चट्टान के पीछू आगी जलत रहय अउ वो लइका ह अपन लाल-लाल चूँदी म चिरई के दू ठन पंख ल खोंचे खौलत काफी के बरतन के निगरानी करत रहय। जब मय ह ऊपर आयेंव, लउठी ल धर के मोर कोती इशारा करत कहिथे - ’’ऐ! डरपोक, पींयर चेहरा (सेठरहा बानी) वाले, ये इलाका के आतंक, रेड चीफ के कैंप म घुँेसे के तंय हिम्मत करेस?’’

’’वो ह अब पूरा ठीक हे।’’ अपन पाजामा ल ऊपर कोती लपेटत अउ  पिंडरी के रोखड़ावल मन के जांच करत बिल ह किहिस - ’’हमन इंडियन (Indian)1 नाटक खेलत रेहेन। हमन जादू के खेल करत रेहेन। मंय बिचारा डोकरा, शिकारी, रेड चीफ के कैदी, अउ बिहिनिया के होवत ले मोर मुड़ी के खाल ह नइ बांचे रहितिस। जेरोनिमो (Geronimo)(2) के कसम, ये लइका ह बड़ जोरदार किक मारथे।’’ 

हाँ, महोदय, जइसे वो लइका ल ये समय ह अपन जिंदगी के सबले बढ़िया समय लगत होय। वो गुफा के भीतर वोला जो मजा आवत रिहिस वो ह वोला ये बात ल भुला देय रिहिस कि वो ह एक कैदी आय। तुरंत वो ह मोर नाव धर दिस, बोटर्रा जासूस, अउ घोषणा कर दिस कि जब मैदान ले वोकर लड़ाका मन लहुट के आहीं, बेर उवते साट खूँटी म बांध के वो ह मोला आगी लगाही।

तब हम रात के खाना खाय बर बइठेन, वो ह मटन, रोटी अउ चटनी ल अपन मुँहू म भर लिस अउ गोठियाय के शुरू कर दिस। अउ रात के भोजन के बीच वो ह जउन भाषण दिस, वो ह अइसन रिहिस -

’’अइसने मजेदार चीज मोला पसंद हे। आज के पहिली मंय ह कभू बाहर नइ निकले रेहेंव; फेर मोर तीर सफेद रंग के एक ठन पालतू मुसुवा (pet ‘possum)(3) रिहिस, अउ पिछला जनम-दिन बर मंय ह नौ साल के रेहेंव। मोला स्कूल जाय से नफरत हे। मुसुवा ह जिमी आंटी के चितकबरी कुकरी के अट्ठारह ठन गार (अंडा) ल खा गे। का ये जंगल मन म वास्तविक इंडियन रहिथें? मोला अउ थोकुन चटनी चाहिए। का पेड़ के हाले-डोलेे ले हवा चलथे? हमार तीर कुकुर के पाँच ठन पिला रिहिन। तोर नाक ह अतेक लाल काबर हो गे हे, डोकरा, सूंत के गोला? मोर बाप तीर बिकट पइसा हे। का आसमान के वो चँदैनी मन ह गरम होथें? एडवाकर ल शनिचर के दिन दू घांव ले कोड़ा मारेंव। मोला टुरी मन ह बिलकुल पसंद नइ हें। बिना खपच्ची के तंय ह मेचका ल नइ धर सकस। बैला मन हल्लागुल्ला करथें? संतरा ह गोल-गोल काबर होथें? ये कंदरा म सुते बर तोर तीर बिस्तर हे? एमास मुरे के छः ठन गोड़ रिहिस। तोता ह बोल सकथे, पन बेंदरा या मछरी मन ह नइ बोल सकंय। बारह पूरे बर येला अउ कतका होना?’’

पाँच-पाँच मिनट म वो ह सुरता करतिस कि वो ह फुटबाल के खिलाड़ी आय, अउ अपन खेले के बंदूक ल तान लेतिस, अपन पंजा ल गुफा के मुँह कोती उचा लेतिस, ताकि पींयर चेहरा वाले टोपी पहिरे स्काउट मन ल किक मार सके। अब-तब वो ह लड़े खातिर ललकाररतेच रहय अउ भारी भयानक दिखय। वो लइका ह बिल ल तो शुरूच ले आतंकित कर चुके रिहिस।
’’रेड चीफ’’ मंय ह केहेंव - ’’का तंय अपन घर जाना पसंद करबे?’’

’’आँ...., काबर?’’ वो ह किहिस - ’’घर म मोला कोई मजा नइ आवय। मोला स्कूल से नफरत हे। मंय बाहर घूमना चाहथंव। तंय मोला फेर वापिस मोर घर नइ ले जा सकस, बोटर्रा आँखी। लेगबे?’’

’’अभी बिलकुल नहीं,’’ मंय ह केहेंव - ’’हमन अभी कुछ दिन इही गुफा म रूकबो।’’

’’बिलकुल ठीक,’’ वो ह किहिस - ’’एकदम बने होही, अपन जिंदगी म मोला अतका मजा कभू नइ आय रिहिस हे।’’

तकरीबन ग्यारह बजे हमन सोयेन। कुछ चैड़ा ब्लांकिट अउ रजाई बिछा के हमन रेड चीफ ला अपन बीच म सुतायेन। वोकर भाग जाय के हमला कोनो डर नइ रिहिस। वो ह कूदे, अपन राइफल ल धरे असन करे, जोर-जोर से चिल्लाय, अइसन करके वो ह हमला तीन घंटा ले जगाइस। ’’खबरदार! तेंदुआ,’’ मोर अउ बिल के कान म डंगाली टूटे के अउ पाना-पतउवा के सरसराय के अजीबो गरीब आवाज करे लगिस, अपन लड़कपन मति अनुसार अजब-गजब हरकत करे लगिस। अंत म मुश्किल से मोर नींद लगिस।
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’’बिलकुल पंगपंगाय के समय, बिल के जोर-जोर के सरलग चीख-पुकार ह मोला जगा दिस। वो मन, जइसे कि आप कल्पना करत होहू, गला से न तो चीखत रिहिन, न तो चिल्लात रिहिन, न तो, हुपहुपात रिहिन; वो मन तो जब कोनो महिला ह भूत नइ तो कनखजूरा ल देख के अशोभनीय, डरडरान, अउ अपमानजनक अवाज निकालथे तइसने आवाज निकालत रिहिन। बिहिनिया होय के समय गुफा के भीतर ले एक तगड़ा आदमी के मुँह ले अइसन आवाज निकलना बड़ा विचित्र लगिस।
का हो गे कहिके मंय ह झकनका के जाग गेंव। रेड चीफ ह बिल के चूँदी ल एक हाथ म पकड़ के वोकर छाती म बइठे रहय। दूसर हाथ म वो ह मटन कांटे के चाकू ल धरे रहय, अउ जइसे कि संझा कुन वो ह दावा करे रिहिस, वोकर मुड़ी के खाल उतारे के कोशिश करत रहय।

मंय ह वोकर हाथ ले चाकू ल नंगा के फेकेंव अउ वोला बगल म सुतायेंव, फेर वो घड़ी के बाद बिल के मनोबल टूट गे। हालाकि वो ह बगल म ढलंग गिस, फेर वोकर आँखी मन म टकटकी समा गे अउ जब तक वो लइका ह हमर संग रिहिस, वो ह एक घांव घला झपकी नइ ले सकिस। पल भर मंय ह झपकी मारेंव, फेर बेरा चढ़े के संग मोला सुरता आइस कि रेड चीफ ह केहे रिहिस कि बेरा चढ़े के बाद मंय ह कूढ़ी तीर तोला आगी लगाहूँ। मंय ह न तो डरे रेहेंव अउ न तो हताश होय रेहेंव, तभो ले उठ के बइठ गेंव अउ अपन पाइप ल सुलगा लेंव अउ चट्टान कोती निहर के देखे लगेंव।

’’सैम! काबर अतका जल्दी उठ गेस?’’ बिल ह पूछिस।

’’मंय,’’ मंय ह केहेंव - ’’ओह, मोर खांद म अजीब तरह के पीरा होवत हे, मंय सोचथंव कि उठ के बइठे म आराम मिलही।’’

’’तंय ह झुठल्ला हस।’’ बिल ह किहिस - ’’तंय ह डर गे हस। कि बेर उवते साट तोला भूँजहूँ केहे रिहिस हे, कहीं सचमुच मत भूँज देय। अउ वोला माचिस मिल जाही ते वो ह अइसन कर घला दिही। का ये ह बड़ा अचरज के बात नो हे, सैम? का तंय ह सोचथस कि अइसन राक्षस बरोबर लइका ल घर वापिस लाय बर कोनो ह फिरौती दे सकथे?’’

’’पक्का,’’ मंय केहेंव - ’’येकर समान गुंडा लइका ल देख के दाई-ददा के मति ह सठिया जाथे। अब तंय अउ रेड चीफ, दूनों उठव अउ नाश्ता बनाव, तब तक मंय ह पहाड़ के चोटी म जा के कुछू पता लगा के आवत हंव।’’
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मंय ह वो छोटकुन पहाड़ के चोटी म जा के, तीर-तखार म कोनों आदमी होय के आशंका म चारों मुड़ा नजर घुमा के देखेंव। मोला आशंका रिहिस कि समिट कोती ले गाँव के जमीदार ह पूरा दल-बल अउ हथियार के साथ कायर लइका चोर के खोज म निकले होही। फेर ये का, वो डहर माहौल ह एकदम शांत दिखिस, एक आदमी भर दिखिस जउन एक ठन मरहा सरीख ख्च्चर ल हंकालत आवत रहय। घाटी म कोई आदमी नइ दिखिस, चिंतामग्न माता-पिता डहर ले कोनो खबरिया कोनो खबर ले के नइ आवत दिखिस। उहाँ, अलाबामा के वो बाहरी इलाका के जंगल म, न चिरइ चांव करत रहय न कँउवा ह कांव करत रहय, जउन ह मोर नजरिया (तेज दिमाग अउ सूझबूझ) ल प्रगट करत रहय। मंय ह मने मन केहेंव - ’’शायद, घर ले अतका दुरिहा भेड़िया ह अब तक अपन मेमना के खोज नइ कर सके हे।’’ अउ मंय ह नाश्ता करे बर खाल्हे उतर गेंव।

जब मंय गुफा म वापिस आयेंव, पायेंव कि बिल ह गुफा के बागल म हफरत खड़े रहय अउ वो बदमाश टुरा ह नरिहर बरोबर पथरा ल उबा के वोला धमकावत रहय कि तोला मंय ह पीस के रख दुहूँ।

’’वो ह मोर पीठ म डबकत उसनाय आलू ल डारिस,’’ बिल ह बताइस - ’’अउ अपन गोड़ म खूंद के रमजिस; अउ मंय ह वोकर कान म घँूसा जमायेंव।’’

मंय ह लड़का के हाथ ले वो पथरा ल नंगा के दुरिहा फेकेंव। वो ह बिल ल कहत रहय - ’’मैं ह तोला गड़िया देहूँ। आज तक कानों आदमी ह रेड चीफ ल हाथ नइ लगाय हे, अउ जउन ह अइसन करिस वो ह येकर कीमत चुकाइस। तंय अच्छा ढंग ले जानथस।’’

नाश्ता करे के बाद वो टुरा ह चमड़ा के एक ठन कुटका ल डोरी म लपेटिस अउ गुफा के बाहर जा के वोला खोलिस।
’’अब वो ह का करही?’’ बिल ल चिंता हो गे, किहिस - ’’का तंय नइ सोचस कि वो ह भाग जाही, कइसे सैम?’’

’’येकर कोनो डर नइ हे।’’ मंय ह केहेंव - ’’वोला घर के कोनों चिंता नइ हे। पन हमन ल फिरौती के बारे म कोनों योजना तय कर लेना चाही। येकर अपहरण ल ले के समिट के चारों मुड़ा कोनों हलचल नइ दिखिस। पन हो सकथे, वो मन ल येकर जाय के यकीन नइ होवत होही। वोकर आदमी मन सेचत होही कि ये ह जेन आंटी के घर रात गुजारत होही, या कि कोनों पड़ोसी के घर म। चाहे जो होय, आज येकर खोज खबर शुरू हो जाही। आज रात हमन ल येकर बाप तीर येकर फिरौती के दू हजार डालर के मांग के खबर भेज देना चाहिए।’’

तभे हमन एक तरह के ललकारे के आवाज सुनेन, जइसे कि डेविड ह गोलिएथ ;David and Goliath4 ल हराय के समय ललकारे रिहिस होही। रेड चीफ ह अपन गुलेल ल अपन जेब ले निकाल के अपन मुड़ी के चारों मुड़ा जोर-जोर ले घुमाय लगिस।

मंय खुद ल बँचायेंव, अउ भारी धमाका सुनेंव अउ बिल के जबरदस्त हकरे के आवाज सुनेंव, जइसें कि जीन ल निकाले के समय घोड़ा ह हकरथे। अंडा अतका जबरदस्त पथरा ह बिल के डेरी कान के पीछू के काम तमाम कर देय रिहिस। बिल ह एकदम बेहोश हो के बर्तन धोय बर पानी डबकाय के कडा़ही के वो पार बरत आगी म धड़ाम ले गिर गिस। मंय ह वोला तुरते खींच के निकालेव अउ वोकर मुड़ी म आधा घंटा ले ठंडा पानी डारेंव। 

बहुत जल्दी, बिल ह उठ के बइठ गे अउ अपन कान के पीछू कोती ल टमड़त कहिथे - ’’सैम, का तंय जानथस कि बाइबिल म मोर मनपसंद पात्र कोन हर आय?’’

’’गुस्सा मत कर,’’ मंय ह केहेंव - ’’पहिली तंय अपन होश म आ।’’

’’किंग हेरोड।’’ (king Herod)5 वो ह किहिस - ’’मोला इहाँ अकेला छोड़ के तोला बाहर नहीं जाना चाहिये, जाबे का, सैम?’’

मंय ह बाहिर निकलेंव अउ वो टूरा ल धर के खूब झकझोरेंव जब तक कि वोकर चकती झर नइ गिस।

’’अगर तंय ठीक-ठाक नइ रहिबे’’, मंय ह केहेंव - ’’तोला सोज्झे तोर घर भेजवाहूँ। अब तोला सुधर जाना चाही, कि नहीं?’’

’’मंय तो खाली मजाक करत रेहेंव,’’ दांत निपोरत वो ह किहिस - ’’डोकरा ल चोंट पहुँचाय के मोर इरादा थोड़े रिहिस। फेर वो ह मोला मारे काबर रिहिस? बोटर्रा, तंय ह मोला घर मत भेजबे अउ आज मोला तंय ह ब्लैक स्काउट
(Black Scout)(6) के नाटक खेले बर संग देबे तब मंय ह कोनो उपद्रव नइ करहूँ।’’

’’मंय ये खेल (नाटक) के बारे म नइ जानंव।’’ मंय ह केहेंव - ’’एकर बारे म तुम अउ बिल मिल के बिचार करव। विही ह आज खेले के तोर संगवारी आवय। मंय ह थोरिक बेर बर, बिजनेस के सिलसिला म बाहिर जाहूँ। भीतर आ, वोला अपन दोस्त बना, वोला चोंट पहुँचाय खातिर वोकर से माफी मांग, या फेर अभीचे, अपन घर जा।’’

मंय ह बिल अउ वोला, दुनों झन ल हाथ मिलवायेंव, अउ तब बिल ल अलग लेग के वोला केहेंव - मंय ह इहाँ ले तीन मिल दुरिहा एक ठन छोटकुन गाँव, पोपलर केव जावत हंव, अउ जाने के कोशिश करहूँ कि समिट म ये अपहरण के बारे म का हलचल हे। मंय ह यहू सोचथंव कि डोकरा डोरसेट ल फिरौती के रकम अउ वोला पहुँचाय के तरीका के बारे म आजेच् चिट्ठी म लिख के भेजना घला जरूरी हे।

’’तंय ह जानथस, सैम,’’ बिल ह किहिस - ’’भूकंप म, आगी-पानी, बेईमानी म, घोर तकलीफ म, पुलिस के छापा म,, रेल डकैती म, अउ बवंडर म, सदा तोर साथ खड़ा होय हंव। मंय ह कभू अपन चेत लइ खोय हंव, जब तक कि दू गोड़ के ये खरतरिहा के हम अपहरण नइ करे रेहेन। ये ह मोला फेर चपकही। येकर संग तंय मोला जादा देर बर अकेला झन छोड़बे। सैम, छोड़बे का?’’

