शुक्रवार, 27 अक्तूबर 2017

व्यंग्य

मित्रों के बोल-नमूने

नमूना - 6 : उलटबासी 

मित्र अभी अपने वक्तव्य की तैयारियों में व्यस्त हैं। दो दिन बाद किसी साहित्यिक कार्यक्रम में ’’कबीर की उलटबासियाँ’ विषय पर उसे वक्तव्य देना है। कल की बात है। परिस्थितियों से परेशान अपने एक दुखी मित्र के दुख को साझा करते हुए वह कह रहा था। मित्र! बाबाजी ने कहा है - ’धीरज, धरम, मित्र अरु नारी, बीपतकाल परखिए चारी।’ परिस्थितियाँ चाहे जैसी हों, निराश कभी नहीं होना चाहिए। कहते हैं - ऊपरवाले के यहाँ देर है, अँधेर नहीं।

उसके उस दुखी मित्र ने कहा - भाई! समय और परिस्थियाँ बदलती रहती हैं। साथ-साथ चीजों को भी ये बदल देती हैं। समय और परिस्थियों ने इस कहावत को भी बदल दिया है। मुझे लगता है - ऊपरवाले के यहाँ अब अंधेर होने में कोई देर नहीं लगती।

मित्र ने कहा - वाह भाई! इसी को शायद उलटबासी कहते है।
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