बुधवार, 18 अक्तूबर 2017

आलेख

ज्ञान का अर्थ है - बाजार की जानकारी होना।

’’ज्ञान ही शक्ति है।’’ बाजार में यह सूक्तिवाक्य आजकल खूब उछल रहा है, पर सवाल है - कब नहीं था? मनु के ज्ञान की शक्ति की जकड़ आज तक कायम है इसे कौन नहीं जानता। मेकाले के ज्ञान की शक्ति के फंदे में फँसा देश अब तक फड़फड़ा रहा है, इसे कौन नकार सकता है। बाजार ने इस नारे के द्वारा जो नयी जकड़न तैयार किया है, जो नयी जाल बुनी है, उसका प्रभाव विश्वव्यापी है, और इसकी गिरफ्त में पूरी दुनिया है। बाजार अपने द्वारा प्रयोगित हर शब्द को एक नया अर्थ देता है। इस नारे में ’ज्ञान’ शब्द के निहितार्थ इस प्रकार हैं -

1. ज्ञान का अर्थ है - विकास। ज्ञान से ही आप विकास कर सकते हैं और विकास का अर्थ है केवल औद्योगिक विकास। जल, जंगल, जमीन और जन की चिंता न करो। ये सब दोहन करने के लिए ही बने हुए हैं।

2. ज्ञान का अर्थ है - आप में इतनी क्षमता है कि अपने स्वार्थ और अपने लाभ के लिए आप दुनिया की हर स्थूल और सूक्ष्म चीज को खरीद सकते है, बेच सकते हैं। आप सरकारों को भी खरीद और बेच सकते हैं।

3. ज्ञान का अर्थ है - सफलता। ज्ञान से ही आप सफलता प्राप्त कर सकते है और सफलता का एकमात्र अर्थ है, पैसा कमाना। पैसा कमाने के लिए कोई भी रास्ता, कोई भी साधन अपनाया जा सकता है। रास्ता अनैतिक भी हुआ तो चिंता न करो। पैसों के द्वारा नैतिकता और अनैतिकता को पुनरपरिभाषित किया जा सकता है। पैसा स्वयं पवि़त्र और नैतिक होता है, इसके स्पर्श से हर चीज नैतिक और पवित्र हो जाती है।

4. ज्ञान का अर्थ है - पैसा कमाना। अपनी क्रयशक्ति बढ़ाना। जो व्यक्ति बाजार द्वारा उत्पादित वस्तुओं से जितना अधिक स्वयं को और आपने घर को सजाता और अलंकृत करता है। वह उतना ही अधिक सफल माना जाता है।

5. ज्ञान का अर्थ है - बाजार की जानकारी होना। बया, अप्रेल-जून, 2017, पृ. 14 के अनुसार - वर्ष 2000 में ’शिक्षा सुधार हेतु नीतिगत प्रारूप’ (अ पाॅलिसी फ्रेमवर्क फाॅर रिफार्म इन एजुकेशन) पर शिक्षा आयोग का गठन किया गया था। शिक्षाविदों के स्थान पर देश के दो सबसे सफल उद्यमियों मुकेश अंबानी और बिरला कुमारमंगलम को इसमें बतौर प्रतिनिधि शामिल किया गया। प्रधानमंत्री कार्यालय के आग्रह पर इन्हें आयोग का प्रतिवेदन तैयार करने के लिए कहा गया। इस आयोग के दस्तावेज का अर्टिकल 1, 6 कहता है - ’’..... शिक्षा के बारे में हमें अपनी मानसिकता बदलनी होगी। सामाजिक विकास के घटक के रूप में नहीं बल्कि शिक्षा को मुनाफा कमाने के साधन के रूप में देखना होेगा ....।’’ आगे कहा गया है - ’’... दुनिया अब तेजी से बाजारोन्मुख अर्थव्यवस्था को अपना चुकी है और उसके बारे में जो जानकारी होगी वह शिक्षा के बराबर होगी। उपभोक्ता वस्तुओं का उत्पादन ही उसके (शिक्षा के) आर्थिक मूल्य का निर्धारक घटक होगा।’’

6. आज ज्ञान का अर्थ है - संतुलित रूप से विकसित इन्सान की जगह प्रशिक्षित कुत्ते तैयार करना। हमारे शिक्षण संस्थान क्या ऐसा ही नहीं कर रहे हैं?
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