’’मंय ह वो जुवार तक जल्दी लहुट जाहूँ ,’’ मंय ह केहेंव - ’’तब तक तंय ह ये लइका ल कोनो तरीका ले बहला के राखबे अउ मोर आवत ले बिलकुल चंट रहिबे।’’ अउ फेर हमन बुढ़ुवा डोरसेट बर चिट्ठी लिखे बर बइठ गेन।

बिल अउ मंय कागज पेंसिल धर के काम म लग गेन जबकि रेड चीफ ह बिलांकिट ल अपन चारों मुड़ा लपेट के, गुफा के आगू, बेलबेलाय के शुरू कर दिस। बिल ह रोनहू सुर म मोर से निवेदन करिस कि फिरौती के रकम ल दू हजार डालर के बदला पंद्रह सौ डालर कर दिया जाय। ’’मंय ये कोशिश नइ करत हंव’’ बिल ह किहिस - ’’कि कोनो माता पिता के अपन बच्चा के प्रति स्वभाविक अउ नैतिक स्नेह के उत्सव मनाय के निंदा करंव, पर हमन एक आदमी के संग सौदा करत हन, अउ ये ह मानवता नो हे कि कोनो ह चालीस पौंड के अइसन बदमाश अउ चितकबरा जंगली भेंकवा बर दू हजार पौंड लुटा देय। तंय ह मोर बात ल खारिज कर सकथस।’’

बिल ल शांत करे बर मंय ह वोकर बात ल मान गेंव अउ दूनों मिल के चिट्ठी लिखेन जउन ह अइसन रिहिस -
 इबेंजर डोरर्सेट,

हम तोर बेटा ल समिट से बहुत दुरिहा लुका के एक जघा रखे हन। चालाकी करना, या कि वोला खोजे बर जासूसी करना तोर खातिर बेकार हेे। वोला हासिल करे बर तोर तीर बस एके उपाय हे अउ वो शर्त ह अइसन हे: वोकर वापसी बर पंद्रह सौ डालर के एकमुस्त रकम हमला चाही। अपन जवाब म आजे आधा रात के ये रकम हमर बताय जगह अउ बाक्स म पहुँचा देबे - जइसन कि ये चिट्ठी म लिखाय हे। अगर तोला ये शर्त ह मंजूर हे, तब लिखित म अपन जवाब एक गुप्त खबरिया के जरिया आजे रात के साढ़े आठ बजे तक भेजवा देबे। ओल क्रीक पार करे के बाद, पोपलर कोव जाय के सड़क म, उहाँ लगभग सौ गज के घेरा म, जेवनी हाथ बाजू गहूँ के खेत के रूँधना से लगे हुए बड़े-बड़े तीन ठन पेड़ हे। रूँधना के खंभा के किनारे, तीसरा नंबर पेड़ के दूसर बाजू, एक ठन नान्हे कुन संदूक मिलही। खबरिया ह अपन संदेश ल विही संदूक म डाल के तुरंत समिट लहुट जाही।

अगर तंय चालाकी करे के कोशिश करबे, या हमर निर्धारित मांग ल पूरा नइ करबे, तंय अपन बेटा ल फेर कभू नइ देख सकबे।

अगर तंय हमर मांग ल पूरा कर देबे, तीन घंटा के भीतर तोर बेटा ह बिलकुल ठीकठाक तोर कना वापिस पहुँच जाही। ये शर्त ह आखिरी आय, अगर येला तोला नहीं मानना हे ते दूसरा कोनो बात के कोशिश नइ हो सके।
दो दुर्दान्त आदमी।
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डोरसेट के पता लिख के ये चिट्ठी ल मंय ह अपन जेब म रख लेंव। जाय बर निकलतेच् रेहेंव वोतका बेरा वो टूरा ह मोर आगू म आ के ठाड़ हो गे अउ केहे लगिस -

’’ऐ, बोटर्रा, तंय ह केहे रेहेस, मंय ह तोर संग ब्लैक स्काउट के खेल (नाटक) खेल सकहूँ, जबकि तंय ह जावत हस।’’

’’खेलव, जरूर खेलव,’’ मंय केहेव - ’’मि. बिल ह तोर संग खेलही। कोन प्रकार के खेल हरे ये ह?’’

’’मंय हरंव वो ब्लैक स्काउट,’’ रेड चीफ ह किहिस - ’’अउ मोला घोड़ा म ये अतराब म चारों मुड़ा घूम-घूम के अपन जमींदार मन ल सावधान करना हे कि इंडियन मन ह आवत हें। इंडियन नाटक खेल-खेल के मंय ह थक चुके हंव। मंय ह ब्लैक स्काउट बनना चाहत हंव।

बिलकुल ठीक,’’ मंय केहेंव - ’’ये ह मोर बर बने रही लगथे। मोर अनुमान हे कि मि. बिल ह वो जंगली मन ल हराय म तोर मदद करही।’’

’’मोला का करना पड़ही?’’ वो टूरा कोती संदेही नजर म देखत बिल ह पूछिस।

’’तंय ह घोड़ा आवस,’’ ब्लैक स्काउट ह किहिस - ’’हाथ अउ माड़ी ल निहरा। बिना घोड़ा के अपन इलाका ल मंय ह कइसे घूमहूँ?

’’वोला खुश रखना हे, तंय बने ढंग ले जानथस,’’ मंय केहेंव ’’ जब तक हमर योजना ह सफल नइ हो जाही, धीरज रख।’’

बिल ह अपन चारों हाथ-गोड़ ल निहरा लिस। वो ह जाल म फंदे खरागोश जइसे सेगसोगान दिखे लगिस।

’’छोकरा, तोर इलाका ह कतका दुरिहा ले हे? भरभराय गला म वो ह पूछिस।

’’नब्बे मील,’’ ब्लैक स्काउट ह किहिस - अउ खुद सोच ले उहाँ समय म पहुँचना हे। अभी रूक।’’

ब्लैक स्काउट ह कूद के वोकर पीठ म चढ़ गे अउ अपन एड़ी म वोकर बाजू मन ल एड़ियाय लगिस।

’’भगवान खातिर,’’ बिल ह किहिस - ’’जल्दी लहुटबे, सैम, जतका जल्दी हो सके। मंय तो कहिथंव, हजार ले जादा फिरौती नइ लेवन। बोल, मोला तंय अच्छा समझ कि बुरा।’’

मंय ह पोपलर कोव जा के पोस्ट आफिस कना बइठ गेंव। अउ व्यापार करे बर आय एक आदमी संग गोठियाय लगेंव, एक झन मुछक्कड़ ह कहिथे कि समिट ह एकदम हाल गे हे बुढ़ुवा एबेंजर डोरर्सेट के बेटा के गंवाय के कारण, या चोरी होय के कारण। मोला अतकच् तो जानना रिहिस। मंय थोकुन माखुर बिसायेंव, करिया बटरा के कीमत पूछेंव, लुका के अपन चिट्ठी ल डारेंव, अउ बाहिर आ गेंव। पोस्ट मास्टर ह किहिस कि डाकिया ह डाक मन ल समिट पहुँचा के एक घंटा म आ जाही।
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जब मंय ह लहुट के गुफा म आयेंव, बिल अउ वो छोकरा ल नइ पायेंव। मंय ह वो मन ल गुफा के तीर-तखार म खोजेंव, अउ एक-दू घांव ले चिल्लायेंव, फेर उंकर डहर ले कोनों आरो नइ मिलिस।

हार के मंय ह अपन पाइप ल सुलगा के स्थ्तिि सुधरे के अगोरा म काई लगल पथरा के कोन्टा म बइठ गेंव।

तकरीबन आधा घंटा के बाद मंय ह झाड़ी डहर सुक्खा पाना के चरमराय के आवाज सुनेंव अउ बिल ह निकल के गुफा के आगू  झूमे लगिस। वोकर पीछू-पीछू वो लइका ह घला स्काउट मन के समान अहिस्ता-आहिस्ता पाँव रखत, मुसकावत निकलिस। बिल ह थमिस, अपन टोपी ल उतारिस, अपन चेहरा ल लाल उरमाल म पोंछिस। वो छोकरा ह वोकर ले तकरीबन आठेक फूट दुरिहा म खड़े हो गिस।

’’सैम,’’ बिल ह किहिस - ’’मंय जानथंव, तंय ह सोचत होबे, मंय ह विश्वासघाती हंव, पन येमा मंय कुछुच् नइ करे हंव। मंय ह सियान आदमी, मरद के जात, खुद के रक्षा करना जानथंव, पन एक समय आथे जब अहम के भावना ह फेल हो जाथे। वो छोकरा ह चल दिस। मंय वोला वोकर घर भेज देंव। सब कुछ खतम हो गे।’’ बिल ह आगू किहिस - एक शहीद रिहिस, जउन ह घूस ले के मजा करे के बदला मौत ल चुनिस। वोमा कोनो घला ह वोतका असहनीय पीड़ा नइ सहे रिहिन होही, जतना अभी मंय ह सहे हंव। अपन लूटमारी के ये योजना खातिर मंय ह पूरा ईमानदार रहे के कोशिश करे हंव, पन अब हद पार हो गे रिहिस।’’

’’तोला तकलीफ का हे बिल?’’ वोला मंय ह पूछेंव।

बिल ह किहिस - ’’पूरा नब्बे मील, एक इंच छोड़े बिना, मोर ऊपर घुड़सवारी करिस हे। तब, जब जमीदार मन ल राहत मिलिस हे, मोला बाजरा देय गिस। रेती ह स्वाद के जघा ले सकथे क? अउ तब घंटा भर मंय ह वोला समझाय के कोशिश करे हंव कि बिला म काबर कुछू नइ हे, कि सड़क ह कइसे दुनो डहर जाथे, कि कांदी ह हरियर काबर होथे। सैम, मंय ह तोला कहत हंव, केवल आदमिच् ह अतका सहि सकथे। वोकर नरी ल धर के मंय ह वोला घिरलात पहाड़ के खाल्हे लाय हंव। रास्ता म वो ह मोर माड़ी के खाल्हे जबरदस्त लात मारत आय हे। मोर अंगठा ल वो ह दू-तीन घाव ले चाबे घला हे।’’

’’पन वो ह चल दिस,’’ बिल ह बोलतेच् गिस - ’’घर चल दिस। मंय ह वोला लात मार के, समिट कोती जाय के सड़क म लात मार के भगा देंव। मोला माफी देबे, हमन फिरौती के रकम ल गंवा देन। पर या तो वोला पागलखाना जाय बर पड़तिस, या बिल ड्रिस्कोल ल।’’

बिल ह हफरे अउ कहरे लगिस, फेर वोकर चेहरा म परम शांति दिखे लगिस, वोकर गुलाबी बदन ह खिल गे।

’’बिल,’’ मंय ह केहेंव - ’’तोर परिवार म कोनो ल दिल के बिमारी तो नइ हे, है?

’’नइ,’’ बिल ह किहिस - ’’मलेरिया अउ एक्सीडेंट के सिवा अउ कोनो तकलीफ नइ हे, काबर?’’

’’तब तंय ह अब चारों मुड़ा घूम,’’ मंय केहेंव - ’’अउ अपन पीछू कोती देख।’’

बिल ह मुड़क के वो छोकरा ल देखिस। वोकर रंग उड़ गे। वो ह धम ले जमीन म बइठ गे अउ फालतू-फालतू कांदी मन ल उखाने लगिस, तिनका मन ल टोरे लगिस। अइसने घंटा भर बीत गे। वोकर दिमागी हालत देख के मोला फिकर होय लगिस। तब मंय ह वोला अपन योजना के बारे म बतायेंव कि सब काम अब तुरंत निपट जाही, कि फिरौती के रकम ले के हम आधा रात तक इहां ले चल देबो, यदि डोकरा डोर्सेेट ह हमर प्रस्ताव ल मान जाही तब। तब बिल ह वो छोकरा डहर देख के हल्का-हल्का मुस्काइस अउ वोकर संग जापानी लड़ाई म रूसी (The Russian in a Japanese War)7 नाटक खेले के वादा करिस।

फिरौती के रकम ल लेय बर मंय ह एक ठन बिना खतरा वाले योजना बनाय हंव काबर कि पुलिस वाले मन ह हमला धरे बर जरूर उहाँ खुद होके आय रहीं। वो पेड़, जिहाँ जवाबी चिट्ठी अउ बाद म फिरौती के रकम आही, बिलकुल सड़क के किनारे अउ खुला खेत के तीर हे। नोट लावइया ह दुरिहा ले दिख जाही। मंय ह खबरिया के अगोरा म साढ़े आठ बजे के पहिलिच् पेड़ म चढ़ के मेचका सही लुकाय रहूँ।
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बिलकुल नियत समय म एक झन लड़का ह सड़क म सायकिल म आवत दिखिस। वो ह बताय गे संदूक ल खोजिस अउ वोमा एक ठन मुड़े कागज ल डार के तुरते लहुट गिस।

एक घंटा बाद जब कोनो खतरा नइ दिखिस, मंय ह पेड़ ले उतरेंव, चिट्ठी सहित मंय ह एक घंटा म गुफा म लहुट आयेंव। चिट्ठी ह पेन से कोड़ो-बोड़ो लिखावट म लिखाय रिहिस अउ अइसन लिखाय रिहिसः
दुनांे दुर्दान्त आदमी ल

जेंटलमेन हो, मोला आजे तुंहर भेजे चिट्ठी ह डाक से मिलिस हे जउन म मोर बेटा के फिरौती के बारे म लिखे हव। मंय ह सोचथंव कि तुंहर मांग ले तुमन थोड़कुन जादा ऊँचा हव। विही पाय के मंय ह जवाबी प्रस्ताव भेजत हंव, मोला उम्मीद हे येला तुम जरूर स्वीकार करहू। तुम जाॅनी ल लेके मोर घर आ जाव (अउ फिरौती के रूप म) दू सौ पचास डालर नगद मोला भुगतान करव। मंय वोकर से तुमला छुटकारा दिला देहूँ। जादा अच्छा होही कि आजेच् रात म आ जाव। पड़ोसी मन बर वो ह गंवा गे हे। वोला तुंहला वापिस लावत देख के वो मन तंुहर संग का बर्ताव करही येकर जवादार मंय ह नइ हंव।
बहुत आदर सहित
इबेंजर डोर्सेट
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’’पेंन्जेन्स के महान समुद्री डाकू,’’ (Great Pirates Of Penzance)(8)  मंय ह केहेंव - ’’सब हेकड़ी ह .....।’’

पर मंय ह बिल कोती देखेंव, अउ हिचकेंव। वोकर आँखीं मन म गजब के याचना के भाव रिहिस, जइसन कोंदा मन के आँखी म रहिथे। (वो ह एकदम सोगसोगान अकन दिखत रहय।)

’’सैम,’’ वो ह किहिस - ’’आखिर दू सौ पचास डालर म का रखे हे? हम अउ कमा लेबोन। ये छोकरा संग एक रात अउ बिताय के मतलब मय ह सीधा पलंग ले पागल खाना पहुँच जाहूँ। एक सभ्य आदमी के समान सोच, मंय ह सोचथंव कि डोर्सेट ह उदार हे अउ हमर संग सस्ता सौदा करे हे। तंय ह ये मौका के फायदा नइ उठास, कइसे?’’

’’तोला सच कहंव बिल,’’ मंय केहेंव - ’’कुछू समझ, ये टेटकू शैतान ह काली सांझ कुन ले मोरो दिमाग ल खा डरे हे। ठीक हे, येला येकर घर पहुँचा देबो, फिरौती दे के अपन रद्दा नापबोन।’’

हम वोला विहिच् रात कुन वोकर घर ले के गेन। वोकर बाप ह वोकर बर चाँदी के मुठिया वाले रायफल अउ एक जोड़ी पनही खरीदे हे अउ दूसर दिन हम भालू के शिकार करे बर जाबोन कहिके   हम वोला मुश्किल से मनायेन।

वोतका बेर ठीक बारह बजे रिहिस हे जब हम इबेंन्जर के दरवाजा ल खटखटायेन। जउन समय ओरिजनल योजना के मुताबिक हम पेड़ के खाल्हे ले पंद्रह सौ डालर के संदूक उठात रहितेन विही पल बिल ह दू सौ पचास डालर नगद गिन के डोर्सेट के हाथ म रखत रिहिस।

जब हमला घर ले जावत देखिस तब वो बदमाश छोकरा ह उछल के बिल के टांग म अइसे चिपक गे जइसे जोंक ह चिपक जाथे। वोकर बाप ह वोला प्लास्टर के समान धीरे-धीरे छोड़ाइस।

’’येला कतिक समय तक पकड़ के रख सकथस?’’ बिल ह पूछिस।

’’पहिली जइसे अब मोर म ताकत नइ हे।’’ डोकरा डोर्सेट ह किहिस - ’’तभो ले दस मिनट के मंय ह वादा करथंव।’’

’’काफी हे,’’ बिल ह किहिस - ’’दस मिनट म तो मंय ह सेंट्रल, दक्षिणी अउ मध्य पश्चिमी राज्य ल पार कर लेहूँ अउ कनाडा के सीमा म पहुँच जाहूँ।

जतका अँधियारी रात, वोतका बिल के दँउड़ई अउ वोतकेच् मोरो भगई। समिट के बाहिर तकरीबन डेढ़ मिल दुरिहा मंय ह वोला सपड़ायेंव।
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संदर्भ सूची
 1. INDIAN
अमेरिका के मूल निवासी, आदिवासी, जो सदा से उस धरती पर निवास करते आये हैं। बाद में अंग्रेजों ने उस भू भाग पर अपना आधिपत्य कायम करके उन आदिवासियों को अपना गुलाम बना लिया था। इन्हीं आदिवासियों को वहाँ इंडियन कहा जाता है।

[Native Americans in the United States are the indigenous peoples in North America within the boundaries of the present-day continental United States, Alaska, and the island state of Hawaii. They are composed of numerous, distinct Native American tribes and ethnic groups, many of which survive as intact political communities. The terms used to refer to Native Americans have been controversial. According to a 1995 U.S. Census Bureau set of home interviews, most of the respondents with an expressed preference refer to themselves as American Indians (or simply Indians – see Native American name controversy), and this term has been adopted by major newspapers and some academic groups; however, this term does not typically include Native Hawaiians or certain Alaskan Natives, such as Aleut, Yup'ik, or Inuit peoples.]
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2.  Geronimo : -  Apache ds Chiricahua दल का महान आदिवासी नेता था। इनका जन्म संयुक्त राज्य के एरिजोना प्रान्त में 16 जून 1829 को तथा निधन 17 फरवरी 1909 में हुआ था।

