सोमवार, 7 अक्टूबर 2013

भारत की राजनीfत

भारत की राजनीति, राजनीतिक वातावरण और राजनीतिज्ञों के शुद्धिकरण की दिशा में अभी-अभी दो महत्वपूर्ण बातें हुई है।
पहला - भारत निर्वाचन आयोग द्वारा चुनाव लड़ रहे प्रत्याशियों को अस्वीकृत करने का मतदाताओं को  अधिकार देने की दिशा में पहल।

दूसरा - दागी मंत्रियों, सांसदों और विधायकों की सदस्यता समाप्त करने से संबंधित भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी आदेश को विफल करने के लिए सरकार द्वारा लाये गये अध्यादेश के विरूद्ध जन आक्रोश का राहुल गांधी द्वारा समर्थन करना और उसे फाड़कर नाली में बहाने की बात कहना। इससे बौखलाकर केन्द्र सरकार द्वारा इस अध्यादेश को वापस ले लिया गया है।

दागी मंत्रियों, सांसदों और विधायकों की सदस्यता समाप्त करने से संबंधित भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा आदेश जारी होने के बाद अनेक मंत्रियों और राजनेताओं और राजनीतिक दल के प्रवक्ताओं ने अपनी-अपनी प्रतिक्रियाएं दी है।

किसी ने कहा कि हम जनप्रतिनिधि हैं, पुलिस का कोई भी सिपाही हमें कैसे गिरफ्तार कर सकता है?

इस तरह का वक्तव्य देने वालों से पूछा जाय, क्या ये अपने लिए विशेष पुलिस बल चाहते हैं, जिसे ये अपने इशारों पर नचा सकें? वैसे भी पुलिस के कामकाज को प्रभावित करना इनके लिए कोई नई बात नहीं है।

किसी ने कहा - हम दागी हैं, अपराधी हैं तो जनता हमें चुनती क्यों है?

बेशर्मीपूर्वक इस तरह का तर्क (वास्तव में कुतर्क) देने वाले ये तुर्रमखान पहले यह बताएं कि चुनाव पंचार के दौरान क्या उन्हानें वोट की भीख अपने नाम पर मंगा था या अपनी पार्टी के नाम पर? यदि वोट की भीख इन लोगों ने अपने ही नाम पर मांगा था तो मांगते वक्त क्या इन लोगों ने अपने काले कारनामों और किए गये अपराधों को जनता के सामने प्रगट किया था?

सच्चाई तो यह है कि यहां के मतदाता किसी उम्मीदवार के पक्ष में नहीं बल्कि राजनीतिक पार्टी के पक्ष में अपना मत देते हैं। गांवों में ऐसे मतदाताओं की संख्या कम नहीं है जो आज भी अपना मत या तो इंदिरा माई को देते हैं या कि अटल बिहारी बाजपेई को। हर चुनाव में सभी राजनीतिक दल अपना-अपला चुनाव घोषण-पत्र जारी करते हैं। जनता अपना मत राजनीतिक दलों को उनके द्वारा जारी किये गए चुनावी घोषणा पत्र में किये गए वादों के आधार पर देती है। हम भलीभांति जानते हैं कि इन घोषण-पत्रों में लिखे गये अधिकांश लोकलुभावन वादों को कभी पूरा नहीं किया जाता है। राजनीतिक दल अपने उम्मीदवारों, जिनके लिए वे मत याचना करते हैं, की अच्छाइयों और बुराइयों को, उनके द्वारा किये गए अपराधों को जनता के सामने प्रगट क्यो नहीं करते हैं?

क्या अपनी असलियत को जनता की नजरों से छुपाकर, अथवा अपने उम्मीदवार की असलियत को जनता की नजरों से छुपाकर, झूठे वादों वाली चुनावी घोषणा-पत्र के आधार पर जनता से मतों की याचना करने वाले उम्मीदवारों और राजनीतिक दालों के विरूद्ध धोखा धड़ी और जनता को छलने के अपराध में चार सौ बीसी का अपराध पंजीबद्ध नहीं होना चाहिये?

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