दोहा
’दोहा’ या ’दूहा’ अपभ्रंश भाषा का प्रसिद्ध छंद है। ..... यह शब्द कैसे बना यह बताना कठिन है। संस्कृत के कुछ पंडित कहते हैं कि यह ’दोधक’ शब्द से बिगड़कर बना। पर दोधक और दोहा में कोई साम्य नहीं है। .....
कुछ लोग कहते हैं कि दोहा उसी प्रकार बना होगा जैसे चैपई, चैपाई या छप्पय। जिसमें चार पद या चरण हों वह चैपई या चैपाई या जो चार पँक्तियों में लिखी जाय वह चैपई या चैपाई। जो छः पँक्तियों में लिखी जाय वह छप्पय। इसी प्रकार जो दो पँक्तियों में लिखा जाय वह दोहा। छप्पय में वस्तुतः दो छंद होते हैं - रोला और उल्लाला। इस प्रकार शास्त्र के अनुसार छप्पय में आठ चरण हुए। पर छः पँक्तियों में लिखे जाने के कारण इसे छप्पय कहते आये हैं। .....
यह भी कहा जाता है कि प्राकृत की ’गाथा’ से भी इसकी निरूक्ति हो सकती है। ’दो $ गाथा’ से ’दो $ गाहा’, दोआहा, दोहा बन गया। ’दोहा’ में ’हा’ को प्रत्यय भी मान सकते है - दो पँक्तियोंवाला। ......
’दोहा’ ही उलटकर ’सोरठा’ हो जाता है। पर सोरठा शब्द दोहा की निरूक्ति में कोई सहायता नहीं करता। जान पड़ता है कि अपभ्रंश युग में दोहे को उलटने की प्रथा सौराष्ट्र (गुजरात) में चली, इसी से यह सोरठा हुआ। ....
(बिहारी, विरूवनाथ प्रसाद मिश्र,संस्करणः अक्टूबर 1987, पृ. 70-71)
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