[Geronimo]  :  Tribal chief

[Geronimo was a prominent leader of the Bedonkohe Apache who fought against Mexico and the United States for their expansion into Apache tribal lands for several decades during the Apache Wars.
Born: June 16, 1829, Arizona, United States
Died: February 17, 1909, Fort Sill, Oklahoma, United States.]
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3. ‘possums : ओपासम चूहे के समान दिखने वाला तथा पश्चिमी गोलार्ध में पाया जाने वाला जीवों की एक जाति है। इनकी लगभग 103 प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
[Opossums make up the largest order of marsupials in the Western Hemisphere, including 103 or more species in 19 genera. They are also commonly called possums, though that term technically refers to Australian fauna of the suborder Phalangeriformes.]
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4.  Goliath and David  :  गोलिएथ एक दैत्याकार फिलीस्तिनी योद्धा था। उसे इजरायल के भविष्य के सम्राट युवा डेविड ने हराया था। बाइबिल के इस प्रसिद्ध कहानी का सच्चा आशय डेविड को इजरायल के भविष्य के सम्राट के रूप में चिन्हित करना है।
  
[Goliath or Goliath of Gath is a giant Philistine warrior defeated by the young David, the future king of Israel, in Bible's Books of Samuel. The original purpose of the story was to show David's identity as the true king of Israel. Wikipedia.]
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5. Herod   (73/74 ईसा पूर्व  -  4 ईसा पूर्व)  हेरोड को महान् हेरोड और हेरोड प्रथम के नाम से भी जाना जाता है। प्रभु यिशु के जन्म के समय हेरोड यरूशलम का शासक था। इनके पिता का नाम एन्टीपेटर तथा माता का नाम साइप्रस था जो अरब के एक शेख की पुख्ी थी। हेरोड एक असीमित महत्वाकांक्षी व्यक्ति था तथा निर्दयी और पागल सम्राट के नाम से प्रसिद्ध था। बाइबिल में इसे पापी शासक कहा गया है। अपनी अतीव महत्वाकांक्षा की पूर्ति हेतु इसने अपने ससुर, दस पत्नियों और दो पुत्रों एवं अनेक प्रतिद्वंद्वियों की हत्या की। इसने प्रभु यिशु को भी जन्म के बाद मारने की योजना बनाई थी। इसने अपने शासन काल में कला व स्थापत्य के साथ ही साथ जनता की भलाई के लिए अनेक महान् निर्माण कार्य करवाया था।



me(Hebrew: Hordos, Greek:  He-ro-de-s), (73/74 BCE – 4 BCE), also known as Herod the Great and Herod I, was a Roman client king of Judea. He has been described as "a madman who murdered his own family and a great many rabbis",  "the evil genius of the Judean nation", "prepared to commit any crime in order to gratify his unbounded ambition" and "the greatest builder in Jewish history". He is known for his colossal building projects throughout Judea, including his expansion of the Second Temple in Jerusalem (Herod's Temple), the construction of the port at Caesarea Maritima, the fortress at Masada and Herodium. Vital details of his life are recorded in the works of the 1st century CE Roman–Jewish historian Josephus .
Upon Herod's death, the Romans divided his kingdom among three of his sons—Archelausbecame ethnarch of the tetrarchy of Judea, Herod Antipas beca tetrarch of Galilee and Peraea, and Philip became tetrarch of territories east of the Jordan.
Herod the Great was the villain in the Christmas story, a wicked king who saw the baby Jesus as a threat and wanted to murder him.
Although he ruled over the Jews in Israel in the time before Christ, Herod the Great was not completely Jewish. He was born in 73 B.C. to an Idumean man named Antipater and a woman named Cyprus, who was the daughter of an Arab sheik.
Herod the Great was a schemer who took advantage of Roman political unrest to claw his way to the top. During a civil war in the empire, Herod won the favor of Octavian, who later became the Roman emperor Augustus Caesar. Once he was king, Herod launched an ambitious building program, both in Jerusalem and the spectacular port city of Caesarea, named after the emperor. He restored the magnificent Jerusalem temple, which was later destroyed by the Romans following a rebellion in A.D. 70.
In the gospel of Matthew, the Wise Men met Herod on their way to worship Jesus. He tried to trick them into revealing the child's location in Bethlehem on their way home, but they were warned in a dream to avoid Herod, so they returned to their countries by another route.
Jesus' stepfather, Joseph, was also warned in a dream by an angel, who told him to take Mary and their son and flee to Egypt, to escape Herod. When Herod learned he had been outwitted by the Magi, he became furious, ordering the slaughter of all the boys who were two years old and under in Bethlehem and its vicinity.
Joseph did not return to Israel until Herod had died. The Jewish historian Flavius Josephus reported that Herod the Great died of a painful and debilitating disease that caused breathing problems, convulsions, rotting of his body, and worms. Herod reigned 37 years. His kingdom was divided by the Romans among his three sons. One of them, Herod Antipas, was one of the conspirators in the trial and execution of Jesus.
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6- Black Seminole Scouts, also known as the Seminole-Negro Indian Scouts, or Seminole Scouts, were employed by the United States Army between 1870 and 1914. Despite the name, the unit included both Black Seminoles and some native Seminoles. However, because most of the Seminole scouts were of African descent, they were often attached to the Buffalo Soldier regiments,[1] to guide the troops through hostile territory. The majority of their service was in the 1870s, in which they played a significant role in ending the Texas-Indian Wars.
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7- The Russo-Japanese War (8 February 1904 – 5 September 1905) was "the first great war of the 20th century." It grew out of rival imperial ambitions of the Russian Empire and the Empire of Japan over Manchuria and Korea. The major theatres of operations were Southern Manchuria, specifically the area around the Liaodong Peninsula and Mukden; and the seas around Korea, Japan, and the Yellow Sea.
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8-  The Pirates of Penzance  : ’पेन्जेन्स का समुद्री लुटेरा’ - इसे  The Slave of Duty के नाम से भी जाना जाता है। यहW. S. Gilbert द्वारा लिखित दो अंको वाला एक हास्य नृत्य-नाटक है। इसका नायक फ्रेडरिक एक करार के अनुसार 21 वर्ष की आवस्था में समुद्री लुटेरों से मुक्त होता है। उसकी मुलाकात मेबिल नामक सुन्दरी से होती है जो मेजर जनरल स्टेनली की पुत्री थी और दोनों में प्यार हो जाता है। प्रेडरिक का जन्म 29 फरवरी को हुआ था और वह अपना जन्म दिन तीन साल के बाद ही मना पाता था। लुटेरों को इस बात का पता चलने के बाद वे फ्रेडरिक को पुनः बंधक बना लेते हैं और उसे 63 साल की अवस्था में मुक्त करते हैं। यह हास्य प्रधान नृत्य नाटक युरोप में काफी लोकप्रिय हुआ था। इसका संगीत Arthur Sullivan and libretto ने तैयार किया था।

The Pirates of Penzance
[The Pirates of Penzance; or, The Slave of Duty is a comic opera in two acts, with music by Arthur Sullivan and libretto by W. S. Gilbert. The opera's official premiere was at the Fifth Avenue Theatre in New York City on 31 December 1879, where the show was well received by both audiences and critics.  Its London debut was on 3 April 1880, at the Opera Comique, where it ran for a very successful 363 performances, having already been playing successfully for over three months in New York.
The story concerns Frederic, who, having completed his 21st year, is released from his apprenticeship to a band of tender-hearted pirates. He meets Mabel, the daughter of Major-General Stanley, and the two young people fall instantly in love. Frederic finds out, however, that he was born on 29 February, and so, technically, he only has a birthday each leap year. His apprenticeship indentures state that he remains apprenticed to the pirates until his 21st birthday, and so he must serve for another 63 years. Bound by his own sense of duty, Frederic's only solace is that Mabel agrees to wait for him faithfully.]
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अनुवादक


खुशवंत सिंह
जन्म 02 फर.1915

संक्षिप्त परिचय
(खुशवंत सिंह ह कोनों परिचय के मुहताज नइ हे; जम्मो पढ़इया-लिखइया संगी मन आज वोला जानथव। आप मन के जनम 02 फरवरी 1915 ई. म भ्।क्।स्प्ए क्पेज. ज्ञीनेींइए च्नदरंइ (अब पाकिस्तान म) संपन्न सिक्ख परिवार म होय रिहिस। आपके पिता जी के नाव ैपत ैवइीं ैपदही रिहिस।
आप मन हमर देश के जाने माने पत्रकार, इतिहासकार अउ साहित्यकार, हरो। आप के लेख हमर देश के जम्मों अखबार मन म छपत रहिथे जउन ल पढ़इया मन बड़ मन लगा के पढ़थें। आप अंग्रेजी म लिखथव।
1950 म आपके पहिली कहानी संग्रह ज्ीम डंतो व िटपेीदन ।दक व्जीमत ैजवतपमे छपिस, तब ले आज तक, 98 साल के अवस्था म आप सरलग लिखत आवत हव। आपके ताजा कृति ज्ीमतम पे दव ळवक हरे जेकर प्रकाशन 2012 म होइस।
1974 म भारत सरकार ह आप मन ल ’पद्म भूषण’ प्रदान करके सम्मानित करिस। 1984 म सिक्ख मन के खिलाफ दंगा होइस जेकर विरोध म आप मन ये सम्मान ल भारत सरकार ल लहुटा देव। 2006 म पंजाब सरकार ह आप मन ल ’पंजाब रत्न’ के सम्मान ले सम्मानित करिस। आप ल भारत सरकार ह 2007 म ’पद्म विभूषण’ अलंकरण ले सम्मानित करिस। 2010 म आप ल ’साहित्य अकादमी फेलोशिप अवार्ड’ प्रदान करे गे हे।
संकलित कहानी म आप मन अपन दादी माँ के चैथा पन के जीवन के विषय म लिखे हव। मामूली लगने वाला ये कहानी ल पढ़ के प्रेम, धर्म अउ मोक्ष के अवधारणा ल बहुत बढ़िया ढंग ले समझे जा सकथे। -अनुवादक)
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6: एक महिला के चित्र

मूल -
THE  PORTRAIT OF A  LADY
लेखक -
खुशवंत सिंह

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मोरो दादी (डोकरी दाई) ह, जइसे सबके दादी मन होथंे, सियान महिला रिहिस। बीस बरस ले, जब ले मंय ह वोला जानत रेहेंव, चइसनेच् रिहिस, निचट सियान झुरझुराय मुँहू-कान वाले।

जानकार मन कहिथे कि पहिली वो ह जवान अउ बिकट खूबसूरत रिहिस, अउ यहाँ तक कि वोकर घरवाला घला रिहिस, फेर ये बात मन म मोला कभू विश्वास नइ होइस।

मोर दादा के चित्र ह बैठक खोली म दिवाल ऊपर बने आला म टंगाय रहय। वोमा वो ह बड़े जन पगड़ी अउ झोलंग-झालंग कुरता पहिरे रहय। वोकर पक्का अउ लंबा दाढ़ी ह छाती के आवत ले झूलत रहय अउ वो ह सौ बरिस ले कम उमर के नइ दिखय।

दादी ह हमला, वो ह अपन लइकईपन म जउन खेल खेलय तेकर बारे म बतातेच् रहय। वो बात ह हमला बिलकुल दूसर दुनिया के बात कस लगय अउ वोला हमन वोकर पोथी-पुरान के दंतकथा मान लेवन, जउन ल वो ह अक्सर बतात रहय। वो ह कद म ठिगनी अउ मोट्ठी रिहिस, अउ कनिहा ह थोकुन नव गे रिहिस। वोकर मुँहू ह झुर्री ले भरे रिहिस। वो ह कभू खूबसूरत नइ रिहिस होही, फेर वो ह सदा सुंदर रिहिस। वो ह हरदम झक सफेद कपड़ा पहिरे, अपन नवे शरीर ल साधे बर एक हाथ म कनिहा ल धरे, दूसर हाथ म कंठी-माला फेरत, मनेमन कुछू जपत, खोरात-खोरात घर भर म एतीवोती किंजरत रहय। वोकर चाँदी जइसे सफेद खुल्ला चूँदी मन सदा वोकर पींयर अउ मुरझुराय चेहरा ल तोपे रहय, वोकर होठ मन हरदम सरलग हलत रहय अउ वो ह को जानी का-का प्रार्थना करते रहय; जउन ह न तो कोनों ल सुनावय, न समझ म आवय।

मोर दादी अउ मंय पक्का मितान रेहेन। जब मोर मां-बाप मन शहर म रेहे बर गिन, वो मन मोला दादी तीर छोड़ दिन, अउ तब ले सरलग हमन संघरा रहत आवत रेहेन। वो ह मोला होत बिहिनिया उठा देय अउ स्कूल जाय बर तियार कर देय। जब वो ह मोला नंहवाय अउ डरेस पहिराय तब वो ह बिहिनिया के अपन एकसुर्री प्रार्थना ल सरलग गावत रहय, ये समझ के कि मंय ह वोला धियान लगा के सुनथंव अउ वोकर अरथ ल समझथंव, मंय ह वोकर गीत ल धियान लगा के सुनंव, काबर के वोकर अवाज ह मोला बने लगय; फेर वोला सीखे बर मय ह कभू कोशिश नइ करेंव।

बिहिनिया नास्ता म वो ह मोला रात-कुन के बचल मोट्ठा-मोट्ठा बासी रोटी मन म घींव चुपर के शक्कर के संग देवय जउन ल खा के हमन स्कूल जावन। वो ह गाँव के कुकुर मन बर बिकट कन मोट्ठा-मोट्ठा बासी-रोटी मन ल मोटरिया के धर ले रहय।

मोर दादी ह हरदम मोर संग स्कूल जावय, काबर कि हमर स्कूल ह मंदिर ले जुड़े रिहिस हे। पुजारी ह हमला वर्णमाला अउ बिहिनिया के प्रार्थना सिखावय। जब हम सब लइका मन परछी म दूनों बाजू लाइन म बइठ के एक सुर म वर्णमाला अउ प्रार्थना रटन, दादी ह भीतर बइठ के गरंथ पढ़त रहय। जब हमर दुनों के काम उरक जाय, हम दुनों झन संघरा घर आय बर निकल जावन। इही समय गाँव के सबो कुकुर मन हमला मंदिर के मुहाटी म जोरियाय मिल जावंय। ये मन ह हमर पीछू-पीछू रोटी खातिर, जउन ल मोर दादी ह ऊकरे मन बर टोर-टोर के फेंकत जावय, एक दूसर ले लड़त-झगड़त हमर घर तक आवंय।

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जब मोर मां-बाप के कारेबार ह शहर म बने जम गे, वो मन हमू मन ल बला लिन। इही ह महर दुनों झन के मितानी बर नवा दिन के शुरूआत हो गे। भले हमन एके खोली म रहन, मोर दादी ह जादा दिन ले मोर संग स्कूल नइ जा सकिस। मंय ह पढ़े बर बस म बइठ के अंग्रेजी स्कूल जावंव। उहाँ न तो कोनों गली रहय, न एको ठन कुकुर; इही पाय के मोर दादी ह घर के आंगन म बइठ के गौरइया चिरई मन ल चारा खवात रहय।

जइसे-जइसे समय बीतत गिस, हमन के एक-दूसर ले मिलना कम होवत गिस। थोरिक दिन ले बिहिनिया मोला जगाय के अउ स्कूल बर तियार करे के वोकर काम चलिस। जब मंय ह स्कूल ले वापिस आवंव, वो ह मोला पूछय कि आज गुरूजी ह तोला का-का पढ़ाइस। अंग्रेजी के जउन शब्द मन ल सीख के मंय ह आय रहंव तउन ल, अउ विदेशी विज्ञान के बात ल, जइसे कि गुरूत्वाकर्षण के नियम, आर्किमिडीज के सिद्धांत, धरती ह सूरज के चारों मुड़ा कइसे घूमत हे, आदि ... बात मन ल वोला बतावंव। येकर ले वो ह गुसिया जावय। एक दिन मंय ह घर म सब ल बतायेंव कि आज ले हमन के संगीत के पाठ शुरू हो गे हे। वो ह एकदम उदास हो गे। वोकर बर संगीत मतलब लम्पट मन के संगत करना रिहिस। ये ह तो सिरिफ रण्डी मन के अउ भिखारी मन के काम आवय, खानदानी घराना के नइ। अब वो ह मोर संग कभुच्-कभू गोठियावय।

जब मंय ह काॅलेज म गेव, मोर बर अलग खोली के बेवस्था कर दे गिस। हमर मिताई के बीच जउन अधार रिहिस हे, वो ह अब टूट गे। जब वो ह परछी म रोटी के नान-नान कुटका करत बइठे रहय, कोरी-खरिका नान-नान चिरई मन को जानी कहाँ ले आ के वोकर चारों मुड़ा सकला जावंय, अउ उँकर चींव-चांव करइ म घर ह पागलखाना बरोबर लगे लगय। कतरो मन वोकर गोड़ मन म आ के बइठ जावंय, कतरो मन ह वोकर खांद म, अउ वोकर मुड़ी म घला दू-चार ठन मन बइठ जावंय। वो ह हाँसे फेर वो मन ल कभू नइ भगावय। रोज एक-डेड़ घंटा ह वोकर अइसने मजा-मजा म बीतय।

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जब आगू के पढ़ाई बर मंय ह विदेश जाय के निर्णय करेंव, मोला पक्का पता हे कि मोर दादी ह एकदम परेशान हो गे। मोला पाँच साल दुरिहा रहना हे अउ वोकर ये उमर म, कोनों घला होतिस, जाय बर नइ कहितिस, का पता संास ह कब थम जाय। फेर मोर दादी ह मोला नइ छंेकिस। वो ह मोला बिदा करे बर रेलवे टेसन आइस, न तो कुछु किहिस अउ न एको कनी भावुक होइस। वोकर ओंठ मन ह प्रार्थना म सरलग हालत रिहिन, वोकर दिमाग ह घला प्रार्थनच् म लगे रिहिस। वोकर अंगरी मन माला फेरे म लगे रिहिन। चुपचाप वो ह मोर माथ ल चूम लिस।

