व्यंग्य
अस्थायी मंच के सामने स्टील से निर्मित रावण के स्थायी अथिपंजरों में दिव्य मंत्रों की शक्तियों के प्रभाव से मांस-पेशियों का निर्माण किया गया था। दिव्य मंत्रों की शक्तियों के द्वारा ही दुनिया की तमाम बुरी आत्माओं का आह्वान करके उस दैत्याकार पुतले में प्राण शक्ति का संचार भी किया गया था। दूर देश से आमंत्रित किसी रावण साधक महायोगी के निर्देशन में स्थानीय योगियों द्वारा बड़े ही मनोयोग से रावण के इस विशाल पुतले का निर्माण किया गया था। सिद्ध मायावी मसखरे के समान दिखनेवाला रक्षराज का यह विशाल पुतला अत्यंत भव्य, आकर्षक, सुंदर और मनोरंजक दिख रहा था। अपने अठारह बलिष्ठ भुजाओं में धारण किये विभिन्न प्रकार के आयुधों का प्रदर्शन कर रहे और दो प्रमुख भुजाओं में धारण किये गये विशाल, चमकदार तलवारों को निरंतर लहरा रहे तथा मेघों के समान घोर गर्जना कर रहे इस पुतले को देखकर बच्चे तालियाँ बजा रहे थे। नर-नारी आह्लादित हो रहे थे। चारों ओर उत्साह का वातावरण था।
शहर में और भी भव्य पुतले बनाये गये थे। पुतलों तथा उनके दहन की भव्यता की संभावनाओं का पता लगानेवालों के जत्थों का आना-जाना लगा हुआ था। एक अत्यंत श्रद्धालु और उत्साहित व्यक्ति, जो नगर के अन्य सुप्रसिद्ध रावणों के कार्यक्रमों की संपूर्ण संभावनाओं की जांच करके उपस्थित हुआ था, कह रहा था - ’’यार, इस साल सरकारी स्कूल मैदानवाला रावण गजब का बना है।’’
’’और म्युुनिसिपल मैदानवाला?’’ साथी ने पूछा।
’’वो भी है, पर उतना अच्छा नहीं है।’’
एक अन्य ने कहा - ’’अबे चुप! अच्छे रावण-बुरे रावण के बच्चे। हमारे पुतले में क्या खराबी है? बाकी सब छोड़। ये बता, आज तूने नीलकंठ देखा है कि नहीं। आज के दिन नीलकंठ का दिख जाना बेहद शुभ माना जाता है। ...... नहीं देखा न? तो यहाँ देख ले, मोबाइल में।’’
साथी के स्मार्ट मोबाइल में दुर्लभ नीलकंठ को देख-देखकर वह सज्जन स्वयं को कृतार्थ करने लगा।
मुहल्ले में सफाई अभियान चलानेवालों का एक दल भी है। इस दल के सम्मानित सदस्यगण भी यहाँ पधारे हुए थे। रावण का पुतला हमेशा ही सबको आकर्षित करता है। सबको प्रभावित करता है। इस समय भी वह सबको आकर्षित और प्रभावित कर रहा था। कई लोगों की प्रेरणा का स्रोत भी रावण का पुतला ही होता है। सफाई अभियानवाले अनेक-नेक लोग इस पुतले से खासे प्रभावित नजर आ रहे थे। रावण के पुतले की प्रेरणा का ही असर होगा कि सफाई के नये-नये नुस्खे उन लोगों के मन में अंदर-बाहर हो रहे थे। तभी नोट बंदी के विचार की तरह का एक नेक विचार उन अनेक लोगों में से एक के नेक मन में कौंध आया। समिति के अन्य सदस्यों के सामने फौरन उसने अपना प्रस्ताव रखा - ’मुहल्ले की सफाई तो हो ही रही है, समाज के अंदर के अवगुणों की भी सफाई होनी चाहिए। बाहरी सफाई की तुलना में अंदर की सफाई अधिक जरूरी है। तभी अवगुण मुक्त समाज का निर्माण संभव हो पायेगा। और जाहिर है, समाज के अवगुणों की सफाई करने के लिए सबसे पहले समाज के अंदर के रावणों की सफाई होनी चाहिए।’
’वाह! वाह! कितना नेक विचार है। समाज से समाज के रावणों का निस्तारण तो होना ही चाहिए।’ उपस्थित लोगों ने भी अपने हजार-हजार नीलकंठों से इस नेक विचार को सराहा।
