बुधवार, 18 अक्तूबर 2017

व्यंग्य

मित्रों के बोल-नमूने
नमूना 3

एक मित्र ने बाली वध की कथा इस प्रकार बताई - 

मित्रता बदाई का अनुष्ठान पूर्ण होने के पश्चात् श्री रामचन्द्रजी ने सुग्रीव से पूछा - ’’मित्र! आप राजपुरुष हैं। अपना राज्य छोड़कर इस निर्जन वन-पर्वत में क्यों निवास करते हैं? आपको यहाँ नाना प्रकार के कष्ट सहने पड़ते होंगे। आपका दुख मुझसे देखा नहीं जाता। शास्त्रों में कहा गया है, मित्र का दुख राई की तरह भी हो तो उसे पहाड़ की तरह समझना चाहिए। आपके दुखों का निवारण करना मेरा प्रथम कर्तव्य है। कारण बताइए।’’

सुग्रीव ने कहा - ’’मित्र! मैं भी यही बातें आपसे पूछना चाहता हूँ। आप भी तो मेरे ही समान दुखी हैं। वन-वन आप भी भटक रहे हैं। किस चीज की तलाश है आपको?

फिर दोनों ने अपनी-अपनी समस्याएँ साझा की। तय हुआ कि पहले सुग्रीव की समस्या का निवारण किया जायेगा।

श्री रामचन्द्रजी ने कहा - ’’मित्र! बाली ने आपके साथ अन्याय किया है। वह आततायी है। वह आपका वध करना चाहता है। समझौते की क्या कोई संभावना नहीं बची है?’’

सुग्रीव ने कहा - ’’नहीं, मित्र! चाहें तो आप प्रयास करके देख लें।’’

अंत में बाली का वध करना ही तय हुआ। श्री रामचन्द्रजी ने कहा - ’’आप बाली को युद्ध की चुनौती दीजिए। चूँकि आमने-सामने की लड़ाई में आधा बल बाली के शरीर में चला जाता है इसलिए जब आप दोनों युद्धरत रहोगे उसी समय मैं उसे छिपकर मारूँगा।’’

सुग्रीव ने कहा- ’’मित्र! छिपकर तो मैं भी मार सकता हूँ। यह विचार मेरे भी मन में आता है। परंतु किसी वीर को छिपकर मारना अधर्म है। जब दो योद्धा लड़ रहे हों तो बिना चुनौती दिए प्रहार करना तो सबसे बड़ा अधर्म है। ये दोनों ही बातें न तो युद्ध के नियमों के अनुकूल हैं और न ही क्षत्रिय धर्म के। इससे तो आपको अपयश ही मिलेगा  और पाप का भागी भी बनना पड़ेगा।’’

श्री रामचन्द्रजी ने कहा - ’’नहीं, मित्र! आतताइयों का वध करने से अपार यश मिलता है। स्वर्ग का मार्ग प्रशस्त करनेवाले पुण्य की प्राप्ति होती है। तरीका चाहे कोई भी हो।’’

श्री रामचन्द्रजी की ऐसी कल्याणकारी, मीठी-मीठी बातें सुनकर सुग्रीव के मन की सारी शंकाएँ जाती रही। अब उसे पूरी तरह विश्वास हो गया कि श्री रामचन्द्रजी ईश्वर के ही अवतार हैं।
जय श्रीराम।
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