फेर वइसे नइ होइस। पांच बछर बिता के जब मंय ह लहुट के घर आयेंव, मोला लेगे बर वो ह रेलवे टेसन आय रहय। पांच बछिर पहिली जइसन रिहिस, वइसनेच दिखत रिहिस, वोकर बुढ़पा ह एक दिन घला जादा नइ लगत रहय। वो दिन जइसे आजो घला वो ह कुछू नइ किहिस अउ मोला पोटार लिस। वोकर गायन अउ वोकर प्रार्थना ल मंय सुन सकत रेहेंव। मोर घर लहुटे के पहिली दिन वो ह अपन गौरइया चिरई मन ल चारा खवात अउ वो मन ल मया म खेदारत, बड़ मजा म बिताइस।

सांझ कुन वोकर व्यवहार म थोकुन बदलाव आ गे। वो दिन वो ह प्रार्थना नइ करिस। आरा-पारा के जम्मों माईलोगन मन ल वो घर म सकेल डरिस, कहाँ ले एक ठन जुन्ना ढोलक भिडा़ डरिस, अउ गाय-बजाय के शुरू हो गे। को जनी के घंटा ले गाइन-बजाइन। जुन्ना ढोलक के झोरकहा चमड़ा म थाप दे दे के वो ह, जब कोनों रणबांकुर ह लड़ाई जीत के आथे, वो समय के गीत ल गावत गिस। वोला हम समझा-समझा के थक गेन कि अब बंद करव, जादा म थक के पस्त हो जाहू। वो दिन ह मोर जानत म पहिली दिन रिहिस, जब वो ह प्रार्थना नइ करिस।

दूसर दिन बिहिनिया वो ह बिमार पड़ गे। वो ह केहे लगिस के अब वोकर अंत आ गे हे। वो ह केहे लगिस कि, वोकर जीवन के पहिली अध्याय पूरा होय के कुछ घंटा पहिलिच वो ह प्रार्थना करे म चूक करे हे, अब वो ह आखिरी समय म हमर संग गोठ-बात करके अउ समय नइ गंवाना चाहय।

हम वोकर बात के विरोध करेन; फेर वो ह हमर विरोध ऊपर कोई ध्यान नइ दिस। वो ह एकदम शांत बिस्तर म लेटे रिहिस; वोकर प्रार्थना अउ माला फेरना जारी रिहिस। हमला कोनों अनहोनी के शंका होतिस, येकर पहिलिच वोकर होंठ के हिलना बंद हो गे निर्जीव अंगरी मन ले छूट के वोकर माला ह गिर गे। वोकर चेहरा म एक शांत पीलापन पसर गे अउ हमन जान गेन कि अब वो ह हमला छोड़ के चल दिस।

परंपरा मुताबिक वोला हमन बिस्तर ले उतार के जमीन म लेटायेन अउ वोला लाल कफन ओढ़ा देयेन। कुछ घंटा बाद हमन वोला अकेला छोड़ के वोकर क्रिया-करम के तियारी म लग गेयेन।

वोला अंतिम-क्रिया खातिर लेगे बर सांझकुन अर्थी सजा के हमन वोकर खोली म गेयेन। आंगन के बीच में हमन ठहर गेन। परछी म चारों मुड़ा अउ वोकर खोली म जिहाँ लाल कपड़ा म लिपटे वो ह पड़े रिहिस हजारों-हजार गौरइया चिरई मन फर्स म बइठे रहंय। कोई चिंव-चांव नहीं। देख के हमला दुख होइस, अउ मोर माता जी ह ऊँकर मन बर कुछ रोटी ले आइस। वो ह, जइसे कि मोर दादी ह करय, रोटी के नान-नान कुटका करके ऊँकर आगू म फेंक दिस। गौरइया मन रोटी ऊपर कोई ध्यान नइ दिन। जब हम दादी के अर्थी ल ले के चल देयेन, वो मन वइसनेच् बिना चींव-चांव करे, तुरंत चुपचाप उड़ गिन।

दूसर दिन बिहिनिया, झाड़ूदार ह रोटी के वो कुटका मन ल बहर के कचरा म डार दिस।
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7: विष्णु भगवान के पदचिन्ह

मूल
Marks  of  Vishnu
खुशवंत सिंह

’’ये ह कालिया नाग खातिर’’ सासर म दूघ ल ढारत-ढारत गंगा राम ह किहिस - ’’रोज संझा कुन कोठ तीर के बिला मेर मंय ह येला मंढ़ाथंव अउ बिहिनिया के होवत ले दूध ह सफाचट हो जाथे।’’

’’का पता, बिलई ह पीयत होही।’’ हम नवजवान मन वोला सुझाव देयेन।

’’बिलई!’’ गंगा राम ह हमन के घोर निंदा करिस अउ किहिस - ’’ये बिला के नजीक कोनो इलई-बिलई नइ जा सकय। इहाँ कालिया नाग ह रहिथे। मंय ह वोला जब ले दूध पिलावत हंव, घर के कोनों ल वो ह डसे नइ हे। तुमन बिना पनही-चप्पल के चल सकथव, बेधड़क जिहाँ चाहव खेल सकथव।’’

हमला गंगा राम के संरक्षण के कोनों जरूरत नइ रिहिस।

’’डोकरा पंडित, तंय ह मूरख हस।’’ मंय ह केहेंव - ’’साँप ह दूध नइ पियय, का तंय नइ जानस? कोनों सांप ह एक सासर दूध ल नइ पी सकय। हमर गुरूजी ह बताथे कि साँप ल गजब दिन के बाद म भूख लगथे। कतरो दिन म वो ह कुछू खाथे। एक घांव कांदी म हमन एक ठन सांप देखे रेहेन जउन ह मेचका ल लीलत रहय। मेचका ह वोकर टोंटा म गांठ बरोबर अटके रहय। मेचका के पचे म अउ पुछी तक जाय म कतरो दिन लगथे। हमर स्कूल के प्रयोगशाला म स्पिरिट (मेथिलेटेड स्प्रिट) म डूबे दर्जनों साँप हे। पीछू महीना हमर गुरूजी ह देवार (सपेरा) तीर ले एक ठन सांप लेय रिहिस जउन ह दुनों डहर ले रेंगय। वोकर पुछी डहर घला मुड़ी अउ आँखी रिहिस हे। कांच के जार म जब वोला ओइलाइस, वोकर हालत ह देखे के लाइक रिहिस। प्रयोगशाला म अउ दूसर जार नइ रिहिस तउने पाय के गुरूजी ह विही एके ठन ल लेइस। वो ह करैत साँप रिहिस। वोकर मुड़ी-पुछी दुनों डहर ल धर के कांच के जार म ओइला दिस अउ जार के डंकना ल धरारपटा ढांक दिस। भीतर वो ह गोल-गोल गुरमुटा गे अउ अब तो वो सड़-गल गिस हे।

ये बात ल सुन के गंगा राम ल अबड़ दुख होइस अउ अपन दुनों आँखीं मन ल मूंद के वो ह भगवान के नाव जपे लगिस।
’’तुंहला अपन करनी के फल एक न एक दिन भेगे बर पड़ही। हाँ, जरूर भोगे बर पड़ही।’’

गंगा राम संग बहस करे म कोनों फायदा नइ रिहिस। वो ह एक कट्टर हिन्दू रिहिस हे जउन ल दुनिया के रचयिता ब्रह्मा, पालनहार भगवान विष्णु, अउ संघार करने वाला भगवान शिव के ऊपर पक्का विश्वास रिहिस हे, सब ले जादा भगवान विष्णु के वो ह भक्त रिहिस हे। रोज बिहिनिया वो ह पूजा-पाठ करतिस अउ माथा म चंदन के V आकार के भगवान विष्णु के टीका लगातिस। हालाकि वो ह ब्राह्मण रिहिस, अनपढ़ अउ अंध विश्वासी रिहिस। वोकर अनुसार दुनिया म सब जीव ह पवित्र हे, चाहे वो ह साँप होय, कि बिच्छू होय, कि कनखजूरा होय। जब वो ह कोनों साँप बिच्छू ल देखतिस, वोला तुरते दुरिहा खेदार देतिस ताकि वोला कम से कम हमन झन मार सकन। कोनों दतैया ल जब हमन अपन बेडमिंटन रैकिट म फांसे के कोशिश करतेन तब वो ह वोला तुरते बचाय के कोशिश करतिस। वोकर नुकसान होवल पंख मन के देख-भाल करे के कोशिश करतिस। ये कोशिश म कभू-कभू वोला डंक खाय बर घला पड़ जाय। सांप ह वोकर ये विश्वास ल डिगा नइ सकय। सब ले जादा खतरनाक जानवर सांप ह होथे फेर वोकर बर इही ह सब ले जादा पूजनीय रिहिस। वहू म डोमी, कालिया नाग ह वोकर खातिर सबले जादा पूजनीय रिहिस।

’’तोर कालिया नाग ह हमला दिख गे तब हम वोला मार देबोन।’’

’’अइसन भूल के झन करना। वो ह सैंकड़ों गार पारे हे। तुम यदि वोला मारेव तब वो सब्बो गार मन ले एक-एक ठन कालिया नाग निकलही अउ वो मन ह तुँहर घर भर म छाप जाहीं। तब तुमन का करहू?’’

’’हम वोला जिंदा धर-धर के मुंबई भेज देबोन। उहाँ वोला दुहहीं, वोकर बिख ल निकाल के साँप डसे के बिख उतारे के दवाई बनाहीं। एक ठन जिंदा साँप के दू रूपिया देथें। तब तो सीधा-सीधा दू सौ रूपिया के कमाई हो जाही।’’

’’तुँहर डाॅक्टर मन के थन होवत होही। साँप के थन मंय ह कभू नइ देखे हंव। फेर कहि देथंव! वोला छुए के कोशिश कभू झन करना। वो ह फनियार नाग हरे, वोकर कतरो अकन फन हे। मंय ह वोला देख डरे हंव। वो ह तीन हाथ लंबा हे। वोकर फन ह अइसन हे,’’ गंगा राम ह अपन हाथ के हथेली ल खोल के फन सरीख बना के बताइस अउ अपन मुड़ी ल डेरी-जेवनी डोलाय लगिस। ’’तुम वोला आँगन (लाॅन) म घाम तापत देख सकथव।’’

’’तोर ये बात ले साबित हो गे कि तंय ह झुठल्ला हस। फनियार साँप ह नर होथे, तब वो ह सौ-सौ ठन गार पारिच् नइ सकय। तब तो वो गार मन ल जरूर तहिंच ह पारत होबे।’’

हमर दल म सब झन जोरदार ठठा हे हाँस दिन।

’’जरूर गंगच्राम के गार होही, तब तो एके संघरा सौ-सौ झन गंगा राम देखे बर मिलही।’’

गंगा राम ह चुरमुरा के रहिगे। बहुँत झन नौकर रहंय फेर लइका मन गंगा राम संग जादा मस्ती करंय। वो मन वोला रोज नवा-नवा तरीका ले सतातिन। येमा कोनों मन धरम ग्रंथ नइ पढंय। महात्मा के अहिंसा संबंधी बिचार ल घला नइ जानंय। इंकर तीर चिड़ीमार बंदूक हे जउन म चिराई मन ल मारथंय, अउ जार हे स्पिरिट के, साँप मन ल धरे बर।

गंगा राम ह अपन बिचार ल जीवन के पवित्रता संग जोड़ के देखय। वो ह साँप ल दूध पियाय, वोकर रक्षा करय, काबर कि दुनिया म साँप ह भगवान के सब ले जादा क्रोधी रचना आय। वोला मारे के बजाय वोकर संग प्रेम करव, तब तुमन अपन आप ल साबित कर सकथव।

गंगाराम ह अपन आप ल सिद्ध करना चाहत रिहिस। वोकर बिचार ह भले साफ-साफ समझ म नइ आय फेर वो ह खुद ल साबित करेच् बर रोज सांझकुन साँप के बिला तीर म सासर भर दूध मढ़ातिस जउन ह बिहिनिया के होवत ले सफाचट हो जाय रहितिस।
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एक दिन हमन एक ठन कालिया नाग देखेन। अषाड़ लग गे रिहिस (मानसून ह सक्रिय हो गे रिहिस) अउ वो दिन रातभर पानी गिरे रिहिस। धरती, जउन ह सूरज के तपन के मारे हलाकान हो गे रिहिस, जीव-जंतु अउ आनंद ले फेर भर गे रिहिस। नान-नान डबरा मन म मेचका मन ह टोरटोरावत रिहिन। चारों मुड़ा चिखलच् चिखला हो गे रिहिस जउन म गेंगड़ुवा, कनखजूरा अउ मखमली बीरबहूटी मन  रेंगत रहंय। केला के पाना मन घला हरियर-हरियर छितराय रहंय। कालिया नाग के बिला म पानी भर गे रिहिस होही अउ वो ह आंगन म एक ठन सुक्खा असन जघा म मेंड़री मारे बइठे रहय। सूरज के अंजोर म वोकर करिया, चमकदार फन ह चमकत रहय। वो ह बड़े जबर रिहिस, कम से कम छै फुट के रिहिसेच् होही अउ मरूवा कस मोट्ठा रिहिस होही।

’’वो देख, डोमी साँप। चलो वोला पकड़बोन।’’

कालिया नाग ल पकड़ना सरल नइ होवय। जमीन ह चिखलहूँ हो गे रिहिस। बिला अउ नाली मन म पानी भर गे रिहिस। गंगा राम ह घर म नइ रिहिस।

कालिया नाग ह कुछू खतरा भांप पातिस वोकर पहिलिच हमन वोला घेर लेयेन। हमन के हाँथ म बाँस के लउठी रिहिस हे। कालिया नाग ह हमन ल देख के जोर-जोर से फुफकारे लगिस। वोकर आँखी मन अंगारा कस बरे लगिस अउ लुकाय बर वो ह केरा पेड़ डहर रेंगे लगिस।

जमीन ह एकदम दलदली हो गे रिहिस जउन म वो ह घिसटत रिहिस। मुश्किल से पाँच गज सरके रिहिस होही जब एक ठन लउठी ह वोकर पीठ म बीचों बीच दनाक ले परिस अउ वोकर कनिहा ह टूट गे। रकत संग वोकर लादी-पोटा ह निकल गे अउ चिखला म सना गे। वोकर मुड़ी ह कुछू नइ होय रिहिस हे।

’’वोकर मुड़ी ल झन कुचरो,’’ एक झन संगवारी ह चिल्ला के किहिस - ’’कालिया नाग ल पकड़ के हमन अपन स्कूल म लेगबोन।’’

वोकर पेट खाल्हे लउठी डार के वोला हमन उठायेन अउ बिस्कुट के एक ठन टीपा म भर के टीपा ल डोरी म कंस के बाँध देयेन। टीपा ल खटिया खाल्हे लुका देयेन। रात म गंगा राम ह मोरे तीर रिहिस। मंय ह सांप खातिर सासर म दूध मड़ाय के वोकर अगोर करत रेहेंव। ’’आज रात तंय ह अपन कालिया नाग बर दूध नइ मड़ास?’’

’’हाँ।’’ गंगा राम ह किहिस - ’’जा, तंय ह सुत।’’

वो ह ये बारे म जादा बात नइ करना चाहत रिहिस।

’’अब वोला दूध पियाय के कोनों जरूरत नइ हे।’’

गंगा राम ह ठहर गे।

’’काबर?’’

