गुरुवार, 19 अक्तूबर 2017

व्यंग्य

मित्रों के बोल-नमूने

नमूना - 4
ग्राम बसे सो भूतानाम् - 


एक मित्र अक्सर यह श्लोक बोलते हैं - ’’ग्राम बसे सो भूतानाम्, नगर बसे सो देवानाम्।’’ गाँव में बसे वो भूत हैं, शहर में बसे वो देवता हैं। 

गाँव में बसनेवाले भूत, उत्पादक होते हैं। ईश्वर ने इन्हें रात-दिन, बारहों महीने, कड़ी मेहनत करने के लिए बनाया है। अपने उत्पादन कर्म से संबंधित इनके पास ज्ञान का अकूत भण्डार होता है। इनका ज्ञान इनके अनुभव और इनकी परंपरा से अर्जित यथार्थ ज्ञान होता है। इसी ज्ञान के आधार पर ये कड़ी मेहनत करके अनाज और अन्य समाजोपयोगी वस्तुओं का उत्पादन करते हैं। इनके ज्ञान का विधान ईश्वर ने नहीं किया है इसीलिए देवताओं की नजर में इनके ज्ञान का कोई मोल नहीं होता। देवताओं के अनुसार अनाज पैदा करना घोरपाप कर्म है। इसमें हिंसा होती है। हिंसा महापाप है। इस घोर पापकर्म के बदले ये नाना प्रकार के दुख पाते हैं। इसी पापकर्म के कारण ये आत्महत्या करके भूत बन जाते हैं। हवा से ये अपनी भूख मिटाते हैं। हवा खा-खाकर ये स्वयं हवा की तरह हो जाते हैं। भूत बनकर ये जन्म और मुक्ति के बीच अटके रहते हैं। भूतों के पास स्वर नहीं होते। बोलने में ये असमर्थ होते हैं। भूत होने के कारण न तो ये सरकार को दिखाई देते है और न ही ईश्वर को। 

ईश्वर ने देवताओं को केवल उपभोग करने के लिए बनाया है। इनके पास शास्त्र होते हैं। इनके शास्त्रों को ईश्वर ने स्वयं लिखा है। प्रमाणित करने के लिए इन शास्त्रों में ईश्वर ने अपना हस्ताक्षर किया हुआ है। देवता जो भी करते हैं, शास्त्रों के विधान के अनुसार करते हैं। इसीलिए ये जो भी करते हैं, पुण्य का काम माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार भूतों के द्वारा उत्पादित वस्तुओं पर देवताओं का अधिकार ईश्वरीय विधान माना गया है। इसी विधान के कारण ये संसार के समस्त सुखों का उपभोग करते हैं। सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करते हैं। इनकी एक पुकार पर ईश्वर इनकी सेवा में हाजिर हो जाते हैं।

सच है, गाँव भूत हैं। इनका न तो कोई वर्तमान है और न ही भविष्य। शहर वर्तमान हैं। इनका भविष्य उज्ज्वल है।
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