विचार नेक था। एकमत से मुहल्लेवालों की सराहना भी मिल रही थी। अतः इसके क्रियान्वयन के लिए मुहल्ले के तमाम विचारवान लोगों के द्वारा, समाज से रावणों के निस्तारण के लिए तत्काल ’रावण निस्तारण कमेटी’ का गठन कर लिया गया। शुभ कार्य के संपादन में विलंब नहीं करना चाहिए। रावण निस्तारण की योजना पर विचार मंथन जरूरी था। लिहाजा इस नेक काम के लिए कमेटी के सारे सदस्यगण रामलीला के मंच पर आकर बैठ गये। रामलीला कार्यक्रम को कुछ देर के लिए स्थगित कर दिया गया। रावण निस्तारण की योजना का ब्लूप्रिंट रावण दहन के आलोक में बने, इससे अच्छी बात और क्या हो सकती थी।
सबसे पहले नव निर्मित इस ’रावण निस्तारण कमेटी’ का अनुमोदन किया गया। विचार मंथन का दौर शुरू हुआ। कमेटी के विचार मंथन में अनेक विचारणीय प्रश्न उठने लगे। पहला विचारणीय प्रश्न था - रावण किसे कहा जाय? इस मसले पर भी विचारमंथन का दौर शुरू हुआ। सभी सदस्य अपने-अपने विचार प्रस्तुत करने लगे। किसी ने कहा - ’’जिस व्यक्ति के अंदर रावण का एक भी अवगुण होगा, उसे रावण मान लिया जाना चाहिए।’’
कमेटी के अध्यक्ष ने कहा - ’’इससे काम नहीं चलेगा। इसके लिए तय करना पड़ेगा कि रावण में कोैन-कौन सी बुराइयाँ थी, कौन-कौन से अवगुण थे। कुछ न कुछ अवगुण तो हम सबके अंदर होता है, वरना बाबाजी को कहना नहीं पड़ता - ’प्रभु मोरे अवगुण चित न धरो।’’
किसी ने कहा - ’’रावण अहंकारी था।’’
’’अहंकार किसके अंदर नहीं होता? फिर तो सारे लोग रावण मान लिये जायेंगे। यह नहीं चलेगा।’’
’’रावण ने देवताओं को बंदी बनाकर रखा था। अग्निदेव, पवनदेव और जल के देवता - वरुणदेव को उन्होंने कैद करके रखा था।’’
’’ऐसा उन्होंने अपने राज्य की जनता की भलाई के लिए कर रख था। इसका मतलब तो यही हुआ न कि उसके राज्य में जल संकट नहीं था। वायु प्रदूषण नहीं था। आजकल क्या हम लोग पानी को बोतलों में बंद करके नहीं रखते हैं? आग को माचिस की डिबियों में कैद करके नहीं रखते हैं? यह तो कोई बुराई नहीं हुई।’’
’’वह ऋषियों के यज्ञ-तप का विध्वंश करता था।’’
’’अपने धर्म और अपनी संस्कृति की रक्षा करना हर राजा का कर्तव्य होता है। जो ऋषि अपने धर्म के प्रचार के लिए उनके राज्य की सीमा में जाकर यज्ञ करता था, उन्हीं के साथ वह ऐसा करता था। आज की जनता और सरकारें ऐसा नहीं करती हैं क्या? रावण के इस कृत्य को भी अवगुण नहीं माना जा सकता।’’
’’जितने भी भ्रष्ट, मुनाफाखोर, ठगी, कालाबाजारी करनेवाले लोग हैं, उन सबको रावण मान लिया जाना चाहिए।’’
’’देखिए! इस श्रेणी का कोई भी अवगुण रावण में नहीं था। वह राजा था, व्यापारी नहीं। इसलिए आज ऐसा करनेवालों को रावण नहीं माना जा सकता। ऐसा करनेवालों को रावण मान लेने से रावण का अपमान होगा। रावण जैसे विद्वान का अपमान नहीं किया जा सकता। यह तर्क नहीं चलेगा।’’
’’उसने सीता का अपहरण किया था।’’
’’हाँ! यह विचारणीय प्रश्न है। ध्यान दिया जाय। रावण ने ऐसा जरूर किया था। परंतु उसने सीता की पवित्रता और पतिव्रता धर्म का ध्यान भी रखा था। सीता का अपहरण उनकी युद्धनीति का अंग रहा होगा। स्त्रियों का अपहरण सभी कालों में होता रहा है। सवाल स्त्रियों के अपहरण का नहीं, उनके शोषण का है। स्त्रियों का शोषण करनेवाला, स्त्रियों को अपमानित करनेवाला, चाहे कोई भी हो, उसे रावण ही माना जाना चाहिए।’’