’’ओह! कुछू नहीं। अब तो बिकट मेचका हो गे हें। वोला दूध ले जादा सुवाद मेचका म आथे। आज तक तंय दूध म कभू शक्कर नइ मिलायेस।’’
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बिहिनिया गंगा  राम ह सासर ल धर के आइस। वोमा रात के दूध ह जस के तस बाँचेच् रहय। वोह बेहद उदास अउ संसो-फिकर म दिखत रहय।

’’मंय ह तोला केहेंव न कि वो ह दूध ले जादा मेचका खाना पसंद करथे।’’

जब तक हमन नाश्ता नइ कर लेयेन, कपड़ा नइ बदल लेयेन, गंगाराम ह हमर तीर ले टरिस नहीं। स्कूल बस आइस। हमन वो टीपा सहित स्कूल बस म चड़ गेन। बस ह जब रेंगे लगिस, टीपा ल बाहिर खींच के गंगा राम ल देखायेन, केहेन - ’’तोर कालिया नाग ह इहाँ हे एकदम सुरक्षित। येला हमन ह स्पिरिट म रखे बर लेगत हन।’’

गंगा राम ल अवाक अउ बेहद दुखी खड़े छोड़ के हमन बस म चढ़ के निकल गेन।
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स्कूल म हो हल्ला हो गे। हमन चार भाई हन। चारों झन मन बहादुर माने जाथन। ये बात ल एक घांव हमन फेर साबित कर देयेन।

’’डोमी (किंग कोबरा)।’’
’’छै फुट लंबा।’’
’’फनियार।’’

टीपा ल विज्ञान के शिक्षक ल सौंपे गिस। अब वो ह गुरूजी के टेबल ऊपर माड़े रिहिस। सांस रोक के हम टीपा खुले के अगोरा करत रेहेन। गुरूजी ह अलग तरीका अपनाइय। वोला काम करे म थोकुन अड़चन होवत रिहिस। वो ह सांप धरे के चिमटा ल मंगाइस। गंदलहा स्पिरिट म सरत करैत के जार ल मंगाइस। वो ह गुनगुनावत टीपा के डोरी ल खोले लगिस।

डोरी ह जइसने ढीला होइस, टीपा के ढकना ह सांय ले हवा म उड़ाइस। गुरूजी के नाक ह मुश्किल से बाँचिस। उहाँ अब कालिया नाग ह फन काढ़े खड़े रहय। वोकर आँखी मन अंगारा के समान दहकत रहय। वोकर साबुत फन ह कंसाय रहय। वो ह गुरूजी के मुँहू डहर फुफकारिस। खुद ल बचाय बर गुरूजी ह पीछू कोती झूलिस अउ कुरसी समेत गिर गिस। फर्रस म गिरे-गिरे वो ह टकटकी लगा के साँप कोती देखत रहय अउ डर के मारे लदलद काँपत रहय। वोकर डेस्क के चारों मुड़ा खड़े पढ़इया लइका मन जोर-जोर से चिल्लाय लगिन।

कालिया नाग ह अपन बरत आँखी म चारों मुड़ा घूम के देखिस। वोकर दुफंकिया जीभ ह उत्ताधुर्रा मुँहू के भीतर-बाहिर होवत रहय। वो ह विकराल दिखत रहय अउ भागे के कोशिश करत रहय। वो ह टीपा सुद्धा भद् ले फर्रस ऊपर गिरिस। वोकर कनिहा ह कतरो जघा ले टूटे रहय। बड़ तकलीफ म वो ह फर्रस म घसीटत मुहाटी कोती रेंगिस। जब वो ह मुहाटी म पहुँचिस, फन काढ़ के खतरा भांपे के फेर कोशिश करिस।

कक्षा के बाहिर सासर अउ मग्गा म दूध धर के गंगा राम ह खड़े रहय। जइसने वो ह कालिया नाग ल आवत देखिस, मड़िया के बइठ गे। सासर म दूध ल ढारिस अउ वोला मुहाटी तीर मढ़ा दिस। वो ह प्रार्थना म अपन दुनों हाथ ल जोड़ लिस अउ क्षमा मांगत-मांगत अपन मुड़ी ल भुँइया म मढ़ा दिस।

साँप ह भयंकर फुफकार मारिस अउ गंगा राम के मुड़ी ल डस लिस। अउ बड़ जोरदार ताकत लगा के नाली म कूदिस अउ आँखी ले ओझल हो गिस।

अपन चेहरा ल अपन हथेली म तोप के गंगा राम हा भुँइया म गिर गे। वो ह दरद के मारे कराहे लगिस। बिख ह बड़ जल्दी वोकर शरीर ल जकड़ लिस। कुछेक मिनट के भीतर वोकर शरीर ह पीला अउ नीला पड़ गे। वोकर मुँहू डहर ले गजरा निकले लगिस। वोकर माथा म रकत के कुछ बूँद दिखत रहय। गुरूजी ह रूमाल म वोला पोंछ दिस। माथा म, जिहाँ वो ह V आकार के टीका लगाय रहय, वोकरे खाल्हे साँप ह वोला डसे रहय।
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R. K. Narayan
(1906 - 2001)


संक्षिप्त परिचय
आर. के. नारायन के पूरा नाम रासीपुरम कृष्णास्वामी अय्यर नारायनस्वामी रिहिस। आपके जनम चेन्नई (मद्रास) म 10 अक्टूबर 1906 म संपन्न अउ शिक्षित परिवार म होय रिहिस। आपके पिता जी ह स्कूल म हेड मास्टर रिहिस। आपके  निधन 13 मई 2001 म होइस। 1933 म राजमा नाम के कन्या संग आपके बिहाव होइस।
आपके रचना के पात्र मन मालगुड़ी के साधारण परिवेश ले आथें अउ आपके लेखनी के जादू ले वो मन असाधारण बन जाथें।
आपके कुछ प्रसिद्ध रचना:-
उपन्यास -     स्वामी एण्ड फ्रैण्ड्स (1935)
        द बैचलर आफ आटर््स (1937)
        द इंगलिश टीचर (1945)
        द फाइनेन्सियल एक्सपर्ट (1952)
        द गाईड (1958)
कहानी संग्रह - मालगुड़ी डेज (1942)
सम्मान अउ पुरस्कार:-
साहित्य अकादमी अवार्ड (1958 - द गाईड)
(इही उपन्यास ऊपर गाईड नाम के फिल्म बनिस जउन ल 1964 म फिल्मफेयर अवार्ड मिलिस)
ए. सी. बेन्सन मेडल (1980, ब्रिटिस सरकार)
राज्यसभा सदस्य (1989)
पद्म विभूषण (2000)
इहाँ अनुवादित कहानी ’टंगिया’ म पेड़-पौधा के प्रति मानवीय संवेदना के वर्णन मालगुड़ी के एक माली के ओखा बड़ सुदर अकन ले करे गे हे।
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8: टँगिया


मूल:
The  Axe
कथाकार: 
R. K. Narayan

गाँव डहर ले नहकत खानी एक झन भटरी ह बचपन म वेलन के बारे म भविसवानी करे रिहिस कि ये ह एक दिन कई एक्कड़ के बगीचा के बीच म बने तिमंजिला मकान म रही। तब ये बात ऊपर छोटकुन वेलन के चारों मुड़ा सकलाय हर आदमी ह वोकर खिल्ली उड़ाय रिहिस।

कोप्पल म वेलन के परिवार के समान गरीब अभागा दूसर अउ कोई नइ रिहिस। वोकर बाप ह घर के सब चीजबस ल गहना धर डरे रिहिस अउ पूरा परिवार सहित, खाली आना-दू-आना हफ्ता बर दूसर मन के खेत म काम करय। वेलन अउ तिमंजिला मकान ....! फेर तीस-चालीस बरस बीते पीछू इही खिल्ली उड़इया मन वेलन ल देखतिन त वो मन भटरी ल वाहवाही (बधाई) देतिन। मालगुड़ी के बाहरी इलाका म आबाद महल ’कुमार बाग’ के वो अकेल्ला मालिक हो गे रहय।

वेलन जब अठारह बछर के होइस, घर ले भाग गिस। एक दिन जब वो ह अपन बाप बर खेत म मंझनिया के खाना पहुँचाय बर गिस; देरी काबर करे कहि के वोकर बाप ह सब के आगू म वोकर गाल म एक तमाचा मार दिस। वेलन ह टुकनी ल उतारिस, अपन बाप ल गुर्री-गुर्री देखिस अउ उहाँ ले भाग गिस।

वो ह गाँव ले भाग गिस अउ चलते गिस, चलते गिस; जब तक शहर म नइ पहुँच गिस। वो ह दू दिन ले लांघन-भूखन रिहिस, येती-वोती जइसे वोकर ले बनिस, मांगत-खावत मालगुड़ी पहुँच गिस। किस्मत ले एक ठन बहुत जबर पलाट म बगीचा बनत रहय तिहाँ के बगीचा रखवार (माली) डोकरा ह वोला वोकर हालत ल देख के दया के मारे अपन टेनपा राख लिस।

बगीचा ह तो माली के कल्पना ले बनथे जेकर सरूप ल वो ह बन-झार, कांदी-कुसा जागे कई एकड़ के जमीन म देख सकत रिहिस। वेलन के एकेच ठन बुता रिहिस, जतका बन-झार रहय वोकर सत्यानाश करे के। दिन ऊपर दिन बीतत गिस, वेलन ह घाम-पियास सहि-सहि के बन-झार मन के सफाया करत गिस। अउ सारा जंगल ह धीरे-धीरे करके गायब होत गिस अउ जमीन ह फुटबाल के मैदान कस एकदम चिक्कन-चाँदुर हो गे।

जमीन के तीन बाजू म बहुत जबर बगीचा बनाय बर अउ एक बाजू घर बनाय बर चिन्हा पारे गिस। घर के नींव खोदे के काम चालू होइस तब आमा के पेड़ घला लगाय गिस अउ वो ह संगेसंग पिकिया घला गिस। विही समय आंगन म नान-नान लीम के पेड़ मन घला हरियाय लगिस। घर के दीवाल ह घला उठे लगिस।

ये साल के गरमी म घर के आगू भाग म अचानक किसिम-किसिम के फूल के पेड़ - दसमत, गुलदाउदी, चमेली, गुलाब अउ सदासोहागी - अघात सुंदर दिखे लगिस। ईंटा जोड़ईया मन संग वेलन ह रेस करे के शुरू कर दिस। अब वो ह बड़े रखवार (माली) बन गिस, काबर कि जउन डोकरा रखवार (माली)  ह वोला अपन संग म रखे रिहिस वो ह अचानक बीमार पड़ गे। वेलन ह अपन पद अउ अपन काम म बड़ा खुश रहय अउ जिम्मेदारी ले अपन सब काम ल करय। वो ह बड़ बारीकी ले पौधा मन के देखभाल करे, ईंटा जोड़ाई के काम ल देखय अउ पानी पलोत समय पौधा मन ल बड़ मया-दुलार के संग कहय - ’मोर नान्हें संगवारी हो, बने आँखी खोल के देखव, घर ह दिन-ब-दिन उचत जावत हे, वो ह तियार हो गे अउ हमन तियार नइ हो पायेन, तब पूरा शहर ह हमर खिल्ली उड़ाही।’ वो ह पौधा के जड़ मन के गुड़ाई करय ताकि उहाँ हवा जा सके, वोमा खातू डारय, डारा मनके छँटाई करय, दिन म दू घांव ले वोमा पानी पलाय। वो ह पेड़-पौधा के एक-एक ठन सुभाव के ध्यान रखय, प्रकृति ह घला येकर इनाम दिस। जब घर के मालिक अउ वोकर परिवार ह ये घर म रेहे बर आइस, वेलन ह वो मन ल बड़ सुंदर अकन बाग-बगीचा भेट करिस।

बड़े-बड़े गुंबद, मकान के चारों डहर लकड़ी के पेंचीदा-चक्करदार काम वाले बालकनी, चिक्कन-चाँदुर गोल-गोल पिल्हर, लंबा-चैड़ा बरामदा, सुंदर चैकोर संगमरमर के फर्रस, अउ लाइन से एक के ऊपर एक बड़े-बड़े हाॅल वाले ये मकान ह महल जइसे शानदार सिर उठा के खड़े हो गे। देख के वेलन ह खुद ल पूछथे - ’येमा का मृत्युलोक के मनखे रहिहीं? अइसन भवन तो स्वर्ग लोक म होथें।’ जब वो ह रसोई-घर अउ भोजन करे के कक्ष ल देखिस, किहिस - ’ये अकेल्लच् खोली म हमर जम्मो गाँव ह समा जाही।’ मकान बनाने वाला ठेकेदार के सहायक ह वोला कहिथे - ’हमन तो येकरो ले जबर-जबर, दू-दू लाख के मकान बनाय-बनाय हन; ये ह का हे? ये ह जादा ले जादा एक लाख के होही। ये ह तो मामूली ले मामूली मकान के घला बराबर नइ हे, बस अतका ...’

अपन झोपड़ी म लहुट के वेलन ह घंटा भर ले वो मकान ल टकटकी लगा के देखत रिहिस अउ मकान बनइया वो आदमी के बात ल मनेमन तौलत रिहिस, वोला वोकर बात ह अचंभा लगिस। उठ के वो ह लीम के पेड़ तिर चल दिस; अंगरी अतका मोट्ठा वोकर पेड़ौरा ल मुठा म धर के हलावत किहिस - ’मोर संडेवाकाड़ी, बस अतकच्? का तंय अपन मुड़ी ल मोर मुड़ी ले ऊपर नइ कर सकस? मंय तोला अपन अंगरी मन म धर के हला सकथंव, अइसे। जल्दी बढ़, छुटकू! जल्दी बढ़, जल्दी बढ़ अउ अपन पेड़ौरा ल अतका मोट्ठा कर ले के दू झन आदमी मिल के घला तोला कबिया झन सकंय। जल्दी-जल्दी बढ़ अउ छा जा। खुद ल जल्दी ये महल म खड़ा होय के लाइक बना ले, नइ ते मंय ह एको दिन तोला उखान के फेंक देहूँ, हाँ।’
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अउ ये ढंग ले जब वो लीम के पेड़ ह लगभग-लगभग वोतका पन होइस, मकान के चमक ह फीका पड़ गे। साल पुट के गरमी अउ चउमासा मन वोकर दरवाजा अउ खिड़की के पेंट मन ल, अउ लकड़ी के समान मन के चमक ल, अउ दीवाल के असली रंग ल चोरा के ले गे अउ वो मन म अपन पसंद के दाग-धब्बा छोड़ दिन। अउ हालाकि वो मकान के चमक ह फीका पड़ गे, वोमा अब जादा आदमीपन आ गे। सैकड़ों तोता, मैना अउ कतरो चिरइ-चिरगुन वो लीम पेड़ के डारा-खांधा मन म अपन बसेरा कर ले रहंय; वोकर छाँव म मकान मालिक के नाती-पोता मन दिन भर खेलत अउ लड़त-झगड़त रहंय। मकान मालिक ह खुद लउठी धर के निहर के येती-वोती रेंगत रहय। घर के मालकिन ह, जउन ह मकान के गृह-प्रवेश के दिन बड़ सुंदर अउ मगन दिखत रहय, अब मुरझुराय अउ मनहूस ढंग ले बरामदा म एक ठन टुटहा कुरसी म दिन भर बइठ के, बगीचा डहर उदसहा-उदसहा टकटकी लगा के देखत, अपन दिन ल बिताय। वेलन ह खुद बदल गिस, अब ये बाग-बगीचा के सेवा जतन करे बर वो ह जादा ले जादा अपन टेनपा मन ऊपर निर्भर हो गे। वोकर दाई-ददा मन गुजर गिन, वोकर घरवाली अउ चैदह झन म आठ झन लोग-लइका मन घला गुजर गिन। अपन बेटा अउ दमाद मन के देखरेख के सेती वो ह अभी तक इहाँ अपन काम ल बचा के रखे हे। पोंगल के समय, नवा खाई के समय अउ देवारी के समय वो ह गाँव जा-जा के अपन चहेता बेटा-दमाद मन ल ले आनय।
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वेलन ह पूरा संतुष्ट अउ सुखी रिहिस। जिंदगी ले वो ह जादा कुछ नइ मांगिस। अउ अइसनेच्, वो बड़े मकान म रहने वाला परिवार ह घला लगय, शांत अउ सुखी। कोई नइ जानय कि आदमी के जीवन ह सदा सुखे-सुख म काबर नइ बीतय। मौत ह कोनहा ले झांक के देखत रिहिस। बात ह सुनगुन-सुनगुन नौकर मन के खोली ले होवत माली के झोपड़ी तक पहुँचिस कि मालिक ह बीमार हे अउ अब खाल्हे वाले खोली म दिन भर पड़े रहिथे। दिन भर डाॅक्टर अउ अवइया-जवइया के रेला लगे रहय अउ अब वेलन ल फूल टोरइया मन ले जादा सचेत रहे बर पड़े। एक दिन अधरतिया वोला जगा के बताय गिस कि मालिक ह अब नइ हे।

अब बाग-बगीचा अउ मोर का होही? मालिक के बेटा मन वोतका अच्छा नइ हें; तुरते वोला चिंता धर लिस।

अउ साबित हो गे कि वोकर डर ह बिन आधार के नइ रिहिस। बेटा मन सिरतोनेच् अच्छा नइ रिहिन। वोमन उहाँ एक साल अउ रिहिन; सदा आपस म लड़त-झगरत रहंय अउ एक दिन दुरिहा, दुसरा मकान म रहे बर चल दिन।
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एक साल पीछू कोई दूसरा परिवार ह उहाँ किराया म रेहे बर आइस। वोमन छिन भर वेलन ल देख के किहिन - ’डोकरा, रखवार! कोनों चालाकी झन करबे। तुँहर जइसन के चाल ल हम जानथन। बने ढंग ले नइ रहिबे, ते धक्कामार के खेदार देबोन।’

वेलन ह देखिस कि जिंदगी ह अब असहनीय हो गे हे। ये मन बाग-बगीचा म कोई घ्यान नइ देवंय। फूल के डोहरी डहर ले रेंग देवंय। लइका मन पेड़ म चढ़ के कच्चा-कच्चा फर ल टोर-टोर के नाश करंय। बगीचा के रस्ता मन के बीच म गड्ढा कोड़ देवंय। वेलन के कुछू केहे के हिम्मत नइ होवय। वो मन वोला हरदम कुछू न कुछू तियारा तियारतेच् रहंय। कभू कुछू काम बता के बाहिर पठो देवंय त कभू गाय-बछरू धोय के काम म लगा देवंय; अउ हरदम लेक्चर झाड़त रहंय कि बाग-बगीचा कइसे उगाय जाथे। ये सब ले वेलन के जी ह उकता जावय अउ कभू-कभू वो ह सोचय कि ये सब ल छोड़-छाड़ के अब वोला अपन गाँव चल देना चाहिए। फेर अइसन करना वोकर बस के बात नइ रिहिस; अपन पेड़-पौधा ले दुरिहा रहि के वो ह जिंदा कइसे रहितिस। अचानक किस्मत हा वोकर साथ दिस; किरायादार मन घर ल छोड़ के चल दिन।

कुछ साल तक मकान म ताला लगे रिहिस।

अचानक एक दिन गुजरे हुए मालिक के लड़का ह आइस, चारों मुड़ा घूम-घूम के बगीचा के मुआयना करिस। धीरे-धीरे वोकरो आना ह बंद हो गे। वो हा तारा-कुची ल वेलन तीर छोड़ दिस। अकस्मात जइसे कि उम्मीद रिहिस एक झन किरायादार आइस। घर ल खुलवा के देखिस, अउ चल दिस ये देख के कि ये तो खण्डहर बन गे हे, प्लास्टर ह उखड़ गे हे, पालिश के नाम म खिड़की-दरवाजा मन म अब सिरिफ एकाध धब्बा भर बचे हे, अउ अलमिरा मन ल दिंयार मन ह खा गे हे। साल भर बाद फेर एक झन किरायादार आइस, फेर दूसरा, फेर तीसरा। एक-दू महीना ले जादा उहाँ कोई नइ रहि सकिस। अउ तब ये घर के इही रवइयच् हो गे।

यहाँ तक कि अब वो घर ल देखे-झाँके खातिर आय बर मालिक ह घला छोड़ दिस। वेलनेच् ह अब घर के मालिक जइसे हो गे। कुची मन वोकरे तीर रहय। वहू अब डोकरा हो गे। हालाकि वो ह मरत ले काम करय, रस्ता मन म अउ घर के आगू फूल पेड़ मन के जघा म दुबी-कांदी, बन-झार अउ नार-बियार जाग गें। फलवाले पेड़ मन ह अभी घला फरय, मालिक ह वो पेड़ मन ल अउ पूरा बगीचा ल तीन साल बर रेगहा बेच दिस।

वेलन ह अब एकदम बुढ़ा गे। वोकर झोपडी ह घला चुहे लग गे अउ खपरा लहुटाय के वोकर हिम्मत नइ रिहिस। इही पाय के अब वो ह मकान के आगू वाले बरामदा म अपन खटिया-गोरसी ल लान लिस। संगमरमर के चैकोन फर्रस वाले ये बरामदा ह बड़ लांबा-चैड़ रिहिस अउ मकान के तीन मुड़ा ल घेरे रिहिस। डोकरा ह किहिस, इहाँ जब मुसुवा अउ चमगेदरी मन ह अपन डेरा जमा सकथें तब मोला का अतका अधिकार नइ हे?