इस तर्क को सुनकर सबको सांप सूँघ गया।
किसी अति सज्जनने कहा - ’’उसने अपनी भाभी, कुबेर की पत्नी के साथ अनाचार किया था।’’
’’पराई स्त्रियों के साथ अनाचार तो इन्द्र ने भी कई बार किया था। फिर भी वह अब तक देवताओं का राजा है। उसे मृत्युदण्ड तो नहीं दिया गया था। शाप जरूर दिया गया था। शाप उस समय का दण्डविधान रहा होगा। इसके लिए रावण को भी शाप देकर छोड़ा जा सकता था। सवाल है - पर स्त्री के साथ अनाचार करनेवाला देवता या राक्षस, कोई भी हो सकता है। ऐसा कृत्य समाज में सदैव से होता आया है। अब भी हो रहे हैं। ऐसे लोगों को दण्डित करने के लिए इन्द्रवाला तरीका अपनाया जाना चाहिए ........।’’
इन तर्कों से ’रावण निस्तारण कमेटी’ के सदस्यों का जो धैर्य पहले ही टूटने लगा था, अब तो टूट-टूटकर बिखरने लगा। सदस्यगण आपस में ही तू-तू मैं-मैं पर उतर आये।
तब तक दर्शकों का धैर्य भी टूट चुका था। भीड़ से ’जय श्रीराम’ के जयकारे के साथ आवाजें आने लगी - ’’रावणों, मंच खाली करो। रामलीला चालू करो।’’
भीड़ की उग्रता देखकर ’रावण निस्तारण कमेटी’ के सदस्यगण तुरंत मंच खालीकर इधर-उधर हो गये। समाज के रावणों का निर्धारण होते-होते रह गया।
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रावण निस्तारण कमेटी की रावण निस्तारण योजना
विजय दशमीं के अवसर पर शहर के सर्वाधिक शिष्ट और संपन्न माने जानेवाले इस मुहल्ले में, रावण दहन करने के लिए मुहल्ले के तमाम शिष्ट और विशिष्ट नर-नारी एवं बच्चे जुटे हुए थे। सुरक्षा कर्मियों के विशेष आग्रह पर भीड़ का फायदा उठाने में माहिर लोग और विभिन्न श्रेणियों के श्रेष्ठ अपराघकर्मीगण भी शहर के विभिन्न हिस्सों से आ-आकर बड़ी तादात में अपनी-अपनी कलाओं का सार्वजनिक प्रदर्शन करने के लिए मैदान के विभिन्न क्षेत्रों में विचरण कर रहे थे। सुरक्षाकमियों की मान्यता थी कि राम-रावण के इस धर्मयुद्ध में जब राम के अनुयायी आ सकते है तो सैन्य संतुलन के लिहाज से रावण के अनुयायियों का भी होना जरूरी है।अस्थायी मंच के सामने स्टील से निर्मित रावण के स्थायी अथिपंजरों में दिव्य मंत्रों की शक्तियों के प्रभाव से मांस-पेशियों का निर्माण किया गया था। दिव्य मंत्रों की शक्तियों के द्वारा ही दुनिया की तमाम बुरी आत्माओं का आह्वान करके उस दैत्याकार पुतले में प्राण शक्ति का संचार भी किया गया था। दूर देश से आमंत्रित किसी रावण साधक महायोगी के निर्देशन में स्थानीय योगियों द्वारा बड़े ही मनोयोग से रावण के इस विशाल पुतले का निर्माण किया गया था। सिद्ध मायावी मसखरे के समान दिखनेवाला रक्षराज का यह विशाल पुतला अत्यंत भव्य, आकर्षक, सुंदर और मनोरंजक दिख रहा था। अपने अठारह बलिष्ठ भुजाओं में धारण किये विभिन्न प्रकार के आयुधों का प्रदर्शन कर रहे और दो प्रमुख भुजाओं में धारण किये गये विशाल, चमकदार तलवारों को निरंतर लहरा रहे तथा मेघों के समान घोर गर्जना कर रहे इस पुतले को देखकर बच्चे तालियाँ बजा रहे थे। नर-नारी आह्लादित हो रहे थे। चारों ओर उत्साह का वातावरण था।
शहर में और भी भव्य पुतले बनाये गये थे। पुतलों तथा उनके दहन की भव्यता की संभावनाओं का पता लगानेवालों के जत्थों का आना-जाना लगा हुआ था। एक अत्यंत श्रद्धालु और उत्साहित व्यक्ति, जो नगर के अन्य सुप्रसिद्ध रावणों के कार्यक्रमों की संपूर्ण संभावनाओं की जांच करके उपस्थित हुआ था, कह रहा था - ’’यार, इस साल सरकारी स्कूल मैदानवाला रावण गजब का बना है।’’