साल म एकाध घाँव, जब वोकर मन करय, घर के तारा ल खोलय अउ साफ-सफाई कर देवय। फेर वो ह धीरे-धीरे यहू ल बंद कर दिस। वो ह अब अतका बुढ़ा गे रिहिस के ये सब काम करना वोकर बस म नइ रिहिस।

साल-दर-साल बिना कुछू बदलाव के अइसने नहक गे। अब वो बंगला के नाम भूत बंगला पड़ गे अउ लोग-बाग येती आना-जाना बंद कर दिन। ये सब मामला म वेलन ल बड़बड़ाय के सिवा अउ कुछू हाथ नइ लगिस। इही ह वोला फबय। तीन महीना म एक घांव वो ह अपन बेटा ल अपन पुराना मालिक के परिवार तीर शहर भेज देवय, तनखा लाय बर।
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एक दिन गेट म एक झन कार वाले ह कार ल खड़ा कर के गुस्सा म जोर-जोर से हारन बजाय लगिस। वेलन ह कुची धर के लंगड़ात-लंगड़ात नजीक गिस।

’’तंय ह कुची धरे हस? गेट ल खोल।’’ कार के भीतर ले कोई ह आदेश दिस।

’’बगल म एक ठन छोटे मुहाटी हे।’’ वेलन ह किहिस।

’’कार जाय बर बड़े गेट ल खोल।’’

वेलन ह रापा ला के गेट के रस्ता म जागे जंगल ल साफ करके कार आय बर रस्ता बनाइस। मुर्चाय कब्जा ह दरकिस अउ गेट ह चरमरा के खुल गे।

वो मन ह जम्मों खिड़की-दरवाजा मन ल खुलवाइन अउ एक-एक ठन चीज ल, ओनहा-कोनहा ल निहार-निहार के देखिन - ’’गंुबद म दर्रा पड़ गे हे, आप देखेव? दीवाल घला दरक गे हे .... कोई दूसरा चारा नइ हे। ये खड़हर ल बेसाव लगाके गिरवा देबोन त येकर थोड़-बहुत चीज ह काम आ सकथे। हालाकि अभी बताना मुश्किल हे कि येकर लकड़ी के सामान मन ह भीतर ले निंधा हें कि खोखला गे हें। भगवान जाने कि अइसन मकान बनाय के पागलपन लोगन ल काबर आथे।’’

वो मन बगीचा म चारों मुड़ा, एक-एक ठन रूख-राई ल घूम-घूम के देखिन अउ किहिन - ’’ये पूरा जंगल साफ करे बर पड़ही। ये सब तो करनच् पड़ही ...।’’

कुछ रूतबादार आदमी मन वेलन ल खाल्हे-ऊपर देख के किहिन - ’’मंय सोचथंव, तंय इहाँ के रखवार आवस? अब हमला बाग-बगीचा के कोई जरूरत नइ हे। रूँधना तीर-तीर के आधा दर्जन रूख-राई मन ल छोड़ के सब्बो जंगल ल साफ करे बर पड़ही। ये सब ल हम बचा के नइ रख सकन। ये फुलवारी ... अं.. एकदम जुन्ना ढंग के अउ बेढंगा हे, येकर आगू के हिस्सा ल छोड़ के सब ल साफ करा देय म ही फायदा हे ....।’’

एक हफ्ता बाद जुन्ना मालिक के एक झन बेटा ह आइस अउ वेलन ल किहिस - ’’डोकर बबा! अब तोला अपन गाँव वापिस जाय बर पड़ही। ये मकान ल हम एक ठन कंपनी ल बेच देय हन। वो मन अब ये बाग-बगीचा ल नइ रखंय। वोमन इहाँ के एक-एक ठन पेड़ मन ल, इहाँ तक कि फलदार पेड़ मन ल घला कँटवा देहीं। रेगहा वाले ल वो मन मुआवजा दे देहीं। वो मन बगीचा अउ मकान सब ल साफ करके इहाँ लाइन से छोटे-छोटे घर बनाही, थोरको खाली जघा छोड़े बिना, कांदी के एक ठन पत्ता ल घला छोड़े बिना।’’
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उहाँ बड़ हड़बड़ी म उत्ताधुर्रा काम चालू हो गे; एके आवंय, एके जावंय अउ वेलन ल वोकर झोपड़ी ले रिटायर कर देय गिस। वोला पंद्रह दिन के मोहलत दिये गिस। जब वो ह थक गे तब जठना म ढलंग गे; आन समय होतिस त अतका बेरा वो ह अपन बगीचा म घूमत रहितिस अउ अपन एक-एक ठन पेड़ मन ल घ्यान से देखत रहितिस, ऊँकर मन संग गोठियात-बतरावत रहितस। वोकर बर एक-एक पल ह कीमती हो गे अउ वो ह मिले मोहलत के आखिरी दिन तक इहाँ रहना चाहत रिहिस; फेर नोटिस मिले के दू दिन बाद, मंझनिहा के बेरा जब वो ह झपकी मारत रिहिस टंगिया के अवाज सुन के झकनका गे। आरी चले के मद्धिम आवाज वोकर कान म आ के टकराइस। वो ह झपट के बाहिर निकलिस। वो ह चिल्ला के किहिस - ’’येला बंद करव।’’ वो ह अपन लउठी ल धर के कटइया मन डहर दंउड़िस। वो ह देखिस कि वो मन वोकर चिल्लाई ल अनसुना कर दिन हें।

’’का बात हे?’’ वो मन पूछिन।

वेलन ह रोवत-रोवत किहिस - ’’ये मन सब मोर बच्चा आवंय। मंय ह येला बोयेंव, बाढ़त देखेंव, मंय ये मन ल अधात प्रेम करथंव, झन काँटव ये मन ल।’’

’’बबा! ये तो कंपनी के आदेश आय; हम का कर सकथन? नइ करबोन ते नौकरी ह जावत रही। अउ आखिर कोई दूसरा आ के ये काम ल करही।’’

थोरिक देर वेलन ह सोचत खड़े रिहिस अउ तब किहिस - ’’ददा हो! का मोर बर छोटकुन अच्छा काम कर सकथव? मोला पल भर के मोहलत देवव। मंय ह अपन कपड़ा-लत्ता ल मोटरा के दुरिहा चले जाहंव। जब मंय ह दुरिहा जाहंव, तुँहर जो इच्छा होही, कर लेना।’’

 वो मन अपन-अपन टंगिया ल मढ़ा दिन अउ वोकर जाय के अगोरा करे लगिन।

थोरकेच् देर म वो ह अपन मुड़ी म मोटरा बोहे अपन झोपड़ी ले बाहिर निकलिस। पेड़ कटइया मन डहर देख के किहिस - ’’ये डोकरा ऊपर तुमन बड़ किरपा करेव ददा हो! बहुत दयालू हव तुमन कि मोर जाय के अगोरा करेव।’’ वो ह वो लीम के पेड़ कोती देखिस अउ वोकर आँखीं डहर ले तरतर-तरतर आँसू बोहाय लगिस - ’’भाई हो, जब तक कि मंय ह दुरिहा, बहुत दुरिहा नइ चल देहंव, तुमन कटई शुरू झन करिहव।’’

पेड़ कटइया मन पालथी मार के बइठ गिन अउ डोकरा ल जावत देखे लगिन। तकरीबन आधा घंटा पीछू वोकर अस्पष्ट आवाज आइस - ’’अभी झन काँटव। अभी मय ह दुरिहाय नइ हंव। थोरिक अउ अगोरा करव, थोकिन अउ दुरिहान दव।’’
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CHAMAN (LAL) NAHAL
(Born 1927, Sialkot)


संक्षिप्त परिचय

चमन नहल के जनम 1927 म सियालकोट (अब पाकिस्तान) म होय रिहिस। आप दिल्ली विश्वविद्यालय म अंग्रेजी केे प्रोफेसर रेहेव। अमरिका सहित एशिया अउ युरोप के कई ठन देश के विश्वविद्यालय म आप विजिटिंग प्रोफेसर के रूप म काम करेव। भारतीय अंग्रेजी लेखक मन म आपके गिनती खुशवंत सिंह अउ सलमान रूश्दी के संग होथे।
महत्वपूर्ण रचना
अब तक आपके 9 उपन्यास प्रकाशित हो चुके हे जउन म चार ठन प्रसिद्ध उपन्यास मन ये तरह ले हे -
1 - Into Another Dawn  (1977)
2 - AZADI  (1977)
3 - The English Queens  (1979)
4 - Sunrise In Fijji  (1988)

आपके सबले प्रसिद्ध रचना  ‘AZADI’ हरे जेकर खातिर आप ल 1977 म साहित्य अकादमी अवार्ड प्रदान करे गिस।
कहानी संग्रह -
The Weird Dance and Other Stories  म आपके कहानी मन संग्रहित हे। अनुवादित कहानी The Silver Lining ह आपके सर्वाधिक चर्चित कहानी हरे। येमा आप मन विकलांग बच्चा मन संग कइसे बर्ताव करना चाहिये, ये बात ल बड़ा मार्मिक ढंग ले बताय हव।
आलोचना के क्षेत्र म घला आपके महत्वपूर्ण रचना के प्रकाशन हो चुके हें अभी आप मन बाल साहित्य ऊपर काम करत हव।
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9: आशा के किरण


मूल कहानी 
The Silver  Lining
कथाकार 
Chaman Nahal

मनखे के मन के भाव के थाह लगा पाना अउ अनुमान लगा पाना बड़ा कठिन काम होथे। सदा हाँसत-मुस्कात रहने वाला, हरियर मन वाले आदमी के हिरदे भीतर भारी दुख हो सकथे, जेकर कीरा ह भीतरे-भीतरे वोला खावत रहिथे अउ जबकि मनहूस, जड़बुद्धि दिखने वाला आदमी ह भीतर ले सुखी अउ परम आनंदित हो सकथे। मनुष्य के जीवन ह बड़ अद्भुत होथे, छिन भर केे सुख-शांति ह मन ल जीत लेथे।

अभी-अभी पहाड़ म एक ठन निजी अतिथि-गृह म ठहरे के मोला बड़ आनंददायक अनुभव मिलिस। मोर एक मित्र ह मोला बहुत जोर लगा के विहिंचेच् ठहरे बर ये कहिके केहे रिहिस हे कि वइसन ढंग के अतिथि-गृह मन म जउन-जउन सुविधा मिलथे, वो सब उहाँ मिलही; विज्ञापन म दावा करके सुविधा ल कम कर देय, अइसन नहीं। वो ह पोस्ट आफिस, बाजार, बस स्टैण्ड ले नजीक हे अउ दुनिया भर के हल्लागुल्ला ले दुरिहा बिलकुल अलग हे। उहाँ ले पहाड़ के सुंदर दृश्य घर बइठे दिखथे। वोकर रंधनीखोली (रसोई-घर) ह बड़ा शानदार हे (मतलब उहाँ स्वादिष्ट भोजन मिलथे) अउ जइसे कि हर जगह मिलथे, बड़ सुंदर-मजेदार मेजबान (होस्टेसेस) महिला मन ह वोकर देखरेख करथें।

मित्र ह जइसन-जइसन दावा करे रिहिस, मोेला बिलकुल वइसनेच् मिलिस। फेर खासतौर ले, वो घर के मेजबानी करने वाली महिला, वोकर घरवाला अउ वोकर छोटकुन बेटी, वास्तव म ये बात ल सिद्ध कर दिन, अउ मोर बड़ आवभगत करिन।

श्रीमती भंडारी, घर के मालकिन ह, पहुँचते सात तुरते मोर व्यवस्था म लग गिस। मोर समान के बेसाव करिस, मोर रहे के खोली अउ वोकर बारे म सब जानकारी दिस, बिन देरी करे एक कप मजेदार काॅफी लान के दिस अउ तब बड़ सहजता ले मोर संग अनौपचारिक ढंग ले बात करत मोर बारे म अउ मोर आय के कारण के जानकारी लिस। वो परिवार ह सब तरीका ले मोर मन ल जीत लिस अउ मोला अइसे लगे लगिस कि मंय ह वोमन ल बरसों पहिली ले जानत हँव।

जब वो मन बात करत रिहिन, मोर ध्यान ह छोटकुन गुड़िया डहर गिस जउन ह सोफा के पीछूडहर लुकाय के कोशिश करत रहय। वो ह आठ साल के रिहिस होही अउ अपन माँ के समान बहुत सुंदर अउ आकर्षक रिहिस हे। वोकर बाल ह चीनी फैसन म छोटे-छोटे, सुंदर ढंग ले कटे रिहिस। वो ह जीन्स अउ आधा बांह वाले ढीला-ढाला जर्सी पहिरे रिहिस, अउ जंगल के छोटे असन राजकुमारी कस दिखत रिहिस। फेर वो ह एकदम डरे-डरे कस दिखत रहय अउ मोर ले बचे के उदिम करत रहय।

वोला देख के मंय ह मुसका देव। वो ह मोर डहर  टकटकी लगा के देखत रहय। मंय ह पूछेव - ’’तोर का नांव हे?’’ अउ इशारा ले वोला अपन डहर बुलायेंव।

वो गुड़िया ह तुरते सचेत हो गे, अपन मुड़ी ल डोलाइस अउ जिहाँ के तिहाँ खड़े रिहि गे। मंय ह वोला एक घांव अउ बुलायेंव - ’’हेलो! बेटा, मोर तीर आ जा।’’ वो ह लजा गे, अउ फेर अपन मुड़ी ल डोलाइस। छिन भर म वो ह दंउड़त बाहिर कोती निकल गे। मोला लगिस कि वो ह रोवत रिहिस।

अचानक मोला लगिस कि मोर व्यवहार ह कोनों ल बने नइ लगिस, खोली म सब चीज ह जिंहा के तिहाँ ठहर गे हे, मंय ह भंडारी मन डहर पलटेंव, वो दुनों झन मन गुस्सावत रिहिन, दुनों के चेहरा म दुख अउ चिंता के भाव देखेंव। श्रीमान भंडारी ह अपन घरवाली के हाथ ल कंस के पकड़ लिस, किहिस - ’’ढांढ साहब, माफ करहू। आप मन देखेव कि हमर बेटी ह न तो कुछू बोल सके, न कुछू सुन सकय, विही पाय के वो ह आप तीर नइ आइस।’’

दबे जुबान मंय ह उँकर मन ले माफी मांगेंव। मोला संशय हो गे अउ आगू कुछू घला बोले के नइ सूझिस। वो गुड़िया के प्रति अपन व्यवहार ले मंय ह झेप गेंव, जउन ह सचमुच म मोर मित्रता के प्रस्ताव के प्रति कोनों तरीका ले भाव प्रगट करे के स्थिति म नइ रिहिस। मोला दुख होइस कि मंय ह वो गुड़िया अउ वोकर माता-पिता के प्रति गलती कर परेंव। 

मंय देखेंव कि तकरीबन रोज वो बिचारा माता-पिता संग इही स्थिति ह दुहराय। रोज एक-दू झन मेहमान जातिन अउ संगेसंग अतका झन आतिन। अउ पहिलिच् मुलाकात म, नइ ते कुछ देर रहि के उँकर ध्यान ह वो लइका डहर जातिस, वोकर सुंदरता अउ भोलापन ह सब ल खींचय, अउ सब झन वोकर ले गोठियाय बर, वोकर ले मेलजोल बढाय बर चाहंय, अइसने रोज होवय। अउ नतीजा वइसनेच् होवय, लइका के थोरिक देर बर मुसकाना, लजाना, अउ अपन माता-पिता के चेहरा म दुख अउ दरद के भाव छोड़ के रोवत-रोवत बाहिर कोती भाग जाना। जादातर आवइया मन अक्सर बड़ा लंबा-चैड़ा खुराजमोगी करंय कि लइका के ये अपंगता ह कइसे होइस, जनम से ये ह अइसने हे कि कोनों अलहन के सेती अइसे होय हे; कोनों-कोनों मन अपन परिवार म होय अइसने अपंगता के चर्चा करंय अउ पूछंय कि का इलाज चलत हे।