’’और म्युुनिसिपल मैदानवाला?’’ साथी ने पूछा।
’’वो भी है, पर उतना अच्छा नहीं है।’’
एक अन्य ने कहा - ’’अबे चुप! अच्छे रावण-बुरे रावण के बच्चे। हमारे पुतले में क्या खराबी है? बाकी सब छोड़। ये बता, आज तूने नीलकंठ देखा है कि नहीं। आज के दिन नीलकंठ का दिख जाना बेहद शुभ माना जाता है। ...... नहीं देखा न? तो यहाँ देख ले, मोबाइल में।’’
साथी के स्मार्ट मोबाइल में दुर्लभ नीलकंठ को देख-देखकर वह सज्जन स्वयं को कृतार्थ करने लगा।
मुहल्ले में सफाई अभियान चलानेवालों का एक दल भी है। इस दल के सम्मानित सदस्यगण भी यहाँ पधारे हुए थे। रावण का पुतला हमेशा ही सबको आकर्षित करता है। सबको प्रभावित करता है। इस समय भी वह सबको आकर्षित और प्रभावित कर रहा था। कई लोगों की प्रेरणा का स्रोत भी रावण का पुतला ही होता है। सफाई अभियानवाले अनेक-नेक लोग इस पुतले से खासे प्रभावित नजर आ रहे थे। रावण के पुतले की प्रेरणा का ही असर होगा कि सफाई के नये-नये नुस्खे उन लोगों के मन में अंदर-बाहर हो रहे थे। तभी नोट बंदी के विचार की तरह का एक नेक विचार उन अनेक लोगों में से एक के नेक मन में कौंध आया। समिति के अन्य सदस्यों के सामने फौरन उसने अपना प्रस्ताव रखा - ’मुहल्ले की सफाई तो हो ही रही है, समाज के अंदर के अवगुणों की भी सफाई होनी चाहिए। बाहरी सफाई की तुलना में अंदर की सफाई अधिक जरूरी है। तभी अवगुण मुक्त समाज का निर्माण संभव हो पायेगा। और जाहिर है, समाज के अवगुणों की सफाई करने के लिए सबसे पहले समाज के अंदर के रावणों की सफाई होनी चाहिए।’
’वाह! वाह! कितना नेक विचार है। समाज से समाज के रावणों का निस्तारण तो होना ही चाहिए।’ उपस्थित लोगों ने भी अपने हजार-हजार नीलकंठों से इस नेक विचार को सराहा।
विचार नेक था। एकमत से मुहल्लेवालों की सराहना भी मिल रही थी। अतः इसके क्रियान्वयन के लिए मुहल्ले के तमाम विचारवान लोगों के द्वारा, समाज से रावणों के निस्तारण के लिए तत्काल ’रावण निस्तारण कमेटी’ का गठन कर लिया गया। शुभ कार्य के संपादन में विलंब नहीं करना चाहिए। रावण निस्तारण की योजना पर विचार मंथन जरूरी था। लिहाजा इस नेक काम के लिए कमेटी के सारे सदस्यगण रामलीला के मंच पर आकर बैठ गये। रामलीला कार्यक्रम को कुछ देर के लिए स्थगित कर दिया गया। रावण निस्तारण की योजना का ब्लूप्रिंट रावण दहन के आलोक में बने, इससे अच्छी बात और क्या हो सकती थी।
सबसे पहले नव निर्मित इस ’रावण निस्तारण कमेटी’ का अनुमोदन किया गया। विचार मंथन का दौर शुरू हुआ। कमेटी के विचार मंथन में अनेक विचारणीय प्रश्न उठने लगे। पहला विचारणीय प्रश्न था - रावण किसे कहा जाय? इस मसले पर भी विचारमंथन का दौर शुरू हुआ। सभी सदस्य अपने-अपने विचार प्रस्तुत करने लगे। किसी ने कहा - ’’जिस व्यक्ति के अंदर रावण का एक भी अवगुण होगा, उसे रावण मान लिया जाना चाहिए।’’
कमेटी के अध्यक्ष ने कहा - ’’इससे काम नहीं चलेगा। इसके लिए तय करना पड़ेगा कि रावण में कोैन-कौन सी बुराइयाँ थी, कौन-कौन से अवगुण थे। कुछ न कुछ अवगुण तो हम सबके अंदर होता है, वरना बाबाजी को कहना नहीं पड़ता - ’प्रभु मोरे अवगुण चित न धरो।’’
किसी ने कहा - ’’रावण अहंकारी था।’’
’’अहंकार किसके अंदर नहीं होता? फिर तो सारे लोग रावण मान लिये जायेंगे। यह नहीं चलेगा।’’
’’रावण ने देवताओं को बंदी बनाकर रखा था। अग्निदेव, पवनदेव और जल के देवता - वरुणदेव को उन्होंने कैद करके रखा था।’’
’’ऐसा उन्होंने अपने राज्य की जनता की भलाई के लिए कर रख था। इसका मतलब तो यही हुआ न कि उसके राज्य में जल संकट नहीं था। वायु प्रदूषण नहीं था। आजकल क्या हम लोग पानी को बोतलों में बंद करके नहीं रखते हैं? आग को माचिस की डिबियों में कैद करके नहीं रखते हैं? यह तो कोई बुराई नहीं हुई।’’
’’वह ऋषियों के यज्ञ-तप का विध्वंश करता था।’’
’’अपने धर्म और अपनी संस्कृति की रक्षा करना हर राजा का कर्तव्य होता है। जो ऋषि अपने धर्म के प्रचार के लिए उनके राज्य की सीमा में जाकर यज्ञ करता था, उन्हीं के साथ वह ऐसा करता था। आज की जनता और सरकारें ऐसा नहीं करती हैं क्या? रावण के इस कृत्य को भी अवगुण नहीं माना जा सकता।’’
’’जितने भी भ्रष्ट, मुनाफाखोर, ठगी, कालाबाजारी करनेवाले लोग हैं, उन सबको रावण मान लिया जाना चाहिए।’’
’’देखिए! इस श्रेणी का कोई भी अवगुण रावण में नहीं था। वह राजा था, व्यापारी नहीं। इसलिए आज ऐसा करनेवालों को रावण नहीं माना जा सकता। ऐसा करनेवालों को रावण मान लेने से रावण का अपमान होगा। रावण जैसे विद्वान का अपमान नहीं किया जा सकता। यह तर्क नहीं चलेगा।’’
’’उसने सीता का अपहरण किया था।’’
’’हाँ! यह विचारणीय प्रश्न है। ध्यान दिया जाय। रावण ने ऐसा जरूर किया था। परंतु उसने सीता की पवित्रता और पतिव्रता धर्म का ध्यान भी रखा था। सीता का अपहरण उनकी युद्धनीति का अंग रहा होगा। स्त्रियों का अपहरण सभी कालों में होता रहा है। सवाल स्त्रियों के अपहरण का नहीं, उनके शोषण का है। स्त्रियों का शोषण करनेवाला, स्त्रियों को अपमानित करनेवाला, चाहे कोई भी हो, उसे रावण ही माना जाना चाहिए।’’
इस तर्क को सुनकर सबको सांप सूँघ गया।
किसी अति सज्जनने कहा - ’’उसने अपनी भाभी, कुबेर की पत्नी के साथ अनाचार किया था।’’
’’पराई स्त्रियों के साथ अनाचार तो इन्द्र ने भी कई बार किया था। फिर भी वह अब तक देवताओं का राजा है। उसे मृत्युदण्ड तो नहीं दिया गया था। शाप जरूर दिया गया था। शाप उस समय का दण्डविधान रहा होगा। इसके लिए रावण को भी शाप देकर छोड़ा जा सकता था। सवाल है - पर स्त्री के साथ अनाचार करनेवाला देवता या राक्षस, कोई भी हो सकता है। ऐसा कृत्य समाज में सदैव से होता आया है। अब भी हो रहे हैं। ऐसे लोगों को दण्डित करने के लिए इन्द्रवाला तरीका अपनाया जाना चाहिए ........।’’
इन तर्कों से ’रावण निस्तारण कमेटी’ के सदस्यों का जो धैर्य पहले ही टूटने लगा था, अब तो टूट-टूटकर बिखरने लगा। सदस्यगण आपस में ही तू-तू मैं-मैं पर उतर आये।
तब तक दर्शकों का धैर्य भी टूट चुका था। भीड़ से ’जय श्रीराम’ के जयकारे के साथ आवाजें आने लगी - ’’रावणों, मंच खाली करो। रामलीला चालू करो।’’
भीड़ की उग्रता देखकर ’रावण निस्तारण कमेटी’ के सदस्यगण तुरंत मंच खालीकर इधर-उधर हो गये। समाज के रावणों का निर्धारण होते-होते रह गया।
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