ये सवाल मन के जवाब देय म माता-पिता ल परेशानी अउ अपार दुख होवय। जउन बात ह मोला कचोटय, वो रिहिस ये स्थिति के सबले खराब हिस्सा, कि लड़की ह पथराय नजर ले देखय, वोकर आँखी म डर अउ दया के भाव रहय काबर कि वो ह ये बात ल जानय कि ये सब चर्चा ह विही ल ले के होवत हे। घर के चारों मुड़ा दंउड़े या फेर नौकर मन संग खेले के अलावा वोकर तीर अउ कोनों काम नइ रहय। वो ह स्कूल नइ जावय, काबर कि उहाँ वइसन मन के पढ़े-पढ़ाय के कोनों व्यवस्था नइ रिहिस। वोला घरे म पढ़ाय के कोशिश करे गिस फेर वोमा सफलता नइ मिलिस। जब कोनों वोकर कान म जोर से चिल्लातिस तब वो ह हल्का-हल्का जरूर सुन पातिस, फेर समझ नइ पातिस अउ कभू-कभू अस्पष्ट ढंग ले ’मा..मा’ या ’अंन..ल’ केहे के अउ जानवर मन सरीख चिल्ला के रोय अउ हँसे के सिवा वो ह अउ कुछू नइ गोठिया पातिस। अपन बात केहे के वोकर सारा काम हाथ के इशारा से चलय अउ जब कोनों वोकर इशारा ल नइ समझ पातिस, वोला अपार दुख होतिस।

रोज-रोज के अइसन अपमान अउ दुख ले बचाय खातिर एक दिन मंय ह भंडारी दम्पति ल एक ठन सुझाव देयेंव, जउन ल करे बर वो मन मान गें। हमन तय करेन कि एक ठन कागज टाइप करके, वोला बकायदा सीलबंद लिफाफा म, जइसने कोनों नवा मेहमान आथ्ंाय, वोला थमा दिया जाय। कागज म लिखाय रही - ’हमर बेटी ह गूंगी अउ बहरी हे। जल्दबाजी म वोकर संग दोस्ती करे के कोशिश म आप वोला दुख पहुँचा सकथव। वो ह न तो कुछू समझ सकय अउ न कोनों बात के जवाब दे सकय। आपसे निवेदन हे कि वोला समय देवव ताकि वो ह आप ल समझ अउ पहचान सकय। धन्यवाद।’

बच्ची ल अस्पताल म भरती कराय के संबंध म बात आइस, श्रीमती भंडारी ह ये कहिके येकर समाधान कर दिस के वो ये बात म राजी नइ हे। (चिट के बारे म) वोकर अनुसार, जउन आदमी मन चार दिन के मेहमान बनके इहाँ रहे बर आथें, वो मन ल ये चिट देना उचित नइ होही। तभो ले वो ह बच्ची ल आने वाला अनचिन्हार दुख अउ तकलीफ ले बचाय खातिर अपन सहमति दे दिस।

ये उपाय ह उम्मीद ले जादा कारगर साबित होइस। हालाकि कुछ सवाल अभी घला माता-पिता ल दुखी कर देवंय, कि बिचारी बच्ची ह अलग-थलग पड़ गे। फेर पीछू चल के धीरे-धीरे बच्ची ह खुदे बहुत अकन मेहमान मन संग हिलमिल गे। भंडारी मन राहत के सांस लिन कि चलो, फिलहाल एक ठन समस्या के तो हल निकलिस।

एक दिन उहाँ एक झन अपरिचित मेहमान आइस।

मंझनिया बीते पीछू के बात आवय, जब मंय ह घर मालिक संग मोर अगले दिन खतिर खाना जोरे बर गोठियावत रेहेंव, काबर कि अगले दिन मंय ह तीरतखार के गुफा मन ल देखे बर जाय के योजना बनाय रेहेंव। घर मालिक ह आने वाला नवा मेहमान बर, जउन ह पूरा एक सीजन बर एक ठन खोली बुक कराय रिहिस, अउ अब वो ह इही बखत आने वाला रेलगाड़ी म कभू घला आ सकत रिहिस, व्यवस्था करे के हड़बड़ी म रिहिस।

अउ सचमुच म एक झन जवान ह; कुली संग, जउन ह वोकर समान ल लानत रिहिस, पहुँच गिस। मेहमान युवक, जउन ह एकदम ढीलाढाला, उतरे कंधा वाले सूट अउ झोलंगा छाप पैजामा पहिने रिहिस, मुश्किल से पच्चीस साल के रिहिस होही। सफर के सेती वो ह एकदम जकड़हा कस (अव्यवस्थित) दिखत रिहिस, वोकर बाल, वोकर पनही सब ल व्यवस्थित करे के जरूरत रिहिस। फेर वोकर चेहरा बड़ प्रसन्नचित्त अउ आँखीं मन चमकदार रिहिस।

भंडारी जी ह आगू बढ़ के पूछिस - ’’शायद आप श्री डेविड हरव।’’

युवक ह नजीक ले वोकर चेहरा ल देखिस अउ हँस के मुड़ी ल नवा दिस।

’’कृपया आप के खातिर 18 नं. के खोली म सब कुछ बिलकुल तियार हे।’’

युवक ह वोला फेर देखिस, हँसिस अउ मुड़ी ल नवा दिस। कुली ल वो ह वोकर मेहनताना दिस, जउन ह वोला सलाम ठोक के, काबर कि वोला बाकी के पइसा ल वापिस नइ मांगे गिस, गायब हो गे। युवक ह मोर डहर मिताई के भाव ले देखिस अउ एक ठन बड़े असन रजिस्टर के आगू म बइठ गे जउन ल मकान मालिक ह वोकर आगू म सरकाय रिहिस, जउन म वोला अपन आय के कारण अउ दिन-तिथि लिखना रिहिस।

विही समय वोला टेबल ऊपर वोकर नाम लिखे विही चिट वाले सीलबंद लिफाफा मिलिस। वो ह फटाफट वो लिफाफा ल खोल डरिस। संजोग से विही समय वो खोली म मकान मालकिन के आना हो गे। वो ह अपन पति ले पूछिस कि इही ह वो आने वाला नवा मेहमान तो नो हे, अउ आगू बढ़़ के वो ह वो जवान ले हाथ मिलाइस।

’’डेविड जी! आपके यात्रा बने-बने पूरा होइस?’’ वो ह सुंदर अकन मुसका के पूछिस।

युवक ह हँस के अनमना ढंग ले मुड़ी ल नवा दिस, जइसे कहत होय कि - ’न जादा बने, न जादा खराब।’’

’’आप तुरंत गरम पानी से नहाना चाहहू कि पहिली गरमागरम काॅफी पीना चाहहू?’’

युवक ह अपन होंठ मन ल उला दिस, अपन खांद मन ल उचका दिस जइसे कहत होय कि दोनों म कुछू होय, चलही। मकान मालिक अउ मकान मालकिन, दुनों झन ये अनुमान लगाइन अउ एकमत होइन कि नवा मेहमान ह बड़ा अक्खड़ अउ घमंडी हे, काबर कि वो ह उँकर मन के विनम्र भाव ले पूछे गेय कोनों बात के जवाब नइ देवय।

इही बीच वो युवक ह लिफाफा के भीतर रखे चिट ल निकाल के पढ़े लगिस। पढ़ते सात वो ह अचंभित हो के येती-वोती देखे लगिस। वो समय छोटे बच्ची, प्रमोदिनी ह आंगन म खेलत रिहिस। वो ह फूल के क्यांरी मन तीर बइठे रिहिस। युवक ह हमर मन कोती मुसका के देखिस अउ वोकरे कोती दंउड़ गिस।

’’अब तो ये ह बड़ा विचित्र हो गे’’ - श्रीमती भंडारी ह चिल्ला के वोला रोकिस, किहिस - ’’कतका जंगली हे।’’

’’ये तरीका ले वोला हमर निवेदन के तिरस्कार नइ करना चाही।’’ मकान मालिक ह थोरिक शांत भाव म बोलिस। महूँ ह थोरिक उदास हो गेंव। सचमुच म अजनबी मन ले प्रमोदनी ल दुख अउ हीनता ले बचाय खातिर करे गे हमर उपाय ये समय फेल होवत दिखिस।

थोरिक देर बाद हम सबो झन बाहिर बरामदा म आ गेन। मोर अनुमान रिहिस हे कि ये घटना ले माता-पिता अउ बच्ची सब ल अपार दुख होही।

बाहिर आ के हमर सामना जउन दृश्य ले होइस वोकर हम जरा भी कल्पना नइ करे रेहेन।

युवक ह दूबी वाले मैदान म लेटे रिहिस अउ प्रमोदिनी ह वोकर गोद म बइठे रिहिस। वो ह वोला फूल मन ल देखावत रिहिस।
अउ अचानक, बड़ जोरदार, फटाका फूटे कस  - प्रमोदिनी के जोरदार हँसी के आवाज ह हवा ल चीरत निकल गे। माता-पिता मन अचरज अउ चकित हो के एक-दूसर कोती देखे लगिन।

श्रीमती भंडारी ह किहिस - ’’कतरो साल ले हमर बच्ची ह अइसन हँसी नइ हँसे रिहिस।’’

हमन देखेन, वो दुनों झन एक-दूसर के हाथ धरे हमरे कोती आवत हें। प्रमोदिनी ह दंउड़ के अपन माँ से लिपट गे अउ मारे खुशी के चारों मुड़ा घूम-घूम के नाचे लगिस। वो ह ’मा-मा’ कहिके चिल्लाय लगिस अउ वो युवक डहर इशारा करे लगिस।
जइसे डेविड ह हमरेच् मदद करे बर आय रिहिस। जल्दी हमला पता चल गे कि वहू ह गूंगा अउ बहरा हे।

वोकर अजनबीपन, वोकर संदेहास्पद चुप्पी, अउ वो चिट ल पढ़ के अचानक वोकर बच्ची डहर दौड़ना, ये सब के कारण ह अब एकदम साफ हो गे। बात ल माने म हमला क्षण भर समय लगिस। तब दुनों अभिभावक मन वोकर ले क्षमा मांगिन, ये कहि के कि शुरू म वो मन वोला नइ समझ सकिन।

वो मन अनुमान  लगा के गोठियात रिहिन, वो मन आधा बोलंय अउ बांकी ल इशारा म समझे-समझाय के कोशिश करंय।

फेर वो युवक ल वोकर बोली ल समझे म जरा भी कठिनाई नइ होवत रिहिस। वो ह वोकर होठ के हिलई ल पढ़ लेवय। वो ह मुड़ी नवा के नइ ते मुड़ी डोला के उत्तर देवय, जादा कठिन सवाल के उत्तर देय बर वो ह पेन-कापी के मदद लेवय।

(बात अइसन आय; वो भैरा-कोंदा युवक ह भैरा-कोंदा मन के स्कूल म पढ़े रिहिस, अउ इहाँ घला भैरा-कोंदा मन बर स्कूल खोलेे    के नाम से आय रिहिस, अउ आते सात प्रमोदिनी के रूप म वोला अपन पहिली विद्यार्थी मिल गिस।)

दूसर दिन श्रीमती भंडारी ह बिकट प्रसन्न रिहिस अउ बेफिकर लड़की मन कस खिलखिला-खिलखिला के हाँसत रिहिस। वो दिन वो ह भोजन म हमन ल उपरहा जैम, मक्खन अउ मदरस दिस। वो ह दुनिया के सबले सुखी औरत लगत रिहिस।
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RUSKIN BOND
(रस्किन बांड)
19 मई 1934 से अब तक

संक्षिप्त परिचय

ब्रिटिश मूल के भारतीय नागरिक रस्किन बांड के जनम 19 मई 1934 म कसौली, हिमाचल प्रदेश के मिलिट्री अस्पताल म होय रिहिस। इंकर पिताजी ह ’राॅयल एयर फोर्स’ म नौकरी करय। जब इंकर अवस्था ह चार साल के होइस येकर माँ ह अलग हो गे, अउ 1944 म मलेरिया म इंकर पिताजी के फौत हो गे। तब अनाथ रस्किन बाण्ड ह अपन दादी संग देहरादून म रहे लगिस।

रचना
The Room On The Roof प्रसिद्ध उपन्यास हरे जउन ल ये मन अपन 17 साल के अवस्था म लिख डरे रिहिन अउ 21 साल के इंकर अवस्था म येकर प्रकाशन होइस। पाछू चल के येकर दूसर भाग Vagrants Of The Valley लिखे गिस। दुनों के संघरा प्रकाशन 1999 म होइस। ये ह आत्मकथात्मक उपन्यास हरे जेमा अनाथ बच्चा मन के जीवन के वर्णन हे। लइका मन बर आप मन ह 30 ले जादा किताब लिखे हव। बाल साहित्यकार के रूप म आपके पहिचान हे।

फिल्मी जगत म काम

-आपके ‘A Flight Of Pigeon’ नाम के ऐतिहासिक उपन्यास ऊपर शशि कपूर ह 1978 म ’जुनून’ नाम केे फिल्म बनाइस।

- विशाल भारद्वाज ह आपके ‘Susann’s seven Husband’ नाम के कहानी ऊपर ’सात खून माफ’ नाम के फिल्म बनाइस। येमा आपो मन काम करे हव।

- The Blue Umbrella नाम के कहानी ऊपर विशाल भारद्वाज ह बाल-फिल्म बनाइस।

- The Room On The Roof ऊपर बी. बी. सी. ह टी.व्ही. धारावाहिक के निर्माण करिस।

पुरस्कार
- ’साहित्य अकादमी’ पुरस्कार 1992, बाल साहित्य लेखन खातिर *Our Trees Still Grow in Dehraa* ऊपर।
- भारत सरकार के ’पद्म श्री’ सम्मान 1999 म।
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10: पतंगसाज

मूल कहानी
The Kite Maker
कथाकार
RUSKIN BOND
(रस्किन बांड)

एक बहुत जुन्ना मस्जिद, जउन ह खण्डहर हो गे रिहिस, नमाजी मन जिहाँ नमाज पढ़ना छोड़ देय रिहिन हे, के दीवाल के दर्रा म एक ठन बर रूख जाम गे रिहिस। ये गली म, जउन ह गली राम नाथ के नाम से प्रसिद्ध रिहिस, खाली इही एके ठन पेड़ रिहिस, अउ येकरे डंगाली म छोटकू, अली के पतंग ह टंगा गे रिहिस।

लइका ह, खाली पांव अउ सिरिफ चिरहा कुरता भर पहिरे, अपन इही संकुरी गली के धरहा पथरा के ऊपर (अपन घर कोती) दँउड़े जावत रिहिस, जिंहा आँगन के पिछवाड़ा म वोकर डोकरा बबा ह अपन मुडी ल डोलावत दिन के अँजोर म घला सपना देखत बइठे रिहिस।

’’बबा, बबा!’’ लइका ह चिल्लाइस, ’’पतंग ह चल दिस।’’

डोकरा ह झकनका के अपन सपना ले जागिस अउ मुड़ी उचा के, अपन पक्का दाढ़ी संग खेलत जेला मेंहदी रचा के अभी तक रंगे नइ गे रिहिस, देखिस।

’’वोकर डोरी ह टूट गिस का?’’ वो ह पूछिस। ’’मंय ह जानथंव, वो पतंग के डोरी ह वइसन नइ रिहिस, जइसन होना चाही।’’

’’नहीं बबा! पतंग ह बर रूख म अटक गिस हे।’’

डोकरा ह खुलखुल-खुलखुल हँासिस। ’’मोर छुटकू, तोला अभी ले घला पतंग उड़य बर नइ आइस। अउ तोला सिखाय के अब मोर उमर नइ हे। बस अतका बात हे। फेर कोई बात नही, दूसर ले जा।’’ अभी-अभी वो ह बांस के बान, कागज अउ झेंझरहू सिलकन कपड़ा ले एक ठन नवा पतंग बना के वोला सुखाय बर घाम म मड़ाय रिहिस। ये ह पींयर-गुलापी रंग के रिहिस, हरियर पूछी वाले। डोकरा ह येला अली ल दे दिस, अउ अली ह अपन दुनों एड़ी मन ल उठा के खुद ल उचाइस अउ डोकरा के चेपलवा गाल मन ल चूम लिस।

’’येला मंय ह नइ गवांव,’’ वो ह किहिस, ’’ये पतंग ह तो चिरइ मन सही उड़ही।’’

अउ वो ह अपन एड़ी के बल घूमिस अउ देखते-देखत गायब हो गिस।
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घाम तापत-तापत डोकरा ह अपन सपना म फेर खो गिस। वोकर पतंग के दुकान ह उरक गिस, दुकान अउ वोकर सबो समान ल बहुत साल पहिलिच् वो ह एक झन कबाड़ी वाले तीर बेच देय रिहिस। फेर अपन मन-बहलाय बर अउ अपन छुटकू, नाती अली के खेले बर वो ह आजो घला पतंग बनाय के काम ल नइ छोड़े हे। आजकल के जमाना म पतंग के खरीददार जादा नइ रहि गिन। बड़े मन अब येकर तिरस्कार करथें, लइका मन अपन पइसा ल सिनेमा देखे म खरचा करना चाहथें। येकर अलावा पतंग उड़ाय बर अब जघच् कतका बचे हे। शहर ह (पतंग बाजी के) हरा-भरा मैदान ल लील डारिस जउन ह जुन्ना किला के दीवाल ले लेके नदिया के करार तक फैले रिहिस।

फेर डोकरा ह वो जमाना के सुरता करथे जब मैदान म इक्का-दुक्का पतंग उड़तिस अउ देखते-देखत पतंगबाजी के महाभारत शुरू हो जातिस। जब तक कोनो एक ठन पतंग के डोरी ह कटा नइ जातिस, पतंग मन ह घूम-घूम के एक दूसर ऊपर झपट्टा मारतिन, अउ गुत्थमगुत्था हो जातिन। तब हारे, पन सुतन्त्र पतंग ह तंउरत-तंउरत नीला अगास म कोन जानी कोन लोक म गायब हो जातिस। बड़े-बड़े बाजी लगतिस अउ पइसा ह सरलग येकर हाथ ले वोकर हाथ किंजरत रहितिस।

तब पतंगबाजी ह नवाब अउ राजा-महाराजा मन के खेल रिहिस। डोकरा ह सुरता करथे कि ठाट-बाट के वो जमाना म तब कइसे नवाब अउ राजा-महाराजा मन खुद हो के अपन सब संगी-संगवारी अउ हितु-पिरीतु मन संग नदिया के खड़ोर म सकला जातिन। कागज के ये नचकार संग हँसी-खुशी म समय बिताय बर तब लोगन कना बहुत समय रहय। अब तो हर आदमी ल जल्दी हे, काम सधाय के जल्दी हे, अउ जल्दबाजी म पतंगबाजी अउ दिनमान के सपना देखई, जइसन नाजुक चीज ल अपन पाँव तरी रमजत जावत हें।
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पतंगसाज महमूद, जब वोकर जीवन के अच्छा दिन रिहिस, ये शहर म भला वोला कोन नइ जानय? नवा-नवा ढंग, नवा-नवा डिजाइन के वो ह पतंग बनातिस, अउ वोकर बनाय कतरो पतंग मन ह तीन अउ चार रूपिया तक म बेचा जातिस। नवाब के कहे म एक घांव वो ह बड़ विचित्र ढंग के पतंग बनाय रिहिस; अतका विचित्र ढंग के कि वइसन पतंग वो जिला भर के कोनो आदमी ह कभू कहीं नइ देखे रिहिन हें। येला बहुत पतला कागज के नान्हें-नान्हें ढेर सारा चकती मन ल, कमचील के बारीक-बारीक बांक के चैंखटा मन म लगा-लगा के, लाइन से एक के पीछू दूसर ल जोड़-जोड़ के बनाय गे रिहिस हे। डगमगाय झन कहिके (बैलेंस बनाय खातिर) वो ह कागज के सबो चकती मन के आखिरी छोर मन म दूबी के डारा मन ल बांध देय रिहिस। सबले अव्वल नंबर के चकती के ऊपर वाले भाग ह थोकुन डिपरहा रिहिस, अउ वोमा बड़ मजेदार चेहरा के पेंटिग करे गे रिहिस हे, जेमा नान्हंे-नान्हें गोेल दर्पण के दू ठन आँखी बनाय गे रिहिस। मुड़ी कोती के चकती ह सबले बड़े, फेर वोकर पीछू वाले मन छोटे, अउ छोटे, अउ सबले आखरी वाले ह सबले छोटे रिहिस जेकर ले वो पतंग ह जमीन म रेंगने वाला कोनों अजीब अउ भयंकर डरावना प्राणी कस दिखत रहय। भारीभरकम ये पतंग ल जमीन ले ऊपर उठा के उड़ाय बर बड़ भारी कलाकारी के जरूरत रिहिस अउ ये काम ल खाली महमूदेच् ह कर सकत रिहिस।

येमा कोई शक के बात नइ रिहिस, हर आदमी ह सुन डरे रिहिस कि महमूद ह बड़भारी अजगर सरीख (ड्रेगन) पतंग बनाय हे, अउ चारों कोती यहू अफवाह बगर गे रिहिस कि वोकर भीतर मरी-मसान के पइधारो हो गे हे। जब मैदान म वोला नवाब के आगू, जनता के बीच पहली घांव उड़ाय गिस, वो दिन बड़ भारी भीड़ जुरिया गे रिहिस। पहिली कोशिश म तो वो पतंग ह हालिस तको नहीं। वोकर चकती मन ह भयंकर अवाज करिन अउ गरगरा के उड़े बर इनकार कर दिन, वोकर आँखी मन म सुरूज ह चमकत रहय, अउ वो पतंग ह सचमुच के जीता-जागता कोनो भयंकर जीव कस दिखत रहय।

अउ तभे सही दिशा डहर ले अच्छा, बने ढंग के पवन चले के शुरू होइस अउ वो राक्षस बरोबर पतंग ह हवा म तंउरे लगिस, ऊपर, अउ ऊपर जाय बर छटपटाय लगिस, कांच के वोकर आँखीं मन ह सुरूज म डरडरान असन चमकत रहय। वो पतंग ह जब भयंकर जोर लगा के डोरी ल खींचे लगिस तब महमूद के बेटा मन ह घला वोला संभाले बर मदद करे लगिन। तभो ले वो पतंग ह खींचते गिस, मुक्त होय के चाह म, अपन जीवन ल सुतंत्र ढंग ले जीये बर।

अउ तब विही होइस जउन होना रिहिस। डोरी ह टूट गे, पतंग ह सूरज के दिशा म गोता खाय लगिस अउ अंत म उड़त-उड़त आँखी ले ओझल हो गे। वो ह फेर कभू नइ मिलिस, अउ पीछू चल के महमूद ल खुदे अचरज होइस कि वो ह अतका
जीता-जागता, जीवित प्राणी कस पतंग बनाय रिहिस। वोकर बाद वो ह वइसन पतंग अउ नइ बनाइस, फेर वोकर बदला वो ह नवाब ल भेट करे खातिर एक ठन संगीत के सुर निकालने वाला पतंग (म्यूजिकल काइट) बनाइस जउन ह उड़े के समय वीणा के धुन कस अवाज करे।

हाँ! तब वो ह फुरसत के जमाना रिहिस। फेर बहुत साल पहिली नवाब के फौत हो गे; वोकर वंशज मन गरीब हो गें, महमूद के समान। पतंगसाज मन के, कवि मन के, विही मन तो माई-बाप रिहिन; महमूद के अब कोई नइ रहि गिस। वोकर अब कोनों पुछंता नइ रहि गिस, वोकर नाम अउ वोकर धंधा सब उरक गिस, अब हालाकि ये गली म हजारों आदमी रहिथें, फेर अपन पड़ोसी के चिंता कोनों नइ करंय।

जब वो ह छोटे रिहिस अउ बीमार पडे़ रिहिस, तब अड़ोसी-पड़ोसी मन रहि-रहि के वोकर हालचाल पूछे बर आवंय। अब जब वोकर जीवन के अंतिम समय आवत हे, वोला देखे बर कोनो नइ आवंय। वोकर जुन्ना संगवारी मन म जादातर ह गुजर गे हें। वोकर (महमूद के) लइका मन जवान हो गे हंे; एक झन ह विहिचे एक ठन गैरेज म काम करथे, दूसर ह देश के बंटवारा के समय पाकिस्तान म जा के बस गिस।

जउन लइका मन दस साल पहिली वोकर ले पतंग बिसावंय, वहू मन अब जवान हो गे हंे; अपन घर-परिवार चलाय बर मरत-खपत हें, ये डोकरा बर अउ वोकर हालचाल पूछे बर उँकरो मन तीर अब समय नइ हे। छिन-छिन म तेजी से बदलत, कंपीटीसन के ये युग म उँकर नजर म पतंग बनइया ये डोकरा अउ वो बरगद के जुन्ना पेड़ म कोनों फरक नइ हे। दुनांे झन ले अब कोनों ल कोई सरोकार नइ हे, चारों मुड़ा ले वो मन आदमी अउ आदमी के भीड़ ले घिरे हें, फेर उँकर मन बर वो मन बीते जुग के फालतू चीज बरोबर होे गे हें। जादा दिन नइ होय हे, पारा भर के आदमी बरगद के छाँव म जुरियातिन, अपन समस्या के बारे म चर्चा करतिन (दुख-पीरा के गोठ ल गोठियातिन), नवा काम के योजना बनातिन; अब तो कोनों-कोनों भूले-भटके मन खाली गर्मी के दिन म सूरज के ताप ले बचे खातिर, सुस्ताय बर येकर छाँव म आ जाथें।
फेर, अब तो वोकर फिकर करइया एके झन बाच गे हे, वोकर नाती। एक बात अच्छा हे कि वोकर बेटा ह वोकर नजीके म काम करथे, वो अउ वोकर दमाद मन वोकरे घर म रहिथें। जब वो ह अपन नाती ल ठंड के सुहाती घाम म खेलत देखथे, डट के खातू-पानी म दिन-दिन हरियवात, नवा-नवा डारा-पाना उल्होवत कोनों पेड़ कस जवान होवत देखथे, तब वोकर हिरदे ह गद्गद् हो जाथे।

पेड़ अउ आदमी म गजब के बराबरी हे। दुनों मन एक जइसे बाढ़थें, यदि कोनों इनला नुकसान झन पहुँचांय, या खाय-पिये म कमी झन होय, या कोनों कांटे झन। अपन जवानी के दिन म ये मन बड़ा दिव्य (मस्त-मलंग) लगथें अउ बुढ़पा के दिन म इंकर कनिहा ह नव जाथे। बीते जुग के सुरता करथें, अपन कमजोर बाजू मन ल सूरज के अंजोर डहर उठाथें, आह भरथें अउ अपन अंतिम पाना के झरत ले झांव करत रहिथें।

महमूद ह घला बरगद के पेड़ कस हे, जेकर हाथ मन ह अब बंधा गे हे, कोनों जुन्नेट पेड़ के जर मन सरीख अँइठ गे हें। अली ह आँगन के छोर म (अभी-अभी) जामत छुईमुई के पेड़ कस हे। पीछू दू साल म दूनों झन, वो अउ वो पेड़ ताकत अउ आत्मविश्वास बटोरत आवत हें जउन ह जवान मन के विशेष लक्षण होथे।

गली के अवाज ह धीरे-धीरे मद्धिम पड़त गिस, महमूद ल अचरज होइस कि कहीं वोला नींद तो नइ आवत हे अउ वो ह जइसे अक्सर वोकर संग होथे सपना देखे लगिस कि वो ह हिन्दू मन के भगवान विष्णु के प्रसिद्ध सवारी, दुधिया सफेद रंग के सुंदर, ताकतवर पंछी, गरूड़ के समान एक ठन सुंदर बड़ेजन पतंग बनावत हे।

वो ह अपन नाती अली बर अइसने एक ठन अद्भुत पतंग बनाय के अक्सर सोचय। वोकर तीर अउ तो कुछू नइ रिहिस, लइका खातिर छोड़ के जाय बर।

थोरिक दुरिहा ले वो ह अली के अवाज सुनिस, फेर वोला परतिंग नइ होइस कि लइका ह विही ल पुकारत हे। अइसे लगिस कि अवाज ह बहुत दुरिहा ले आवत हे।

अली ह आँगन के मुहाटी म खड़े हो के पूछत रिहिस कि वोकर माँ ह अभी तक बजार ले लहुटिस कि नहीं। जब महमूद ह कोनों जवाब नइ दिस, लइका ह नजीक आ के अपन सवाल ल दुहराइस। सूरज के तिरछा किरण ह वोकर चेहरा म चमकत रहय, एक ठन नानुक तितली ह वोकर हवा म लहरावत दाढ़ी म बसेरा कर ले रहय। महमूद ह एकदम शांत परे रहय; अउ जब अली ह अपन छोटे-से भुरवा हाथ ल वोकर खांद म मड़ाइस, वो ह कोनों हरकत (चिटपोट) नइ करिस। लइका ह एकदम मद्धिम अवाज सुनिस, जइसे वोकर जेब म रखे बाँटी मन ह रगड़ावत होंय।

घबरा के अचानक अली ह घूमिस, मुहाटी तीर गिस, अउ अपन माँ ल पुकारत वो ह गली म भग गिस। अउ तभे अचानक हवा के ताजा झोंका आइस, अउ बरगद के वो पेड़ म अटके वो पतंग ल उड़ा के ले गिस, रात-दिन संघर्षरत (हाय-हाय करत) अउ थकेमंदे ये शहर ले दुरिहा, नीला अगास म ऊपर, अउ ऊपर।
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11: मारकस

मूल कहानी
My Dog Marcus
Colin Howard
कोलिन होवार्ड

कोई घला, जउन मोर बड़े जबर, सुंदर, आलसी, मूर्ख, सेंट बर्नार्ड नस्ल के मारकस से मिलतिस, विश्वास नइ कर पातिस कि अभी-अभी वो ह कोनो आइडिया सोचे हे। ये बात पक्का हे कि वो ह जउन आइडिया सोचे हे, वो ह वोकर जिन्दगी के पहिली आइडिया आय अउ मंय हा सोच नइ सकंव कि ये आइडिया ल वो ह सोचिस कइसे होही।

वो आइडिया ह कुछ अइसे रिहिस कि जउन ह सेंट बर्नार्ड के जिन्दगी ल आरामदायक बना देय। ये संबंध म मारकस के विश्वास रिहिस कि दिन के सोलह घंटा ह सुते बर, छः घंटा ह आराम करे बर अउ बांकी के दू घंटा ह डपट के खाय बर होना चाही। फेर इहाँ तो वोला कभी घला काम तियार देय जाथे, जइसे - नास्ता करते साट टहले बर, जादा ले जादा कोन्टा तक, जाय अउ आय के काम। असली कुकुर ल आगे के सोचना चाही। मारकस के अनुसार, ये ह तो खालिस जंगली गुलामी आय। जहाँ तक, वोकर आइडिया ये रिहिस - ’’अगर मंय भैरा होतेंव, जब वो ह मोला टहले बर जाय बर कहितिस, मंय सुनतेवच् नहीं, अउ मजाल हे कि वो ह मोला हला घला सकतिस, काबर कि मोला कोई हलइच नइ सकय। इही पाय के मंय ह भैरा बन जाथंव।’’

जउन दिन वो ह अपन ये योजना ल अमल म लाइस, मोर घरवाली ह घबराय-घबराय मोर कना आइस अउ चिल्ला के किहिस - ’’बिचारा, बुड़गा मारकस ह भैरा हो गे।’’

’’भैरा?’’ मंय ह चिल्लायेंव - ’’पर गय रात तक तो वो ह बिलकुल ठीक-ठाक सुन सकत रिहिस।’’ मंय ह रसोई म गेंव अउ वोला बलायेंव। ’’मारकस, टहले बर चल।’’ मंय ह केहेंव।

मंजे हुए कलाकार मन के समान मारकस ह मोर डहर उत्सुकता अउ भक्ति भाव के साथ टकटकी लगाय देखत रहय; यहाँ तक कि अइसे लगत रहय कि मंय ह का कहत हंव तउन ल वो ह जी-परान दे के सुने के कोशिश करत होय। बहुत देर ले चिल्लाय के बाद वोला विही कना छोड़ के मंय ह घूमे बर निकल गेंव, अउ वो ह मुसकात-मुसकात सुते बर चल दिस।

ये ह कुछ दिन पहिली के बात आय, मंय ह अंदाजा लगायेंव कि मारकस ह सिरिफ आधा भैरा हे, भोजन लेे जुड़े कोनों घला बात ल वो ह अभी तक सुन सकथे। इतवार के एक दिन मंय ह खाना खावत रेहेंव, जब मांस के एक ठन नानचुक टुकड़ा ह चिमटी ले सिलिप खा के कालीन के ऊपर गिर गे। हालाकि मारकस ह कुछ दुरिहा म रसोई घर म सुतत रिहिस, गिरे के आवाज ल सुन डरिस। झपट के वो ह खाय के कमरा म आइस अउ वोला गटक गिस।

’’हे!’’ मंय केहेंव - ’’तंय तो भैरा हस न।’’

मारकस के थोथना अउ पूछी, दोनो ह ओरम गे। वो ह जइसे सुरता करत होय कि वो ह तो भैरा हे।

जादा देर नइ लगिस, टहले बर जाय खातिर मंय ह तीन घांव ले वोला बलायेंव, वो ह नइ सुनिस, अउ जब कसाई ह आइस तब वो ह कूदत आ गे। आखिर म मोर घरवाली अउ मंय सहमत हो गेन कि वोकर इलाज हो सकथे।

वोकर इलाज खातिर हमन बड़ा मजेदार तरीका अपनायेन। मारकस ह भैरा हो गे हे। हमू मन ल चुप हो जाना चाही। जब मारकस ह हमर नजीक म होय तब हमन ल खाली बोले के एक्शन करना हे, एको शब्द बोले बिना।

मारकस ह कनसुना बइठेच् रिहिस अउ हिरक के देखिस घला नहीं (मारकस के पहिली प्रतिक्रिया ह बिलकुल सुस्त अउ थकेमांदे वाले रिहिस)। बहुत जल्दी वोला सचमुच चिंता होय लगिस। कही वो ह अपन ताकत के बढ़-चढ़ के उपयोग तो नइ कर परिस अउ सचमुच के भैरा तो नइ हो गे? सबले दुखदाई बात तो ये रिहिस कि वो ह सब जानय कि हमन जरूर खाय-पिये के गोठ गोठियावत हन। फेर वो तो भैरा हो गे रिहिस अउ इही बात के सुरता ह वोला दुख देेय लगिस।

जब हमन एक-दूसर ले बिना आवाज निकाले गोठियावन तब मारकस ह बहुत सोगसोगान ढंग ले हमर कोती टक लगा के देखय, ओठ के हलई ल पढ़े के कोशिश करय। खाय बर वोला कभू नइ बलाय गिस। मोला लगे कि चैबीस घंटा म वो ह सोला घंटा के बात ल छोड़ दे एको घंटा नइ सुत पात रिहिस होही, अउ तीन सौ पौंड के वोकर वजन के कम होय के वोला चिंता धर लिस।

वोकर संग कतरो दिन ले हमन अइसनेच् व्यवहार करेन। अउ तब मंय ह एक दिन वोकर सुने के ताकत ल वापिस लाय के निर्णय करेंव। सुबह-सुबह मंय ह जोर से चिल्ला के केहेंव - ’’मारकस! आ जा बालक, तोर टहले के बेरा हो गे हे।’’

वोकर बड़े जबर थोथना म भारी खुशी अउ राहत के भाव पसर गे। आखिर वो ह भैरा जो नइ हे। वो ह उछल के ठाड़ हो गे। नानचुक सुंदर पिला मन सरीख मेछरावत वो ह मुहाटी कोती भागिस। खुशी-खशी वो ह अपन जिंदगी के सबले जादा दुरिहा, आधा मील टहल के आइस। 

मारकस ल दुबारा भैरा होय के कोनो तकलीफ नइ होइस। हमू मन ल नइ होइस।
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